Friday 28 June 2013

घनचक्कर बनते दर्शक!

Emraan Hashmi & Vidya Balan at Ghanchakkar On The Sets
यूटीवी के सिद्धार्थ रॉय कपूर और रोनी स्क्रूवाला की जोड़ी लगता है इस बार चूक गयी। राजकुमार गुप्ता ने इनके लिए आमिर और नो वन किल्ड जेसिका जैसी बढ़िया फिल्में बनाई थी। नो वन किल्ड जेसिका को तो बॉक्स ऑफिस सक्सेस भी मिली तथा प्रशंसा और पुरुस्कार भी । इसलिए, परवेज़ शेख के साथ खुद राजकुमार गुप्ता की लिखी कथा पटकथा पर फिल्म बनाने के लिए यूटीवी की इस जोड़ी का राजी हो जाना, स्वाभाविक भी था। घनचक्कर के लिए इमरान  हाशमी विद्या बालन के साथ लिए गए थे। इस जोड़ी ने द डर्टी पिक्चर जैसी फिल्म दी थी। फिल्म में अमित त्रिवेदी की धुनों पर गीत अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखे थे। फिल्म से इतने बड़े नाम जुड़े होने से दर्शकों की फिल्म से उम्मीदें भी बढ़ना स्वाभाविक था। पर यह नहीं कहा जा सकता कि घनचक्कर दर्शकों की ज़्यादा उम्मीदों का शिकार हो गयी। इस फिल्म में कमियों और खामियों का विश्व रेकॉर्ड बनाने की क्षमता है।
फिल्म की कहानी एक बैंक से 35 करोड़ की डकैती डालने की है। पंडित और हुसैन, संजय आत्रे को डरा धमका और लालच दे कर इस डकैती में तिजोरी खोलने के लिए राजी करते है। वह इसमे सफल भी हो जाते हैं। डकैती का पैसा अटैची में रखने के बाद पंडित इस पैसे को तीन महीने तक अपने पास ही रखने के लिए आत्रे से कहता है। अब होता क्या है कि संजय का आक्सीडेंट हो जाता है और वह भूलने की बीमारी का शिकार हो जाता है। सुनने में यह कहानी उम्मीदें जगाने वाली काफी उम्दा लगती है। पहली दो तीन रील तक यह उम्मीद कायम भी रहती है। लेकिन, इसके बाद फिल्म राजकुमार गुप्ता के हाथों से जो फिसलती है तो फिर फिसलती ही चली जाती है। अनावश्यक और बेसिर पैर की घटनाएँ घटती ही रहती हैं। संजय और उसकी पत्नी नीतू तथा पंडित और हुसैन के चार चरित्रों के साथ शुरू यह कहानी पात्रों के  बढ़ने के साथ हल्की पड़ती चली जाती है। कभी ऐसा लगता है कि कोई चौकाने वाला बढ़िया ट्विस्ट आने वाला है। मगर जो कुछ होता है वह फिल्म को कमजोर कर देता है। फिल्म के क्लाइमैक्स का खून खराबा भी अस्वाभाविक है।
सच कहा जाए तो एक अच्छी कहानी पर बढ़िया पटकथा लिखने में राजकुमार गुप्ता और शेख की जोड़ी बिल्कुल चूक गयी। शुरुआत करने के साथ ही वह बिखरते चले गए। इमरान हाशमी का संजय आत्रे का कैरक्टर प्रमुख है, पर उसे भी डिवैलप नहीं किया गया है कि वह तिजोरी खोलने के मामले में इतना मशहूर कैसे हो गया कि उसके पास बड़ी डकैती के प्रस्ताव आने लगे। पंडित और हुसैन किसी लिहाज से डकैत नहीं लगते। बल्कि, वह कमेडियन ज़्यादा महसूस होते हैं। दरअसल उनके कैरक्टर ही ऐसे लिखे गए हैं। राजकुमार गुप्ता न तो रफ्तार रख पाये, न थ्रिल का एहसास करा पाये। ऐसी फिल्मों में संगीत महत्वपूर्ण होता है। लेकिन, घनचक्कर में वह भी बेजान है।
दर्शक घनचक्कर को देखने अभिनेत्री विद्या बालन के चक्कर में गए थे। लेकिन, विद्या बालन को देख कर झल्लाहट पैदा होती हैं। वह फ़ैशन परास्त पंजाबन के बजाय किसी सर्कस की जोकर जैसी लगती है। वह इमरान हाशमी जैसे अभिनेता के सामने भी नहीं उभर पातीं। उन्होने अजीबो गरीब कपड़े पहने हैं। लेकिन, इनमे वह सेक्सी लगने के बजाय बेढंगी लगती हैं। घनचक्कर विद्या बालन के सबसे घटिया फिल्म कही जाएगी। विद्या के मुकाबले इमरान हाशमी का काम अच्छा है। डकैत बने नमित दासऔर राजेश शर्मा ने अपना काम अच्छी तरह से किया है। लेकिन, वह दर्शकों को हंसा पाने में नाकाम रहे हैं।
घनचक्कर को देख कर दर्शकों को चक्कर आ सकते हैं। वह खुद को ठगा महसूस कर सकते हैं । लेकिन, यह उनकी गलती है कि वह घनचक्कर को विद्या बालन की फिल्म के चक्कर में देखने जाते हैं। यह विद्या का Himalayan blonder है कि उन्होने घनचक्कर को अपने पति के चक्कर में साइन कर लिया। इससे विद्या के कैरियर को नुकसान ही होगा। दर्शक घनचक्कर को देखना चाहे तो देखें। लेकिन, अगर नहीं देखना चाहें तो बहुत बेहतर होगा।

