गोल्डनऑय की बांड गर्ल इजाबेला स्कोप्कोबांड सीरीज की १९९५ में रिलीज़ फिल्म 'गोल्डनऑय' में रशियन एयर फ़ोर्स में काम करने वाली नताल्या सिमोनोवा का किरदार करने वाली इजाबेला स्कोप्को पोलिश-स्वीडिश मूल की अभिनेत्री, गायिका और मॉडल हैं। केवल १८ साल की उम्र में इमें कान अलास्का सोम वि से फिल्म डेब्यू करने वाली नताल्या ने अभी तक को डेढ़ दर्जन फ़िल्में और टीवी सीरीज की हैं। उनके चार सिंगल्स और एक एल्बम निकल चुके है। पिछले साल वह स्लीपवॉकर फिल्म में नज़र आई थी। जेम्स बांड की रूसी बांड गर्ल ४ जून १९७० को जन्मी थी।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Saturday 4 June 2016
जब मोहम्मद रफ़ी ने किया मोहम्मद अली को पंच
यह वाक़या १९७९ का है। मोहम्मद रफ़ी अमेरिका में १४ शहरों के टूर पर थे। वह महान बॉक्सर मोहम्मद अली के प्रशंसक थे। मोहम्मद रफ़ी के एक प्रशंसक ने रफ़ी और अली को रु-ब- करवा दिया। मोहम्मद रफ़ी और मोहम्मद अली पूरे ४५ मिनट बॉक्सिंग और म्यूजिक पर बातचीत करते रहे। बातचीत ख़त्म होने के बाद दोनों ने साथ फोटो खिंचाने की इच्छा ज़ाहिर की। अली ने रफ़ी को सुझाव दिया कि रफ़ी उन्हें पंच करे, बदले में अली रफ़ी को पंच करेंगे। हँसते हुए दोनों ने यह बॉक्सिंग पोज़ कैमराबंद करवाया। रफ़ी के उस समय १८ साल के बेटे शाहिद ने यह फोटो खींचा। मोहम्मद अली के प्रशंसकों में लता मंगेशकर का नाम भी शामिल है। लता ने अली की मृत्यु पर शोक जताते हुए, ट्विटर पर एक फ्लाइट के दौरान अली से मिलने का ज़िक्र किया और अपनी और अपनी भतीजी की अली के साथ फोटो भी ट्वीट की। मिथुन चक्रवर्ती भी मोहम्मद अली के प्रशंसक थे। उन्हें अपने योगिता बाली से बेटे का नाम माइकल जैक्सन और मोहम्मद के नामों की शुरूआती स्पेलिंग मिलाते हुए मिमोह रखा था। बॉलीवुड की कई हस्तियों शाहरुख़ खान, अभिषेक बच्चन, अनुष्का शर्मा, रणदीप हूडा, अली अब्बास ज़फर, राणा डग्गुबाती, साजिद खान, फरहान अख्तर, कुणाल कोहली, अथिया शेट्टी, अर्जुन कपूर, आदि ने अपनी संवेदनाएं ट्वीट की ।
अंधे और लंगड़े लड़कों की 'दोस्ती'
६ नवंबर १९६४ को
राजश्री प्रोडक्शन्स से एक फिल्म दोस्ती रिलीज़ हुई थी। सत्येन बोस निर्देशित यह फिल्म एक बांगला फिल्म
'ललू-भुलु' का हिंदी रीमेक थी। इस फिल्म से दो नए चहरे सुधीर कुमार और सुशील
कुमार का हिंदी दर्शकों से परिचय हुआ था।
सुधीर कुमार ने अंधे लडके मोहन की भूमिका की थी, जो सडकों पर गीत गा कर अपने लंगड़े दोस्त रामू को
पढ़ाना चाहता है। रामू की भूमिका सुशील
कुमार ने की थी। दोस्ती अभिनेता संजय खान
की डेब्यू फिल्म थी। फिल्म में मोहन की
नर्स बहन और संजय खान की प्रेमिका की भूमिका करने वाली मराठी एक्ट्रेस उमा राव की
भी यह पहली फिल्म थी। बेबी फरीदा ने एक
बीमार बच्ची और रामू और मोहन की दोस्त का किरदार किया था। बेबी फरीदा अब बड़ी हो कर दादी बन गई हैं। उन्हें टीवी और फिल्मों में आज भी देखा जा सकता
है। लेकिन, सबसे ज़्यादा दिलचस्प है दोनों अंधे और लंगड़े
लड़कों का किरदार करने वाले लड़कों के बारे में।
जब फिल्म रिलीज़ हुई और बड़ी हिट साबित हुई तो उस समय यह अफवाह उडी की इन
