Wednesday 2 December 2015

बॉलीवुड की साइकोलॉजिकल थ्रिलर के नाम पर सीरियल किलर फ़िल्में

एक्टर नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी एक साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म कर रहे हैं। फिलहाल, इस फिल्म को 'रमन राघव २.०८' टाइटल दिया गया है। अनुराग कश्यप की यह फिल्म मुंबई के १९६६ के उस कुख्यात सीरियल किलर रमन राघव पर है, जो रात में धातु या पत्थर का कोई कुंद हथियार ले लेता था और फूटपाथ पर सोये लोगों पर कहर बन कर टूट पड़ता था।  इस हत्यारे के आतंक का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि फूटपाथ पर लोग  सोने में डरते थे।  यहाँ तक कि अपार्टमेंट में भी लोग खिड़की के पास नहीं सोते थे। इस मानसिक रोगी हत्यारे ने ऐसे ही सोये हुए २३ लोगों को मौत के घाट उतारा। इस मनोरोगी हत्यारे  के किरदार को लेकर नवाज़ बेहद उत्साहित हैं।  
जब राजेश खन्ना बने सीरियल किलर 
साइको और सीरियल किलर किरदार बॉलीवुड के फिल्मकारों और अदाकारों को भी खूब पसंद आते हैं। श्रीराम राघवन ने कॉलेज ग्रेजुएशन के दौरान रमन राघव पर के ४५ मिनट की डॉक्यु-ड्रामा फिल्म का निर्माण किया था। उनकी 'एक हसीना थी', 'जॉनी गद्दार' और 'बदलापुर' थ्रिलर फ़िल्में ही थी।  दक्षिण के निर्माताओं को भी रमन राघव के सीरियल किलर किरदार ने फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया था।  १९७८ में दक्षिण के मशहूर निर्देशक भारती राजा ने रमन राघव के करैक्टर को केंद्र में रख कर 'सिगप्पु रोजक्कल' यानि 'रेड रोजेज' का निर्माण किया था।  इस फिल्म में सीरियल किलर की भूमिका कमल हासन ने निभाई थी।  इस रोल के लिए कमल हासन को श्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था।  दो साल बाद, भारती राजा ने इस फिल्म को हिंदी में 'रेड रोज' शीर्षक से बनाया।  फिल्म में राजेश खन्ना ने सीरियल किलर की भूमिका की थी। लेकिन, कमल हासन की तमिल फिल्म 'सिगप्पु रोजक्कल' जहाँ सुपर हिट हुई थी, वहीँ हिंदी संस्करण को बुरी तरह असफलता का मुंह देखना पड़ा।  क्योंकि, फिल्म की भूमिका राजेश खन्ना की रोमांटिक इमेज के विपरीत थी। इसलिए, उनके प्रशंसक दर्शकों ने नकार दिया। नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी को  लेकर सीरियल किलर पर फिल्म बनाने वाले अनुराग कश्यप की फिल्म 'पांच' भी १९७६-७७ के दौरान के पुणे के चार सीरियल किलर दोस्तों राजेंद्र जक्कल, दिलीप सुतार, शांताराम कान्होजी और मुनव्वर हारून शाह पर थी, जिन्होंने दस लोगों का क़त्ल किया थे। 'पांच' में यह भूमिकाएं केके मेनन, आदित्य श्रीवास्तव, विजय मौर्या और जॉय फर्नांडिस ने की थी।  लेकिन, यह फिल्म आज भी डिब्बा बंद है।  
सीरियल किलर ने बनाया शाहरुख़ को बादशाह 
जी  हाँ, थ्रिलर फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाना आसान नहीं होता।  यह और ज़्यादा कठिन तब हो जाता है, जब ऎसी फिल्म साइकोलॉजिकल थ्रिलर हो।  करेले पर नीम चढ़ता है, जब नायक सीरियल किलर हो।  इमेज के विपरीत भूमिका किसी भी अच्छे एक्टर को धूल चटा सकती  है।  राजेश खन्ना के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था। लेकिन, यह साइकोलॉजिकल किलर नायक किसी को टॉप पर भी पहुंचा सकता है।  कम से कम अभिनेता शाहरुख़ खान इससे इंकार नहीं करेंगे।  शाहरुख़ खान  सात फ़िल्में कर लेने के बावजूद टीवी सीरियल 'फौजी' के अभिमन्यु राय ही बने हुए थे।  लेकिन, १९९३ में जैसे ही एंटी हीरो फिल्म 'बाज़ीगर' की वह स्टार बन गए। इस फिल्म में वह बदला लेने के लिए शिल्पा शेट्टी को मारते थे।  वह खुद को बचाने के लिए एक के बाद एक क़त्ल करते चले गए थे। १९९३ में ही रिलीज़ फिल्म 'डर' ने उन्हें टॉप पर पहुंचा दिया।  शाहरुख़ खान ने होशियारी यह की कि उन्होंने बाद में ऎसी फ़िल्में करने से इंकार कर दिया।  उन्हें 'करण-अर्जुन' और 'दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे' ने रोमांटिक हीरो बना दिया।साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्मों में नायक या नायिका का शरीर से अधिक दिमाग काम करता दिखाया जाता है।  यानि,  साइकोलॉजिकल थ्रिलर फ़िल्में मनोविज्ञान पर निर्भर होती है।  इसीलिए, बॉलीवुड में थ्रिलर फ़िल्में तो बहुत बनी, लेकिन  साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्मों की संख्या ज़्यादा नहीं है।  साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्मों के लिहाज़ से रामगोपाल वर्मा की फिल्म 'कौन' बॉलीवुड की श्रेष्ठ थ्रिलर फिल्मों में शुमार की जाती है। इस फिल्म में उर्मिला मातोंडकर ने मानसिक रूप से बीमार औरत का किरदार किया था।  पूरी फिल्म एक कमरे में तीन किरदारों पर केंद्रित थी। उर्मिला मातोंडकर के साथ मनोज बाजपेई और सुशांत सिंह ने ऐसा रंग जमाया था कि दर्शक पूरे सन्नाटे के साथ 'कौन' को देखते रह जाते थे।