Thursday 27 June 2013

क्या दर्शक लगाएँगे विद्या बालन की घनचक्कर के चक्कर !

 इस शुक्रवार बड़े पर्दे पर वन वुमन शो होगा। निर्माता निर्देशक और लेखक अजय यादव की थ्रिलर फिल्म भड़ास में इतना दम नज़र नहीं आता कि वह निर्देशक राजकुमार गुप्ता की रोमांटिक कॉमेडी फिल्म घनचक्कर को बॉक्स ऑफिस पर चक्कर या टक्कर दे सके। पाकिस्तान की अभिनेत्री मीरा की भड़ास में वह बात नहीं कि वह विद्या बालन के घनचक्कर को चकरा सके । मतलब यह कहा जा सकता है कि इस हफ्ते   रिलीस हो रही दो हीरोइन ओरिएंटेड़ फिल्मों के बावजूद शो वन वुमन ही होगा। भड़ास की मीरा के बजाय घनचक्कर की विद्या बालन पूरे वीक पर्दे पर छाई रहेंगी। घनचक्कर में उनके हीरो इमरान हाशमी हैं, जो इस फिल्म से पहले विद्या बालन के साथ फिल्म द डर्टी पिक्चर्स में काम कर चुके हैं। इमरान हाशमी रश, राज़ 3 और एक थी डायन जैसी फिल्मों से खुद को एक अलग इमेज दे पाने में सफल हुए हैं। लेकिन, सबसे मुश्किल होगा विद्या बालन को दर्शकों पर अपनी पकड़ साबित करना। लगातार चार फिल्मों पा, इश्किया, नो वन किल्ड जेसिका, द डर्टी पिक्चर्स और कहानी से खुद के लिए पुरस्कार और सम्मान बटोरे ही, खुद के लिए दर्शकों में अपेक्षाएँ कुछ ज़्यादा ही जगा ली। हिन्दी फिल्मों का दर्शक, उनकी हर फिल्म से कुछ अलग और प्रभावशाली
देखने की उम्मीद करने लगा है। विद्या बालन ने अपनी हीरोइन ओरिएंटेड़ फिल्मों से खुद को स्टार एक्ट्रेस का खिताब बटोर रखा है। घनचक्कर में वह एक पंजाबी ग्रहणी की भूमिका में हैं। विद्या बालन ने बंगाली लड़की के रोल खूब किए हैं। द डर्टी पिक्चर्स में वह सिल्क स्मिथा बनीं थी। नो वन किल्ड जेसिका में वह ईसाई लड़की की भूमिका में थीं। अब वह पंजाबन के रोल में पूरे देश के दर्शकों को लुभाने के प्रयास में होंगी। राजकुमार गुप्ता के साथ घनचक्कर विद्या बालन की दूसरी फिल्म है। गुप्ता की फिल्म नो वन किल्ड जेसिका में रानी 0   के साथ विद्या बालन थीं। कहा जा सकता है कि राजकुमार गुप्ता और विद्या बालन एक हिट जोड़ा है। द डर्टी पिक्चर के बाद इमरान हाशमी भी उनके लकी जोड़े बन चुके हैं। ऐसी स्थिति में घनचक्कर की सफलता को ले कर विद्या के दुश्मन भी एक राय होंगे। लेकिन  विद्या बालन को घनचक्कर को खुद की फिल्म साबित करना होगा। यह तभी संभव होगा, जब फिल्म पूरी तरह से विद्या के इर्द गिर्द घूमती हो और उनका रोल काफी सशक्त हो। विद्या तो खैर बढ़िया अभिनेत्री हैं ही। ऐसे में घनचक्कर दर्शकों को सिनेमाघरों का चक्कर लगवाने वाली विद्या बालन की फिल्म साबित हो सकती है।



