Wednesday 4 November 2015

अब गॉडजिला और किंग कॉंग

फ्रेडी और जैसन, एलियन और प्रिडेटर, बैटमैन और सुपरमैन तथा क्रेमर और क्रेमर की परंपरा में गॉडजिला  और किंग कॉंग भी चल निकले हैं। हॉलीवुड  फिल्मों के दर्शक अब गॉडजिला और किंग कॉंग को एक ही फिल्म में देखा पाएंगे।  फिल्म होगी गॉडजिला वर्सेज किंग कॉंग।  पिछले दिनों, वार्नर ब्रदर्स और लीजेंडरी पिक्चर्स के प्रवक्ताओं ने इस बात की संयुक्त घोषणा की।  इन दोनों लीजेंड विशाल आकृतियों पर फिल्म २०२० में रिलीज़ होगी।  २०१४ में 'गॉडजिला' पर रिबूट फिल्म की सफलता ने लीजेंडरी  पिक्चर्स का इस दैत्य आकृति पर विश्वास  पुख्ता हुआ था।  हालाँकि, गॉडजिला पर रिबूट फिल्म के बाद इस करैक्टर पर एक फिल्म २०१८ में रिलीज़ होने जा रही है।  यहाँ, बताते चले कि १९६२ में जापान के तोहो स्टूडियोज ने गॉडजिला सीरीज की तीसरी फिल्म किंग कॉंग के साथ 'किंग कॉन्ग वर्सेज गॉडजिला' बनाई थी।  यह फिल्म १९६३ में अमेरिका में भी रिलीज़ हुई।  लेकिन, २०२० की 'गॉडजिला वर्सेज किंग कॉन्ग ' का १९६२ की फिल्म से कोई सरोकार नहीं। खबरे हैं कि २०२० की गॉडजिला वर्सेज किंग कॉन्ग उस ट्राइलॉजी का तीसरा हिस्सा है, जो २०१७ में फिल्म 'कॉन्ग: स्कल आइलैंड' की रिलीज़ के साथ शुरू होगी।  इस फिल्म के बाद 'गॉडजिला २' को रिलीज़ किया जायेगा।  यह २०१४ में रिलीज़ अमेरिकन फिल्म 'गॉडजिला' की सीक्वल फिल्म है।  'गॉडजिला वर्सेज किंग कॉन्ग' मोनार्क के विज्ञानी  अपनी 'गॉडजिला' की खोज को आगे बढ़ाएंगे। यह भी ऐलान किया गया है कि 'द किंग ऑफ़ समर' के डायरेक्टर जॉर्डन वॉट-रॉबर्ट्स ट्राइलॉजी की पहली फिल्म 'स्कल आइलैंड' का निर्देशन करेंगे।  गैरेथ एडवर्ड्स 'गॉडजिला २' का निर्देशन करेंगे। अभी इसके कलाकारों का चुनाव नहीं किया गया है।

नारी हिरा : फिल्म पत्रकारिता का चेहरा बदल देने वाला 'हीरा'