सौ करोड़ का सीरियल किलर 
मानसिक रूप से बीमार सीरियल किलर किरदार के लिहाज़ से आमिर खान की फिल्म 'गजिनी' उल्लेखनीय है।  इस फिल्म में आमिर खान के किरदार के सामने उसकी प्रेमिका की हत्या कर दी जाती है।  किलर आमिर खान के करैक्टर के सर पर भी वार करता है।  लेकिन, वह ज़िंदा बच जाता है।  सर पर चोट के कारण खान के किरदार की याददाश्त कमज़ोर हो जाती है।  उसे कभी कभी हत्या की धुंधली तस्वीर उसकी आँखों के सामने गुजराती है।  वह इसका बदला लेने के लिए अपने शरीर पर सब लिख लेता है।  तस्वीरों और नोट्स के ज़रिये खुद की पहचान करता है।  बदला लेने के क्रम में ही वह एक के बाद कई बुरे किरदारों का खात्मा कर देता है।  आमिर खान की एआर मुरुगोदास निर्देशित 'गजिनी' हिंदी फिल्मों में पहली सौ करोडिया फिल्म थी। 
यह सभी फ़िल्में दिमागी अस्थिरता के कारण किलर बने किरदारों को दिखाने वाली फ़िल्में हैं।  २००६ में रिलीज़ फिल्म 'अपरिचित' का नायक मल्टीप्ल पर्सनालिटी डिसऑर्डर का शिकार था।  कभी वह और उसका परिवार अन्याय का शिकार हुआ था।  इसलिए वह गलत काम करने वाले बुरे लोगों की हत्या करता चला जाता है।  इस रोल को तमिल अभिनेता विक्रम ने किया था।  लेकिन, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही। जबकि, इसकी मूल तमिल फिल्म 'अंनियन' हिट हुई थी।  फिल्म को कई अवार्ड्स भी मिले थे।  भट्ट कैंप से २०११ में रिलीज़ 'मर्डर २' हॉलीवुड की फिल्म 'द साइलेंस ऑफ़ लैम्ब्स' और साउथ कोरियाई फिल्म 'द चेंजर' का चरबा थी।  इस फिल्म में इमरान हाशमी एक कॉप बने थे।  जैक्विलिन फर्नांडिस एक डांसर।  लेकिन, फिल्म के केंद्र में प्रशांत नारायण, जो दिमागी रूप से बीमार एक ऐसा शख्स बने थे, जो पहले खूबसूरत लड़कियों को बहला कर अपने अड्डे लाता है।  फिर औरतों की तरह सज कर उनका क़त्ल करता है।  लाशें पास के कुँए में फेंक देता है।  मोहित सूरी की 'मर्डर २' हिट हुई थी।  
सबका प्रिय सीरियल किलर 
सीरियल किलर करैक्टर और थ्रिलर फिल्मों को दोनों खान अभिनेताओं शाहरुख़ खान और आमिर खान ने भी किया।  बॉलीवुड के  पहले  सुपर सितारे राजेश खन्ना ने भी किया।  उर्मिला मातोंडकर भी सीरियल किलर बनाने का मोह नहीं छोड़ पाई।  साउथ के एक्टर्स में तो यह हिट है ही।  कुछ दोयम दर्जे के एक्टर्स ने भी सीरियल किलर को अंजाम दिया।  मोहित सूरी की २०१४ में रिलीज़ फिल्म 'एक विलेन' में अभिनेता रितेश देशमुख सीरियल किलर का किरदार कर रहे थे। यह व्यक्ति घर में अपनी बीवी से प्रताड़ित है।  जब यह किसी औरत को गुस्सा करते चिल्लाते देखता है तो बेकाबू हो जाता है और उसकी हत्या कर देता है।  संघर्ष फिल्म में आशुतोष राणा अमरता के लिए छोटे बच्चों की बलि  दिया करते थे। विद्या बालन की सुपर हिट फिल्म 'कहानी' में शास्वत चटर्जी का बॉब विश्वास का करैक्टर हँसते हुए मासूम लोगों का क़त्ल कर देता था।  इससे साफ़ है कि सीरियल किलर किरदार कई छोटे बड़े एक्टर एक्ट्रेस ने किये।  काफी को सफलता भी मिली।  लेकिन, लम्बी रेस का घोड़ा वही बने, जिन्होंने अपनी इमेज को तत्काल बदल लिया।३० अक्टूबर को  रिलीज़ होने जा रही फिल्म 'मैं और चार्ल्स' में निर्देशक प्रवाल रमन कॉप आमोद कंठ की जुबानी सीरियल किलर चार्ल्स शोभराज की कहानी सूना रहे हैं।  अपनी चार्मिंग पर्सनालिटी के ज़रिये चार्ल्स खूबसूरत लड़कियों को फंसाता था और फिर मार देता था।  बताते हैं कि उसे बिकिनी पहले औरतों की हत्या करने में मज़ा आता था।  इसलिए उसे बिकिनी किलर का खिताब भी मिला था।  फिल्म में चार्ल्स की भूमिका एक्टर रणदीप हुडा कर रहे हैं।  देखने वाली बात होगी कि वह इस रियल लाइफ हत्यारे को रील लाइफ में किस संजीदगी से उभार पाते हैं।  