सीधे दर्शकों के दिल पर लगा धनुष का तीर


धनुष की कमान से छूटा तीर दर्शकों की दिलों पर सीधा लगा लगता है। दक्षिण के स्टार धनुष की फिल्म राँझना का वीकेंड कलेक्शन दर्शकों पर उनके प्रभाव को बताने वाला था। राँझना ने पहले दिन 5.12 करोड़ का बिज़नस किया था। दूसरे दिन यानि शनिवार को यह बढ़ कर 6.81 करोड़ तक पहुँच गया। सनडे को राँझना ने जंप मारा और कलेक्शन किया 8.15 करोड़। इस प्रकार से वीकेंड कलेक्शन 20.08 करोड़ का रहा। पैंतीस करोड़ के बजेट से बनी फिल्म का इतना कलेक्शन राँझना को हिट फिल्म की कैटेगरी में लाने के लिए काफी था। आम तौर पर वीक डेज़ में कलेक्शन गिरता है। पर सोमवार को राँझना की 3.80 करोड़ की कमाई, फिल्म का उत्साह बढ़ाने वाली थी। क्योंकि, मंगलवार को राँझना ने ज़ोर मारा और फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर दस लाख ज़्यादा बटोर मारे। इस प्रकार से राँझना ने पहले पाँच दिनों में 27.83 करोड़ कमा डाले । उम्मीद की जा रही है कि राँझना का वीक 30 करोड़ से ऊपर जाएगा।
यह धनुष के अभिनय का जलवा था कि अनावश्यक इधर उधर भटकती कहानी वाली इस फिल्म से धनुष ने बांधे रखा। उनका हर मूवमेंट तालियाँ बटोर रहा था, उनकी डाइलॉग डेलीवेरी दर्शकों की सीटियाँ बटोर रही थी। अत्यंत साधारण चेहरे मोहरे वाला  दक्षिण का यह अभिनेता अपनी असाधारण अभिनय प्रतिभा और स्क्रीन प्रेजेंस के कारण उत्तर के दर्शकों का हीरो बन कर उभरा था।
यह राँझना के साधारण रोमैन्स का प्रभाव था कि रणबीर  कपूर और दीपिका पादुकोण  फिल्म यह जवानी है दीवानी के कदम यकायक थम से गए। फुकरे बॉक्स ऑफिस पर निठल्ला साबित हुआ। राँझना के साथ रिलीस दूसरी फिल्में एनिमी और शॉर्ट कट रोमियो को 10 प्रतिशत की ओपेनिंग तक नहीं मिल सकी। इन दोनों फिल्मों के एक करोड़ की कमाई करना भी मुश्किल लग रहा है। यह जवानी है दीवानी अपने चौथे वीकेंड में 183.19 करोड़ कमा चुकी थी। जबकि फुकरे ने दूसरे वीकेंड तक 28.12 करोड़ कमा लिए थे।