सितारों की ज़िन्दगी में झांकने, वह फिल्म की शूटिंग के बाद क्या करते हैं, कहाँ जाते हैं, किसके साथ घूमते फिरते हैं, आदि आदि बातों का ज़िक्र होते ही आँखों के सामने गॉसिप मैगज़ीन ‘स्टारडस्ट’ का लेटेस्ट कवर घूम जाता है। इसके साथ ही, पैंतालिस साल पहले हिंदी फिल्म स्टार्स की ज़िन्दगी को बेपर्दा कर देने वाली अंग्रेजी फिल्म मासिक ‘स्टारडस्ट’ के संस्थापक नारी हिरा का नाम भी याद आ जाता है। नारी हिरा ने बम्बइया फिल्म पत्रकारिता का जैसे चेहरा ही बदल दिया था। उस समय कोई सोच भी नहीं सकता था कि कोई मैगज़ीन किसी फिल्म स्टार की ज़िन्दगी में इतने बेबाकी से झाँकेगी, उस के निजी जीवन की बेशर्म सच्चाइयों को उस आम फिल्म प्रेमी को बताएगी, जो अपने पसंदीदा सितारे को ईश्वर की तरह पूजता है। नारी हिरा को एक मैगज़ीन के जरिया ऐसा करने का विचार उस समय आया, जब वह उस दौर की एक लोकप्रिय फिल्म पत्रिका ‘फिल्मफेयर’ के एक अंक को देख कर। मैगज़ीन में इस उस समय की लोकप्रिय फिल्म अभिनेत्रियों साधना, आशा पारेख और वहीदा रहमान को मुंबई के जुहू बीच पर रेत के किले बनाते दिखाया गया था। यह अभिनेत्रियाँ मैगज़ीन के पत्रकार से अपनी फिल्मों के बारे में बात कर रही थी। नारी हिरा को लगा क्या मज़ाक  है ! यह क्यों नहीं जाना जाता कि यह अभिनेत्रियाँ फिल्म की शूटिंग के बाद क्या करती हैं। उनके जीवन की सच्चाइयों को क्यों नहीं बताया जाता ! इसके साथ ही ‘स्टारडस्ट’ का जन्म हुआ। दरअसल, नारी हिरा हॉलीवुड की तीसवे और चालीसवे दशक में निकलने वाली फिल्म मैगज़ीन ‘फोटोप्ले’ जैसी कोई पत्रिका निकालना चाहते थे। उन्होंने किया भी ऐसा ही। उस समय राजेश खन्ना का सितारा बुलंदी पर था। नारी हिरा मैगज़ीन के लॉन्चिंग अंक की कवर स्टोरी का हीरो राजेश खन्ना को ही बनाना चाहते थे। उस समय अंजू महेन्द्रू का राजेश खन्ना के साथ रोमांस चल रहा था। नारी हिरा अंजू महेन्द्रू को जानते थे। उन्होंने अंजू से कहा कि मैं अपनी मैगज़ीन के लिए स्टोरी करना चाहता हूँ। उन्होंने पूछा कि क्या तुम बताओगी कि क्या तुम दोनों शादी करना चाहते हो या सिर्फ रोमांस ही करोगे ? अंजू को नारी हिरा की स्टोरी का यह आईडिया पसंद आया। अंजू ने जवाब दिया मैं आपको यह तो नहीं बताने जा रही कि हम दोनों ने गुप्त रूप से शादी कर ली है या नहीं। लेकिन बाकी सब कुछ बताऊंगी। अक्टूबर १९७१ में स्टारडस्ट का पहला अंक बाज़ार में आया। कवर स्टोरी थी- इज राजेश खन्ना सीक्रेटली मैरिड ? यह अंक अक्टूबर के पहले हफ्रते में बाज़ार में आया। इसके साथ ही बॉम्बे की फिल्म पत्रकारिता का चरित्र ही बदल गया। 