बॉलीवुड एक्टर ही बनाते हैं विलेन को हीरो !

सूरज बड़जात्या की दिवाली में रिलीज़ होने जा रही फिल्म 'प्रेम रतन धन पायो' राजे- रजवाड़ों की कहानी हैं।  राजमहल के षडयंत्र और कुचक्र हैं।  एक अदद प्रेम कहानी भी है।  फिल्म में सलमान खान नील नितिन मुकेश भाई भाई हैं। 'जानी दुश्मन: एक अनोखी कहानी' के नायक अरमान कोहली फिल्म में सलमान और नील के चचेरे भाई बने हैं।  इन ऑन स्क्रीन भाइयों  में हिंदी फिल्मों की परंपरा में विलेन के दो रूप नज़र आएंगे।  नील नितिन मुकेश रील लाइफ में गलतफहमी की वजह से बुरे काम करने वाले भाई बने हैं, जो गलतफहमियां दूर होने पर सुधर भी सकता है ।  जबकि, अरमान कोहली एक वास्तविक विलेन बने हैं, जिसका अच्छाइयों से कोई वास्ता नहीं।  प्रेम रतन धन पायों में अपने विलेन किरदार को लेकर अरमान कोहली कहते हैं, "मैं सूरज बड़जात्या की फिल्मों का पहला विलेन हूँ।" प्रेम रतन धन पायो में, जहाँ नील का किरदार हीरो से कुछ टाइम के लिए विलेन बन जाता है, वहीँ अरमान का किरदार जन्मजात विलेन है। उसका शगल है गलत काम करना। ऑन स्क्रीन यह किरदार फिल्म अभिनेताओं ने अपने करियर के भिन्न मुकाम पर किये।  ऐसा करना उनकी मज़बूरी भी थी और रणनीति भी।
गलतफहमियों ने बनाया विलेन
हिंदी फिल्मों में, आम तौर पर इसी प्रकार के किरदार पाये जाते हैं।  फिल्म 'आई मिलन की बेला' (१९६४) में धर्मेन्द्र और फिल्म 'आदमी और इंसान' (१९६९) में धर्मेन्द्र गलतफहमी में अपने दोस्त के साथ बुरा बर्ताव करते थे। 'उपकार' और 'दो रास्ते' का प्रेम चोपड़ा का विलेन वास्तव में  गलतफहमी का शिकार हीरो था।   लेकिन, इन्ही प्रेम चोपड़ा ने 'मेरा साया' 'तीसरी मंज़िल', 'झुक गया आसमान', 'कटी पतंग' आदि दसियों फिल्मों में खालिस खल किरदार किये। पचास-साठ के दशक में नियमित खल किरदार के अलावा इसी प्रकार के विलेन भी देखने को मिलते थे, जो गलतफहमी के कारण विलेन जैसे हो जाते थे ।  'प्रेम रतन धन पायो' के नील नितिन मुकेश को इसी दर्जे के विलेन में रखा जा सकता है।  
असफल हीरो बना विलेन 
लेकिन, अरमान कोहली खालिस विलेन बने हैं। उनके किरदार की फितरत ग्रे है।  उसे बुरा सोचना, बुरा चेतना और बुरा करना पसंद है।  इस लिहाज़ से अरमान कोहली उन विलेन की श्रेणी में आते हैं, जिन्होंने हिंदी फिल्मो में हीरो के रूप में कदम रखा।  फिल्म निर्माता राजकुमार कोहली और पूर्व फिल्म अभिनेत्री निशि के बेटे अरमान कोहली ने १९९२ में रिलीज़ फिल्म 'विद्रोही' से हिंदी फिल्मों में कदम रखा।  इस फिल्म का निर्माण उस समय तक 'गोरा और काला', 'नागिन' और जानी दुश्मन' जैसी हिट  फिल्म दे चुके, राजकुमार कोहली ने ही बनाया था।  लेकिन, विद्रोही बुरी तरह से फ्लॉप हुई।  इस असफलता के बाद अरमान कोहली फिर नहीं पनप सके।  अरमान कोहली की तरह बतौर नायक असफल करियर के बाद विलेन बनने वालों में विवेक ओबेरॉय का नाम भी शामिल है।  'कंपनी', 'रोड', 'साथिया', 'युवा' आदि फिल्मों के नायक रहे विवेक ओबेरॉय को लगातार फ्लॉप फिल्म के कारण राजेश रोशन की फिल्म 'कृष ३' में विलेन का चोला  अपनाना पड़ा।  अनिल कपूर के छोटे भाई संजय कपूर हिंदी फिल्मों में बतौर नायक सफल नहीं हो सके तो फिल्म 'शक्ति: द पावर' में  विलेन बन गए। 
खलनायक- नायक 
कभी कभी हिंदी फिल्मों का नायक  वास्तव में विलेन ही होता है। पहले, नायक के लिए ऐसे ही चरित्र लिखे जाते थे। आजकल, उन्हें एंटी-हीरो कह दिया जाता है और विलेन के तमगे से साफ़ बचा लिया जाता है। धूम सीरीज की फिल्मों में कोई हीरो नहीं।  जो हीरो है (अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा), वह वास्तव में साइड हीरो है। खल-नायक ही वास्तव में नायक है। इसी तरह से, डर, बाज़ीगर और अंजाम का खलनायक ही फिल्म का नायक है। इन फिल्मों ने खान को स्टार हीरो बना दिया।  शाहरुख़ खान की 'डॉन' सीरीज की फिल्मों के उनके किरदार को क्या कहा जायेगा?  'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा' में अक्षय कुमार ने डॉन दाऊद इब्राहिम का किरदार किया है।  उनसे पहले, इसी फिल्म के पहले हिस्से में अजय देवगन ने हाजी मस्तान का खल किरदार किया था।  इन फिल्मों में इमरान हाशमी के किरदार भी बुरे थे। रामगोपाल वर्मा की अधिकतर फिल्मों का नायक वास्तव में विलेन ही होता है। अमिताभ बच्चन, इसी कथित एंटी-हीरो के सहारे ही सुपर स्टार बने।  इसी साल रिलीज़ श्रीराम राघवन की फिल्म 'बदलापुर' का नायक भी एक विलेन ही है। मणि रत्नम की फिल्म 'रावण' में अभिषेक बच्चन हीरो थे।  लेकिन, उनका किरदार एक डाकू का था। एक विलेन' में रितेश देशमुख विलेन होने के बावजूद हीरो सिद्धार्थ मल्होत्रा को पीछे धकेल देते हैं।  'अग्निसाक्षी' में नाना पाटेकर के कारण जो विलेन हीरो बन गया था, वह याराना में राज बब्बर और दरार में अरबाज़ खान के कारण हीरो नहीं बनने पाता।  
कुछ ऐसे विलेन भी 
इन तमाम विलेन के बीच कुछ दूसरे विलेन भी हैं।  इन खलनायकों को किस श्रेणी में रखेंगे।  'अग्निपथ' के संजय दत्त और ऋषि कपूर के विलेन किस श्रेणी में हैं।  यह नायक से खलनायक बने हैं।  लेकिन, फिल्म में पूरे विलेन हैं।  यह रितेश देशमुख की तरह हीरो बन कर नहीं आते।  क्या फिल्म 'किक' में सलमान खान के हीरो को विलेन कहा जा सकता है ? ओमकारा के सैफ अली खान के लंगड़ा त्यागी का किरदार क्या है ? 'किल बिल' में गोविंदा ने विलेन किरदार किया था।  अक्षय कुमार ने फिल्म अजनबी में भी नेगेटिव किरदार किया था। दिल्लगी में आज के नायक अजय देवगन और हमराज में अक्षय खन्ना ने विलेन का किरदार किया था।  अब यह बात दीगर है कि अक्षय खन्ना लगातार असफल फिल्मों के बाद हिंदी फिल्म में ज़्यादा विलेन के रोल ही कर रहे हैं।
जब डायरेक्टर बने विलेन 
अनुराग कश्यप की फिल्म 'बॉम्बे वेलवेट' में फिल्म निर्देशक करण जौहर का किरदार विलेन की खूबियों वाला है। अनुराग कश्यप की ही फिल्म 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' में निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने बुरे नेता का किरदार किया है।  कमीने में स्टैनली का डब्बा के निर्देशक अमोल गुप्ते ने गैंगस्टर की भूमिका की थी। तिग्मांशु धूलिया की फिल्म 'शागिर्द' में खल चरित्र कर चुके अनुराग कश्यप साउथ के निर्देशक एआर मुरुगदॉस की फिल्म 'अकीरा' एक गंजे, बड़ी मूंछो वाले और भोजपुरी बोलने वाले विलेन के रूप में नज़र आएंगे।    
हीरोइन भी बनी वैम्प 
हिंदी फिल्मों की नायिका अभिनेत्रियां भी अपने नायकों के नक़्शे कदम पर चलती प्रतीत होती हैं। सनी देओल के साथ बेताब से हिंदी फिल्म डेब्यू करने वाली अमृता सिंह ने आइना और कलयुग में एक बुरी बहन और देह व्यापार में लिप्त महिला का किरदार किया था। फिल्म गुप्त की काजोल, खून भरी मांग की सोनू वालिया, साहब बीवी और गैंगस्टर की माही गिल, एक थी डायन की  कल्कि कोएच्लिन और कोंकणा सेन शर्मा, ऐतराज की प्रियंका चोपड़ा, जिस्म की बिपाशा बासु, इश्क़िया की विद्या बालन, प्यार तूने क्या किया की उर्मिला मातोंडकर, अरमान की प्रीटी जिंटा और इसी साल रिलीज़ फिल्म गुलाब गैंग में जूही चावला का किरदार हिंदी फिल्मों के नायकों की परम्परा में नेगटिव है।













क्या 'बाजीराव' की 'मस्तानी' बनेगी अनारकली ?

संजयलीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' मराठा पेशवा बाजीराव और एक मुग़ल कॉर्टेसन मस्तानी की प्रेम कहानी है।  यह नर्तकी केवल नृत्य गीत में पारंगत  तवायफ नहीं, बल्कि हथियार चलाने में सिद्धहस्त मस्तानी थी।  इस कहानी में कई पेच हैं, उतार चढ़ाव हैं, मोशन- इमोशन हैं, बाजीराव, मस्तानी और बाजीराव की पत्नी काशीबाई के टकराव का त्रिकोण भी है।  एक अच्छे शासक और समर्पित पति के चरित्र में किस प्रकार से बदलाव ले आती है एक राज नर्तकी, फिल्म  'बाजीराव मस्तानी' इसका प्रमाण है।  हिंदी फिल्मों में नर्तकी किरदार का अपना एक इतिहास है तो हिंदी फिल्मों में ऐतिहासिक नर्तकियां भी हैं।  इन किरदारों ने हिंदी फिल्मों को रोचक, मसालेदार, भव्य और दर्शनीय बना दिया है।
कॉर्टेसन यानि तवायफ/राज नर्तकी/गणिका 
यहाँ साफ़ करना ज़रूरी है कि कॉर्टेसन उर्दू में तवायफ होती है, जो नाचने गाने का काम यानि मुजरा करती है।  इससे, सभी सेक्स नहीं कर सकते।  वह अपने प्रेमी से  ही सेक्स करने को  राजी होती है। यह एक मर्द के प्रति वफादार भी होती है और खासी समझदार और जानकार भी। हिंदी फिल्मों में कॉर्टेसन यानि तवायफ दो रूपों में नज़र आती हैं।  एक काल्पनिक नर्तकियां जो नाचने गाने का काम करती हैं, समाज की ठुकराई हुई हैं।  हीरो उनसे प्यार करता है।  इनका कोई भी नाम हो सकता है।  लेकिन, अमूमन इन नर्तकियों के नाम के आगे जान या बाई लगा होता है।  मसलन साहबजान, हीरा बाई या मुन्नी बाई।  बॉलीवुड ने तवायफों के इसी रूप को कई फिल्मों में  दिखाया है।  कमाल अमरोही की फिल्म 'पाकीज़ा' भव्य फिल्मों में शुमार है।  यह एक नाचने गाने वाली तवायफ और एक नवाबजादे के प्रेम की कहानी है।  कमाल अमरोही ने इसे भव्य सेट्स, चमकदार, रंगीन और भारी भरकम पोशाकों वाले चरित्रों, दमकती शमाओं की रोशनी और मधुर संगीत से सजाया था।  इस फिल्म में मीना  कुमारी ने साहबजान और नर्गिस की दोहरी भूमिकाएं की थी।  फिल्म में नवाबजान और गौहरजान जैसे कोठों के किरदार भी थे।  इस फिल्म की नाटकीयता और अभिनय ने तमाम चरित्रों का वास्तविक जैसा एहसास कराया था।  तवायफ को महान साबित करने वाली साधना, तवायफ, आदि बहुत सी फ़िल्में सफल भी रही हैं। इन सबसे अलग है शरत चन्द्र चटर्जी के उपन्यास 'देवदास' की तवायफ चंद्रमुखी का चरित्र।  वह बिना किसी स्वार्थ के देवदास का सहारा बनती है।  
मुगलकाल की कई सुन्दर और शक्तिशाली तवायफों या राज नर्तकियों का जिक्र मिलता है।  अकबर के दौर में अनारकली की कहानी तो काफी मशहूर है। औरंगज़ेब भी मोती बाई के हुस्न और हुनर का दीवाना था।  शाहजहाँ के दौर में नूर बेगम और गौहर जान का ज़िक्र आता है। १९४१ में होमी वडिआ प्रोडक्शंस के अंतर्गत एक इंग्लिश फिल्म 'कोर्ट डांसर' या 'राज नर्तकी' रिलीज़ हुई थी।  इस फिल्म में पृथ्वी राजकपूर ने प्रिंस चन्द्रकीर्ति और साधना बोस ने राज नर्तकी का किरदार किया था। यह फिल्म इन दोनों की प्रेम कहानी थी। ऐसे कुछ दूसरी कॉर्टेसन यानि तवायफ यानि नगर वधु के किरदारों को हिंदी फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों का केंद्रीय चरित्र बनाया है।  दिलचस्प तथ्य यह है कि इन किरदारों को करने में तत्कालीन बड़ी अभिनेत्रियों ने हिचक भी नहीं दिखाई।
अनारकली- थोड़ा ऐतिहासिक और थोड़ा काल्पनिक अनारकली और सलीम की रोमांस कथा पर सबसे अधिक फ़िल्में बनाई गई।  मूक फिल्मों के दौर में, १९२८ में आर एस चौधुरी ने दिनशा बिल्मोरिआ और रूबी मायर उर्फ़ सुलोचना को सलीम अनारकली बना कर फिल्म 'अनारकली' बनाई।  चौधुरी ने ही १९३५ में इसी स्टारकास्ट के साथ दूसरी अनारकली का निर्माण किया।  १९५३ में फिल्मिस्तान ने प्रदीप कुमार और बीना राय के साथ नन्दलाल जसवंतलाल के निर्देशन में एक और 'अनारकली' का निर्माण किया।  १९५५ में वेदांतम राघवैया के  निर्देशन में तमिल और तेलुगु में सलीम अनारकली की रोमांस कथा को सेलुलॉइड पर उतारा गया।  अंजलि देवी अनारकली, अक्केनि नागेश्वर राव सलीम और एस वी रंगा राव अकबर की भूमिका में थे। १९५८ में एक पाकिस्तानी फिल्म 'अनारकली' भी रिलीज़ हुई।  इस फिल्म में नूरजहाँ ने अनारकली का किरदार किया था।  मोहम्मद अफज़ल ने अकबर और सुधीर ने सलीम की  भूमिका की थी।  १९६१ में रिलीज़ हुई के आसिफ की शाहकार फिल्म 'मुग़ल ए आज़म' । इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार और मधुबाला ने क्रमशः अकबर, सलीम और अनारकली के किरदार किए थे। के आसिफ की फिल्म 'मुग़ल ए आज़म' से प्रभावित हो कर सलीम अनारकली की मोहब्बत की दास्ताँ पर एम कुंचक्को ने मलयालम फिल्म 'अनारकली' का निर्माण किया।  यह फिल्म १९६६ में रिलीज़ हुई।  प्रेम नज़ीर ने प्रिंस सलीम, सत्यन ने अकबर और के आर विजया ने अनारकली का किरदार किया था।
