६ नवंबर १९६४ को
राजश्री प्रोडक्शन्स से एक फिल्म दोस्ती रिलीज़ हुई थी। सत्येन बोस निर्देशित यह फिल्म एक बांगला फिल्म
'ललू-भुलु' का हिंदी रीमेक थी। इस फिल्म से दो नए चहरे सुधीर कुमार और सुशील
कुमार का हिंदी दर्शकों से परिचय हुआ था।
सुधीर कुमार ने अंधे लडके मोहन की भूमिका की थी, जो सडकों पर गीत गा कर अपने लंगड़े दोस्त रामू को
पढ़ाना चाहता है। रामू की भूमिका सुशील
कुमार ने की थी। दोस्ती अभिनेता संजय खान
की डेब्यू फिल्म थी। फिल्म में मोहन की
नर्स बहन और संजय खान की प्रेमिका की भूमिका करने वाली मराठी एक्ट्रेस उमा राव की
भी यह पहली फिल्म थी। बेबी फरीदा ने एक
बीमार बच्ची और रामू और मोहन की दोस्त का किरदार किया था। बेबी फरीदा अब बड़ी हो कर दादी बन गई हैं। उन्हें टीवी और फिल्मों में आज भी देखा जा सकता
है। लेकिन, सबसे ज़्यादा दिलचस्प है दोनों अंधे और लंगड़े
लड़कों का किरदार करने वाले लड़कों के बारे में।
जब फिल्म रिलीज़ हुई और बड़ी हिट साबित हुई तो उस समय यह अफवाह उडी की इन
दोनों का किसी बड़े एक्टर ने खुन्नस में मर्डर करवा दिया, क्योंकि यह उससे ज़्यादा लोकप्रिय हो गए थे। यह भी अफवाह थी कि यह सड़क दुर्घटना में मारे
गए। लेकिन, यह सब अफवाहे थी। अलबत्ता इन दोनों का करियर लंबा नहीं चल
सका। सुशील कुमार को फिल्मों से मोह-भंग
हो गया था। क्योंकि, फिल्म निर्माता इन
दोनों का स्क्रीन टेस्ट लेते। पर फाइनल
कभी नहीं कर पाते। राजश्री के ताराचंद बड़जात्या इन दोनों को लेकर अगली फिल्म बनाना
चाहते थे। इन माहवार तनख्वाह भी दी जा रही
थी। लेकिन, तभी सुधीर कुमार को एवीएम की फिल्म लाडला का ऑफर
मिला। सुधीर ने इस फिल्म को राजश्री प्रोडक्शन के साथ कॉन्ट्रैक्ट के बावजूद
स्वीकार कर लिया। इसके लिए सुधीर को हर्जाना भी देना पड़ा। इससे नाराज़ हो कर ताराचंद बड़जात्या ने वह
प्रोजेक्ट ही ख़त्म कर दिया। हालाँकि, सुधीर कुमार ने बाद में संत ज्ञानेश्वर, लाडला, जीने की राह, आदि फ़िल्में की। लेकिन, तब तक सुशील कुमार का फिल्मों से मोह भंग हो
गया। उन्होंने एयरलाइन्स ज्वाइन कर ली। दुखद
घटना हुई सुधीर कुमार के साथ। हुआ यह कि
१९९३ के बॉम्बे बम ब्लास्ट के बाद बॉम्बे में कर्फ्यू लगा हुआ था। सुधीर कुमार मुर्गा खा रहे थे कि एक हड्डी उनके
गले में फंस गई। उनका गला बुरी तरह से घायल हो गया। कर्फ्यू लगा होने के कारण
उन्हें इलाज भी नहीं मिल पाया। कुछ दिनों
बाद उनकी मृत्यु हो गई। सुशील कुमार ज़रूर स्वस्थ एवं सानन्द अपनी रिटायरमेंट की
ज़िंदगी जी रहे हैं।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Saturday 4 June 2016
अंधे और लंगड़े लड़कों की 'दोस्ती'
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हस्तियां
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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