Friday 30 August 2013

प्रकाश झा का कमज़ोर 'सत्याग्रह'


प्रकाश झा की आज रिलीज़ हुई फिल्म सत्याग्रह की पूरी कहानी  मशहूर सामाजसेवी  अन्ना हजारे के दिल्ली में छेड़े गए आमरण अनशन और सत्याग्रह की चरित्र by चरित्र नक़ल है. प्रकाश झा और  उनकी लेखक टीम का कोई ओरिजिनल है तो वह यह कि अन्ना से प्रेरित करैक्टर दद्दू जी फिल्म के क्लाइमेक्स में पुलिस की फायरिंग का शिकार हो जाता है.  फिल्म को लिखा जितना मामूली गया है, उतना ही मामूली काम अजय देवगन, अमिताभ बच्चन, अर्जुन रामपाल, करीना कपूर, अमृता राव, विपिन शर्मा, आदि से लिया गया है, यहाँ तक कि  मनोज बाजपाई भी अपनी पिछली फिल्मों आरक्षण और राजनीती के करैक्टर को बुरी तरह से दोहराते हैं. प्रकाश झा को एक स्टार दिया जाना चाहिए कि उन्होंने इतने बड़े सितारों की ऐसी की तैसी कर दी. बेचारी अमृता राव को न तो ढंग का रोल मिला, न ढंग के कपडे ही. अजय देवगन अब काफी थक चुके लगते हैं. भगवान् का शुक्र है कि अभी वह चुके नहीं हैं. अच्छा होगा कि  वह दोस्ती निभाने के बजाय रोल देखना शुरू कर दें. करीना कपूर ने खूबसूरत शक्ल के साथ बुरा काम अंजाम दिया है. ऐसा लग रहा है कि अमिताभ बच्चन ज़ल्द ही मिल्लेनियम फ्लॉप स्टार बनाने जा रहे हैं.   
आरक्षण फियास्को के बाद से प्रकाश झा अब अपनी फिल्मों के किसी जीवित या मृत,  वास्तविक या काल्पनिक घटना से रेसेम्ब्लेंस से साफ़ इनकार करते है, वह सत्याग्रह को अन्ना हजारे के आन्दोलन से प्रेरित मानने से इनकार करते हैं, लेकिन फिल्म का हर फ्रेम अन्ना के आन्दोलन की याद दिलाता है. पर इसके बावजूद उनका यह रील लाइफ आन्दोलन बिलकुल भी प्रभावित नहीं कर पाता. प्रकाश झा ने अन्ना के आन्दोलन को बीजेपी के समर्थन का आरोप भी फिल्म में लगाया है. विपिन शर्मा का गौरी शंकर का किरदार बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की याद ताज़ा करता है. प्रकाश झा ने जनता की नब्ज़ पकड़ने वाला विषय लिया ज़रूर था. लेकिन, वह खुद आन्दोलन की नब्ज़ नहीं समझ पाए. उनकी फिल्म का आन्दोलन बेहद सतही और निर्जीव लगता है. यह आन्दोलन जनता का नहीं इंडिविजुअल ख्वाहिशों वाला बन जाता है. सब कुछ इतना आसान दिखाया गया है कि एक आन्दोलन की भावना बिल्ड नहीं होने पाती. प्रकाश झा की फिल्म अन्ना के आन्दोलन का समर्थन भी नहीं करती और उसकी पोल खोलने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाती। अगर प्रकाश झा अजय देवगन के किरदार के जरिये पूंजीपतियों के अन्ना के आन्दोलन को समर्थन की पोल खोलते और अन्ना के समर्थकों की व्यक्तिगत ख्वाहिशों की पोल खोल पाते तो एक अच्छा काम कर पाते। लेकिन, वह शायद अन्ना के आन्दोलन से इतने भयभीत हैं कि उसकी पोल खोलने वाली कहानी गढ़ने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते। कहा जा सकता है कि सत्याग्रह प्रकाश झा की सबसे कमज़ोर फिल्मों में से एक है.
अब बात आती है फिल्म देखने और इसे स्टार देने की. यह फिल्म प्रकाश झा की अन्ना के जन आन्दोलन पर बेहद कमज़ोर फिल्म है. आप देखना चाहे तो देखे ताकि यह जान सकें कि अन्ना के आन्दोलन के प्रति फिल्मकारों का रवैया क्या है. रही बात स्टार की तो मैं स्टार देता नहीं. क्योंकि, मुझे स्टार देने लायक फिल्म देखना आता नहीं। मैं जो लिखता हूँ आम दर्शक के नजरिये से. इस नज़रिए से मैं प्रकाश झा को एक स्टार देना चाहूँगा की उन्होंने बड़ी आसानी से इतने बड़े सितारों को मटियामेट कर दिया।  