  

Saturday 22 June 2013

यह वर्ल्ड वार ज़ेड दर्शकों की भी है

जापान की ऊंची दीवार पर चढ़ते ज़ोमबीज  
यूएन का पूर्व कारिंदा गेरी लेन अपने परिवार के साथ फिलाडेल्फ़िया की भीड़ भरी सड़क पर चला जा रहा है। तभी कार ले रेडियो पर अजीबो गरीब घटनाओ का जिक्र होने लगता है। तभी सड़क पर अजीबो गरीब आवाज़ें आने लगती हैं। इसके साथ ही लोगों पर मुरदों का हमला होने लगता है। वर्ल्ड वार ज़ेड  का यह पहला  सीन  रहस्य, रोमांच और भय का ऐसा ताना बाना बुनता है, जो पूरी फिल्म में दर्शकों को जकड़े रहता है। वह गेरी के साथ दुनिया के उन देशों में जा कर चलते फिरते  मुरदों द्वारा फैलाई गयी तबाही और लाशों के ढेरो को देखता है। वह गेरी बने ब्रैड पिट के साथ मुरदों के आतंक का सामना करने की तैयारी करता है। यही कारण है कि अपने शरीर में घातक बीमारी के विषाणु इंजेक्ट कर, जोंबीज के बीच से निकल रहे ब्रैड पिट भारतीय दर्शकों की ज़बरदस्त तालियों के हकदार हो जाते हैं। ऐसी तालियाँ बॉलीवुड का कोई सलमान खान, शाहरुख खान या रितिक रोशन ही बटोर पाता है। फिल्म जब खत्म होती है तो दर्शकों के चेहरे भयमिश्रित खुशी से खिले नज़र आते हैं।
 इसे मोंस्टर'स बॉल, फाइडिग नेवर लैंड और क्वांटम ऑफ सोलेस जैसी फिल्मों के निर्देशक की कल्पनाशीलता का कमाल कहा जाना चाहिए कि वह Hollywood में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय जोंबीज की दुनिया को नष्ट करने की साजिश को स्वीकार्य बना पाते हैं। वह हर सीन कुछ इस प्रकार से पेश करते हैं कि दर्शक सुन्न बैठा सब कुछ देखता रहता है। उन्हे बीच बीच में उनके हीरो का हेरोईक कारनामा तालियाँ बजाने को प्रेरित करता है।   MatthewMichaelCarnahan और  J. Michael Straczynski  की कहानी पर चलते फिरते मुरदों के रोमांच को प्रभावशाली बनाने में Mathew Michael Carnhan, Drew Goddard और damon लिंदेलोफ की तिकड़ी ज़बरदस्त मोर्चा सम्हालती है। जापानियों द्वारा उठाई गयी ऊंची दीवार पर जोंबीज का चढ़ना दर्शकों के रोंगटे खड़ा कर देता है। ऐसे ही तमाम सींस में जब ज़िंदा लोग जीतते हैं, तो दर्शकों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं  रहता। बेन सेरेसिन अपने कैमरा के द्वारा जोंबियों के साथ रोमांचकारी दौड़ लगाते हैं। वह मार्क को ऐसा मुरदों का  संसार क्रिएट करने में भरपूर मदद करते हैं।  ऐसी फिल्मों में संगीत यानि बॅक ग्राउंड म्यूजिक का बड़ा महत्व होता है। Marco Beltrami अपने कंधों पर इस जिम्मेदारी को बड़ी मुस्तैदी से सम्हालते हैं। उनका संगीत डराता  ही नहीं, बल्कि रोमांच भी पैदा करता है। रोजर बार्टन और मट्ट चीज की एडिटिंग ने फिल्म की रफ्तार को सपोर्ट किया है।
दो सौ मिल्यन डॉलर में बनी और 116 मिनट लंबी इस फिल्म की जान ब्रैड पिट हैं। वह जहां एक पिता गेरी को अपने भवाभिनय से भिगोते हैं, वही एक जाबांज अधिकारी के रूप में हर हैरतअंगेज सीन को स्वाभाविक भी  बनाते हैं। उनके अभिनय का कमाल है कि दर्शक हर दृश्य से बंधा रहता है तथा हर इमोशन में उनके साथ होता है । ब्रैड पिट की पत्नी की भूमिका में मिरैले एनोस का अभिनय दिल को छूने वाला है। ब्रैड पिट को अन्य कलाकारों जेम्स बैज डेल, मेथ्यु फॉक्स, डेविड मोर्स, लुडी बोएकेन, आदि का खूब साथ मिला है।
अगर दर्शक चलते फिरते मुरदों से डरना चाहते हैं, रोमांचित होना चाहते हैं और उन पर मानवता की जीत दर्ज करना चाहते हैं, तो वर्ल्ड वार ज़ेड को देख कर इन खुशियों का मज़ा लूट सकते हैं।







