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काम न आया संजय दत्त से हाथ मिलाना |
हर निर्देशक आनंद एल राज नहीं होता कि किसी धनुष को हिंदी दर्शकों का राँझना बना सके. अपूर्व लाखिया ऐसे निर्देशक नहीं। उन्होंने रामचरन को हिंदी दर्शकों से introduce कराने के लिए चालीस साल पहले की फिल्म का रीमेक बनाया। उन्होंने एक पल नहीं सोचा कि सत्तर के दशक की कहानी आज के दर्शकों को क्यों कर पसंद आयेगी ! कहानी में फेरबदल किया तो केवल यह कि विलेन तेल माफिया था. बाकी कहानी पूरी की पूरी १९७३ की ज़ंजीर वाली घिसीपिटी थी. इस कहानी पर वह बढ़िया स्क्रीनप्ले बनवा कर नयापन ला सकते थे. मगर, स्क्रीनप्ले राइटर सुरेश नायर पुरानी ज़ंजीर से आगे नहीं सोच सके. अलबत्ता, माही गिल के किरदार से अश्लीलता भरने की कोशिश ज़रूर की गयी. देखा जाए तो अपूर्व लाखिया अमिताभ बच्चन से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने पहले ही यह मान लिया कि अमिताभ बच्चन के किरदार को दूसरा कोई नहीं कर सकता है. इसलिए, उन्होंने अपना सबसे बेहतर चुनाव रामचरन को लिया तो लेकिन, उनके साथ कोई मेहनत नहीं की. ऐसा लगा जैसे साउथ के इस सुपरस्टार को कुछ भी करते रहने की छूट दे दी गयी थी. अपूर्व ने रामचरन को इंस्पेक्टर विजय खन्ना के किरदार में ढालने की कोई कोशिश नहीं की. रामचरन के हावभाव और चाल ढाल पुलिस वाले बिलकुल नहीं लगे. हालाँकि, उन्होंने खुद के सक्षम एक्टर होने का प्रमाण दिया. अपूर्व ने संजय दत्त को महत्त्व देते हुए रामचरन के किरदार को कर दिया. एक पल को यह नहीं सोचा कि हिंदी दर्शक हीरो को हीरो बनाते देखना चाहता है. संजय दत्त को महत्त्व देने में अपूर्व यह नहीं याद रख सके कि अगर संजय में दम होता तो वह अपनी फिल्म पोलिसगिरी को हिट करा ले गए होते। माला के किरदार में प्रियंका चोपड़ा ने दम भरने की कोशिश ज़रूर कि उनका आइटम पिंकी झटके दार भी था. मगर बेदम लेखन ने प्रियंका को भी बेदम कर दिया. आयल माफिया बना तेजा का चरित्र प्रकाश राज कर रहे थे. लेकिन, समझ नहीं आया कि उन्हें कॉमिक टच देने की क्या ज़रुरत पद गयी थी. साउथ की फिल्मों में रामचरण के अपोजिट विलेन खूंखार होता है और इसे प्ले करने वाला अभिनेता लाउड एक्टिंग करता है. निश्चित रूप से माही गिल ने अश्लीलता का दामन थाम, लेकिन वह सेक्सी नहीं लग सकीं। संजय दत्त जब आते हैं, अपनी पंच लाइनों से तालियाँ बटोर डालते हैं.
फिल्म में निर्देशक अपूर्व लाखिया, स्क्रीनप्ले राइटर सुरेश नायर ने अपना काम अच्छी तरह से अंजाम नहीं दिया. उनकी इस गलती का खामियाजा ज़ंजीर २.० भोगेगी ही, बेचारे रामचरन के माथे पर असफलता का दाग भी लग गया है. फिल्म संगीत के लिहाज से भी कमज़ोर है. एडिटर चिन २ सिंह फिल्म एडिटिंग में चिंटू ही साबित होते हैं.
यह फिल्म सिंगल स्क्रीन ऑडियंस के लिए थी. यह ऑडियंस फिल्म देखने भी गया. लेकिन बाहर निकला निराश हो कर. ऐसे निराश दर्शक की प्रतिक्रिया काफी खतरनाक होती है. इसलिए कोई शक नहीं अगर बॉक्स ऑफिस पर ज़ंजीर ज़ल्दी टूट जाये. अफ़सोस रामचरन तेजा।
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