Monday 26 August 2013

मद्रास कैफ़े जा रहे हैं दर्शक

                                                       मद्रास कैफ़े, चेन्नई एक्सप्रेस और वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दुबारा का वीकेंड बॉक्स ऑफिस कलेक्शन देखिये, ज़मीन  आसमान का फर्क नज़र आएगा।  दो हज़ार स्क्रीन में रिलीज़ जॉन अब्राहम  की फिल्म मद्रास कैफ़े ने पहले दिन स्लो स्टार्ट करते हुए २५ से ३५ प्रतिशत की ऑक्यूपेंसी के सात ५.१७ करोड़ का बिज़नस किया. शुक्रवार की शाम से ही मद्रास कैफ़े ने pickup करना शुरू किया. इस प्रकार से फिल्म ने शनिवार को ७ करोड़ कमाए। सन्डे को फिल्म ने जम्प लिया. बिज़नस हुआ ८.५० करोड़ का. इस प्रकार से मद्रास कैफ़े का वीकेंड कलेक्शन २०.६७ करोड़ का हुआ. इस प्रकार से जॉन अब्राहम ने अपनी पिछली सोलो फिल्म फ़ोर्स के वीकेंड रिकॉर्ड में सुधार कर लिया. फ़ोर्स ने वीकेंड में ५.०५, ४.७५ और ६.२० करोड़ का बिज़नस करते हुए कुल १६ करोड़ का वीकेंड कलेक्शन किया था.
                             चेन्नई एक्सप्रेस का कलेक्शन देखिये. शुक्रवार को इस फिल्म ने मद्रास कैफ़े के कलेक्शन का डेढ़ गुना यानि ३३.१२ करोड़ का कलेक्शन किया। इसके बाद फिल्म का कलेक्शन गिरना शुरू हुआ और अगले दो दिनों में फिल्म ने २८.०५ और ३२.५० का कलेक्शन किया, जो पहले दिन के कलेक्शन से कम था. ऐसा इस लिए हुआ कि चेन्नई एक्सप्रेस बेसिर पैर की स्टार अट्रैक्शन पर आधारित फिल्म थी.  जबकि,मद्रास कैफ़े में कंटेंट था. फिल्म मकर की  ईमानदारी थी. जबकि, चेन्नई एक्सप्रेस हॉलिडे क्राउड को भुनाने के लिए प्रदर्शित की गयी थी. ऐसी फिल्मों का दर्शक फिल्म के कंटेंट से नहीं, फिल्म के अग्रेस्सिव पब्लिसिटी का शिकार हो कर फिल्म देखने आता है. मद्रास के चेन्नई संस्करण की यही त्रासदी है.  

Saturday 24 August 2013

एक बार ज़रूर जाइये 'मद्रास कैफ़े'