कैरोलिन कोस्सेय : जेम्स बांड गर्ल वाज अ बॉय

यह कैरोलीन कोस्सेय हैं (देखें चित्र) । ३१ अगस्त १९५४ को जन्मी कैरोलिन ब्रिटिश मॉडल हैं। वह १९८१ में रिलीज़ बांड फिल्म ‘फॉर योर आईज ओनली’ की बांड गर्ल रह चुकी हैं। लेकिन, दसियों खूबसूरत और सेक्सी बांड गर्ल्स के बीच कैरोलिन की खासियत क्या है ! दरअसल, कैरोलीन ट्रांसजेंडर हैं। किशोर कैरोलिन में लड़कों से ज्यादा लड़कियों के लक्षण देखे गए। साथी उनका मज़ाक उड़ाया करते थे। कैरोलिन को भी अपनी बहन के साथ माँ की तरह तैयार होना पसंद था। इसी कारण से कैरोलिन को १५ साल की उम्र के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा। कैरोलिन ने १७ साल की उम्र में खुद के शरीर में थोडा परिवर्तन करवा कर, लन्दन के एक नाईट क्लब में शो गर्ल का काम करना शुरू कर दिया। इसके बाद कैरोलीन ने अपनी छातियों को बड़ा करने के लिए सर्जरी करवाई। इसमे सफलता के बाद वह पेरिस के नाईट क्लब में शोगर्ल और रोम में टॉपलेस डांसर का काम करने लगी। अब कैरोलिन पूरी तरह से स्त्री का जीवन जीने लगी थी। उन्होंने ने ‘टूला’ नाम से मॉडलिंग शुरू कर दी। वह ऑस्ट्रेलिया के पत्रिका वोग और हार्पर्स बाज़ार में नज़र आने लगी। इस तरह से कैरोलिन ने बड़े पैमाने पर ग्लैमरस मॉडलिंग करनी शुरू कर दी। ब्रिटिश टेबलायड की वह पेज थ्री गर्ल थी। १९९१ में प्लेबॉय में भी नज़र आई। १९७८ कैरोलिन उर्फ़ टुलू ने ब्रिटिश गेम शो ३-२-१ का एक पार्ट जीत लिया था। तभी एक पत्रकार ने उससे कहा कि वह जानता है कि टुलू ट्रांसजेंडर है। उसने खुद को कुछ इस तरह पेश किया, जैसे वह टुलू का भला चाहने वाला है। इसकी भनक लगते ही दूसरे पत्रकार भी कैरोलिन के अतीत को टटोलने लगे। टुलू को इस गेम शो से बाहर कर दिया गया। इसी दौरान १९८१ में वह बांड फिल्म ‘फॉर योर आईज ओनली’ में बांड गर्ल बनी अभिनेता रॉजर मूर के साथ खड़ी नज़र आई। यही से शुरू होती है टुलू की संघर्ष और विजय की कहानी। जेम्स बांड की रिलीज़ के ठीक बाद एक टेबलायड ‘न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड’ में खबर थी ‘जेम्स बांड गर्ल वाज अ बॉय' । इस खबर ने टुलू को काफी निराश किया। वह आत्महत्या करने की सोचने लगी। फिर, काफी सोच विचार के बाद कैरोलिन ने अपना मॉडलिंग करियर जारी रखने का निश्चय किया। अख़बार की खबर के जवाब में कैरोलीन कोस्सेय की आत्मकथा ‘आई एम् अ वुमन’ बाज़ार में आई।  इसी दौरान टुलू के जीवन में आया एक इटलियन एडवरटाइजिंग एग्जीक्यूटिव काउंट ग्लुको लासिनियो, जो उसके अतीत से परिचित होने के बावजूद उससे प्रेम करता था और उसने टुलु से सगाई भी कर ली थी। काउंट ने उससे ट्रांसजेंडर को लेकर बने ब्रितानी कानून को बदलने के लिए मुक़दमा दायर करने के लिए कहा। हालाँकि,  इस मुकदमे के दौरान ही, काउंट से टुलू की सगाई टूट गई। लेकिन, ब्रितानी कानून में बदलाव का टुलू का संघर्ष जारी रहा। सात साल लम्बे कानूनी संघर्ष के बाद टुलू ब्रिटिश कानून में बदलाव ला पाने में सफल हुई। इस फैसले के बाद, टुलू ने चार साल पहले छोड़ी गई मॉडलिंग फिर शुरू कर दी।  १९९१ में कैरोलीन कोस्सेय की दूसरी आत्मकथा ‘माय स्टोरी’ रिलीज़ हुई। इसी साल प्लेबॉय ने उस पर ‘द ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ़ टुलू’ टाइटल के साथ फोटो फीचर निकाला। आजकल टुलू कनाडा के डेविड फिंच के साथ शादी कर एटलांटा में रह रही है .  


