रणबीर कपूर की फिल्म बेशरम की, सलमान खान की फिल्म दबंग से तुलना करना बेमानी होगी। सलमान खान को लेकर, उनकी लोकप्रिय इमेज के हिसाब से फिल्में बनायीं जाती हैं। रणबीर कपूर की इमेज सलमान खान की इमेज से बिल्कुल अलग है। या यह कह सकते हैं कि रणबीर कपूर खुद को एक्टर स्टार के बतौर प्रस्तुत करना चाहते हैं। सलमान खान को अभी एक्टिंग आना बाकी हैं। उनके पास मैनरिज़म है बस। इस लिहाज से दबंग और बेशरम की तुलना तो बिल्कुल भी नहीं की जा सकती। दबंग खालिस एक्शन फिल्म थी, बेशरम साठ के दशक की छौंक वाली हास्य नायक वाली फिल्म। अलबत्ता इन दोनों फिल्मों के निर्देशक अभिनव सिंह कश्यप के काम की तुलना ज़रूर की जा सकती है। जब अभिनव ने सलमान खान के साथ फिल्म दबंग बनाई थी, तब उन के काम की काफी प्रशंसा की गयी थी। उन्होने सलमान खान को बिल्कुल नयी इमेज में ढाला था। हल्की मूंछों वाला चुलबुल पांडे हिट हो गया। इसी दौरान अभिनव, सलमान और फिल्म के निर्माता अरबाज़ खान के बीच के मतभेद भी सामने आए। लगा कि सलमान खान और उनके भाई अभिनव को फिल्म की सफलता का थोड़ा श्रेय भी नहीं देना चाहते। वहीं, अभिनव दबंग को खुद का चमत्कार समझ रहे थे। अरबाज़ ने बाद में बिना अभिनव के और सलमान खान को लेकर इस फिल्म का सेकुएल दबंग 2 हिट करवा दिया। इसलिए, पूरी निगाहें बेशरम पर थी कि अभिनव बेशरम से साबित करेंगे कि दबंग की सफलता उनके विजन की सफलता थी। लेकिन, आज जब कि बेशरम रिलीस हो चुकी है, यह कहा जा सकता है कि अभिनव कश्यप बिल्कुल साधारण फिल्मकार हैं। उन्होने न केवल पुरानी धुरानी साठ के दशक वाली, हीरोइन से एक तरफा प्यार करने वाले टपोरी चोर की कहानी ली है, बल्कि, उसे भी उसी पुराने ढर्रे पर फिल्माया है। कहाँ नज़र आता है आजकल ऐसा चोर। रणबीर के किरदार बबली द्वारा पहने गए भयंकर रंगीन शर्ट और पैंट तथा उस पर बेहूदा सा चश्मा और स्कार्फ, कोफ्त पैदा करता है। अब तो रणबीर की तरह सड़क छाप गुंडे तक नहीं रहते। दर्शकों में खीज पैदा करने वाले हीरो से हीरोइन पटे तो कैसे और पटे भी तो दर्शकों के गले से कैसे उतरे। कोढ़ में खाज कहिए या करेले पर नीम चढ़ा कहिए, फिल्म की घटिया स्क्रिप्ट और स्क्रीन प्ले ने सब गुड गोबर कर दिया। क्योंकि, कहानी तो दबंग की भी घटिया थी। मगर कथा पटकथा ने सब सम्हाल लिया था। इस मामले में राजीव बरनवाल के साथ अभिनव कश्यप बिल्कुल फ़ेल साबित होते हैं। वह एक भी सीन ऐसा नहीं लिख पाये, जिसे देख कर दिल में उत्साह पैदा हो। अभिनव ने फिल्म में आधा दर्जन गीतों की लाइन लगा दी है। लेकिन, संगीतकार ललित पंडित केवल लव की घंटी गीत को ही कर्णप्रिय बना पाये हैं। बाकी गीत बस ठीक ठाक ही हैं। फिल्म के संपादक प्रणव धीवर को कैंची का प्रयोग करना चाहिए था, लेकिन वह कैंची केवल हाथ में पकड़े रहे बस। फिल्म की कहानी की तरह फिल्म के संवाद भी बासी हैं। मधु वन्नीएर का कमेरा चटख रंगो को समेटने में लगा रहा। शाम कौशल के स्टंट बढ़िया बने हैं।
बेशरम रणबीर कपूर के स्टारडम को ज़ोर का झटका दे सकती है। यह जवानी हे दीवानी की सौ करोडिया सफलता के बाद रणबीर बड़े हीरो बनने के जो सपने देख रहे होंगे, बेशरम से उन्हे नुकसान पहुंचेगा । पल्लवी शारदा को दर्शक माइ नेम इज खान, दस तोला, लव ब्रेक अप्स और ज़िंदगी में देख चुके हैं। वह रणबीर से उम्र में बड़ी लगती हैं। वह कहीं प्रियंका चोपड़ा की झलक भी देती हैं। अब यह कहना ज़रा मुश्किल हे कि जावेद जाफरी को अभिनव ने बर्बाद किया या जावेद ने खुद ही खुद को चोटिल कर लिया। वह लाउड अभिनय करने के बावजूद जोकर से अधिक नहीं लगे। फिल्म का बड़ा आकर्षण ऋषि कपूर और नीतू सिंह कपूर की जोड़ी हो सकती थी। लेकिन, यह दोनों रियल लाइफ पति पत्नी भी जम नहीं सके। बमुश्किल तमाम उन्हे देख कर हंसी आती हे। फिल्म में उभर कर आते हैं रणबीर के दोस्त टीटू के रूप में अभिनेता अमितोष नागपाल। वह बेहद सहज अभिनय करते हैं। हिन्दी फिल्मों में हास्य अभिनेता को वह एक दर्जा दिलवा सकते हैं।
फिल्म का एक संवाद 'न सम्मान का मोह, न अपमान का भय' अभिनव कश्यप पर मुफीद बैठता हे। क्योंकि, उन्होने फिल्म ही ऐसी बनायी ।
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