                   
                     निर्माता जॉन अब्राहम की इस शुक्रवार रिलीज़ फिल्म मद्रास कैफ़े बॉक्स ऑफिस पर खान अभिनेताओं वाली फिल्मों जैसा धमाल नहीं मचाएगी. यह फिल्म सौ करोड़ क्लब में आने की सोच भी नहीं सकती. लेकिन, इतना तय है कि मद्रास कैफ़े जॉन अब्राहम और शुजित सिरकार की जोड़ी एक ईमानदार कोशिश है. विक्की डोनर से उन्होंने लीक से हट कर फिल्मों का जो सिलसिला शुरू  था, उसकी दूसरी कड़ी है मद्रास कैफ़े।
                      मद्रास कैफ़े का हीरो जॉन अब्राहम हैं. लेकिन उन्होंने कहीं भी अपने करैक्टर को लार्जर देन लाइफ बना कर दर्शकों की तालियाँ बटोरने की झूठी कोशिश नहीं की. मद्रास कैफ़े की कहानी ८० के  दशक और शुरूआती ९० के दशक तक फैले श्रीलंका के सिविल वॉर पर है. फिल्म में रियल करैक्टर के नाम बदल दिए गए हैं. श्रीलंका की सेना और तमिल ईलम के विद्रोहियों के संघर्ष, भारतीय सेना का पीस कीपिंग फ़ोर्स के रूप में सिविल वॉर में हस्तक्षेप और असफलता जैसी प्रोमिनेन्ट घटनाओं को फिल्म में शामिल किया गया है. फिल्म ख़त्म होती है राजीव गांधी की हत्या के साथ.
                      जॉन अब्राहम ने विक्की डोनर के शुजित सिरकार को एक बार फिर अपनी फिल्म का डायरेक्टर बनाया है.  फिल्म को शोमनाथ डे और शुदेंदु भट्टाचार्य ने लिखा है. इन दोनों ने बहुत चुस्ती से अपना काम किया है. शुजित ने हर फ्रेम को बिना अतिरेक में गए स्वाभाविक ढंग से फिल्माया है. फिल्म में श्रीलंका में संघर्ष के दृश्य हैं, लेकिन कहीं भी documentry का एहसास नहीं होता. फिल्म देखते समय ऐसा लगता है जैसे हम रियल श्रीलंका में घूम रहे हैं. फिल्म कहीं भी हिंसक नहीं लगती. तभी तो इस फिल्म को यु /ए  प्रमाण पत्र दिया गया है. मद्रास कैफ़े का रॉ एजेंट विक्रम सिंह आम आदमी से थोडा हट कर ही है. पर उसे सुपरमैन नहीं कहा जा सकता. वह लिट्टे के लोगों द्वारा पकड़ा जाता है. उसके डिपार्टमेंट के लोग उसे धोखा देते है. लेकिन, वह इन सबसे रेम्बो के अंदाज़ में नहीं निबटता। एक जिम्मेदार अधिकारी जैसा व्यवहार करेगा, वैसा ही व्यवहार विक्रम सिंह करता है. यही फिल्म की खासियत है.
                      मद्रास कैफ़े की सबसे बड़ी खासियत है इसके सामान्य और स्वाभाविक चरित्र। यहाँ तक कि प्रभाकरन और उसके साथियों का चित्रण भी स्वाभाविक हुआ है. श्रीलंका से लेकर दिल्ली तक तमाम करैक्टर अपने स्वाभाविक अंदाज़ में हैं, यहाँ तक कि राजीव गांधी का चरित्र भी. फिल्म के हीरो जॉन अब्राहम है. वह बहुत अच्छे एक्टर नहीं। लेकिन अपना काम ईमानदारी से करते हैं. उन्हें एक एजेंट के रोल में अपने शरीर पर थोड़ी चुस्ती लानी चाहिए थी. चलने फिरने के अंदाज़ को बदलना चाहिए था. शुजित सिरकार को इस और ध्यान देना चाहिए था।  लेकिन शायद उनके लिए करैक्टर के बजाय कथ्य ज्यादा महत्त्व रखते थे. रॉकस्टार के बाद नर्गिस फाखरी एक विदेशी अखबार की पत्रकार जाया के रोल में हैं. उन्होंने अपना काम ठीक ठाक कर दिया है. यह रोल टेलर मेड जैसा था. जॉन अब्राहम की पत्नी के रोल में राशी खन्ना का काम बढ़िया है. अजय रत्नम एना भास्करन की भूमिका में स्वाभाविक हैं. श्री के रोल में कन्नन भास्करन स्वाभाविक हैं.श्रीलंका में रॉ के लिए काम कर रहे बल की भूमिका में प्रकाश बेलावादी के लिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि उनके रूप में हिंदी फिल्मों को एक विलेन मिल गया. लेकिन उनमे संभावनाएं हैं.  कैबिनेट सेक्रेटरी की भूमिका में पियूष पाण्डेय ठीक लगे हैं. सिद्धार्थ बासु रॉ चीफ के रूप में जमे नहीं।                      
                       इस फिल्म के लिए शांतनु मोइत्रा का संगीत, चंद्रशेखर प्रजापति का संपादन, कमलजीत नेगी का कैमरा वर्क ,मनोहर वर्मा के स्टंट वीरा कपूर की डिजाइनिंग और मेकअप डिपार्टमेंट की टीम का काम एसेट की तरह है. यह लोग फिल्म को रिच और दर्शनीय बनाते हैं. मद्रास कैफ़े को बेहतरीन टीम वर्क का नमूना कहा जाना चाहिए।
                       अभी मई में जॉन अब्राहम की फिल्म शूटआउट at वडाला रिलीज़ हुई थी. मान्य सुर्वे बने जॉन अब्राहम की ज़बरदस्त बॉडी और ओवर एक्टिंग पर खूब तालियाँ बजी थीं. मगर इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है. मौका निकाल कर सलमान खान की तरह बॉडी दिखाने के बजाय जॉन ने अपने अभिनय के जरिये अपना काम ईमानदारी से किया है. यकीन जानिये सिनेमाहाल में बैठा दर्शक जॉन अब्राहम के कारनामों पर तालियाँ नहीं बजाता। लेकिन, जब फिल्म ख़त्म होती है तो वह कुछ सोचता सा उठता है. वह मद्रास कैफ़े में कहीं खोया हुआ होता है. यही फिल्म की सफलता है.
                       जॉन अब्राहम ने अपना काम ईमानदारी से कर दिया है. अब बारी दर्शकों की है. वह मद्रास कैफ़े में एक बार ज़रूर। यहाँ मिलने वाली श्रीलंका की कॉफ़ी आपको निहाल कर देगी. तो क्या जा रहे हैं आप दर्शक बन कर आज ही.