Tuesday 3 November 2015

आई वी ससि : जिसकी पारिवारिक फ़िल्में गरम हुआ करती थी

सत्तर से लेकर नब्बे के दशक के फिल्म प्रेमी आई वी ससि को जानते होंगे . कभी वह अपनी फिल्मों के लिये कुख्यात हुआ करते थे. कुख्यात इसलिए की उनकी तमाम फिल्मे सॉफ्ट पोर्न श्रेणी की फ़िल्में मानी जाती थी . उस दौरान यह कहा जाता था कि उन्होंने तमाम मलयाली फिल्म निर्माताओं को सेक्स परोसने का रास्ता दिखाया . इर्रुप्पम वीडु शाशिधरन, जी हाँ आई वी ससि का यही पूरा नाम था. १९४६ में केरल में जन्मे आई वी ससि ने अपने पूरे करियर के दौरान कोई डेढ़ सौ फ़िल्में बनाई . इनमे कुछ हिंदी में थी और ज्यादा मलयालम से हिंदी में डब कर रिलीज़ की जाती थी . इन्ही डब फिल्मों ने शाशिधरन को पोर्न फिल्मों के डायरेक्टर का दर्ज़ा दे दिया. ‘अवलुड़े रावुकल’ उनकी बतौर निर्देशक पहली ऎसी मलयालम फिल्म थी . यह एक किशोरी वैश्या की कहानी थी . सत्तर के दशक में तत्कालीन मलयाली एक्ट्रेस को यह बेहद बोल्ड फिल्म लगी और उन्होंने वैश्या की इस भूमिका को करने से मना कर दिया. तब ससि अभिनेत्री सीमा के पास गए. सीमा की यह पहली फिल्म थी. फिल्म को ज़बरदस्त सफलता मिली. यह फिल्म मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की दूसरी एडल्ट फिल्म थी. इस फिल्म को बाद में हिंदी सहित कुछ अन्य भाषाओँ में डब कर रिलीज़ किया गया . हिंदी दर्शकों ने इस फिल्म को ‘हर नाइट्स’ टाइटल के साथ देखा होगा . हिंदी में भी ‘हर नाइट्स’ खूब सफल हुई. इस फिल्म से पूरे देश में मलयालम की सेक्सी फिल्मों का क्रेज बन गया . सीमा बड़ी स्टार बन गई . बाद में ससि ने सीमा से शादी कर ली. दो साल बाद ससि ने ‘हर नाइट्स’ को ‘पतिता’ टाइटल के साथ हिंदी में मिथुन चक्रवर्ती, राज किरण, शोमा आनंद और विक्रम के साथ बनाया . फिल्म को प्रशंसा ढेर मिली, लेकिन दर्शक कम मिले. इसके बाद आई वी ससि निर्देशित फिल्म ‘वादाकक्कू ओरु ह्रुदयम’ . इस फिल्म को हिंदी में ‘मन का आँगन’ टाइटल के साथ डब कर रिलीज़ किया गया . इसके साथ ही हिंदी की डब सेक्सी फिल्मों में आई वी ससि का नाम जुड़ गया. हालाँकि, उन्होंने अनोखा रिश्ता, अनुरोध, प्रतिशोध, करिश्मा, आदि हिंदी फिल्मो का निर्माण भी किया . आई वी ससि की फ़िल्मों का विषय पारिवारिक हुआ करता था. इसके बावजूद अपने बोल्ड दृश्यों के कारण ससि पोर्न फिल्मकार की तरह जाने जाते थे. एक समय यह कहा जाता था कि ससि बोल्ड विषय पर फ़िल्में ज़रूर बनाते थे, लेकिन एक्सीबिटर उनकी फिल्मों में पोर्न फिल्मों की क्लिपिंग जोड़ कर, इन फिल्मों को गरम फिल्म बना देते थे. हालाँकि, ससि की इमेज गरम फिल्म के निर्माता की बनी हुई थी, लेकिन उन्होंने बहुत सी सार्थक और सन्देश देने वाली फिल्मों का निर्माण किया. उनकी मलयालम फिल्म ‘१९२१’ बाल विवाह पर थी . इस फिल्म को इटली के फिल्म समारोह में दिखाया गया . ससि की फिल्म ‘आरूदम’ को राष्ट्रीय एकता की श्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला . कमल हासन, मोहनलाल, मम्मूती, प्रेम नज़ीर, आदि दक्षिण के सितारो का पहला परिचय आई वी ससि की फिल्मे से ही हुआ . मलयालम फिल्मों से रजनीकांत का डेब्यू आई वी ससि की फिल्म के द्वारा ही हुआ. 


