पिछले दिनों अनुराग कश्यप और एकता कपूर के साथ बॉलीवुड के तमाम सितारे क्रिएटिव फ्रीडम का रोना रो रहे थे। यह लोग बॉम्बे हाई कोर्ट तक पहुंचे और कोर्ट को अस्थाई सेंसर बोर्ड बना कर फिल्म से सेंसर द्वारा लगाए गए गालियों के कट हटवा लाये। इसलिए उड़ता पंजाब की समीक्षा की शुरुआत फिल्म में गालियों से। खूब गालियाँ है। चरसी भी गाली बक रहे हैं और पुलिस वाले भी। लड़कियाँ औरते भी और आदमी तो बकेंगे ही। पर एक बात समझ में नहीं आई। निर्माताओं ने अंग्रेजी सब टाइटल में अंग्रेजी में Mother Fucker को Mother F***er और Sister Fucker को Sister F***ker कर दिया है। क्यों ? अंग्रेजी में माँ को चो... में परेशानी क्यों हुई कश्यप और चौबे को !
जहाँ तक पूरी उड़ता पंजाब की बात है, इसे फिल्म के फर्स्ट हाफ, अलिया भट्ट और दिलजीत दोसांझ के बढ़िया अभिनय के लिए देखा जा सकता है। अलिया ने बिहारन मजदूरनी और दिलजीत दोसांझ ने एक सब इंस्पेक्टर के रोल को बखूबी जिया है। शाहिद कपूर के लिए करने को कुछ ख़ास नहीं था। अनुराग कश्यप ने उन्हें स्टार स्टेटस दिलाने के लिए साइन किया होगा। करीना कपूर बस ठीक हैं।
अभिषेक चौबे ने अपने निर्देशन के लिए फिल्म की पटकथा सुदीप शर्मा के साथ खुद लिखी है। मध्यांतर से पहले फिल्म पंजाब के युवाओं में ड्रग्स के चलन, पुलिस भ्रष्टाचार को बखूबी दिखाती है। लेकिन, फिल्म में सभी डार्क करैक्टर देख कर पंजाब के प्रति निराशा होती है। पता नहीं कैसे उड़ता पंजाब की यूनिट पंजाब में फिल्म शूट कर पाई! इंटरवल के बाद अभिषेक चौबे की फिल्म से पकड़ छूट जाती है। पूरी फिल्म एक बहुत साधारण थ्रिलर फिल्म की तरह चलती है। लेखक के लिए पंजाब की ड्रग समस्या का हल बन्दूक ही लगाती है। क्या ही अच्छा होता अगर दिलजीत दोसांझ और करीना कपूर के करैक्टर अख़बार, चैनलों और अदालतों के द्वारा पंजाब के ड्रग माफिया का सामना करते। लेकिन, अनुराग कश्यप इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते। संभव है कि लेखक जोड़ी की कल्पनाशीलता आम मसाला फिल्म लिखने से आगे नहीं बढ़ पाई हो। फिल्म के कुछ दृश्य सचमुच स्तब्ध करने वाले हैं। मसलन, अलिया भट्ट के करैक्टर को नशीले इंजेक्शन लगा लगा कर बलात्कार करने, ड्रग फैक्ट्री में नशीली दवाओं के निर्माण, करीना कपूर के करैक्टर की हत्या, आदि के दृश्य। लेकिन, करीना कपूर की हत्या के बाद फिल्म हत्थे से उखड जाती है। अभी तक सबूत जुटा रहा दिलजीत दोसांझ का करैक्टर एंग्री यंग मैन बन कर अपनो का ही खून बहा देता।
अनुराग कश्यप एंड कंपनी फिल्म के रशेज देख कर जान गई थी कि फिल्म में बहुत जान नहीं है। इसलिए, गालियों को बनाए रखने का शोशा छोड़ा। कोई शक नहीं अगर सेंसर बोर्ड भी इस खेल में शामिल हो गया हो। इसके एक सदस्य अशोक पंडित तो खुला खेल खेल रहे थे।
सुदीप शर्मा के संवाद ठीक ठाक है। पंजाबी ज्यादा है। अंग्रेजी सब टाइटल की ज़रुरत समझ में नहीं आई। राजीव रवि के कैमरा और मेघा सेन की कैंची ने अपना काम बखूबी किया है।
जहाँ तक पूरी उड़ता पंजाब की बात है, इसे फिल्म के फर्स्ट हाफ, अलिया भट्ट और दिलजीत दोसांझ के बढ़िया अभिनय के लिए देखा जा सकता है। अलिया ने बिहारन मजदूरनी और दिलजीत दोसांझ ने एक सब इंस्पेक्टर के रोल को बखूबी जिया है। शाहिद कपूर के लिए करने को कुछ ख़ास नहीं था। अनुराग कश्यप ने उन्हें स्टार स्टेटस दिलाने के लिए साइन किया होगा। करीना कपूर बस ठीक हैं।
अभिषेक चौबे ने अपने निर्देशन के लिए फिल्म की पटकथा सुदीप शर्मा के साथ खुद लिखी है। मध्यांतर से पहले फिल्म पंजाब के युवाओं में ड्रग्स के चलन, पुलिस भ्रष्टाचार को बखूबी दिखाती है। लेकिन, फिल्म में सभी डार्क करैक्टर देख कर पंजाब के प्रति निराशा होती है। पता नहीं कैसे उड़ता पंजाब की यूनिट पंजाब में फिल्म शूट कर पाई! इंटरवल के बाद अभिषेक चौबे की फिल्म से पकड़ छूट जाती है। पूरी फिल्म एक बहुत साधारण थ्रिलर फिल्म की तरह चलती है। लेखक के लिए पंजाब की ड्रग समस्या का हल बन्दूक ही लगाती है। क्या ही अच्छा होता अगर दिलजीत दोसांझ और करीना कपूर के करैक्टर अख़बार, चैनलों और अदालतों के द्वारा पंजाब के ड्रग माफिया का सामना करते। लेकिन, अनुराग कश्यप इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते। संभव है कि लेखक जोड़ी की कल्पनाशीलता आम मसाला फिल्म लिखने से आगे नहीं बढ़ पाई हो। फिल्म के कुछ दृश्य सचमुच स्तब्ध करने वाले हैं। मसलन, अलिया भट्ट के करैक्टर को नशीले इंजेक्शन लगा लगा कर बलात्कार करने, ड्रग फैक्ट्री में नशीली दवाओं के निर्माण, करीना कपूर के करैक्टर की हत्या, आदि के दृश्य। लेकिन, करीना कपूर की हत्या के बाद फिल्म हत्थे से उखड जाती है। अभी तक सबूत जुटा रहा दिलजीत दोसांझ का करैक्टर एंग्री यंग मैन बन कर अपनो का ही खून बहा देता।
अनुराग कश्यप एंड कंपनी फिल्म के रशेज देख कर जान गई थी कि फिल्म में बहुत जान नहीं है। इसलिए, गालियों को बनाए रखने का शोशा छोड़ा। कोई शक नहीं अगर सेंसर बोर्ड भी इस खेल में शामिल हो गया हो। इसके एक सदस्य अशोक पंडित तो खुला खेल खेल रहे थे।
सुदीप शर्मा के संवाद ठीक ठाक है। पंजाबी ज्यादा है। अंग्रेजी सब टाइटल की ज़रुरत समझ में नहीं आई। राजीव रवि के कैमरा और मेघा सेन की कैंची ने अपना काम बखूबी किया है।
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