दोनों का किसी बड़े एक्टर ने खुन्नस में मर्डर करवा दिया, क्योंकि यह उससे ज़्यादा लोकप्रिय हो गए थे। यह भी अफवाह थी कि यह सड़क दुर्घटना में मारे
गए। लेकिन, यह सब अफवाहे थी। अलबत्ता इन दोनों का करियर लंबा नहीं चल
सका। सुशील कुमार को फिल्मों से मोह-भंग
हो गया था। क्योंकि, फिल्म निर्माता इन
दोनों का स्क्रीन टेस्ट लेते। पर फाइनल
कभी नहीं कर पाते। राजश्री के ताराचंद बड़जात्या इन दोनों को लेकर अगली फिल्म बनाना
चाहते थे। इन माहवार तनख्वाह भी दी जा रही
थी। लेकिन, तभी सुधीर कुमार को एवीएम की फिल्म लाडला का ऑफर
मिला। सुधीर ने इस फिल्म को राजश्री प्रोडक्शन के साथ कॉन्ट्रैक्ट के बावजूद
स्वीकार कर लिया। इसके लिए सुधीर को हर्जाना भी देना पड़ा। इससे नाराज़ हो कर ताराचंद बड़जात्या ने वह
प्रोजेक्ट ही ख़त्म कर दिया। हालाँकि, सुधीर कुमार ने बाद में संत ज्ञानेश्वर, लाडला, जीने की राह, आदि फ़िल्में की। लेकिन, तब तक सुशील कुमार का फिल्मों से मोह भंग हो
गया। उन्होंने एयरलाइन्स ज्वाइन कर ली। दुखद
घटना हुई सुधीर कुमार के साथ। हुआ यह कि
१९९३ के बॉम्बे बम ब्लास्ट के बाद बॉम्बे में कर्फ्यू लगा हुआ था। सुधीर कुमार मुर्गा खा रहे थे कि एक हड्डी उनके
गले में फंस गई। उनका गला बुरी तरह से घायल हो गया। कर्फ्यू लगा होने के कारण
उन्हें इलाज भी नहीं मिल पाया। कुछ दिनों
बाद उनकी मृत्यु हो गई। सुशील कुमार ज़रूर स्वस्थ एवं सानन्द अपनी रिटायरमेंट की
ज़िंदगी जी रहे हैं।
Friday 3 June 2016
जब मिल जाएँ तीन यार !
१९८४ में रिलीज़ अमिताभ बच्चन की फिल्म शराबी में संगीतकार बप्पी लहरी ने एक गीत रचा था- जहाँ चार यार मिल जाएँ वहीँ रात हो गुलजार। हालाँकि, एक अमीर आदमी के शराबी पुत्र की इस कहानी में रोमांस था और उनकी इंस्पेक्टर बने दीपक पराशर की दोस्ती की कहानी थी। इस गाने से एक बात तो साफ़ होती ही है कि जहाँ चार यार मिल जाएँ, वहीँ रात हो गुलजार, लेकिन जब फिल्म की कहानी दो किरदारों की दोस्ती की कहानी है तो यह सोचा जाना लाजिमी है कि जहाँ तीन यार मिल जाएँ तो क्या होता होगा ?
इस हफ्ते निर्माता साजिद नाडियाडवाला की साजिद फरहाद निर्देशित फिल्म हाउसफुल ३ रिलीज़ हो रही है। यह फिल्म तीन दोस्तों सैंडी, बंटी और टेडी की कहानी है। इन भूमिकाओं को अक्षय कुमार, अभिषेक बच्चन और रितेश देशमुख कर रहे हैं। जब तीन यार मिल जाएँ तो रोमांस भरा धमाल तो होना ही है। जी हाँ, हाउसफुल फ्रैंचाइज़ी की इस तीसरी फिल्म में खूब मस्ती और कॉमेडी है। इनके साथ जैक्विलिन फर्नाडीज, नर्गिस फाखरी और लिसा हैडन का ग्लैमर और सेक्स अपील भी है। इसमें कोई शक नहीं कि जब तीन दोस्त मिलते हैं तो गज़ब की कॉमेडी होती है। फिल्म मस्ती हो या ग्रैंड मस्ती या फिर आने वाली ग्रेट ग्रैंड मस्ती, फुल 2 फुलटॉस मस्ती है। इसे आप द्विअर्थी या अश्लील मस्ती भी कह सकते हैं। विवेक ओबेरॉय, रितेश देशमुख और आफताब शिवदसानी की दोस्त तिकड़ी हंसाते हंसाते लोटपोट कर देती है। यही कारण है कि निर्देशक लव रंजन की २०११ में रिलीज़ तीन दोस्तों रजत, निशांत और विक्रांत की कॉलेज की दोस्ती की दास्ताँ स्लीपर हिट साबित होती है। बावजूद कार्तिक आर्यन, दिव्येंदु शर्मा और रायो एस बखिर्ता के