आम्रपाली- अम्बपाली या आम्रपाली ६००-५०० ईसा पूर्व के वैशाली नगर की कॉर्टेसन (राज नर्तकी या नगरवधू) थी।  वैशाली के लिच्छवि राजा मनुदेव ने जब  आम्रपाली को देखा तो वह उस पर आसक्त हो गया।  उसे अपने पास रखने की इच्छा से वह आम्रपाली की शादी के दिन उसके वर को मरवा देता है और आम्रपाली को वैशाली की नगर वधु घोषित कर देता है।  इस  कहानी में पेंच तब आता है, जब मगध शासक बिन्दुसार के पास वैशाली की नगर वधु की खूबसूरती के किस्से पहुंचते हैं।  वह आम्रपाली को पाने के लिए वैशाली पर आक्रमण कर देता है। आम्रपाली पर आचार्य चतुरसेन ने एक उपन्यास वैशाली की नगर वधु लिखा था। आम्रपाली पर अब तक दो हिंदी फ़िल्में बनाई जा चुकी है।  नन्दलाल जसवंतलाल के निर्देशन में १९४५ में रिलीज़ आम्रपाली में  आम्रपाली का मुख्य किरदार सबिता देवी ने किया था।  जगदीश सेठी और प्रेम अदीब अन्य भूमिकाओं में थे। दूसरी आम्रपाली १९६६ में रिलीज़ हुई।  इस फिल्म को लेख टन्डन ने निर्देशित किया था।  फिल्म में आम्रपाली की भूमिका वैजयंतीमाला ने की थी।  सुनील दत्त मगध सम्राट अजातशत्रु बने थे।  इस फिल्म की खासियत इसके शंकर जयकिशन की धुन पर सुमधुर गीत थे ।  इसके बावजूद फिल्म फ्लॉप हुई। हेमा मालिनी ने खुद के द्वारा प्रोडूस टीवी सीरीज वीमेन ऑफ़ इंडिया के अंतर्गत आम्रपाली पर एक कड़ी बनाई थी।
चित्रलेखा-  भगवती चरण वर्मा के इसी टाइटल वाले उपन्यास की  नायिका है चित्रलेखा, जो बाल विधवा है और मौर्या सम्राट की राज नर्तकी ।  चित्रलेखा को मौर्या साम्राज्य का सेनापति बीजगुप्त प्यार करता है।  एक संन्यासी कुमारगिरि भी उससे प्रेम करने लगता है और परिस्थितियोंवश उससे सम्बन्ध बनाता है।  इस कथानक पर किदार  शर्मा ने दो फ़िल्में बनाई।  पहली चित्रलेखा १९४१ में बनायी गई, जिसमे महताब ने चित्रलेखा, नंदरेकर ने बीजगुप्त और ए एस ज्ञानी ने कुमारगिरि का किरदार किया था।  दूसरी बार १९६४ में बनाई गई फिल्म 'चित्रलेखा' के निर्देशक किदार शर्मा ही थे।  चित्रलेखा, बीजगुप्त और कुमारगिरि की भूमिकाएं क्रमशः मीनाकुमारी, प्रदीप कुमार और अशोक कुमार ने की थी।  १९४१ की चित्रलेखा अभिनेत्री महताब के नग्न स्नान दृश्य के कारण चर्चित हुई।  १९६४ की चित्रलेखा के रोशन के संगीतबद्ध गीत भी काफी हिट हुए।
उमराव जान- मिर्ज़ा मोहम्मद हादी रुसवा के उपन्यास 'उमराव जान अदा का मुख्य किरदार है अमीरन बाई, जो अच्छी गज़लकारा थी।  अमीरन एक तवायफ थी, नवाब के दरबार में नाचने गाने वाली। वह नवाब सुलतान से प्रेम करने लगती है। इस उपन्यास पर पहले मुज़फ्फर अली ने १९८१ में फिल्म 'उमराव जान' का निर्माण किया।  रेखा और फारूख शेख की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त सफलता हासिल हुई।  फिल्म में ख़य्याम का संगीत भी हिट हुआ।  फिर जे पी दत्ता ने २००६ में फिल्म को ऐश्वर्या राय बच्चन और अभिषेक बच्चन के साथ रीमेक किया।  फिल्म बुरी तरह से असफल हुई।
साहब जान- फिल्म उमराव जान के निर्माता निर्देशक मुजफ्फर अली ने हिंदी फिल्मों के इतिहास में १८५७ के बाद के अवध के एक दूसरे सफे को जोड़ने की कोशिश की थी।  भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद इंग्लैंड से वापस लौटे राजा अमीर हैदर और कॉर्टेसन साहबजान की प्रेम कथा हैं मुज़फर अली की फिल्म 'जानिसार' ।  इस फिल्म में इमरान अब्बास ने अमीर हैदर और परनिया कुर्रेशी ने साहब जान का किरदार किया था। यह फिल्म बुरी  तरह से असफल हुई।
रेखा के तवायफ/गणिका किरदार- रेखा ने बहुत सी फिल्मों में राज नर्तकी की भूमिका की है। रेखा की दस श्रेष्ठ भूमिकाओं में उत्सव की वसंतसेना, कामसूत्र की रसदेवी और उमराव जान की अमीरन बाई के गणिका, तवायफ या राज नर्तकी के किरदार शामिल हैं।  रेखा पर यह किरदार कितने फबते होंगे, इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने दसारी नारायण राव की फिल्म ज्योति बने ज्वाला में मेहमान भूमिका में एक तवायफ का किरदार किया । रेखा का मुक़द्दर का सिकंदर का जोहरा बाई का किरदार अमर हो गया।  उमराव जान की अमीरन बाई  और कामसूत्र अ टेल ऑफ़ लव में उनका गणिका रसदेवी का किरदार राजनर्तकी भी है और सेक्स के आसन सिखाने वाली टीचर भी है ।
वसंतसेना- शूद्रक के संस्कृत नाटक 'मृच्छ्कटिकम' पर निर्माता शशि कपूर ने एक फिल्म 'उत्सव' बनाई थी। यह नाटक ईसा पूर्व पांचवी शताब्दी के प्राचीन उज्जयनी के प्रद्योत वंश के शासक पालक के शासन के दौरान की थी।  यह फिल्म राजनर्तकी (कोर्टेसन) वसंत सेना और उसके गरीब ब्राह्मण दोस्त चारुदत्त के प्रेम पर केंद्रित है।  वसंतसेना राज दरबार की नर्तकी है।  राजा के साले की नज़र उस पर है।  वह उसका अपहरण करवाने के लिए सैनिक भेजता है।  वसंतसेना भागती हुई चारुदत्त के घर में छिप जाती है।  इस फिल्म में वसंत सेना का किरदार रेखा ने किया था। शेखर सुमन ने चारुदत्त की भूमिका की थी। वसंतसेना पर कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री ने मृच्छकटिक (वसंतसेना) टाइटल से मूक फिल्म तथा फिर १९४१ में एक कन्नड़ फिल्म बनाई।
संजयलीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' १८  दिसंबर को रिलीज़ होगी।  इस फिल्म के साथ ही हिंदी फिल्मों के साथ एक नयी तवायफ का किरदार जुड़ जायेगा।  फिल्म में मस्तानी का किरदार दीपिका पादुकोण कर रही हैं।  यह किरदार दीपिका के लिए बड़ी चुनौती जैसा होगा।  उनको चुनौती होगी अनारकली, जो उनके किरदार की तरह कॉर्टेसन थी।  अनारकली को किसी अकेली मधुबाला ने नहीं बनाया।  इस किरदार को जिस भी अभिनेत्री ने क्या सफल रही।  अलबत्ता, मधुबाला ने अनारकली को अपना चेहरा दे दिया।  क्या दीपिका पादुकोण मस्तानी को अपना चेहरा दे सकेगी ? १८ दिसंबर को सब साफ़ हो जायेगा।

