पचास से सत्तर तक के
तीन दशक ! फिजाओं में बेमुरव्वत बेवफा, मुझ को अपने गले लगा लो, कभी तन्हाइयों में
हमारी याद आयेगी, हम हाल ए दिल सुनायेंगे, मेरे आंसुओं पे न मुस्कुराना, तू ने
तेरी नज़र ने, देवता तुम हो मेरा सहारा, जब इश्क कहीं हो जाता है, ज़रा कह दो फिजाओं
से, वादा हमसे किया, सांवरिया तेरी याद में, इतने करीब आ के भी, रात कितनी हसीं
ज़िन्दगी मेहरबान, तेरी नज़र ने काफिर बना दिया,, वादा हमसे, साकिया एक जाम, कैसी
बीन बजाई, मैं हो गई रे बदनाम, हसीनों के धोखें में न आना, यह जाने नज़र चिलमन से
अगर, जलवा जो तेरा देखा, आदि गीत गूंजा करते थे। इन गीतों की गायिका थी बिलकुल
अलग मगर दमदार आवाज़ की मल्लिका मुबारक बेगम। उनका स्नेहल भाटकर के संगीत निर्देशन में गाया
फिल्म हमारी याद आएगी का शीर्षक गीत कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी अपनी अलग किस्म की धुन और उसी के अनुरूप
गूंजती मुबारक बेगम की आवाज़ के कारण आज भी यादगार है।
चुरू राजस्थान में १९४०
में जन्मी मुबारक बेगम ने अपने सिंगिंग करियर की शुरुआत आल इंडिया रेडियो पर गीत
गाने से की। उनका पहला गीत संगीतकार शौकत देहलवी, बाद में जिन्हें नाशाद नाम से जाना गया, ने फिल्म आइये के लिए रिकॉर्ड करवाया था। इस फिल्म के दो गीत मोहे आने लगी
अंगडाई और आजा आजा बालम बेहद सफल हुए थे। लेकिन, इस गीत से पहले मुबारक बेगम दो बार रिकॉर्डिंग रूम छोड़ कर भाग गई थी। संगीतकार रफीक गजनवी ने उनका गायन रेडियो पर
सुना था। उन्होंने अपनी फिल्म के लिए गीत गाने के लिए मुबारक को स्टूडियो में
बुलाया। मगर वहां की भीड़ देख कर मुबारक बेगम के मुंह से आवाज़ तक नहीं निकल सकी। वह स्टूडियो से भाग गई।उन्हें दूसरी बार श्याम सुंदर ने फिल्म भाई बहन के
गीत को गाने का मौका दिया। लेकिन, पहले वाली कहानी फिर दोहराई गई। मुबारक
बेगम का समय बदला नर्गिस की माँ जद्दन बाई से मिलने के बाद। जद्दन बाई ने उनका
गाना सुना। उनकी हौसला अफ़ज़ाई की। उन्होंने उनकी आवाज़ की तारीफ कई संगीतकारों से की। नतीज़तन, मुबारक
बेगम को आइये फिल्म में गाने का मौका मिला। इसके बाद तो मुबारक बेगम ने नौशाद, सचिन देव बर्मन, शंकर जयकिशन, खय्याम, दत्ताराम, आदि कई संगीतकारों के लिए गीत गए। उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सभी बड़े सितारों की फिल्मों के चरित्रों को अपनी आवाज़ दी।
दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला
की फिल्म मधुमती में मुबारक बेगम का गाया गीत ‘हम हाले दिन सुनायेंगे’ काफी पॉपुलर हुआ था। उनकी आवाज़ का जादू ही ऐसा था कि लता मंगेशकर के गाये फिल्म के तमाम गीतों
के बीच भी मुबारक बेगम का गाया यह गीत दर्शकों के कानों में रस घोलने में कामयाब
हुआ था। कैसी विडम्बना है कि मुबारक बेगम अपने दिल का हाल सुनाना चाहती थी,
लेकिन, कोई सुनने को तैयार नहीं था। लता मंगेशकर और आशा भोंसले की आवाजों के
वर्चस्व में मुबारक बेगम अप्रासंगिक हो गई। उनके गीत लता मंगेशकर या आशा भोंसले से रिकॉर्ड कराये जाने लगे। जब जब फूल खिले का परदेसियों से न
अखियाँ मिलाना गीत मुबारक बेगम की आवाज़ में रिकॉर्ड हुआ था। लेकिन, जब एल्बम बाहर
आया तो इसमे लता मंगेशकर की आवाज़ थी। इसके साथ ही मुबारक बेगम निराशा के गर्त में
डूबती चली गई। १९८० में निर्मित फिल्म राम तो दीवाना है का सांवरिया तेरी याद
मुबारक बेगम का गाया आखिरी गीत बन गया।
मुबारक बेगम का
आखिरी समय फांकों में गुजरा। पौष्टिक आहार की कमी ने उन्हें बीमार बना दिया था। उन्हें पेट की बीमारी हो गई। उनकी बेटी का पिछले साल निधन भी बीमारी के कारण हुआ। उन्हें अपने इलाज़ और खाने पीने के लिए एनजीओ और ट्रस्ट के सहारे रहना पड़ा। लता
मंगेशकर ट्रस्ट उनकी नियमित मदद करता था। लेकिन, इसकी एक सीमा थी। सलमान खान ने
भी एक बार उनके इलाज़ के लिए एकमुश्त धनराशि हॉस्पिटल को दी थी। कुछ महीना पहले
महाराष्ट्र सरकार ने ८० हजार के चेक के साथ उनके इलाज़ का पूरा खर्च वहन करने का
ऐलान किया था। एक पूर्व विधायक यशवंत बाजीराव उन्हें पांच हजार रुपये की नियमित
मदद दिया करते थे। सोमवार की रात मुबारक बेगम सभी मदद को नकार कर अलविदा कह गई।