परिणीती के कमीज़ के बटन खोलते सुशांत |
फिल्म में कहानी नदारद है. मनीष शर्मा ने एक लड़का, दो लड़की, एक बाथरूम, एक बारात, धकाधक चुम्बन चाटन और सेक्स दृश्यों के सहारे दो घंटे से ज्यादा की फिल्म बना डाली है. यह सब सिचुएशन और संवादों के सहारे इतनी बार दिखाया जाता है कि फिल्म का अंत इसी पर ख़त्म होता देख कर दर्शक निराशा से भर उठता है. यशराज फिल्म्स से इतनी अधकचरी फिल्म की अपेक्षा नहीं की जाती। निर्माता आदित्य चोपड़ा को यह समझना होगा कि संवाद के सहारे बनी कोई फिल्म बिना दूल्हे की बारात जैसी होती है. एडिटर नम्रता राव अगर अपनी कैंची चलाती तो फिर पहले पेशाब प्रसंग के अलावा रिपीट हुए कोई दृश्य नहीं बचते. मनु आनंद का छायांकन जयपुर के खूबसूरत दृश्यों को दर्शकों के सामने लाता है. सचिन जिगर का संगीत यादगार नहीं कहा जा सकता. केवल एक दो धुनें ही ठीक बनी हैं. अभिनय की बात की जाए तो सुशांत को उनकी भोली शक्ल और पवित्र रिश्ता वाली इमेज के कारण लिया जाता है. सुशांत अपनी हर फिल्म में पवित्र रिश्ता के मानव को दोहराते हैं. परिणीती चोपड़ा भी सीमित प्रतिभा की अभिनेत्री है। इसलिए वह गायत्री के चरित्र को आराम से कर ले जाती हैं. वाणी कपूर को बहुत मौके नहीं मिले। पर वह अपने ग्लैमर से आकर्षित करती हैं. सबसे बढ़िया और स्वाभाविक काम उन बाथरूमों का रहा है, जो नेचुरल नज़र आते हैं.
शुद्ध देसी रोमांस छोटे शहरों और कस्बों के युवाओं की मानसिकता को ध्यान में रख कर बनायी गयी है. निर्देशक मनीष शर्मा जानते हैं कि यह दर्शक घटिया और भद्दे शब्दों वाले संवादों पर तालियाँ और सीटियाँ बजाता है. उसे लौंडिया का लपक कर चुम्बन चमेटने वाला हीरो रास आता है. जब हीरो हेरोइन को बिस्तर दे मारता है तो यह युवा कुर्सियां तोड़ने को तैयार हो जाता है. फिल्म में यही कुछ इफरात में है.
अगर आप छोटे कस्बे वाली मानसिकता वाले दर्शक है और केवल संवादों के सहारे फिल्म देख सकते हैं तो यह फिल्म आपके ही लिए बनी है.
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