नए चेहरों के। यहाँ तक कि इस फिल्म का सीक्वल भी हिट साबित होता है। प्रियदर्शन ने २००० में तीन दोस्तों के साथ कॉमेडी को नए आयाम दिए थे। राजू, घनश्याम और बाबूराव गणपत राव आप्टे की इस कॉमेडी चखचख में साफ़ सुथरा हास्य भरा था। अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी और परेश रावल ने कॉमेडी का कुछ ऐसा बारूद बनाया था कि हेरा फेरी की फ्रैंचाइज़ी बन गई। फिर हेरा फेरी के बाद खबर थी कि तीसरी फिल्म में अक्षय, सुनील और परेश नहीं होंगे। लेकिन, बात नहीं बनी। निर्माता फ़िरोज़ नाडियाडवाला को इन्हीं तीनों की हेरा फेरी चाहिए। बासु चटर्जी ने १९८२ में तीन बूढ़े दोस्तों की कहानी शौक़ीन में दिखाई थी, जो एक मॉडल पर लाइन मारने लगते हैं। अपनी साफ़ सुथरी कॉमेडी कारण यह फिल्म हिट हुई थी। इसके बाद २०१४ में इस फिल्म का रीमेक पियूष मिश्र, अनुपम खेर और अन्नू कपूर के साथ द शौकीन्स बनाया गया तो दर्शकों ने इसे नापसंद कर दिया। अनीस बज़्मी की फिल्म नो एंट्री इसी फार्मूला पर फिल्म थी। मनमोहन देसाई ने अपनी फिल्मों में तीन दोस्तों के फॉर्मूले को खूब आज़माया।
नज़रिए का फर्क
हॉउसफुल, मस्ती और हेरा फेरी की फ्रैंचाइज़ी फिल्मों की शैली कॉमेडी कॉमेडी और सिर्फ कॉमेडी है। वहीं, कभी लेखक के नज़रिए का फर्क किरदारों के सोचने में फर्क पैदा कर देता है। तीन हँसते खेलते दोस्तों की ज़िन्दगी में गम्भीर मोड़ आ जाता है। तीनों दोस्त किरदार अपने रोमांस के साथ गम्भीर हो जाते हैं। कदाचित इस नज़रिए की शुरुआत फरहान अख्तर ने फिल्म दिल चाहता है से की थी। हँसते, मज़ाक करते और बेपरवाह नज़र आते आमिर खान, सैफ अली खान और अक्षय खन्ना के किरदार खुद की ज़िन्दगी में आये मोड़ से भावुक हो जाते हैं। वह परवाह करने वाले ज़िम्मेदार बन जाते हैं। कुछ ऐसा ही काई पो चे, रंग दे बसंती, रॉक ऑन, ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा में भी देखने को मिलता है। राजकुमार हिरानी की फिल्म ३ इडियट्स इसे शिक्षा की ऊंचाइयों तक पहुंचा देती है। रंग दे बसंती के तीन दोस्त सिस्टम को बदलने के लिए हथियार उठा लेते हैं।
दो लडके एक लड़की : क्या होता है !
जब तीन दोस्त मर्द हो तो धमाल होता है, क्लाइमेक्स में थोड़ी सीरियसनेस भी आती है। लेकिन---अगर इन तीन किरदारों में से कोई एक लड़का या लड़की हो तब ! शायद महबूब खान ने पहली बार फिल्म में इस नज़रिए को दिखाने की कोशिश की थी। फिल्म थी अंदाज़। दोस्त थे दिलीप कुमार, राजकपूर और नर्गिस। क्या दो मर्दों के साथ एक औरत की दोस्ती हो सकती है। महबूब ने यह बताने की कोशिश की थी कि मनमुटाव तो होना ही है। लेकिन, समझदारी बड़े काम की चीज़ है। एक दोस्त को बलिदान देना चाहिए। बलिदान का यह फार्मूला राज कपूर ने फिल्म संगम में भी दिखाया। राजकपूर और वैजयंतीमाला के लिए राजेंद्र कुमार को बलिदान करना पड़ा। इस बलिदान को १९८८ में सनी देओल, अनिल कपूर और श्रीदेवी के साथ सुनील हिंगोरानी ने भी दोहराया। सनी देओल को बलिदान देना पड़ा। लॉरेंस डिसूज़ा की फिल्म साजन में सलमान खान अपने दोस्त संजय दत्त के लिए माधुरी दीक्षित का बलिदान कर देते हैं।
दो लडकिया, एक लड़का : तब क्या होता है !
