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Tuesday, 21 August 2018

आदिल हुसैन को नार्वे का श्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म पुरस्कार

आदिल हुसैन अपने पुरस्कार के साथ 
भारतीय फिल्म एक्टर आदिल हुसैन को, नार्वे की फिल्म व्हाट विल पीपल से के लिए श्रेष्ठ अभिनेता का नार्वे का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला है।

निर्देशक-लेखक इरम हक़ के जीवन से प्रेरित इस फिल्म की कहानी नॉर्वे में रह रहे एक प्रवासी पाकिस्तानी परिवार की है, जिसकी बेटी दो जीवन जी रही है।

जब वह घर से बाहर होती है तो एक नार्वे की लड़की की तरह मौजमस्ती कर रही होती है। घर  में वह ठेठ पाकिस्तानी लड़की होती है।

उस १६ साल की लड़की की दो दुनिया उस समय टकरा जाती हैं, जब उसका पिता उसे कमरे में पुरुष मित्र के साथ देख लेता है।

उसे पाकिस्तान में, उसके रूढ़िवादी संयुक्त परिवार में भेज दिया जाता है, जहाँ बंधन है, परिवार की निगाहें हैं।

फिल्म में इस १६ साल की लड़की के पिता की भूमिका आदिल हुसैन ने की है। आदिल हुसैन को इसी भूमिका के लिए श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला है।

गोलपाड़ा असम के इस अभिनेता को, २०१२ में रिलीज़ हॉलीवुड फिल्म लाइफ ऑफ़ पाइ और श्रीदेवी की वापसी फिल्म इंग्लिश विंग्लिश से पहचाना गया।

हालाँकि, वह उससे पहले तक कमीने, इश्कियां, रिलक्टेंट फ़ण्डामेंटालिस्ट और एजेंट विनोद जैसी फ़िल्में कर चुके थे।

उन्होंने, अनफ्रीडम, जेड प्लस, मैं और चार्ल्स, एंग्री इंडियन गॉडेस, मुक्ति भवन, द वायलिन प्लेयर, आदि फिल्मों से अपनी पहचान पुख्ता बनाई हैं।

आदिल हुसैन, केवल भारतीय फिल्मों तक सीमित नहीं। उनकी पहचान विदेश में भी है। लाइफ ऑफ़ पाइ और व्हाट विल पीपल से इक्का दुक्का उदाहरण नहीं।


आदिल हुसैन ने अपने पुरस्कार अपने नगर गोलपाड़ा और असम को समर्पित किया।  


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Friday, 9 February 2018

पर्पल पेबल पिक्चर्स की पहली ​​असमिया फिल्म भोगा खिरकी

पर्पल​ पेबल पिक्चर्स ​​पहली ​असमिया फिल्म '​​भोगा खिरकी​ ('ब्रोकन विंडो') के निर्माण के लिए तैयार हैं। बैनर ​की संस्थापक, प्रियंका चोपड़ा और डॉ​​. मधु चोपड़ा ने ​जब से ​क्षेत्रीय सिनेमा में प्रवेश किया, ​तभी से सिनेमा के साथ उनकी रचनात्मक क्षमता​ को वे​ अंतरराष्ट्रीय​ स्तर पर​ मान्यता ​दिलाने में जुटे है । मराठी फिल्म वेंटीलेटर​ ​के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जित करने और टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सिक्किमी फिल्म​ का सफल प्रीमियर करने पश्चात ​करके उत्साहित चोपड़ा जोड़ी पद्म भूषण विजेता फिल्म निर्देशक जानू बरुआ के साथ पहली असमी फिल्म बना रही हैं। भोगा खिरकी की ​कहानी के केंद्र में एक महिला है, ​जिसकी जिंदगी में तीन लोगों के बीच वैचारिक और अस्तित्व के संघर्ष के कारण ​​उथल-पुथल शुरू हो गई है।  यह तीन लोग उसके पितापति और एक अजनबी​ है। भोगा खिरकी ​की कहानी उत्तर-पूर्व में एक ​अनछुए विषय ​पर है। डॉ​ ​चोपड़ा ​कहती हैं, "हम एक​ होम प्रॉडकशन होने के नाते चाहते है की पूरी ​दुनिया ​​में असमिया फिल्म, ​भोगा खिरकी​​ दिखाई जाये। ​उत्तर-पूर्वी राज्य हमारे देश में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और हम​  उनकी संस्कृति के बारे में​ ​​बहुत कम  जानते हैं। मैं इस फिल्म के लिए बहुत उत्साहित हूँ। ​मुझे ​जानू बरुआ जैसी सिनेमा​ की बड़ी​ प्रतिभा के साथ सहयोग करने पर गर्व है। " जानू बरुआ के विषय में यह बताना उपयुक्त होगा कि वह, भभेंद्र नाथ सैकिआ के साथ असमी कला सिनेमा के स्तम्भ हैं।  उनकी फिल्मों ने ११ राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते हैं।  हिंदी फिल्म दर्शकों ने फिल्म मैंने गांधी को नहीं मारा फिल्म से गांधी के सिद्धांतों को समझने की कोशिश की थी। जानू ने हिंदी फिल्म मुंबई कटिंग की एक कहानी अनजाने दोस्त का निर्देशन भी किया है।  उनकी एक हिंदी फिल्म हर पल रिलीज़ नहीं हो सकी है।  जानू बरुआ को भारत सरकार ने २०१५ में पद्म भूषण सम्मान दिया था। 



 

