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Friday 22 December 2017

अगर इसे ज़िंदा कहते हैं....तो टाइगर ज़िंदा है !

यशराज फिल्म्स की अली अब्बास ज़फर निर्देशित फिल्म टाइगर ज़िंदा है से कुछ बातें साफ़ होती हैं -
* भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग, जिसके संक्षिप्त नाम रॉ से पाकिस्तानी जांच एजेंसी की हवा खिसकती है, पाकिस्तान हुक्मरान खौफ  खाते हैं, निहायत बेवक़ूफ़ है।  उसका एक पूर्व एजेंट, जिसे  वह मरा हुआ समझ रहे हैं, वह ऑस्ट्रिया में पूरा रॉ हेडक्वार्टर हैक किये बैठा है।  इस एजेंसी को मालूम ही नहीं। 
** पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी, जिसे भारत के लोग देश में आतंकी भेजने के  लिए जिम्मेदार मानते है, वह  खुद आतंकवाद से लड़ रही हैं यानि मिया मुशर्रफ सही फरमाते  हैं। 
*** तिकरित में बंधक बनाई गई ४६ भारतीय नर्सें किसी कूटनीतिक दबाव का परिणाम नहीं थी, बल्कि टाइगर ज़िंदा है।  अगर, यशराज बैनर न होता, अली अब्बास ज़फर न प्लान करते और सलमान खान टाइगर न होते तो वह नर्सें मार दी जाती।  भारत सरकार गई तेल लेने।  
कहानी- तिकरित में २५ भारतीय नर्सें, जिनसे १५ पाकिस्तानी नर्सें जोड़ कर, ४० बनाया जाता है, अबू उस्मान की आईएससी (ध्यान रहे नर्सों का अपहरण आईएसआईएस ने नहीं, जैसा बताया जाता है, आईएससी ने किया था) द्वारा कर लिया जाता है।  उन्हें एक  हॉस्पिटल में बंधक बना लिया  जाता है।  एक अमेरिकी हमले में अबू उस्मान घायल  हो जाता है।  उसे उसी हॉस्पिटल में, जिसमे कोई डॉक्टर नहीं है, लाया जाता है और नर्सों के सहारे इलाज़ के लिए छोड़ दिया जाता है। अब इनकों छुड़ाया कैसे जाए ? भारत सरकार नकारा है। विदेश मंत्रालय निकम्मा है।  लेकिन, टाइगर ज़िंदा है न! वह छुड़ाएगा।  और आखिर में आखिर में छुड़ा भी लेता है।  कैसे ! यह मत पूछना ! फैंटम देख हैं !! ठीक वैसे ही !!! 
लेखन- निर्देशन- टाइटल में बतौर निर्देशक अली अब्बास ज़फर का नाम गया है।  लेकिन, ९० प्रतिशत काम देशी/ विदेशी एक्शन कोरियोग्राफर,   स्पेशल इफेक्ट्स और वीएफएक्स टीम ने किया है।  इस  बचकानी कहानी को लिखने में नीलेश मिश्रा और अली अब्बास ज़फर ने अपना समय बर्बाद किया है।  कहानी तो रियल लाइफ है।   आपने तो उसका सत्यानाश लिखा है।  अली के स्क्रीनप्ले में कोई नयापन नहीं।  हर दृश्य जाना पहचाना और ऎसी बहुत सी फिल्मों का देखा हुआ है।  संवाद सलमान खान मार्का हैं।  उनके प्रशंसकों से तालियां बजवाने के लिए ही लिखे गए हैं।  इतनी बचकानी फिल्म लिखना तो हमारे लेखकों के बस की बात ही है।  टाइगर सब कुछ कर सकता है।  लेकिन, कैसे ! यह  तो बताना ही होगा।  बिना रेकी किये, तिकरित और मोसुल की गलियों में आतंकियों को चकमा टाइगर हंसी पैदा करता है।  फिल्म की ज़्यादातर घटनाएं अविश्वसनीय हैं। 