Friday 21 June 2013

क्या दर्शक बनाना चाहेगा धनुष को अपना राँझना!

 
 तनु वेड्स मनु जैसी 2011 में रिलीज मनोरंजक फिल्म बनाने वाले आनंद एल राज की फिल्म है आज रिलीज राँझना। उनका यूपी कनैक्शन है। इसलिए उनकी फिल्मों की पृष्ठभूमि भी उत्तर प्रदेश का कोई शहर ही होता है। तनु वेड्स मनु में कानपुर था। राँझना में वाराणसी  है। अगर नहीं भी होता तो कोई भी हो सकता था। मुंबई  में भी राँझना जैसे आशिक हैं। दिल्ली में तो ढेरों भरे हैं। गुजरात में भी आशिकों की भरमार है। विश्वास न हो तो अपने संजय लीला भंसाली से पूछ लो कि वह परदे पर कितने गुजरातियों से राम लीला या रास लीला करवा चुके हैं। अब, चूंकि, राँझना का राँझना वाराणसी का है तो वह मंदिर के पुजारी का बेटा है। मंदिर में डमरू बजाता है। चंदा मांगते फिरता है। बाकी वह सेकुलर टाइप का है। एक मुसलमान लड़की से शादी करना चाहता है। लड़की के हाथों से 15 लप्पड़ खाने के बाद 16वें लप्पड़ में लड़की भी उसे चाहने लगती है। लड़की के परिवार में पता चलता है तो हँगामा मच जाता है। लड़की को अलीगढ़  भेज दिया जाता है। वह अलीगढ़ से दिल्ली की सेकुयलर यूनिवरसिटि जेएनयू में चली जाती हैं, जहां पूरे देश को नेता और राजनीति की सप्लाइ होती है। लड़की को भी एक अदद नेता मिल जाता है। वह उसे अकरम बता कर बनारस ले आती है शादी के लिए। हिन्दू लड़का टूटे दिल के साथ लड़की के माता पिता को लड़की की शादी अकरम से करने को राजी भी करता है। लेकिन ऐन शादी के मौके पर हिन्दू लड़के के सामने भेद खुलता है कि अकरम वास्तव में हिन्दू है। वह यह भेद निकाह के वक़्त खोल देता है। लड़की के परिवार के लोग नकली अकरम को मार मार कर रेल्वे लाइन पर मरने   के लिए छोड़ देते हैं। यहाँ यह समझ में नहीं आता कि वह कुन्दन यानि धनुष को क्यों छोड़ देते हैं? क्या अकरम मारा जाता है? क्या लड़के का लड़की से शादी का रास्ता साफ हो जाता है? नहीं भाई नहीं। यूपी वाले की फिल्म है, आसानी से खत्म होने वाली नहीं। 140 मिनट से ज़्यादा चलती हैं राजनीति का तड़का लेकर।