कभी सोचा भी न था कि फ्लॉप होंगी यह फ़िल्में भी !

इस साल के आखिर में बॉक्स ऑफिस पर दो बड़ी फिल्मो का टकराव होगा ।  निर्देशक संजयलीला भंसाली की रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा का ऐतिहासिक रोमांस ड्रामा फिल्म 'बाजीराव-मस्तानी' की बॉक्स ऑफिस पर निर्देशक रोहित शेट्टी की शाहरुख़ खान, काजोल, वरुण धवन और कीर्ति सेनन की एक्शन रोमांस फिल्म 'दिलवाले' से टक्कर सुनिश्चित हो गई  है।   इन दो फिल्मों से पहले नवम्बर में एक दूसरी बड़ी फ़िल्म भी रिलीज़ होनी हैं।  निर्देशक इम्तियाज़ अली एक बार फिर दीपिका पादुकोण और रणवीर कपूर को लेकर फिल्म 'तमाशा' ले कर आ रहे हैं।  यहाँ सवाल यह नहीं है कि दिलवाले को बाजीराव मस्तानी पछाड़ पायेगी या नहीं ! सवाल यह भी नहीं कि हिट रणवीर-दीपिका जोड़ी का तमाशा बॉक्स ऑफिस पर सफल होगा ! सवाल यह भी नहीं कि प्रेम रतन धन पायो बॉक्स ऑफिस पर आमिर खान की फिल्म 'पीके' के कलेक्शन को पा सकेगी या नहीं ! यहाँ सवाल इससे बड़ा है कि क्या बॉक्स ऑफिस पर चार बड़े धमाके होंगे या धडाम होगी ! क्योंकि, कुछ ऐसी बड़ी फ़िल्में थी, जिनके सफल होने की बहुत उम्मीद की जाती थी,  बॉक्स ऑफिस पर औधे मुंह जा गिरी। 
बॉम्बे वेलवेट का पैबंद
इस तथ्य को रणबीर कपूर से ज्यादा अच्छा कौन जानता होगा ! १५ मई २०१५ को रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा की साठ के दशक की बॉम्बे के माहौल को दिखाने वाली फिल्म 'बॉम्बे वेलवेट' रिलीज़ हुई थी।  अनुराग कश्यप फिल्म के निर्देशक थे।  करण जौहर का बतौर विलेन डेब्यू हो रहा था।  लेकिन, रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा की जोड़ी और करण जौहर का विलेन भी फिल्म को दर्शक नहीं दिला सका।  कुल १२५ करोड़ के बजट से बनी 'बॉम्बे वेलवेट' ने अपने निर्माताओं को पूरे सौ करोड़ का नुकसान पहुंचाया।  इसके साथ ही रणबीर कपूर की साख को ज़बरदस्त झटका लगा।  रणबीर कपूर की इस फिल्म की असफलता के कारण उनकी दीपिका पादुकोण के साथ फिल्म 'तमाशा' की सफलता पर सवालिया निशान लगना लाजिमी है।
ऐतिहासिक असफलता
दिलवाले के नायक शाहरुख़ खान बॉक्स ऑफिस पर सफलता की गारंटी हैं।  लेकिन, वह भी बड़ी असफलता का स्वाद चख चुके हैं।  शाहरुख़ खान की करीना कपूर के साथ ऐतिहासिक फिल्म 'अशोका' २६ अक्टूबर २००१ को रिलीज़ हुई थी।  किसी को उम्मीद नहीं थी कि बड़े पैमाने पर बनाई गई यह फिल्म असफल भी होगी।  लेकिन, ऐसा हुआ..... और बुरी तरह से हुआ।  अशोक के निर्माण में २८ करोड़ से ज्यादा खर्च हुए थे। लेकिन, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर केवल साढ़े बारह करोड़ ही कमा सकी। 'अशोका' से काफी पहले फिल्म 'रज़िया सुल्तान' ने असफलता का कीर्तिमान स्थापित कर दिया था। १९४९ में 'महल' जैसी ट्रेंड सेटर फिल्म का निर्देशन करने वाले कमाल अमरोही ने अपने पूरे करियर में सिर्फ पांच फिल्मों का निर्देशन किया।  वह परफेक्शन के साथ फिल्म बनाने वाले फिल्मकार माने जाते थे। उनके नाम पाकीज़ा जैसी शाहकार फिल्म दर्ज़ है।  लेकिन, यही परफेक्शन उनकी ऐतिहासिक फिल्म 'रज़िया सुल्तान' को ले डूबा।  कमाल अमरोही को रज़िया सुलतान बनाने में सात साल लग गए। पैसा पानी की तरह बहा। धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी और परवीन बाबी की मुख्य भूमिका वाली 'रज़िया सुल्तान' १६ सितम्बर १९८३ को रिलीज़ हुई। मगर, धर्मेन्द्र और हेमा मालिनी जैसी हिट जोड़ी की पांच से दस करोड़ के बजट से बनी यह ऐतिहासिक फिल्म बॉक्स ऑफिस पर मुश्किल से दो करोड़ कमा सकी ।
बिग बी की बिग लॉस फ़िल्म
अमिताभ बच्चन ने बहुत सी बड़ी असफलताएं बॉलीवुड को दी हैं। सोवियत भारत सहयोग से बनी फिल्म 'अजूबा' बॉक्स ऑफिस पर अमिताभ बच्चन का ऐसा ही अजूबा साबित हुई थी।  'अजूबा' १२ अप्रैल १९९१ को रिलीज़ हुई थी।  आठ करोड़ के बजट से बनी 'अजूबा' अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, डिंपल कपाडिया, सोनम, ऋषि कपूर और शम्मी कपूर जैसी बड़ी स्टार कास्ट के बावजूद मात्र २ करोड़ ही कमा सकी।
हिट जोड़ी की फ्लॉप फिल्म
जिन दिनों अनिल कपूर और जैकी श्रॉफ की जोड़ी हिट साबित हो रही थी।  श्रीदेवी खुद को बॉक्स ऑफिस क्वीन साबित कर रहे थी।  उसी दौर में १६ अप्रैल १९९३ को इन सितारों से सजी भव्य  कैनवास पर बनी फिल्म ‘रूप की रानी चोरों का राजा' रिलीज़ हुई थी।  निर्माता बोनी कपूर ने इस फिल्म में पानी की तरह पैसा बहाया था।  लेकिन, ९ करोड़ के बजट से बनी फिल्म 'रूप की रानी चोरों का राजा' बुरी तरह से असफल हुई।  सतीश कौशिक निर्देशित यह फिल्म केवल ३.१० करोड़ का कलेक्शन ही कर सकी। 
पहली विज्ञानं फंतासी फिल्म की असफलता
हिंदुस्तान की पहली विज्ञानं फंतासी फिल्म देखने की  इच्छा किस दर्शक में नहीं होगी। निर्माता-निर्देशक हैरी बवेजा ने अपने बेटे हरमन बवेजा को हीरो बनाने के लिए प्रियंका चोपड़ा जैसी स्थापित अभिनेत्री को उनकी नायिका बना कर हॉलीवुड की 'बैक टू द फ्यूचर' की टक्कर में फिल्म 'लव स्टोरी २०५०' बनाई।  उम्मीद थी कि लव स्टोरी २०५० हरमन को बॉक्स ऑफिस का बादशाह बना देगी।  लेकिन, हुआ ठीक उल्टा। 'लव स्टोरी २०५०' के निर्माण में  ५० करोड़ खर्च हुए थे।  लेकिन, ४ जुलाई २००८ को रिलीज़ यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर केवल १२.३२  करोड़ का कलेक्शन ही कर सकी।
भंसाली की गुज़ारिश ह्रितिक रोशन की काइट्स
इस साल की आखिरी बिग बजट और बिग स्टारकास्ट दो फिल्मों में एक संजयलीला भंसाली की 'बाजीराव मस्तानी' भी है।  इस फिल्म के भव्य सेट्स और बड़ी स्टारकास्ट  चर्चा में है।  भव्यता के लिहाज़ से संजयलीला  भंसाली बेजोड़ हैं। उनकी फ़िल्में साबित करती हैं कि बड़े सेट और सितारे किसी फिल्म को हिट नहीं बना सकते।  उनकी दो फ़िल्में 'गुज़ारिश' और 'सांवरिया' क्रमशः ८० करोड़ और ४० करोड़ के बजट से बनी फ़िल्में थी। यह दोनों ही फ़िल्में बुरी तरह से असफल हुई।  जहाँ 'साँवरिया' ने बॉक्स ऑफिस पर २४ करोड़ का कलेक्शन किया, वही गुज़ारिश मात्र ३० करोड़ का कलेक्शन ही कर सकी। बताते हैं कि गुज़ारिश का आधे से ज़्यादा बजट तो ह्रितिक रोशन और ऐश्वर्या राय बच्चन की फीस में ही निकल गया। ह्रितिक रोशन ने काइट्स जैसी बड़ी फ्लॉप फिल्म भी दी है। काइट्स का निर्माण ६० करोड़ के बजट से हुआ था।  लेकिन, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ४७.९० करोड़ का कलेक्शन ही कर सकी। 
राजकपूर को दिवालिया बना देने वाली असफलता
कोई नहीं जानता कि निर्माता-निर्देशक राजकपूर ने फिल्म मेरा नाम जोकर के निर्माण में कितना पैसा खर्च किया।  लेकिन, हिंदुस्तान की दूसरी दो मध्यांतर वाली इस फिल्म में राजकपूर  के अलावा राजेंद्र कुमार, धर्मेन्द्र, पद्मिनी, सिमी ग्रेवाल, दारा सिंह, आदि बड़े सितारों की भीड़ थी।  जैमिनी सर्कस को किराए में लिया गया था।  शंकर जयकिशन का हिट संगीत था। कहते हैं कि फिल्म को २४३ मिनट की लम्बाई मार गई।  कुछ इसे समय से पहले बनी फिल्म कहते हैं।  बहरहाल, फिल्म सफल नहीं हुई।  इस फिल्म की असफलता ने राजकपूर का दिवाला निकाल दिया।  उनके आरके स्टूडियो गिरवी रखने की खबरें आने लगी।  राजकपूर इस  घाटे से 'बॉबी' के बाद ही उबर सके। 