जब दोस्ती से उपजे रोमांस फिल्मों के किरदारों में थोड़ा फर्क कर दिया जाता है यानि आपस में दोस्त दो लड़कियां एक ही लडके को प्यार करने लगें तो क्या होता हैं ! यहाँ एक ख़ास बात शाहरुख़ खान ने ऐसी कई फिल्मों में काम किया है, जिनमे एक लड़के से दो लड़कियां प्रेम करने लगाती हैं। कुछ कुछ होता है में काजोल और रानी मुख़र्जी, दिल तो पागल में करिश्मा कपूर और माधुरी दीक्षित, देवदास में ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित और जब तक है जान में कैटरिना कैफ और अनुष्का शर्मा के किरदार शाहरुख़ खान के किरदार से प्रेम करती हैं। इन इन दो औरतों में से एक बलिदान देती है। यहां एक ख़ास नुक्ता है । यह बलिदान भारतीयता की झलक मारती नारी के लिए आधुनिक नायिका को देना पड़ता है। कॉकटेल में दीपिका पादुकोण सैफ अली खान को केवल इस कारण से खो देती हैं, क्योंकि वह आधुनिकता के रंग में रंगी थी। मुझसे दोस्ती करोगे में इकलौते ह्रितिक रोशन से रानी मुख़र्जी और करीना कपूर प्यार करती हैं। विदेश से आई करीना कपूर बलिदान करती है। सलमान खान को भी हर दिल जो प्यार करेगा और चोरी चोरी चुपके चुपके जैसी फिल्मों में दो नायिकाएं प्यार करती हैं। इन सभी रोमांस की शुरुआत दोस्ती से ही होती है।
शाहरुख़ खान का हटके अंदाज़
शाहरुख़ खान की रोमांस फिल्मों में दो नायिका भी थी और दो नायक भी। मतलब दो स्त्रियां उनसे रोमांस कराती हैं या उनके साथ दूसरा नायक भी इकलौती नायिका से प्रेम करने लगता है। इस रोमांस में खान दो नए रंग पेश करते हैं। वह बलिदान देना नहीं जानते। बाज़ीगर, डर और अंजाम जैसी फिल्मों में वह खून खराबा करने पर उतर आते हैं। बाज़ीगर में तो वह अपने से प्यार करने वाली शिल्पा शेट्टी की हत्या कर देते हैं और काजोल को भी मारने का प्रयास करते हैं। डर और अंजाम फिल्मों में वह जूही चावला और माधुरी दीक्षित के किरदारों को पाने के लिए खून बहाने से पीछे नहीं हटते ।
ज़ाहिर है कि तीन दोस्तों की दोस्ती धमाल करने वाली होती है। बलिदान भी होता है, लेकिन हाउसफुल ३ में ऐसी कोई गुंजायश नहीं। तीनों नायकों की एक एक नायिका है। आगामी कई फिल्मों में इस प्रकार के कई रंग देखने को मिल सकते हैं। क्योंकि, हिंदी फिल्मों को यार बिना चैन कहाँ रे !
जब हो यार तीन नहीं चार !
जहाँ चार यार मिल जाए, वहां फिल्म धमाल होनी ही है। इंद्रकुमार की धमाल फिल्म सीरीज की सफलता चार यारों की सफलता ही है। सीरीज के चार यार बोमन (आशीष चौधरी), मानव (जावेद जाफरी), आदित्य (अरशद वारसी) और आर्य (रितेश देशमुख) की अपनी फितरत हैं। इसके बावजूद दोनों अच्छे दोस्त हैं। लेकिन, टकरा जाते हैं एक डॉन से। कबीर (संजय दत्त) के आने के बाद उनकी ज़िन्दगी में जो धमाल मचता है, दर्शक उसका खूब मज़ा लेते हैं। अयान मुख़र्जी की फिल्म यह जवानी है दीवानी में कॉलेज के चार दोस्त कबीर, नैना, अवि और अदिति का कॉमेडी रोमांस ड्रामा है। रणबीर कपूर, दीपिका पादुकोण, आदित्य रॉय कपूर और कल्कि कोएच्लिन ने इन किरदारों को जिया था। मृगदीप सिंहलाम्बा की फिल्म फुकरे में हनी,चूचा, लाली और ज़फर के लापरवाह, बेपरवाह और रोमांस में मगन किरदार नज़र आते हैं। इन भूमिकाओं को कर रहे पुलकित सम्राट, वरुण शर्मा, मनजोत सिंह और अली फज़ल की बढ़िया केमिस्ट्री फिल्म को दर्शनीय बना देती है। लेकिन, चार दोस्तों की इस कहानी में खतरनाक मोड़ आता है, जब इन दोस्तों को सिस्टम से टकराना पड़ता है।