बस इससे ज़्यादा कहानी लिखने की ताकत नहीं । आनंद की राँझना के लेखक हिमांशु शर्मा ने यह क्या किया। सेकुलर कहानी के साथ राजनीति के इतने पेंच क्यों जोड़ दिये? अगर ऐसा नहीं भी होता तो भी क्या हो जाता। कहानी कभी इधर लुढ़कती तो कभी उधर लुढ़कती और भटकती चलती चली जाती है बनारस से Jalandhar और फिर दिल्ली। अबे अगर बनारस में ही खत्म हो जाती तो क्या हो जाता। क्या वहाँ राजनीतिक नेता पैदा करने वाली बनारस हिन्दू यूनिवरसिटि नहीं? हो सकता है  उसे आनंद सेकुलर न मानते होंगे। बहरहाल, फिल्म बनारस के राँझना से निकल कर दिल्ली के जेएनयू के नेता छात्रों का नेतृत्व  करने वाले कुन्दन तक पहुँच जाती है। कहानी में इस प्रकार के अविश्वसनीय ट्विस्ट अँड टर्न देख देख कर दर्शक का भेजा फ्राई हो सकता है। यहीं कारण है कि फिल्म दर्शकों तक अपना उद्देश्य नहीं पहुंचा पाती। समझ में नहीं आता कि यह रोमैन्स फिल्म है या कुछ और।
राँझना के सबसे  मजबूत पक्ष हैं अभिनेता धनुष । क्या अभिनय कराते हैं वह। अत्यधिक गरीब और कमोबेश बदसूरत चेहरे के बावजूद वह बेहद सशक्त अभिनय करते हैं। लगता ही नहीं कि दर्शक दक्षिण के एक बड़े अभिनेता को देख रहे हैं। हर प्रकार के भाव वह बड़ी आसानी से अपने चेहरे पर लाकर दर्शकों तक पहुंचा देते हैं। पूरी फिल्म धनुष की फिल्म बन जाती है। अगर, हिन्दी दर्शकों ने दक्षिण का अभिनेता होने के नाते धनुष के साथ नाइंसाफ नहीं किया तो दर्शकों को आगे भी धनुष की अच्छे अभिनय वाली कुछ अच्छी फिल्में देखने को मिल सकती हैं। धनुष की प्रेमिका से नेताइन बनने वाली जोया की भूमिका में सोनम कपूर हैं। उनका अभिनय अच्छा है। लेकिन हिन्दी बोलते समय ऐसा लगता है जैसे सोनम के दांतों में दर्द हो रहा हो।  स्पेशल अपीयरेंस में अभय देओल जमे हैं। धनुष के दोस्त मुरारी की भूमिका में जीशान अयुब प्रभावशाली रहे हैं। स्वरा भास्कर का अभिनय भी प्रशंसनीय है। फिल्म की लंबाई को नियंत्रित किए जाने की ज़रूरत थी। पर कहानी के इधर से उधर भटकने के कारण यह संभव नहीं था। हेमल कोठारी अपने काम को ठीक तरह से अंजाम नहीं दे सके। एआर रहमान का संगीत फिल्म को खास सपोर्ट करने वाला नहीं।
अब रही बात फिल्म देखने की या न देखने की  तो धनुष के लिए, उनके सोनम के साथ रोमैन्स के लिए राँझना देखी जा सकती है । लेकिन, बनारस के लिए देखने जैसी कोई बात नहीं है फिल्म में। वैसे दर्शक जिस प्रकार से फुकरे जैसी फिल्में पसंद कर रहे हैं, उसे देखते हुए राँझना की गाड़ी बॉक्स ऑफिस पर धीमी ही सही चलती रहनी चाहिए।
एक बात यूपी के फ़िल्मकारों से। भैये क्या अपनी फिल्म के किरदारों खास तौर पर महिला किरदारों के मुंह से गालिया निकलवाना ज़रूरी है?









