Saturday 7 September 2013

देसी रोमांस का बैंड बजाती फिल्म शुद्ध देसी रोमांस

परिणीती के कमीज़ के बटन खोलते सुशांत 
                  मनीष शर्मा बैंड बाजा बरात और लेडीज वर्सेज रिक्की बहल के बाद शुद्ध देसी रोमांस लेकर आते हैं, तो उनके प्रशंसक दर्शकों को उम्मीद बधती है कि उन्हें एक अच्छी मनोरंजक फिल्म देखने को मिलेगी. लेकिन, मनीष शर्मा अपनी पहले की फिल्मों की सफलता से इतने आत्म मुग्ध हो गए कि उन्होंने अपनी पहले की दोनों फिल्मों का कुछ न कुछ डाल लिया. बैंड बाजा बरात में मैरिज प्लानर की कहानी थी तो शुद्ध देसी रोमांस में शादी की बरात में अच्छे कपडे पहन कर अंग्रेज़ी बोलने वाले किरदार है. फिल्म के दौरान जब रघु शादी के मंडप पर लड़की छोड़ कर भाग जाता है और परिणीती पर डोरे डालने लगता है तो लेडीज वर्सेज रिक्की बहल की याद ताजा हो जाती है. हाँ, तो फिल्म की बात हो रही थी. अब होता यह है कि शादी की बरात में नाचने वाले ऐसे ही एक किरदार रघुराम की शादी की बरात जा रही है. उसमे शामिल होने के लिए अल्ट्रा मॉडर्न गायत्री आती है. ऐन शादी के वक़्त रघु को पेशाब लगती है और वह टॉयलेट से भाग खड़ा होता है. अगले ही सीन में रघु से गायत्री मिलती है. दोनों चालू पीस हैं.  गायत्री तीन चार लड़कों के साथ पहले भी सो चुकी है. वह और रघु भी एक साथ सोते है. दोनों शादी की दहलीज़ तक पहुंचते हैं कि इस बार गायत्री को पेशाब लगती है और वह टॉयलेट से फरार हो जाती है. अब रघुराम को मिलती है तारा। इस बार रघु उसकी और आकर्षित होता है. एक शादी में गायत्री भी मिल जाती है. दो लड़कियों की जद्दो जहद में फंसे रघु की फिल्म का अंत भी बाथरूम में होता है.
                      फिल्म  में कहानी नदारद है. मनीष शर्मा ने एक लड़का, दो लड़की, एक बाथरूम, एक बारात, धकाधक चुम्बन चाटन और सेक्स दृश्यों के सहारे दो घंटे से ज्यादा की फिल्म बना डाली है. यह सब सिचुएशन  और संवादों के सहारे इतनी बार दिखाया जाता है कि फिल्म का अंत इसी पर ख़त्म होता देख कर दर्शक  निराशा से भर उठता है. यशराज फिल्म्स से इतनी अधकचरी फिल्म की अपेक्षा नहीं की जाती। निर्माता आदित्य चोपड़ा को यह समझना होगा कि संवाद के सहारे बनी कोई फिल्म बिना दूल्हे की बारात जैसी होती है. एडिटर नम्रता राव अगर अपनी कैंची चलाती तो फिर पहले पेशाब प्रसंग के अलावा रिपीट हुए कोई दृश्य नहीं बचते. मनु आनंद का छायांकन जयपुर के खूबसूरत दृश्यों को दर्शकों के सामने लाता है. सचिन जिगर का संगीत यादगार नहीं कहा जा सकता. केवल एक दो धुनें ही ठीक बनी हैं. अभिनय की बात की जाए तो सुशांत को उनकी भोली शक्ल और पवित्र रिश्ता वाली इमेज के कारण लिया जाता है. सुशांत अपनी हर फिल्म में पवित्र रिश्ता के मानव को दोहराते हैं. परिणीती चोपड़ा भी सीमित प्रतिभा की अभिनेत्री है। इसलिए वह गायत्री के चरित्र को आराम से कर ले जाती हैं. वाणी कपूर को बहुत मौके नहीं मिले। पर वह अपने ग्लैमर से आकर्षित करती हैं. सबसे बढ़िया और स्वाभाविक काम उन बाथरूमों का रहा है, जो नेचुरल नज़र आते हैं.
                        शुद्ध देसी रोमांस छोटे शहरों और कस्बों के युवाओं की मानसिकता को ध्यान में रख कर बनायी गयी है. निर्देशक मनीष शर्मा जानते हैं कि  यह दर्शक घटिया और भद्दे शब्दों वाले संवादों पर तालियाँ और सीटियाँ बजाता है. उसे लौंडिया का लपक कर चुम्बन चमेटने  वाला हीरो रास आता है. जब हीरो हेरोइन को बिस्तर दे मारता है तो यह युवा कुर्सियां तोड़ने को तैयार हो जाता है. फिल्म में यही कुछ इफरात में है.
                         अगर  आप छोटे कस्बे वाली मानसिकता वाले दर्शक है और केवल संवादों के सहारे फिल्म देख सकते हैं तो यह फिल्म आपके ही लिए बनी है. 
                    




 

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