अल्पना कांडपाल
इस हफ्ते निर्माता साजिद नाडियाडवाला की साजिद फरहाद निर्देशित फिल्म हाउसफुल ३ रिलीज़ हो रही है। यह फिल्म तीन दोस्तों सैंडी, बंटी और टेडी की कहानी है। इन भूमिकाओं को अक्षय कुमार, अभिषेक बच्चन और रितेश देशमुख कर रहे हैं। जब तीन यार मिल जाएँ तो रोमांस भरा धमाल तो होना ही है। जी हाँ, हाउसफुल फ्रैंचाइज़ी की इस तीसरी फिल्म में खूब मस्ती और कॉमेडी है। इनके साथ जैक्विलिन फर्नाडीज, नर्गिस फाखरी और लिसा हैडन का ग्लैमर और सेक्स अपील भी है। इसमें कोई शक नहीं कि जब तीन दोस्त मिलते हैं तो गज़ब की कॉमेडी होती है। फिल्म मस्ती हो या ग्रैंड मस्ती या फिर आने वाली ग्रेट ग्रैंड मस्ती, फुल 2 फुलटॉस मस्ती है। इसे आप द्विअर्थी या अश्लील मस्ती भी कह सकते हैं। विवेक ओबेरॉय, रितेश देशमुख और आफताब शिवदसानी की दोस्त तिकड़ी हंसाते हंसाते लोटपोट कर देती है। यही कारण है कि निर्देशक लव रंजन की २०११ में रिलीज़ तीन दोस्तों रजत, निशांत और विक्रांत की कॉलेज की दोस्ती की दास्ताँ स्लीपर हिट साबित होती है। बावजूद कार्तिक आर्यन, दिव्येंदु शर्मा और रायो एस बखिर्ता के नए चेहरों के। यहाँ तक कि इस फिल्म का सीक्वल भी हिट साबित होता है। प्रियदर्शन ने २००० में तीन दोस्तों के साथ कॉमेडी को नए आयाम दिए थे। राजू, घनश्याम और बाबूराव गणपत राव आप्टे की इस कॉमेडी चखचख में साफ़ सुथरा हास्य भरा था। अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी और परेश रावल ने कॉमेडी का कुछ ऐसा बारूद बनाया था कि हेरा फेरी की फ्रैंचाइज़ी बन गई। फिर हेरा फेरी के बाद खबर थी कि तीसरी फिल्म में अक्षय, सुनील और परेश नहीं होंगे। लेकिन, बात नहीं बनी। निर्माता फ़िरोज़ नाडियाडवाला को इन्हीं तीनों की हेरा फेरी चाहिए। बासु चटर्जी ने १९८२ में तीन बूढ़े दोस्तों की कहानी शौक़ीन में दिखाई थी, जो एक मॉडल पर लाइन मारने लगते हैं। अपनी साफ़ सुथरी कॉमेडी कारण यह फिल्म हिट हुई थी। इसके बाद २०१४ में इस फिल्म का रीमेक पियूष मिश्र, अनुपम खेर और अन्नू कपूर के साथ द शौकीन्स बनाया गया तो दर्शकों ने इसे नापसंद कर दिया। अनीस बज़्मी की फिल्म नो एंट्री इसी फार्मूला पर फिल्म थी। मनमोहन देसाई ने अपनी फिल्मों में तीन दोस्तों के फॉर्मूले को खूब आज़माया।
नज़रिए का फर्क
हॉउसफुल, मस्ती और हेरा फेरी की फ्रैंचाइज़ी फिल्मों की शैली कॉमेडी कॉमेडी और सिर्फ कॉमेडी है। वहीं, कभी लेखक के नज़रिए का फर्क किरदारों के सोचने में फर्क पैदा कर देता है। तीन हँसते खेलते दोस्तों की ज़िन्दगी में गम्भीर मोड़ आ जाता है। तीनों दोस्त किरदार अपने रोमांस के साथ गम्भीर हो जाते हैं। कदाचित इस नज़रिए की शुरुआत फरहान अख्तर ने फिल्म दिल चाहता है से की थी। हँसते, मज़ाक करते और बेपरवाह नज़र आते आमिर खान, सैफ अली खान और अक्षय खन्ना के किरदार खुद की ज़िन्दगी में आये मोड़ से भावुक हो जाते हैं। वह परवाह करने वाले ज़िम्मेदार बन जाते हैं। कुछ ऐसा ही काई पो चे, रंग दे बसंती, रॉक ऑन, ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा में भी देखने को मिलता है। राजकुमार हिरानी की फिल्म ३ इडियट्स इसे शिक्षा की ऊंचाइयों तक पहुंचा देती है। रंग दे बसंती के तीन दोस्त सिस्टम को बदलने के लिए हथियार उठा लेते हैं।
दो लडके एक लड़की : क्या होता है !