Thursday 20 June 2013

फ्युचर 'टैन्स' : राँझना, एनिमी...शॉर्टकट रोमियो


कल जब आनंद एल राज की राँझना, आशु त्रिखा की एनिमी और सुशी गणेश की शॉर्टकट रोमियो रिलीज  होने  जा रही  हैं, इन फिल्मों की धनुष, महाक्षय और नील नितिन मुकेश की अभिनेता तिकड़ी के दिलो दिमाग पर टेंशन छाया होगा।  इन फिल्मों के साथ इन तीनों अभिनेताओ का भविष्य यानि फ्युचर शिद्दत से जुड़ा हुआ है। जब तक इन फिल्मों पर दर्शकों का निर्णय पता नहीं लगता, तब तक इन अभिनेताओं का तनाव में यानि टेंशन में  होना स्वाभाविक है।
राँझना दक्षिण के सुपर स्टार धनुष की फिल्म है। धनुष का भविष्य दक्षिण की तमिल और तेलुगू फिल्मों में सुरक्षित है। लेकिन, उनके हाथों में दक्षिण के अभिनेताओं का भविष्य है। अभी तक दक्षिण का कोई अभिनेता हिन्दी फिल्मों में इतना सफल नहीं हो सका है कि बॉलीवुड बादशाह या सुपेरस्टार का खिताब पा सके। इनमे कमल हासन और रजनीकान्त जैसे सुपर अभिनेता भी शामिल हैं। रजनीकान्त तो धनुष के ससुर  भी हैं। अगर वह हिन्दी फिल्मों के राँझना बन पाये तो अपने ससुर से सुपर साबित होंगे। एक प्रकार से धनुष का तनाव खुद   के लिए तो है, अपने साथी अभिनेताओं के लिए भी है।
एनिमी अस्सी के दशक के गरीब फिल्म निर्माताओं के अमिताभ बच्चन मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह उर्फ  महाक्षय चक्रवर्ती की फिल्म है। महाक्षय ने मिमोह नाम से पाँच साल पहले फिल्म जिमी से डेबू किया था। फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हुई। दूसरी फिल्म हैमिल्टन पैलेस रिलीज ही नहीं हो सकी। 2011 में महाक्षय की दो फिल्मे हौंटेड 3डी और लूट रिलीज हुई। 3डी होने के कारण हौंटेड चली। लेकिन महाक्षय को लूट के फ्लॉप होने का नुकसान अधिक हुआ। एनिमी एक कॉप एक्शन ड्रामा फिल्म है। इस फिल्म में महाक्षय अपने पिता मिथुन चक्रवर्ती के सीबीआई अधिकारी के किरदार के ऑपोज़िट सीआईडी अधिकारी के रोल में हैं। फिल्म में सुनील शेट्टी, केके मेनन और ज़ाकिर हुसैन जैसे सक्षम अभिनेताओं के साथ हैं। यह फिल्म हिट हुई तो महाक्षय को अपना कैरियर खत्म होने से बचाने का थोड़ा वक़्त मिल सकेगा।
महाक्षय जैसा ही हाल नील नितिन मुकेश का भी है। मशहूर गायक मुकेश के पोते और नितिन मुकेश के बेटे नील ने अपने कैरियर की शुरुआत सस्पेन्स थ्रिलर फिल्म जॉनी गद्दार से धर्मेंद्र जैसे सीनियर अभिनेता के साथ फिल्म से हुई थी। इस फिल्म को ठीकठाक सफलता मिली थी। पर फिल्म में उनका नेगेटिव किरदार उनके कैरियर के लिहाज से मुफीद नहीं साबित हुआ। नील की अगली फिल्म बिपाशा बसु के साथ आ देखें जरा फ्लॉप हो गयी। न्यूयॉर्क और जेल अच्छी गईं। पर नील को खास फायदा नहीं हुआ। इसमे कोई शक नहीं कि नील ने अपनी अब तक रिलीज 11 फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया । पर कैरियर के लिहाज से इन्हे बॉक्स ऑफिस पर इतनी सफलता नहीं मिल सकी कि नील अपना स्थायी मुकाम बना पाते। इसीलिए नील को शॉर्टकट रोमियो से बेहद अपेक्षाएँ हैं। इस फिल्म का हिट होना नील के लिए ज़रूरी है। क्योंकि, उनकी इस साल रिलीज दो फिल्में डेविड और 3जी असफल हुई हैं। अगर, शॉर्ट कट रोमियो ठीक ठाक सफलता भी हासिल नहीं कर पायी तो नील की फिल्मों की असफलता की हैटट्रिक बन जाएगी। इसलिए नील नितिन मुकेश सबसे ज़्यादा टैन्स हो रहे होंगे।