Monday, 23 May 2016

हिंदी फिल्म "पूरब की आवाज़" की पहली झलक

हिंदी फिल्म "पूरब की आवाज़" की पहली झलक अत्यन्त शानदार तरीके से २० मई २०१६ को गोरेगाव स्तिथ कार्निवाल सिनेमा के अनमोल बैंक्वेट में संपन्न हुआ, साथ ही इसका संगीत विवादित फिल्मकार कमाल राशिद खान (के आर के) द्वारा रिलीज़ किया गया। इस अवसर पर फिल्म से जुड़े सरे कलाकार व तकनिकी सम्भंदित  अलावा डिस्ट्रीब्यूटर व मीडिया के लोग मौजूद थे, जिन्होंने फिल्म के नए दृष्टिकोण के वजह से काफी सराहना की। फिल्म रिलीज़ बय महमूद अली, पेन न कैमरा इंटरनेशनल ऑन ५ अगस्त २०१६।
फिल्म "पूरब की आवाज़" की एक झलक।
फिल्म की कहानी १९४२ की एक देशभक्त क्रन्तिकारी लड़की 'वीरांगना कनकलता' के जीवन पर आधारित है।  कनकलता ने १६ वर्ष की उम्र में २० सितम्बर १९४२ में देश के लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई। अब तक भगत सिंह, मंगल पांडेय जैसे शहीदों पर कई फिल्म बनी है, पर आसाम की ोस वीरांगना पर यह प्रथम फिल्म है।
फिल्म के निर्माता है लोकनाथ डेका, कथाकार हैं चंद्रा मुदोई, एक्सिक्यूटिव निर्माता जमाल अहमद रो, संगीत डा हितेश बोरुाह, अजय फुकन एवं तपन ककति, नृत्य नबा कुमार दास।   फिल्म के कलाकार हैं, निपुण गोस्वामी, उर्मिला महानता, देबसिस बरठकुर, डॉ तपन शर्मा, मोनीमरा बोरा, रीना बोरा व अन्य।

एल पी के जी फिल्म्स प्रोडक्शन, मशहूर वितरण कम्पनी 'पेन-एन-कैमरा इंटरनेशनल' के महमूद अली के साथ मिलकर लगभग १००० सिनेमा में इसे रिलीज कर रहे हैं, ५ अगस्त २०१६ को यह रिलीज़ होगी। संपूर्ण भारत में मुंबई, दिल्ली-उत्तर प्रदेश, कोलकाता, बिहार, सी पी, सी आई, राजस्थान व उड़ीसा और आसाम में  प्रदर्शित होगी।

Tuesday, 22 September 2015

असम से 'पूरब की आवाज़'

असम की राजधानी गुवाहाटी में, १९ जनवरी को कनकलता की पुण्य तिथि मनाई गई।  असम की इस बेटी को, जब वह मात्र १४ साल की थी, ब्रितानी सरकार ने उसके तिरंगा फहराते समय गोली मार दी थी।  इस छोटी बच्ची के बलिदान को पूरे देश में, जहाँ हर दिन बलिदानियों की याद की जाती है, शायद ही कोई जानता हो। इसे देखते हुए असम के फिल्म निर्माता लोकनाथ देखा एक फिल्म 'पूरब की आवाज़' का निर्माण कर रहे है। लोकनाथ को लगता है कि कनकलता के बलिदान को देश को बताने की ज़रुरत है।  इसीलिए पूरब की बेटी को हिंदी में बनाया जा रहा है।  फिल्म का निर्देशन चन्द्र मुदोइ कर रहे हैं।  असम की फिल्मों के बारे में देश में जानकारी बहुत कम है। जबकि, वहां बेहद सशक्त विषयों पर फिल्मों का निर्माण किया जाता रहा है।  खास तौर पर महिला सशक्तिकरण पर फिल्मों की कोई कमी नहीं।  दरअसल, १९३५ में, जब असमी फिल्म उद्योग की शुरुआत हुई थी, तब पहली फिल्म 'जोयमोती' अहोम की राजकुमारी सोती जोयमोती की राजनीतिक कुशलता पर फिल्म थी।  यह फिल्म १० मार्च १९३५ को रिलीज़ हुई थी। भबेन्द्र नाथ सैकिया और जाह्नू बरुआ अपनी सशक्त संदेशात्मक फिल्मों के कारण ही जाने जाते हैं।  जाह्नू बरुआ की फिल्म 'मैंने गांधी को नहीं मारा'  को काफी सराहना मिली । हिंदी दर्शक अभिनेत्री बिंदिया गोस्वामी को पहचानते हैं।  लेकिन, वह शायद ही जानते हों कि वह असम से थी। संजयलीला भंसाली की फिल्म 'गुज़ारिश' में असम की सुपर मॉडल मोनिकांगना दत्ता की ह्रितिक रोशन की पूर्व प्रेमिका की सशक्त भूमिका थी। सैकिया की फिल्मों संध्या राग, अनिर्बान, अग्निस्नान, कोलाहल, सारथी, अबर्तन और इतिहास को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में रजत कमल मिले। १९९९ में उनकी हिंदी फिल्म 'काल संध्या' नार्थ ईस्ट में विद्रोह पर थी।  इसी कड़ी लोकनाथ देखा आगे बढ़ाना चाहते हैं।  वह पूरब की आवाज़ के अलावा एक दूसरी फिल्म 'ऐपः फुलिल ऐपः सरिल' असमी में है।  लेकिन, यह दोनों फ़िल्में ही महिलाओं पर केंद्रित हैं।  ऐपः फुलिल ऐपः सरिल आज की पीढ़ी की बेटियों के संघर्ष पर आधारित होगी। इन दोनों फिल्मों में निपोन गोस्वामी, उर्मिला महंता, देबाशीष बरथकुर, मणिमाला, तपन शर्मा, रीना बोरा, आदि कर रहे हैं।  असमी सिनेमा के इस उत्साह को देखते हुए शेष भारत के लोग तैयार हो जाएँ 'पूरब की बेटी' का स्वागत करने के लिए।