उपरोक्त कुछ बड़ी और चौंकाऊ असफलताएँ कुछ सोचने को मज़बूर करती हैं।  क्या पानी की तरह पैसा बहाना और बड़ी स्टारकास्ट किसी फिल्म की सफलता की गारंटी है ! शायद, नहीं। सलमान खान, सोनम कपूर, नील नितिन मुकेश और अनुपम खेर जैसी बड़ी स्टारकास्ट वाली दिवाली में रिलीज़ फिल्म 'प्रेम रतन धन पायो' एक्सटेंडेड वीकेंड की बदौलत सौ करोड़ का कलेक्शन तो कर ले गई।  लेकिन,  इसके सोमवार से बुरी तरह गिरे कलेक्शन से यह साबित हो गया कि अगर फिल्म में दम नहीं है तो दर्शक दोबारा सिनेमाघर वापस जाने वाले नहीं। यही कारण है कि अब जबकि २७ नवंबर को रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की फिल्म तमाशा तथा १८ दिसंबर को रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' और शाहरुख़ खान, काजोल, वरुण धवन और कीर्ति सेनन की फिल्म 'दिलवाले' रिलीज़ होने जा रही है तो कलेजा मुंह को आ जाता है कि क्या सुपरहिट मानी जा रही यह फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट होंगी या.……! 

Tuesday 1 December 2015

एक बार फिर 'मेहरुन्निसा'

फिल्म डायरेक्टर सुधीर मिश्रा ने एक बार फिर मेहरुन्निसा राग छेड़ दिया है। सुधीर मिश्रा ने १९९६ में दो दोस्तों और उनकी जीवन में आई एक औरत की कहानी लिखी थी।  दोनों दोस्त साठ के आसपास के थे।  वह ४५ साल की औरत उनकी ज़िन्दगी में हलचल मचा देती है। यह 'मेहरुन्निसा' की कहानी का पहला अधूरा ड्राफ्ट था। सुधीर मिश्रा दूसरी  फिल्मों में व्यस्त हो गए।  २०११ में सुधीर को मेहरुन्निसा की याद आई।  उनके पूर्व सहायक निखिल आडवाणी फिल्म के निर्माता बने।  फिल्म को बड़े पैमाने पर बनना था। फिल्म को छह महीनों में शुरू होना था।  लेकिन, ऐसा नहीं हो पाया।  इसी के बाद सुधीर मिश्रा की फिल्म को दो मेहरुन्निसाएं मिली।  पहले खबर आई कि अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर की मेहरुन्निसा कटरीना कैफ बनेंगी।  अभी यह खबर हवा में उछली ही थी कि मेहरुन्निसा के लिए विद्या बालन के नाम का ऐलान कर दिया गया।  विद्या इस फिल्म को 'घनचक्कर' के बाद २०१२ के आखिर में शुरू करने वाली थी।  मेहरुन्निसा में एक बार फिर फेरबदल हुआ। २०१३ में  फिल्म निर्माता के बतौर अमिताभ बच्चन का नाम आ गया।  सुधीर मिश्रा ने एक बार फिर अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर के साथ चित्रांगदा सिंह को मेहरुन्निसा बना कर फिल्म 'मेहरुन्निसा' का निर्देशन करने का  ऐलान किया ।   यह फिल्म अप्रैल से लखनऊ में शूट होनी थी।  सुधीर मिश्रा ने अपने डायरेक्टर और कैमरामैन के साथ  लखनऊ की रेकी भी की थी।  फिर  फिल्म के अगस्त- सितम्बर में शूट करने की खबरें आई।  लेकिन, इसके बाद सब ठन्डे बस्ते में चला गया।  इस दौरान यह खबरें छपी कि निर्देशक सुधीर मिश्रा और अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह के बीच सब ठीक नहीं है।  लखनऊ में खड़ा 'मेहरुन्निसा' का सेट अपनी मेहरुन्निसा की बाट जोहता रह गया।  पिछले साल नवंबर में  सुधीर मिश्रा ने 'मेहरुन्निसा' का कोई भविष्य नहीं होने का ज़िक्र कर फिल्म के डब्बा बंद हो  जाने का संकेत दिया था।  वैसे भी उस दौरान वह अपनी आधुनिक राजनीतिक थ्रिलर फिल्म 'और देवदास' के निर्माण में व्यस्त थे।  लेकिन, अब खबर है कि  सुधीर मिश्रा 'मेहरुन्निसा' को शुरू करेंगे।  फिल्म में चित्रांगदा सिंह नहीं होंगी।  ऋषि कपूर और अमिताभ बच्चन भी नहीं होंगे।  अभिनेत्री कंगना रनौत मेहरुन्निसा का किरदार करेंगी।  अच्छे  दोस्त और बाद  में जानी दुश्मन का किरदार इरफ़ान खान और अनिल कपूर करेंगे।  कंगना रनौत सुधीर मिश्रा की फिल्म में मेहरुन्निसा का सशक्त किरदार करने के लिए बेताब हैं।  लेकिन, अभी उन्हें विशाल भरद्वाज की फिल्म 'रंगून' और हंसल मेहता की फिल्म 'सिमरन' पूरी करनी है।  इन दोनों फिल्मो के बाद ही 'मेहरुन्निसा' की शूटिगं शुरू हो पाएगी। क्या सिल्वर स्क्रीन पर उतरेगी 'मेहरुन्निसा' ! 