जब तीन दोस्त मर्द हो तो धमाल होता है, क्लाइमेक्स में थोड़ी सीरियसनेस भी आती है। लेकिन---अगर इन तीन किरदारों में से कोई एक लड़का या लड़की हो तब ! शायद महबूब खान ने पहली बार फिल्म में इस नज़रिए को दिखाने की कोशिश की थी। फिल्म थी अंदाज़। दोस्त थे दिलीप कुमार, राजकपूर और नर्गिस। क्या दो मर्दों के साथ एक औरत की दोस्ती हो सकती है। महबूब ने यह बताने की कोशिश की थी कि मनमुटाव तो होना ही है। लेकिन, समझदारी बड़े काम की चीज़ है। एक दोस्त को बलिदान देना चाहिए। बलिदान का यह फार्मूला राज कपूर ने फिल्म संगम में भी दिखाया। राजकपूर और वैजयंतीमाला के लिए राजेंद्र कुमार को बलिदान करना पड़ा। इस बलिदान को १९८८ में सनी देओल, अनिल कपूर और श्रीदेवी के साथ सुनील हिंगोरानी ने भी दोहराया। सनी देओल को बलिदान देना पड़ा। लॉरेंस डिसूज़ा की फिल्म साजन में सलमान खान अपने दोस्त संजय दत्त के लिए माधुरी दीक्षित का बलिदान कर देते हैं।
दो लडकिया, एक लड़का : तब क्या होता है !
जब दोस्ती से उपजे रोमांस फिल्मों के किरदारों में थोड़ा फर्क कर दिया जाता है यानि आपस में दोस्त दो लड़कियां एक ही लडके को प्यार करने लगें तो क्या होता हैं ! यहाँ एक ख़ास बात शाहरुख़ खान ने ऐसी कई फिल्मों में काम किया है, जिनमे एक लड़के से दो लड़कियां प्रेम करने लगाती हैं। कुछ कुछ होता है में काजोल और रानी मुख़र्जी, दिल तो पागल में करिश्मा कपूर और माधुरी दीक्षित, देवदास में ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित और जब तक है जान में कैटरिना कैफ और अनुष्का शर्मा के किरदार शाहरुख़ खान के किरदार से प्रेम करती हैं। इन इन दो औरतों में से एक बलिदान देती है। यहां एक ख़ास नुक्ता है । यह बलिदान भारतीयता की झलक मारती नारी के लिए आधुनिक नायिका को देना पड़ता है। कॉकटेल में दीपिका पादुकोण सैफ अली खान को केवल इस कारण से खो देती हैं, क्योंकि वह आधुनिकता के रंग में रंगी थी। मुझसे दोस्ती करोगे में इकलौते ह्रितिक रोशन से रानी मुख़र्जी और करीना कपूर प्यार करती हैं। विदेश से आई करीना कपूर बलिदान करती है। सलमान खान को भी हर दिल जो प्यार करेगा और चोरी चोरी चुपके चुपके जैसी फिल्मों में दो नायिकाएं प्यार करती हैं। इन सभी रोमांस की शुरुआत दोस्ती से ही होती है।
शाहरुख़ खान का हटके अंदाज़
शाहरुख़ खान की रोमांस फिल्मों में दो नायिका भी थी और दो नायक भी। मतलब दो स्त्रियां उनसे रोमांस कराती हैं या उनके साथ दूसरा नायक भी इकलौती नायिका से प्रेम करने लगता है। इस रोमांस में खान दो नए रंग पेश करते हैं। वह बलिदान देना नहीं जानते। बाज़ीगर, डर और अंजाम जैसी फिल्मों में वह खून खराबा करने पर उतर आते हैं। बाज़ीगर में तो वह अपने से प्यार करने वाली शिल्पा शेट्टी की हत्या कर देते हैं और काजोल को भी मारने का प्रयास करते हैं। डर और अंजाम फिल्मों में वह जूही चावला और माधुरी दीक्षित के किरदारों को पाने के लिए खून बहाने से पीछे नहीं हटते ।
ज़ाहिर है कि तीन दोस्तों की दोस्ती धमाल करने वाली होती है। बलिदान भी होता है, लेकिन हाउसफुल ३ में ऐसी कोई गुंजायश नहीं। तीनों नायकों की एक एक नायिका है। आगामी कई फिल्मों में इस प्रकार के कई रंग देखने को मिल सकते हैं। क्योंकि, हिंदी फिल्मों को यार बिना चैन कहाँ रे !
जब हो यार तीन नहीं चार !