 

Monday 19 August 2013

शिकागो में तीन महीने तक धूम (3)


पिछले दिनों यशराज फिल्म्स  बैनर तले बनी धूम सीरीज की तीसरी फिल्म धूम ३ इसी साल दिसम्बर में दिसम्बर में क्रिसमस डे वीकेंड में रिलीज़ होगी.  इस फिल्म में दो धूम फिल्मों के अभिषेक  बच्चन और उदय चोपड़ा अपनी अपनी  भूमिका निबाह रहे  हैं।  पिछले दिनों इस फिल्म की शूटिंग शिकागो शहर में तीन  महीने तक हुइ. इस शूटिंग की कुछ झलकियाँ जारी हुई है. पेश है इनमे से कुछ फोटो।





 

Sunday 18 August 2013

पैसे वालों की पिंकी बांधेगी तेजा की ज़ंजीर

                          अपूर्व लाखिया  की फिल्म ज़ंजीर २.० रीमेक है १९७३ में रिलीज़ अमिताभ बच्चन की हिट फिल्म ज़ंजीर  का रीमेक है. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन के इंस्पेक्टर विजय खन्ना दक्षिण के सुपर स्टार रामचरन  तेजा बने हैं। प्राण के शेर खान संजय दत्त बने हैं तो अजित का रोल प्रकाश राज कर रहे हैं.  प्रिया गिल २०१३ की मोना डार्लिंग हैं. महत्वपूर्ण है ज़ंजीर में जया बच्चन का माला का रोल।  रीमेक फिल्म में इसे प्रियंका चोपरा कर रही हैं. लेकिन, जया बच्चन की माला और प्रियंका चोपरा की माला में फर्क है. जया बच्चन  ज़ंजीर में एक चाकू छुरी तेज़ करने वाली लड़की की भूमिका में थी, जो सड़क पर ही मारा मारी करने को तैयार हो जाती थी. प्रियंका चोपरा की माला एक एन आर आई लड़की है. वह एक मर्डर की चश्मदीद गवाह है. जाहिर है कि १९७३ की माला और २०१३ की माला में फर्क होने के बावजूद समानता यह है कि दोनों ही मालाएं सड़क पर ही डांस गा सकती है. इस मामले में प्रियंका चोपरा की माला जया बच्चन की माला  से ज्यादा सेक्सी हो गयी है. प्रकाश महरा की ज़ंजीर में जया बच्चन चक्कू छुरियां तेज़ करा लो की  हांक लगा कर लोगों को आकर्षित करती थीं. पर इसमे सेक्स अपील जैसी कोई बात नहीं थी. इसका जिम्मा मोना डार्लिंग बनी बिंदु को सौंपा गया था. लेकिन, २०१३ की ज़ंजीर में माही गिल जैसी सेक्सी मोना होने के बावजूद प्रियंका चोपरा की माला को भी सेक्सी लगने की ज़रुरत पड़ गयी. वह पिंकी बन कर अपनी सेक्स अपील का प्रदर्शन कर रही है. वह फिल्म शूल की आइटम डांसर शिल्पा शेट्टी की सेंडिल में पैर डालते हुए मुंबई की न दिल्ली  वालों की, पिंकी है पैसे वालों की जैसा ललचाऊ आइटम करके दर्शकों को सेक्स अपील की खुराक दे रही हैं.
                          इसी साल शूटआउट एट वडाला के पिंकी बदमाश आइटम से सनी लियॉन और सोफी चौधरी को टक्कर देने वाली प्रियंका चोपरा खालिस पिंकी बन कर दर्शकों की नींद उड़ाने आ रही है. इसमे उनकी मदद मुन्नी बदनाम हुई जैसा सेक्सी गीत गाने वाली ममता शर्मा और हलकट जवानी और चकनी चमेली जैसे आइटम गीतों के कोरियोग्राफर गणेश अचार्य कर रहे हैं. क्या प्रियंका चोपरा इस साल के सेक्सिएस्ट हिट  आइटम की ज़ंजीर से तेजा की ज़ंजीर को हिट बनाने जा रही हैं!