पृथ्वीराज कपूर : एक सिकंदर, जो पोरस भी था

वह सिकंदर भी थे और पोरस भी . वह अर्जुन भी थे और कर्ण भी . वह अकबर थे तो वही महाराणा प्रताप  भी थे।  १९४६ की फिल्म 'पृथ्वीराज संयोगिता' में पृथ्वीराज का किरदार करने वाले अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने लगभग सभी मुख्य धार्मिक, ऐतिहासिक और अर्ध ऐतिहासिक किरदार किये।  ३ नवंबर १९०६ को अविभाजित भारत के पंजाब प्रान्त के लायलपुर में पैदा पृथ्वीराज कपूर ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत लायलपुर और पेशावर के थिएटर से की। उन्होंने अपने फिल्म करियर की शुरुआत मूक फिल्म दो धारी तलवार से की। उन्होंने नौ मूक फिल्मों में एक्स्ट्रा की भूमिका की।  १९२९ में रिलीज़ मूक फिल्म 'कॉलेज गर्ल' के वह नायक थे।  पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' में उन्होंने आलम आरा के पिता सेनापति आदिल की भूमिका की ।  यह वह समय था, जब हिंदी-उर्दू सिनेमा शैशवावस्था में था।  उस दौरान ऎसी फ़िल्में ज़्यादा बनाई जाती थी, जिनके करैक्टर आम आदमी के जाने पहचाने होते थे। इसीलिए पृथ्वीराज कपूर ने  काफी कॉस्ट्यूम ड्रामा फ़िल्में की।  आलम आरा के बाद पृथ्वीराज कपूर ने फिल्म 'द्रौपदी' में अर्जुन, रामायण में राम, राजरानी मीरा में महाराणा प्रताप, सीता में फिर राम, विद्यापति में राजा शिव सिंह, द कोर्ट डांसर: राज नर्तकी में राजकुमार चन्द्रकीर्ति, सिकंदर में सिकंदर महान, महारथी कर्ण में कर्ण, विक्रमादित्य में राजा विक्रमदित्य, छत्रपति शिवाजी में राजा जयसिंह, मुग़ल- ए- आज़म में सम्राट अकबर, रुस्तम सोहराब में योद्धा रुस्तम ज़ाबुली, हरिश्चंद्र तारामती में राजा हरिश्चंद्र, राजकुमार में महाराजा, जहाँआरा में शाहजहाँ, सिकंदर-ए-आज़म में राजा पोरस, श्री रामभरत मिलाप में राजा दशरथ, जहाँ सटी वहां भगवान में महाराजा करंधम, आदि फिल्मों के अलावा शेर ए अफगान, बलराम श्रीकृष्ण, सटी सुलोचना, हीर रांझा, नाग पंचमी जैसी फिल्मों में धार्मिक ऐतिहासिक किरदार किये।  हालाँकि, पृथ्वीराज कपूर कर्ण  और अर्जुन बने, अकबर और शाहजहाँ भी बने, लेकिन वह यादगार रहे फिल्म 'मुग़ल ए आज़म के शहंशाह अकबर के रूप में।  आज भी उनकी भारी भरकम शरीर के साथ दमदार आवाज़ अकबर को परदे पर महान छवि देती लगती है। उन्होंने १९४४ में पृथ्वी थिएटर की स्थापना की।  २९ मई १९७२ को ६५ साल की उम्र में मृत्यु के बाद पृथ्वीराज कपूर की तीन फ़िल्में नया नशा, बॉम्बे बय नाईट और जुदाई रिलीज़ हुई।  १९६९ में पृथ्वीराज कपूर को पद्म भूषण दिया गया और हिंदी सिनेमा  में महत्वपूर्ण योगदान के लिए १९७१ का दादासाहब फालके अवार्ड मरणोपरांत दिया गया।  