जहाँ चार यार मिल जाए, वहां फिल्म धमाल होनी ही है। इंद्रकुमार की धमाल फिल्म सीरीज की सफलता चार यारों की सफलता ही है। सीरीज के चार यार बोमन (आशीष चौधरी), मानव (जावेद जाफरी), आदित्य (अरशद वारसी) और आर्य (रितेश देशमुख) की अपनी फितरत हैं। इसके बावजूद दोनों अच्छे दोस्त हैं। लेकिन, टकरा जाते हैं एक डॉन से। कबीर (संजय दत्त) के आने के बाद उनकी ज़िन्दगी में जो धमाल मचता है, दर्शक उसका खूब मज़ा लेते हैं। अयान मुख़र्जी की फिल्म यह जवानी है दीवानी में कॉलेज के चार दोस्त कबीर, नैना, अवि और अदिति का कॉमेडी रोमांस ड्रामा है। रणबीर कपूर, दीपिका पादुकोण, आदित्य रॉय कपूर और कल्कि कोएच्लिन ने इन किरदारों को जिया था। मृगदीप सिंहलाम्बा की फिल्म फुकरे में हनी,चूचा, लाली और ज़फर के लापरवाह, बेपरवाह और रोमांस में मगन किरदार नज़र आते हैं। इन भूमिकाओं को कर रहे पुलकित सम्राट, वरुण शर्मा, मनजोत सिंह और अली फज़ल की बढ़िया केमिस्ट्री फिल्म को दर्शनीय बना देती है। लेकिन, चार दोस्तों की इस कहानी में खतरनाक मोड़ आता है, जब इन दोस्तों को सिस्टम से टकराना पड़ता है।
अल्पना कांडपाल
Wednesday 1 June 2016
रिडले स्कॉट की झोली में एक वेस्टर्न फिल्म
इंग्लिश फिल्म प्रोडूसर और डायरेक्टर रिडले स्कॉट की पहले से ही फिल्मो से भरी झोली में एक वेस्टर्न फिल्म भी आ गिरी है। द मार्शियन की सफलता से लबालब रिडले स्कॉट टैबू, मर्सी स्ट्रीट, द गुड वाइफ, द हॉट जोन, पोट्सडमेर पलतज, माइंडहॉर्न, एमाज वॉर, ेारतलेस्स, डेविड मॉर्गन, किलिंग रीगन, किलिंग पैटन और ब्रेन डेड जैसी फ़िल्में और टीवी सीरीज का निर्माण कर रहे हैं। बतौर डायरेक्टर वह फिल्म एलियन कोवेनेंट बना रहे हैं। अब उन्हें एस क्रैग जहलर के वेस्टर्न उपन्यास रैथस ऑफ़ द ब्रोकेन लैंड के फिल्म रूपांतरण का निर्देशन करने का ज़िम्मा सौंपा गया है। इस फिल्म को द मार्शियन लेखक ड्रू गोडार्ड ही लिख रहे हैं। गोडार्ड ने जहलर की डेब्यू फिल्म हॉरर बोन टॉमहॉक को लिखा था। इस फिल्म में कर्ट रशेल ने फौलादी इरादे वाले शेरिफ का किरदार किया था। रैथ्स ऑफ़ द ब्रोकन लैंड की कहानी क्रूर अपराधियों की है, जिन्हे एक सफ़ेदपॉश के क्लब से सेक्स स्लेवरी के लिए ले जाई गई दो बहनों को छुड़ाने का जिम्मा सौंपा जाता है। द मार्शियन के डायरेक्टर रिडले अब अपनी एक सबसे खराब फिल्म प्रोमेथियस के सीक्वल एलियन :कोवेनेंट के निर्माण में जुटे हुए हैं। वैसे रिडले स्कॉट की आदत है कि वह फिल्म निर्माण के अधिकार खरीद लेते हैं और फिर चुप बैठ जाते हैं। उदहारणस्वरुप उन्होंने फॉरएवर वॉर के लिए चैनिंग टॉटम को साइन कर लेने के बावजूद एक दिन भी फिलम की शूटिंग नहीं की है। इसलिए, यह पूछा जाना स्वाभाविक है कि क्या रिडले के एक्शन से वेस्टर्न फिल्म बन पाएगी ?
अपराधियों का मददगार द अकाउंटेंट !