                           

Friday 16 August 2013

कूड़ा एक्सप्रेस से लौटेंगे न दुबारा तक दर्शक

 
                      एक हफ्ते के अन्दर बॉलीवुड के दो बड़े सितारा अभिनेताओं ने बता दिया कि वह किस प्रकार से अपनी सुपर स्टार इमेज के जरिये अपनी कूड़ा फिल्मों को अच्छा इनिशियल दिलवा कर अपने प्रशंसक दर्शकों को बेवक़ूफ़ बना रहे है. ईद के दिन शाहरुख़ खान की चेन्नई  एक्सप्रेस  रिलीज़ हुई थी. पिछले चार सालों से सलमान खान बॉक्स ऑफिस पर अपनी कूड़ा फ़िल्में गिरा कर दर्शकों  को दुह रहे थे. इसीलिए जब ईद २०१३ पर ९ अगस्त को शाहरुख़ खान की फिल्म रिलीज़ होने का ऐलान हुआ तो उनके प्रशंसकों और बॉलीवुड के आम दर्शकों में उम्मीद जगी कि इस खान से कोई क्वालिटी फिल्म देखने को मिलेगी. लेकिन हुआ क्या चेन्नई एक्सप्रेस ने सलमान खान की पहले की कूड़ा फिल्मों की तर्ज़ पर कूड़ा उंडेलते हुए सलमान खान की फिल्मों का बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड तोड़ते हुए सबसे तेज़ १०० करोड़  कमा लिये. लेकिन, चेन्नई एक्सप्रेस पैसेंजर ट्रेन की तरह घटिया चाल और कूड़ा करकट फैली हुई थी. यही कारण था कि रिलीज़ के चौथे दिन इस फिल्म का कलेक्शन ६१ प्रतिशत से ज्यादा गिर गया और तीन  दिनों से बॉक्स ऑफिस पर एक्सप्रेस रफ़्तार भर रही फिल्म पैसेंजर रफ़्तार से चलने लगी. जिस फिल्म के लिए रोज आंकड़ों की बाजीगरी की जा रही थी, वह अब २०० करोड़ तक कब पहुंचेगी, यह कहना मुश्किल लग रहा है.