Sunday 1 November 2015

चंद्रलेखा: पहली तमिल फिल्म जो पूरे देश में चमकी

आजादी के सात महीने बाद रिलीज़ तमिल फिल्म ‘चंद्रलेखा’ इस मायने में अलग थी कि यह फिल्म पूरे भारत में रिलीज़ होने वाली पहली तमिल फिल्म थी . इस २०७ मिनट लम्बी ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म को इसकी भव्यता और नगाड़ों पर डांस के लिए याद किया जाता है . एस एस वासन की इस फिल्म में टी एस राजकुमारी, एम के राधा और रंजन जैसे बड़े सितारे थे . यह फिल्म कहानी थी दो राजकुमारों की - एक बुरा दूसरा भला . बुरा भाई अपने पिता की गद्दी पाने की कोशिश में रहता . दोनों ही एक नर्तकी से प्रेम करते थे . मोटे तौर पर यह फिल्म हॉलीवुड की फिल्म ‘द प्रिजनर ऑफ़ जेंटा’ से प्रेरित थी . इस फिल्म में बुरे राजकुमार का किरदार राजकुमार शशांकन का किरदार रंजन ने निभाया था . भले राजकुमार वीरसिम्हन एम के राधा बने थे . नर्तकी चंद्रलेकः की भूमिका टी आर राजकुमारी ने की थी. ‘चंद्रलेखा’ को बनने में पांच साल का समय लगा . हालाँकि, फिल्म पर काम चालीस के दशक की शुरुआत में ही शुरू हो गया था . उस दौरान एस एस वासन की दो फ़िल्में लगातार हिट हो गई थी . वासन ने अपनी अगली फिल्म के टाइटल ‘चंद्रलेखा’ का ऐलान कर दिया . जैमिनी स्टूडियोज का स्टोरी डिपार्टमेंट फिल्म की कहानी पर काम करने लगा. इस फिल्म की कहानी को विकसित करने में कई उपन्यासों का सहारा लिया गया . १९४३ में इस फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई . फिल्म के डायरेक्शन की कमान टी जी राघवाचारी के हाथों में थी . उन्होंने आधी से ज्यादा फिल्म शूट भी की . लेकिन, फिर मतभेदों के चलते वासन ने राघवाचारी को बाहर का रास्ता दिखा दिया और निर्देशन की कमान खुद सम्हाल ली . १९४३ में बननी शूरू चंद्रलेखा पांच साल बाद १९४८ में पूरी हुई . फिल्म के निर्माण के दौरान इसकी कास्ट, कहानी और प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में बार बार फेर बदल हुए . इस फिल्म के निर्माण में उस समय ३० लाख खर्च हुए थे. फिल्म को पूरी करने के लिए एस एस वासन को अपनी तमाम संपत्ति गिरवी रखनी पड़ी और जेवर बेच देने पड़े .  