यह वाक़या कोई १०३ साल पहले का है। मुंबई के कोरोनेशन थिएटर के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी। उन्हें इंतज़ार था ३७०० फिट लम्बी ४० मिनट की फिल्म का, जो भारत की पहली चलती फिरती तस्वीर साबित होने जा रही थी। यह वही चलती फिरती तस्वीरें थी, जिन्होंने १८९५ में लुमियरे बंधुओं की फिल्म लंदन से पूरे यूरोप में सनसनी फैला दी थी । जुलाई १८९६ में लुमियरे बंधुओं ने भारत में भी अपनी लघु फिल्मों का प्रदर्शन किया। पहली भारतीय लघु फिल्म फ्लावर ऑफ़ पर्शिया १८९८ में रिलीज़ हुई। इस फिल्म का निर्देशन हीरालाल सेन ने किया था। लेकिन, ३ मई १९१३ को भारतीय द्वारा, भारत में, भारतीय तकनीक से बनी फिल्म रिलीज़ हो रही थी। इस फिल्म को फाल्के ने छह महीनों में बनाया था। यह देसी फ़िल्म का पहला व्यवसायिक प्रदर्शन था। क्योंकि,राजा हरिश्चन्द्र को कुछ चुनिंदा लोगों, अख़बारों के सम्पादकों को ओलम्पिया थिएटर ग्रांट रोड में २१ अप्रैल २०१३ को ही प्रीमियर प्रीव्यू में दिखाया जा चूका था। बॉम्बे में कोरोनेशन थिएटर के बाहर जमे दर्शकों में अपनी देसी फिल्म देखने की उत्तेजना थी। जैसे ही मूक फिल्म राजा हरिश्चन्द्र का पहला शो ख़त्म हुआ, एक इतिहास बन गया। यह फिल्म २३ दिन चली। इसके बाद तो भारतीय सिनेमा लोकप्रियता की कई सीढ़ियां चढ़ता चला गया। हालाँकि,राजा हरिश्चन्द्र आज भी विवादित है, क्योंकि लोगों का मानना हैं कि बाबासाहेब तोरणे की १८ मई २०१२ को रिलीज़ फिल्म श्री पुंडलीक पहली भारतीय फिल्म थी। परन्तु, तोरणे का दावा इस बिना पर खारिज हो जाता है कि इस फिल्म को विदेशी सहयोग से बनाया गया था। अब इसे इत्तेफ़ाक़ ही कहा जायेगा कि १०३ साल बाद ६ मई को दो दूसरी हिंदी फिल्मों के साथ विक्रम भट्ट की हॉरर फिल्म १९२०- लंदन के टाइटल के साथ भी लंदन है। राजा हरिश्चन्द्र को मराठी,हिंदी और इंग्लिश सबटाइटल के साथ रिलीज़ किया गया था। इस फिल्म को पहले एक ही प्रिंट तैयार कर रिलीज़ किया गया। लेकिन, जैसे ही राजा हरिश्चन्द्र को दर्शकों की पसंदगी मिली, फालके ने इसके कई प्रिंट तैयार करवाए। इस फिल्म में दत्तात्रेय दामोदर डाबके ने राजा हरिश्चन्द्र का किरदार किया था। चूंकि, दादासाहेब को तारामती की भूमिका के लिए कोई महिला नहीं मिल रही थी, इसलिए खूबसूरत चेहरे वाले अन्ना सालुंके ने तारामती को धोती पहन कर किया था। फाल्के को अपनी फिल्म की तारामती यानि सालुंके एक रेस्टोरेंट के किचन में मिले थे,जहां वह रसोइये का काम करते थे। दादासाहेब के बड़े बेटे बालचंद्र डी फालके रोहितास बने थे। इस फिल्म की ओपनिंग राजा रवि वर्मा की राजा हरिश्चन्द्र और उनकी पत्नी तारामती की पेंटिंग के साथ होती थी। इस फिल्म के प्रमोशन में कहा जाता था - ५७ हजार फोटोग्राफ्स और दो मील लम्बी फिल्म का प्रदर्शन सिर्फ ३ आना में।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Showing posts with label Indian Cinema. Show all posts
Showing posts with label Indian Cinema. Show all posts
Tuesday 3 May 2016
रेस्टोरेंट के किचन में मिली थी राजा हरिश्चंद्र की तारामती
Labels:
Dadasaheb Phalke,
Indian Cinema,
Raja Harishchandra
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Subscribe to:
Posts (Atom)