शाहिद कपूर अच्छे अभिनेता हैं. डांसिंग में भी वह लाजवाब हैं। इसका पता उनकी फिल्म फटा पोस्टर निकला हीरो को देख कर चलता है। फ़िल्म में पोस्टर फाड़ कर उनकी एंट्री पर दर्शकों के शोर का सैलाब हिलोरें लेने लगता है. वह जब डांस करते हैं, तब सिनेमाघर में बैठा दर्शक झूमने लगता है। अपने अभिनय से वह दर्शकों को प्रभावित करते हैं. लेकिन, घिसी- पुरानी कहानी और लंगडी स्क्रिप्ट उन्हें लम्बी रेस का घोड़ा साबित नहीं होने देती। वह बीच दौड़ में लुढ़क जाते हैं.
फटा पोस्टर की कहानी पुरानी है- साठ के दशक की फिल्मों जैसी माँ बेटा और ईमानदारी का पाठ. आजकल के युवाओं को ऎसी उपेशात्मक कहानी रास नहीं आती. वह तो लम्पट, चोर, धोखेबाज, नशेबाज और लौंडिया को बिस्तर पर धर पटकने वाले हीरो को पसंद करते हैं। अभी ग्रैंड मस्ती, शुद्ध देसी रोमांस और आशिकी२ इसका प्रमाण है. कहानी से मात खायी यह फिल्म लेखन के मामले में भी मात खा जाती है। अगर राजकुमार संतोषी फिल्म को लिखने में किसी दूसरे लेखक का सहारा लेते तो बेहतर फिल्म दे पाते। मध्यांतर से पहले शाहिद कपूर की कॉमिक timings और डांस से दर्शकों को बांधे रखने वाली फिल्म, मध्यांतर के बाद बिलकुल बिखर जाती है। खुद शाहिद कपूर भी असहाय से नज़र आते हैं. फ़िल्म की जान टीनू वर्मा और कनाल कन्नन के एक्शन हैं। शाहिद कपूर को यह एक्शन फबते भी खूब हैं. जहाँ तक प्रीतम चक्रवर्ती की धुनों का सवाल है, केवल मीका का गाया एक गीत तू मेरे अगल बगल ही बढ़िया बना है. इरशाद कामिल और अमिताभ भट्टाचार्य के संवाद काम चलाऊ ही कहे जा सकते हैं.
फिल्म मे इलियाना डी'सौजा, पद्मिनी कोल्हापुरे, दर्शन जरीवाला,जाकिर हुसैन, सौरभ शुक्ल, मुकेश तिवारी और संजय मिश्रा जैसे सक्षम कलाकारों की भरमार है. लेकिन, सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं भ्रष्ट पुलिस वाले के रूप में जाकिर हुसैन। संजय मिश्र का काम भी अच्छा है। दुःख होता है इलियाना को देख कर. वह फ़िल्म की नायिका हैं, लेकिन उनका रोल ही सबसे ज्यादा कमज़ोर लिखा गया है।
कहा जा सकता है कि अजब प्रेम की गज़ब कहानी के राजकुमार संतोषी की यह बेहद कमज़ोर फिल्म है, इतनी कि सलमान खान का कैमिया और नर्गिस फाखरी का आइटम भी फटे पोस्टर से निकलते हीरो हीरो को जीरो बनने से रोक नहीं सका. बढ़िया हीरो शाहिद कपूर की इस फिल्म को फटा पोस्टर निकला चूहा कहना ज़्यादा ठीक होगा।
No comments:
Post a Comment