वासन इस फिल्म को अखिल भारतीय स्तर पर रिलीज़ करना चाहते थे . जैमिनी की फिल्म ‘चंद्रलेखा’ के बाद ही एवीएम् और प्रसाद प्रोडक्शनस ने हिंदी फिल्मों का निर्माण शुरू किया . इस फिल्म की कहानी के अनुसार रंजन का विलेन किरदार चंद्रलेखा से ज़बरदस्ती शादी करना चाहता है . इस पर चंद्रलेखा उसके सामने शर्त रखती है कि वह नगाड़ा डांस के बाद ही उससे शादी करेगी . चंद्रलेखा की इच्छा को पूरा करने के लिए खुले दरबार में नगाड़े सजाये जाते हैं . चंद्रलेखा उन पर डांस करती है . इसी दौरान नगाड़ों में बैठे राजकुमार बने राधा के सैनिक बाहर निकल आते हैं . खूब तलवारबाज़ी होती है . आखिर में चंद्रलेखा भले राजकुमार की हो जाती है . इस फिल्म की खासियत तलवारबाज़ी के हैरतंगेज़ दृश्य थे . रंजन खुद में अच्छे तलवारबाज़ थे . फिल्म का नगाड़ा डांस चकाचौंध कर देने वाला भव्य बन पडा था . इस डांस की बदौलत फिल्म ज़बरदस्त हिट हुई . दर्शक केवल इस डांस को देखने के लिए ही फिल्म देखने जाते थे . इस नगाड़ा डांस को २५ साल के कोरियोग्राफर एस राजेश्वर राव ने तैयार किया था . इस दर्शनीय फिल्म के कैमरामैन कमल घोष और के रामनाथ थे . फिल्म के संगीत में भारतीय और पाश्चात्य संगीत की घालमेल थी. एस एस वासन ने इस फिल्म के तमिल संस्करण को भरपूर प्रचार के साथ रिलीज़ किया. फिल्म को समीक्षकों ने सराहा भी . इसके बावजूद फिल्म अपनी लागत वसूलवाने में नाकामयाब हुई . तब वासन ने फिल्म को कुछ बदलाव के साथ हिंदी में रिलीज़ किया . हिंदी में रिलीज़ होते ही चंद्रलेखा बड़ी हिट फिल्मों में शुमार हो गई . फिल्म ने उस समय ७० लाख का ग्रॉस किया, जो आज के लिहाज़ से ४७६.६२ करोड़ है . इस फिल्म की सफलता ने दक्षिण के निर्माताओं को अपनी फ़िल्में हिंदी में रिलीज़ करने के लिए उत्साहित किया . बाद में चंद्रलेखा इंग्लिश, जापानीज, डेनिश तथा अन्य विदेशी भाषाओँ में डब कर रिलीज़ की गई . कई भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में भी यह फिल्म दिखाई गई. देखिये चंद्रकांता के इस दर्शनीय और भव्य नगाड़ा डांस को इस विडियो में-