अभिनय- सलमान खान बारूद के ढेर में बैठे टाइगर बने हैं।  उनके करने से ज्यादा गोला बारूद ने उनके लिए किया है।  वह फिल्म के क्लाइमेक्स में कमीज़ चीर कर तालियाँ बटोर ले जाते हैं।  कैटरिना कैफ ने एक्शन खूब किये हैं।  वह अपना काम ठीकठाक कर ले जाती हैं।  फिल्म में ढेरो देशी विदेशी चेहरे हैं।  लेकिन, इन सब के बीच उभर कर आते हैं अबू उस्मान की भूमिका में ईरानी सज्जाद दिलफ़रोज़।  वह बिना ओवर हुए अपने किरदार को क्रूर दिखा पाने में सक्षम होते हैं।  
तकनीक- टाइगर ज़िंदा है टेक्निकल टीम की फिल्म है।  अब चाहे वह बारूद के ज़रिये किया गया हो या स्पेशल इफेक्ट्स के ज़रिये। वैसे सलमान खान के साथ भेड़ियों के झुण्ड से लड़ाई की काफी चर्चा थी।  लेकिन, वह बहुत प्रभावित नहीं कर पाया।  साफ़ तौर पर दो दृश्य जोड़े हुए लग रहे थे।  हॉलीवुड के स्टंट कोरियोग्राफर भी आपके लिए पूरा ओरिजिनल क्यों करेंगे ! 
एक था टाइगर और टाइगर ज़िंदा है का फर्क - एक था टाइगर २०० करोड़ तक नहीं पहुँच पाई थी।  लेकिन, एक था टाइगर दर्शकों के दिल तक  पहुँच पाने में सफल हुई थी।  कबीर खान टाइगर और ज़ोया के रोमांस को प्रभावशाली ढंग से उभार  पाने में सफल हुए थे।  टाइगर  ज़िंदा है में ऐसा कुछ नहीं है।  यही  कबीर खान और अली अब्बास ज़फर का फर्क है।  अलबत्ता अली अब्बास ज़फर ने कबीर खान की फिल्म फैंटम की नक़ल करने में काफी मेहनत की है।  
बारूद में उड़ा दिए १४० करोड़- ट्रेड के जानकार बताते हैं कि फिल्म के निर्माण में १४० करोड़ खर्च हुए हैं।  इसमें सलमान खान का पारिश्रमिक शामिल नहीं है।  इसके लिए उन्होंने राइट्स लिए हैं और प्रॉफिट  में हिस्सा लेंगे । बताते हैं कि टाइगर ज़िंदा है के म्यूजिक, ओवरसीज मार्किट के अधिकार, टीवी टेलीकास्ट के अधिकार , आदि के ज़रिये १४० करोड़ अंदर कर लिए गए हैं। इस फिल्म को ४०००+ स्क्रीन पर रिलीज़ किया गया है।  अगर फिल्म ने थोड़ी भी पकड़ बनाये रखी तो  २०० करोड़ कहीं नहीं गए।  लेकिन, अगर उखड़ी तो......! ३०० करोड़ तो वैसे भी नहीं बनते नज़र आ रहे।  शनिवार और रविवार के जम्प के बाद, सोमवार को क्रिसमस डे जम्प से सब  पता चल जायेगा।  
वैसे यह कहा  जा सकता है कि अगर सलमान खान के प्रशंसकों का आईक्यू सचमुच इतना कम हो गया है तो समझ लीजिये की बारूद की गंध के बीच डायलाग पेलता टाइगर सचमुच ज़िंदा है।  
नोट- यह पाकिस्तानियों और उनके आकाओं का दुर्भाग्य है कि उन्होंने पाकिस्तान, पाकिस्तानियों और कुख्यात जासूसी एजेंसी को प्रमाणपत्र देने वाली फिल्म रिलीज़ नहीं होने दी।