                      चेन्नई एक्सप्रेस का पैसेंजर निकलना अक्षय कुमार की फिल्म  इन मुंबई दुबारा के लिए वरदान से कम नहीं था.  क्योंकि,चेन्नई एक्सप्रेस के मुकाबले  अपॉन अ टाइम …को स्क्रीन कम मिल पाने के कारण ही वन्स अपॉन की रिलीज़ छह दिन आगे बढ़ा कर १५ अगस्त कर दी गयी थी. वैसे इसके बावजूद वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दुबारा को पहले दिन बहुत कम स्क्रीन मिले. दूसरे दिन यानि आज  मात्र २७०० प्लस स्क्रीन में ही रिलीज़ हो पायी है. लेकिन, १५ अगस्त को  खचाखच भरे सिनेमाघरों के दर्शकों ने  फिल्म के लिए मुसीबत पैदा कर दी. वन्स अपॉन के लिए दर्शकों में बेहद उत्साह था. एक तो हिट फिल्म का सीक्वल होने तथा दूसरा अक्षय कुमार की फिल्म होने के कारण।  अक्षय कुमार से दर्शकों को ख़ास अपेक्षा थी, क्योंकि उन्होंने दर्शकों को O M G ओह माय गॉड और स्पेशल २६ जैसी बढ़िया फ़िल्में दी थीं. मगर, एक हफ्ते से भी कम समय में अक्षय कुमार की फिल्म ने भी यह साबित कर दिया की बॉलीवुड के सुपर स्टार फेस्टिवल क्राउड को मूर्ख बना कर अपनी कूड़ा फिल्मों को सौ करोडिया बनाने का गेम खेल रहे है.
                        फेस्टिवल में कूड़ा फैलाने से नाराज़ दर्शकों ने चेन्नई एक्सप्रेस के कलेक्शन में भारी गिरावट पैदा कर सुपर स्टार्स को चेतावनी दे दी है. पूरी उम्मीद है कि दर्शक वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दुबारा को दर्शक दुबारा देखने ना जाएँ। ऐसे में अक्षय कुमार की फिल्म का  वीकेंड भी खराब जा सकता  है. पर यह कठोर चेतावनी होगी, दर्शकों की तरफ से बॉलीवुड के तमाम अभिनेताओं को.
                        चेन्नई एक्सप्रेस और वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दुबारा के द्वारा ईद-इंडिपेंडेंस डे वीकेंड में फैलायी गयी कूडागिरी के मद्देनज़र सोचने की जितनी ज़रुरत सुपर स्टार्स को है, उससे  कहीं ज्यादा सोचने की ज़रुरत दर्शकों को है कि वह कूड़ा फिल्मों का वहिष्कार करें। उन्हें वह ओपनिंग नहीं दे, जिससे बिग स्टार्स  उत्साहित हो कर अपना कूड़ा माल बॉक्स ऑफिस पर गिरा रहे हैं. अगर ऐसा हो गया तो निश्चित मानिये अगले तीन चार सालों में दर्शकों का फेस्टिवल वीकेंड सचमुच फेस्टिवल वाले उत्साह से भरा होगा.
 