'शोले' से भी ज़्यादा हिंसक थी यह फिल्म !

चौंतीस साल पहले, २३  नवंबर १९८१ को कडाके की ठण्ड पड़ रही थी . लखनऊ के चाइना बाज़ार के पास बने उस समय के सबसे खूबसूरत थिएटर तुलसी में जीतेंद्र और हेमा मालिनी की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘मेरी आवाज़ सुनो’ लगी थी . यह फिल्म कडाके की ठण्ड में भी गर्म थी . खबर थी कि इस फिल्म में पहली बार किसी नेता और अधिकारी पर उंगली उठाई गई है, उन्हें अपराधी करार दिया गया है . यह अभूतपूर्व था . इससे पहले की हिंदी फिल्मों में पुलिस और प्रशासन के अधिकारी और नेता पवित्र गाय हुआ करते थे, उन पर उंगली उठाना सेंसर का शिकार होना होता था . इसलिए फिल्म के बैन किये जाने की अफवाह गर्म थी . थिएटर के बाहर हाउसफुल का बोर्ड उतरने का नाम नहीं ले रहा था, दर्शकों की लम्बी कतारें फिल्म के हिट होने की ओर इशारा कर रही थी . ऐसे में फिल्म को यकायक सिनेमाघर से उतार दिया गया था . जो नहीं देख पाए, उन्हें अफ़सोस हो रहा था . जिन्होंने देखी वह फिल्म में बर्बर हिंसा से हतप्रभ थे. फिल्म में ईमानदार पुलिस अधिकारी को नेता, अपराधी और पुलिस ऑफिसर प्रताड़ित करते हैं . उसकी गर्भवती पत्नी का गर्भ पेट पर लात मार मार कर गिरा देता हैं . पुलिस अधिकारी की हाथों की उँगलियों के नाखून उतार देते हैं. यह अभूतपूर्व दृश्य थे . हालाँकि, हिंदी फिल्म ‘मेरी आवाज़ सुनो’ के तमाम हिंसक दृश्य काफी कम कर दिए गए थे . लेकिन, मेरी आवाज़ सुनो की रिलीज़ के कोई छह महीना पहले मूल फिल्म कन्नड़ ‘अंत’ ने बंगलोर को हिला  कर रख दिया गया था . निर्देशक एस वी राजेंद्र सिंह की फिल्म की प्रीमियर के बाद से ही अत्यधिक हिंसा के कारण आलोचना शुरू हो गई थी और फिल्म पर बैन लगाये जाने की खबरे उड़ने लगी थी . बंगलौर के दो कन्नड़ दैनिकों प्रजावाणी और कन्नड़ प्रभा ने फिल्म का विरोध शुरू कर दिया . इस फिल्म को शोले से ज्यादा हिंसक बताया गया . फिल्म पर यह भी आरोप लगाए गए कि इसमे हिंसक दृश्य सेंसर से पारित कराये जाने के बाद शामिल किये गए . फिल्म में पुलिस अधिकारी बने अम्बरीश को अपराधी नेता और पुलिस वाले यातना देते हुए उनकी उँगलियों के नाखून उतार लेते हैं . यह दृश्य बड़े विस्तार से दिखाया गया था . इसके अलावा फिल्म में ईमानदार पुलिस अधिकारी की गर्भवती पत्नी का गर्भ उसके पेट में लात मार मार कर गिरा दिया जाता दिखाया गया था . इन दृश्यों ने क्रूरता की तमाम हदें लांघ ली थी . जब शोर शराबा मचा तो सेंसर बोर्ड ने इससे यह कह कर पल्ला झाड लिया कि फिल्म के तमाम दृश्य उन्हें नहीं दिखाए गए. इस देखते हुए बंगलौर के जिला अधिकारी ने फिल्म को थिएटर से उतार जाने के आदेश जारी कर दिए . लेकिन, इस समय तक फिल्म को तीन हफ्ते बीत चुके थे . सिनेमाघरों में इस फिल्म ने ज़बरदस्त कलेक्शन कर लिया था . यह फिल्म तीन हफ़्तों में ही सुपर हिट बिज़नस कर चुकी थी और अम्बरीश कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार बने . इस फिल्म के कारण उन्हें ‘रिबेल स्टार’ कहाँ जाने लगा. इसी इमेज के बल पर अम्बरीश १२ वी लोकसभा के लिए चुने गए . वह १३ वी और १४ वी लोकसभा के भी सदस्य बने . २००६ में वह मनमोहन सिंह सरकार में सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री बनाए गए . वर्तमान में वह मांड्या से विधायक है और कर्णाटक सरकार में मंत्री . अब फिर बात करते हैं जीतेंद्र की फिल्म ‘मेरी आवाज़ सुनो’ की . यह फिल्म भी जब तक सिनेमाघरों से उतारी जाती ज़बरदस्त हिट हो चुकी थी . हालाँकि, इस फिल्म में कन्नड़ फिल्म के मुकाबले हिंसा के दृश्य काफी प्रतीकात्मक थे . हेमा मालिनी के गर्भ पर लात मारने के दृश्यों को मुर्गी के अंडे तोड़ कर दिखाया गया था . अलबत्ता, नाखून उखाड़े जाते समय जीतेंद्र के किरदार की चीख दहलाने वाली थी . बैन के बाद यह फिल्म फिर रिलीज़ हुई और सबसे बड़ी हिट फिल्मों में शुमार हुई . इस फिल्म ने उस समय १० करोड़ का ग्रॉस किया था, जो आज के लिहाज़ से ३०६.१७ करोड़ है। मेरी आवाज़ सुनो और अर्द्धसत्य के बाद हिंदी फिल्मों में नेता और सरकारी अधिकारी पवित्र गाय नहीं रह गए .