मार्च में रिलीज़ बैटमैन वर्सेज सुपरमैन: डॉन ऑफ़ जस्टिस में ब्रूस वेन/बैटमैन के करैक्टर को परदे पर उतारने के बाद अभिनेता बेन अफ्लेक वार्नर ब्रदर्स की फिल्म द अकाउंटेंट में एक कुटिल किरदार क्रिस को कर रहे हैं। इस फिल्म का ट्रेलर अभी रिलीज़ हुआ है। इस ट्रेलर में बेन अफ्लेक एक प्रतिभाशाली गणितज्ञ की भूमिका में नज़र आते हैं, जो भयानक दोहरी ज़िन्दगी जी रहा है। इस फिल्म को अक्टूबर की सबसे गर्म फिल्म बताया जा रहा है, जिसका दर्शकों को बेसब्री से इंतज़ार है। फिल्म में एना केंड्रिक और जे के सिमंस क्रमशः डाना और रे किंग के किरदार को कर रहे हैं। क्रिस्चियन वुल्फ को गणित का इस्तेमाल ज्ञान के लिए करने से ज़्यादा खतरनाक अपराधी गिरोहों के अकाउंटेंट का काम करने में है। इसका फल उसे भोगना ही होगा। मगर कैसे इसका जवाब निर्देशक गेविन ओ'कोनोर की फिल्म द अकाउंटेंट देख कर ही मिलेगा। ट्रेड पंडित इंतज़ार में है कि क्या बेन अफ्लेक की फिल्म द अकाउंटेंट डॉन ऑफ़ जस्टिस की तरह रिकॉर्ड तोड़ बिज़नेस कर पाएगी। क्योंकि, द अकाउंटेंट की रिलीज़ से एक हफ्ता पहले ७ अक्टूबर को बहुप्रतीक्षित द गर्ल ऑन द ट्रैन, केविन हार्ट: व्हाट नाउ, फोकस फीचर की फिल्म अ मॉन्स्टर कॉल्स और सोनी की फिल्म अंडरवर्ल्ड" ब्लड वार्स तथा १४ अक्टूबर को जैक रीचर २, ओइजा २ और बू! अ मडीअ हेलोवीन जैसी चर्चित फिल्मों के बीच द अकाउंटेंट रिलीज़ हो रही हैं।
Sunday 29 May 2016
एक डॉक्टर की मौत को जीवंत करने वाले पंकज कपूर
सालों की मेहनत और पारिवारिक ज़िन्दगी को दांव पर लगा कर डॉक्टर दीपंकर रॉय लेप्रोसी की वैक्सीन खोज लेते हैं। यह खबर आग की तरह चैनलों के माध्यम से फ़ैल जाती हैं। एक अंजाना सा जूनियर डॉक्टर वर्ल्ड फेम हो जाता है। इसके साथ ही डॉक्टर रॉय को प्रताड़ित करने का सिलसिला शुरू हो जाता है। उससे स्पष्टीकरण पूछा जाता है कि लेप्रोसी वैक्सीन की खबर मीडिया में लीक कैसे हो गई। उसे प्रशासन से लेकर शासन के उच्च स्तर से फटकार मिलती है। साथ के डॉक्टर उसे अपमानित करने की कोशिश करते हैं। उसे दिल का दौरा पड़ता है। डॉक्टर का एक दूरस्थ गाँव में तबादला कर दिया जाता है। ऐसे समय में उसका साथ उसकी पत्नी और दो दोस्त ही देते हैं। तभी खबर आती है कि लेप्रोसी वैक्सीन की खोज अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कर ली है। इसके साथ ही एक डॉक्टर की मौत हो जाती है। यह कहानी है बांगला फिल्म डायरेक्टर तपन सिन्हा की १९९० में रिलीज़ फिल्म एक डॉक्टर की मौत की। यह फिल्म रामपद चौधरी की कहानी अभिमन्यु पर रामपद और तपन सिन्हा द्वारा लिखी गई थी। यह फिल्म नौकरशाही की तिकड़मों, सिस्टम द्वारा प्रतिभा को प्रताड़ित करने और मान्यता न देने की है। लेकिन, फिल्म यहां ख़त्म नहीं होती। डॉक्टर की मौत तब भी नहीं होती। फिल्म एक डॉक्टर की मौत मानवता की जीवंतता की कहानी है। फिल्म के ख़त्म होते होते डॉक्टर रॉय को जॉन एंडरसन फाउंडेशन का एक खत मिलता है, जिसमे उसे दूसरे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के साथ अन्य दूसरी बीमारियों की दवाएं खोजने का न्योता मिलता है। डॉक्टर रॉय अनुभव करते हैं कि उनकी मेहनत बेकार नहीं गई थी। वह इस न्योते को स्वीकार करने का मन बनाते हैं, क्योंकि वह मानव कल्याण के लिए काम करते रहना चाहते हैं। इस फिल्म में डॉक्टर रॉय की बीवी का किरदार शबाना आज़मी ने किया था। साथी डॉक्टर कुंडू का किरदार बांगला फिल्म अभिनेता अनिल चटर्जी कर रहे थे। आज के विश्व प्रसिद्ध बॉलीवुड एक्टर इरफ़ान खान ने डॉक्टर रॉय के दूसरे दोस्त का किरदार किया था। यह इरफ़ान के करियर की तीसरी फिल्म थी। फिल्म में डॉक्टर दीपंकर रॉय का किरदार अभिनेता पंकज कपूर ने किया था। पंकज कपूर का आज जन्मदिन (२९ मई १९६४) है।
Subscribe to:
Posts (Atom)