Thursday 15 August 2013

वन्स अपॉन अ टाइम भी यह डॉन रोमांटिक नहीं हो सकता

               बॉलीवुड के फिल्मकारों को पूरा हक है कि वह रावण पर फिल्म बनायें।   लेकिन, यह ध्यान रखें कि रावण  को राम नहीं बनाया जा सकता।  इसलिए, जब रावण पर फिल्म बनानी है तो रावण के चरित्र को सावधानीपूर्वक बनाना पडेगा. ध्यान रखना होगा कि करैक्टर में ऎसी खामियां न रह जाएँ कि रावण न राम रहे , न रावण ही. मिलन लुथरिया निर्देशित रजत अरोरा की लिखी फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम  दुबारा में अक्षय कुमार के करैक्टर के साथ ऐसा ही कुछ हुआ है.
               वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दुबारा २०१० की मिलन लुथरिया की फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई  का सीक्वल है. २०१० की फिल्म हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहीम के रिलेशन पर थी. इसका सीक्वल दाऊद इब्राहीम और एक काल्पनिक करैक्टर की एक ही लड़की से प्रेम की वास्तविक-काल्पनिक प्रेम कहानी है. शोहेब खान गद्दार रावल को मारने इंडिया आता है. यहाँ आकर वह एक लड़की के प्रेम में पड़ जाता है. उसी लड़की से उसका बचपन का दोस्त असलम भी प्रेम करता है.
                फिल्म की निर्माता एकता कपूर और निर्देशक मिलन लुथरिया के साथ अक्षय कुमार भी यह कहते घूम रहे थे कि यह फिल्म दाऊद पर नहीं। लेकिन, वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई का सीक्वल होने और अक्षय कुमार के करैक्टर शोहेब के मेकअप और गेटअप से दाऊद का धोखा होने से यह फिल्म दाऊद इब्राहीम पर फिल्म ही बैठती है. जितना आम दर्शक को मालूम है दाऊद एक अव्वल नंबर का ऐय्याश और क्रूर  गैंगस्टर था. उसका शगल फिल्म अभिनेत्रियों के साथ ऐय्याशी करना था. उसने मुंबई में धमाके कर सैकड़ों बेगुनाह लोगों की जान ली थीं. ऐसे घटिया चरित्र को फिल्म का नायक बनाना मिलन लुथरिया और एकता कपूर की भारी भूल थी. उस पर उसे अपनी इमेज से बिलकुल अलग रोमांटिक दिखाया गया है. अक्षय कुमार पर रोमांस जम सकता है, लेकिन अक्षय कुमार के दाऊद पर यह रोमांस बिलकुल नहीं जमता. सो अक्षय कुमार बिलकुल हत्थे से उखड़े नज़र आते हैं. अलबत्ता कहीं कहीं उनका काम अच्छा है. इमरान खान को एक्टिंग आती ही नहीं। इसलिए वह अपने करैक्टर को बस निबाह ले जाते हैं. सोनाक्षी सिन्हा अब रूटीन होती जा रही हैं. उनके करैक्टर में बिलकुल जान नहीं थी, इसलिए उनकी एक्टिंग में जान का सवाल ही नहीं था. अन्य पात्रों में सोनाली बेन्द्रे, कुरुष देबू, सोफी चौधरी, टिकू , आदि सामान्य है. इस बेजान चरित्रों वाली फिल्म में केवल डेढ़ टांग का करैक्टर ही आकर्षित करता है, वह भी पितोबश त्रिपाठी के बेहतरीन अभिनय के कारण।
                 फिल्म की सबसे बड़ी कमी फिल्म की बेजान कहानी और ढीली ढाली स्क्रिप्ट है. शोहेब का करैक्टर न तो गैंगस्टर लगता है, न रोमांटिक। यह मिलन की बेबसी थी कि उसे एक रियल लाइफ गैंगस्टर को रोमांटिक दिखाना था. अब ऎसी मजबूरी में स्क्रिप्ट की मजबूती की डिमांड तो बनती ही थी. रजत अरोरा और उनकी स्क्रिप्ट टीम मेहनत करती नज़र नहीं आती. कोई भी फ्रेम प्रभावित नहीं करता। रोमांटिक फिल्मों के लिए चरित्रों के बीच की केमिस्ट्री और इंटेंसिटी महत्वपूर्ण होती है. फिल्म के तीनों मुख्य चरित्रों को ठीक ढंग से बुना ही नहीं गया है. सोनाक्षी सिन्हा का यस्मिन का चरित्र ना जाने किस दुनिया का है, जो फिल्म अभिनेत्री तो बन जाती है, लेकिन यह नहीं जानती की शोहेब एक डॉन है. इमरान खान तो त्रिकोण बनाने अनावश्यक टपकाए गए हैं. सो वह टपक कर बह जाते है. इन तीनों कलाकारों को वर्कशॉप करनी चाहिए थी ताकि एक दूसरे के चरित्रों की समझ हो जाती। फिल्म के करैक्टर अंडरवर्ल्ड के हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि भाषा को घटिया स्टार तक गिरा दिया जाये. फिल्म में महिलाओं के लिए अपमानजनक संवादों की भरमार है. डेढ़ टांग और उसकी प्रेमिका के बीच कार में सेक्स के दृश्यों को ख्वामख्वाह तूल दी गयी है. यह अरुचिकर हैं. प्रीतम ने पहली बार फिल्म से ज्यादा बेकार संगीत दिया है. फिल्म का कोई ऐसा डिपार्टमेंट नहीं जिसकी तारीफ की जा सके या कुछ कहा जाये. फिल्म की लम्बाई उकताने वाली है.
                  बॉलीवुड का दुर्भाग्य है कि गैंगस्टर से आगे कुछ सोच नहीं पाता. उससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि वह दाऊद की छाया से बाहर नहीं निकल पा रहा. उससे भी बड़ा दुर्भाग्य दर्शकों का है कि उन्हें फेस्टिव सीजन में वन्स अपॉन और चेन्नई एक्सप्रेस जैसी रद्दी फिल्मों में अपना पैसा गलाना पड़ रहा है. अब यह देश का भी दुर्भाग्य है कि उसका जन गण देश के दुश्मन के  अवतार के लिए तालियाँ और सीटियाँ बजा रहा है.