ब्रैड पिट का साईंफाई प्लान 'इल्युमिनाए'

हॉलीवुड में, इधर युवा रोमांस की पृष्ठभूमि पर विज्ञान फंतासी फिल्मों का चलन शुरू हुआ है।  'गूसबम्प्स' ऐसी नवीनतम फिल्म सफल थी।  इसे देखते हुए ही अभिनेता और फिल्म निर्माता ब्रैड पिट भी युवा रोमांस वाली विज्ञान फंतासी फिल्म बनाने जा रहे हैं।  यह फिल्म अमी कॉफ़मैन और जे क्रिस्टोफ के बेस्ट सेलिंग उपन्यास 'इल्युमिनाए' पर फिल्म बनाने के लिए स्क्रिप्ट लिखने का जिम्मा ऑस्ट्रेलिया के दो लेखकों को सौंपा है।  कहानी प्रेमी युवा कडी ग्रांट और उसके पुरुष मित्र एज्रा की है।  दोनों के सम्बन्ध लगभग टूटने को हैं।  तभी एक सुबह उन्हें पता चलता है कि एक प्लेनेट पर कब्ज़े को लेकर दो मेगाकारपोरेशन के बीच जंग छिड़ गई है।  आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस रोबोट और खतरनाक वायरस से दुनिया को खतरा है।  ऐसे में इन दोनों पर यूनिवर्स को बचाने की जिम्मेदारी आ पड़ी है।  यह फिल्म २५७५ की दुनिया पर होगी।  ब्रैड पिट की कंपनी ने किक एस सीरीज की फिल्म के अलावा ऑस्कर पुरस्कार विजेता फिल्म '१२ इयर्स अ स्लेव', 'वर्ल्ड वॉर जेड', 'मनीबॉल', 'सेल्मा', आदि फिल्मों का  निर्माण किया है।  इस बैनर की 'वर्ल्ड वॉर जेड २' के अलावा वॉर मशीन, मूनलाइट, आदि फ़िल्में अगले साल रिलीज़ होने वाली हैं। 'इल्युमिनाए' के लिए सितारों का चयन शीघ्र किया जायेगा।  ब्रैड पिट ११ दिसंबर को रिलीज़ होने जा रही अपनी पत्नी एंजेलिना जोली पिट के साथ उन्ही के  निर्देशन में बनी फिल्म 'बइ द सी' में नज़र आएंगे।  इसी दिन ब्रैड पिट की ख़ास भूमिका वाली फाइनेंसियल ड्रामा फिल्म 'द बिग शार्ट' भी  रिलीज़ होगी।
द बिग शोर्ट में ब्रैड पिट 

फिल्म डायरेक्ट करेंगी जेनिफ़र लॉरेंस

द हंगर गेम्स सीरीज की फिल्मों की नायिका कैट्निस एवरडीन और एक्स-मेन सीरीज की फिल्मों की मिस्टिक अभिनेत्री जेनिफ़र लॉरेंस को अच्छे अभिनय के लिए भी पहचाना जाता है। उन्हें रोमांटिक कॉमेडी फिल्म 'सिल्वर लाइनिंग प्लेबुक' के लिए गोल्डन ग्लोब अवार्ड और कॉमेडी ड्रामा फिल्म ‘अमेरिकन हसल’ के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का ऑस्कर पुरस्कार मिला है। वह गंभीर भूमिकाएं भी आसानी से कर ले जाती है। ऎसी प्रतिभशाली अभिनेत्री अब कैमरा के पीछे अपनी प्रतिभा दिखाना चाहती है। वह एक फिल्म ‘प्रोजेक्ट डेलिरियम’ का निर्देशन करने की तैयारी में हैं। यह फिल्म साठ के दशक के बोद्धिक युद्ध पर लिखे गए एक लेख पर आधारित है। यह लेख २०१२ में ‘द न्यू यॉर्कर में प्रकाशित हुआ था। यह लेख उन रसायनों पर था, जो दुश्मन देश के फौजियों के दिमाग को अक्षम बना देते थे। कहती हैं जेनिफ़र लॉरेंस, “मैं १६ साल की उम्र से ही फिल्म डायरेक्ट करना चाहती थी और हमेशा इसके लिए कोशिश करती रहती थी। वैसे मैं कुछ समय पहले डायरेक्शन की कमान सम्हालती तो उतनी तैयार नहीं थी। लेकिन, अब मैं पूरी तरह से तैयार हूँ।” जेनिफ़र लॉरेंस इस फिल्म की शूटिंग कब शुरू करेंगी ! फिल्म की स्टार कास्ट क्या होगी ! फिलहाल तो यह बाद की बात है। अभी तो जेनिफ़र को अपने हाथ की फिल्मों को पूरा करना है। वह जनवरी में डेविड ओ रसेल की फिल्म ‘जॉय’ में नज़र आयेंगी। उन्हें १९ मई २०१६ को रिलीज़ होने वाली फिल्म ‘एक्स-मेन: एपोकैलीप्स’ के बचे खुचे काम को भी पूरा करना है। तब उनकी फिल्म निर्देशक यात्रा शुरू होगी। शायद अगले साल ही किसी समय। 


अल्पना कांडपाल