Friday, 20 December 2013

धूम ३- धूम.....धूम.... धूम....धड़ाम !!!!!!!!!!!!!

                      
                         धूम ३ की रिलीज़ से ठीक पहले, मुंबई के अखबारों में खबर थी कि आमिर खान की फिल्म धूम ३ के साथ सलमान खान की फिल्म जय हो का ट्रेलर दिखाया जायेगा. एक मल्टीप्लेक्स थिएटर में धूम ३ से पहले गुंडे का ट्रेलर दिखाया गया. उसके बाद फिल्म शुरू हो गयी. पीछे से आवाज़ आई- ओह शिट! जय हो का ट्रेलर नहीं दिखाया. टिकट वापस कर दो. इंटरवल ख़त्म होने पर, फिल्म शुरू होने से ठीक पहले जय हो का ट्रेलर दिखाया जाना शुरू हो गया. पूरा थिएटर दर्शकों की ख़ुशी भरी चीख, सीटियों और तालियों से गूँज रहा था. आमिर इसे कहते हैं स्टार पॉवर।
                        धूम ३ की समीक्षा से पहले इसे बताने का सबब यह कि ज़रूरी नहीं कि हर किसी को हर किसी के पैरों के जूते फिट बैठ जाएँ. आमिर खान ने जॉन अब्राहम और ऋतिक रोशन के जूते में पैर ठूंसने की कोशिश की. बिना यह सोचे समझे कि इस प्रकार से बने जूते उनके पैरों में फिट होंगे या नहीं. ख़ास तौर पर यह भी सोचना चाहिए था कि जब एक कंपनी का जूता कोई दो लोग पहन लेते हैं, तो तीसरे के उसी जूते को पहनने पर, ख़ास तौर पर बॉलीवुड के फैशन सर्किल में  नक़ल बता दिया जाता है और कहा जाता है-  सेम सेम की तर्ज पर.… शेम शेम !
                        धूम ३  शुरू होती है एक सर्कस चलाने वाले जॅकी श्रॉफ के करैक्टर से जो अपना थिएटर बचाने के लिए बैंक वालों के सामने अपना आखिरी शो रखता है. लेकिन, अपने थिएटर को बिकने से नहीं बचा  पाता  और आत्महत्या कर लेता है. अब उसका बेटा  साहिर इसका बदला लेने बैंक की दो शाखाओं में डाका डालता है और मौके पर जोकर का मुखौटा तथा  हिंदी में बैंक वालों की ऎसी की तैसी लिख डालता है.(जय हिंदी-शिकागो में गूँज गयी) बेचारी शिकागो पुलिस इस चोर को पकड़ नहीं पाती। इसलिए भारत से एसीपी जय दीक्षित और उसके मसखरे मित्र अली को बुलाया जाता है (भारतीय पुलिस के लिए तालियां और शिकागो पुलिस को गालियां) . शिकागो पहुँच कर क्या होता है? अरे भैया---अपना पुलिस हीरो उसे पकड़ते पकड़ते नहीं पकड़ पायेगा---और क्या! धूम सीरीज की फिल्मों की कहानिया ऐसी ही लिखी जाती हैं.
                       बिलकुल रद्दी कूड़ा कहानी को यशराज फिल्मे के होनहार मालिक आदित्य  चोपड़ा ने धो पोंछ कर लेखक विजय कृष्णा आचार्य को थमा दिया। टशन की सुपर असफलता के टेंशन में विक्टर ने इस कहानी की स्क्रिप्ट में सीन दर सीन रेस रेस और रेस लिख दिया। कभी शिकागो पुलिस मोटर साइकिल से भाग रहे आमिर खान के पीछे मोटर साइकिल से भाग रही है और कभी बड़ी बड़ी गाड़ियों से. बावज़ूद इसके पकड़ नहीं पाती। (भाई आमिर के फेन तालियां तभी बजाते हैं) पूरी फ़िल्म में करीब सत्तर मिनट चौपड़ा और आचार्य के सर पर chase का क्रेज चढ़ा रहता है, बाकी समय लम्बे लम्बे आधा दर्जन गाने और धूम धूम के रीमिक्स। इस बीच कटरीना कैफ आती हैं. थोडा दिखाती हैं और फिर गायब हो जाती है. इस बीच सस्पेंस बनाने के लिए आमिर खान का डबल रोल बना दिया गया. डबल रोटी जैसे आमिर खान के डबल रोल दर्शकों से झेले नहीं जाते।  बुढ़ौती उनके चहरे पर साफ़ नज़र आती है. हालाँकि,वह बढ़िया अभिनय करते हैं. कहा जाए तो वह और जॅकी श्रॉफ ही फ़िल्म के सेविंग ग्रेस हैं. विक्टर (फ़िल्म के लेखक डायरेक्टर विजय कृष्ण आचार्य का पेट नेम (?) यही है) दर्शकों को रिझाने की हरचंद कोशिश करते हैं, लेकिन असफल रहते हैं. यही कारण है कि जब फ़िल्म ख़त्म हो रही होती है और कटरीना कैफ का भड़काऊ आइटम चल रहा होता है, युवा दर्शक हॉल छोड़ना शुरू कर देता है.
                        फ़िल्म में मसाला भरने की हर कोशिश की गयी है. पहले भाग में खूब chase, डांस, कटरीना और आमिर खान का टैप  डांस है. पर सब कुछ बेजान। दूसरे भाग में इमोशन है, ड्रामा है. पर प्रभावहीन। विक्टर आमिर खान को भी हारा हुआ साबित कर देते है. कटरीना कैफ के नाम तीनों खानों के साथ फ़िल्म करने का कीर्तिमान दर्ज हो गया. लेकिन, इस फ़िल्म को करने का उन्हें अफ़सोस होना ही चाहिए। उदय चोपड़ा पहले दो धूमो में जोकरियागिरी करते थे. इस धूम में छोरा गंगा किनारे वाला का नरीमन पॉइंट में घूमने वाला छोरा भी शामिल हो गया. ईश्वर गंगा की आत्मा को शांति दे.
                             फ़िल्म हर लिहाज़ से कमज़ोर है. कथा पटकथा और संवादो के साथ साथ गीत संगीत भी कमज़ोर है. प्रीतम प्यारे कब तक धूम धूम की धूम धूम करते रहोगे। कुछ नया और स्टाइलिस्ट देने की कोशिश करो न! आदित्य चोपड़ा ने फ़िल्म को इंटरनेशनल लुक देने के लिए शिकागो में फ़िल्म की शूटिंग की है. विदेशी चमड़ियां दिखायी हैं. विदेशी तकनीशियन लिए है. लेकिन, यह भूल गए कि भैया जितना पोलिश मारोगे उतना ही जूता चमकेगा। आप सेकंड ग्रेड के पैसे देकर फर्स्ट ग्रेड का काम नहीं ले सकते। पर कुछ एक्शन सींस बढ़िया बन पड़े हैं. मगर सांस रोकने वाले नहीं  क्योंकि,ऐसे सीन हिंदी दर्शक पहले ही देख चूका है. बाकी के लिए तो बिलकुल कुछ नहीं कहना और पाठकों का सब कुछ पढ़ समझ लेना ही स्पेस के लिहाज़ से अच्छा है.
                     अंत में भैया विक्टर---और उनके भैया आदित्य यह डॉल्बी atmos  क्या होता है.…फ़िल्म में भी तो कुछ होना चाहिए ना!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!   

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