बॉक्स ऑफिस पर कल क्या होगा? क्या धनुष, नील और महाक्षय का रिलैक्स हो पाएंगे? क्योंकि, इन तीनों को एक दूसरे से नहीं बल्कि, हॉलीवुड के सुपर सितारे ब्रैड पिट की फिल्म वर्ल्ड वार ज़ेड से डर महसूस हो रहा होगा। यह हॉलीवुड की जोम्बी फिल्म है। हॉलीवुड की जोम्बी फिल्में भारतीय दर्शकों को भी पसंद आती हैं। इसलिए धनुष को राँझना में अपना रोमैन्स, नील को शॉर्ट कट रोमियो में अपना थ्रिलर रोमैन्स और महाक्षय को एनिमी में अपना एक्शन इतना स्ट्रॉंग बनाना होगा कि वह हॉलीवुड के चलते फिरते मुरदों को टक्कर दे पाये। क्या ऐसा होगा? इन तीनों अभिनेताओं में जो भी ऐसा कर पाया वह टेंशन मुक्त होगा। यही है इन तीनों का फ्युचर टैन्स ।



Monday 17 June 2013

'मैन ऑफ स्टील' से चुटाए गए 'अंकुर अरोरा' और 'फुकरे'


हॉलीवुड की फिल्में लगातार बॉलीवुड की फिल्मों को उन्ही के बॉक्स ऑफिस पर लगातार पटखनी दे रही हैं। इस शुक्रवार, बेशक कम मशहूर चेहरों वाली छोटे बजट की फिल्में हॉलीवुड की बड़े बजट की फिल्म के सामने थीं, लेकिन यह फिल्में बड़े प्रोड्यूसरों की फिल्में थी। हॉलीवुड की ज़क Snyder निर्देशित सुपर हीरो फिल्म मैन ऑफ स्टील को वॉर्नर ब्रदर्स पिक्चर्स इंडिया द्वारा 800 प्रिंट्स में रिलीज किया गया था। पर दो हिन्दी फिल्मों फुकरे और अंकुर अरोरा मर्डर केस के निर्माता बड़ी फिल्मों के और अनुभवी निर्माता थे। फुकरे रितेश सिधवानी

और फरहान अख्तर की फिल्म थी। जबकि, अंकुर अरोरा मर्डर केस के निर्माता विक्रम भट्ट काफी अनुभवी  
फ़िल्म निर्माता निर्देशक हैं। इसलिए इन लोगों ने अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप अपनी अपनी फिल्मों का जम कर प्रचार किया था। इसके बावजूद दोनों हिन्दी फिल्मों का बॉक्स ऑफिस पर बुरा हाल हुआ। हॉलीवुड के सुपर हीरो सुपरमैन की फिल्म मैन ऑफ स्टील ने छलांगों पर छलांग भरते हुए बॉक्स ऑफिस पर वीकेंड में 21 करोड़ की कमाई कर डाली। इसके मुकाबले फुकरे ने 9 करोड़ से कुछ ज़्यादा कमाए तो अंकुर अरोरा 1 करोड़ से आगे नहीं बढ़ पाये।

हॉलीवुड की विज्ञान फैंटसी भारतीय दर्शकों को खूब रास आ रही है। मैन ऑफ स्टील अपने स्पेशल एफफ़ेक्ट्स के कारण दर्शकों को रास आयी। जबकि, दूसरी ओर फुकरे की चार दोस्तों की कहानी में नयेपन की कोई गुंजायश नहीं थी। वही बासी घटनाक्रम और चुट्कुलेनुमा संवाद दर्शकों को लुभा नहीं सके। भाई रितेश और फरहान काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती। अंकुर अरोरा मर्डर केस बेशक एक ईमानदार कोशिश थी, पर दर्शक फिल्म देखने मनोरंजन के लिए जाता है। वह जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटनाओं को देखना चाहता है, पर इतने सपाट ढंग से नहीं। लेकिन, सबसे बड़ी बात यही है कि मैन ऑफ स्टील की अपील हिन्दी फिल्मों पर भरी पड़ी।