Tuesday, 22 September 2015

असम से 'पूरब की आवाज़'

असम की राजधानी गुवाहाटी में, १९ जनवरी को कनकलता की पुण्य तिथि मनाई गई।  असम की इस बेटी को, जब वह मात्र १४ साल की थी, ब्रितानी सरकार ने उसके तिरंगा फहराते समय गोली मार दी थी।  इस छोटी बच्ची के बलिदान को पूरे देश में, जहाँ हर दिन बलिदानियों की याद की जाती है, शायद ही कोई जानता हो। इसे देखते हुए असम के फिल्म निर्माता लोकनाथ देखा एक फिल्म 'पूरब की आवाज़' का निर्माण कर रहे है। लोकनाथ को लगता है कि कनकलता के बलिदान को देश को बताने की ज़रुरत है।  इसीलिए पूरब की बेटी को हिंदी में बनाया जा रहा है।  फिल्म का निर्देशन चन्द्र मुदोइ कर रहे हैं।  असम की फिल्मों के बारे में देश में जानकारी बहुत कम है। जबकि, वहां बेहद सशक्त विषयों पर फिल्मों का निर्माण किया जाता रहा है।  खास तौर पर महिला सशक्तिकरण पर फिल्मों की कोई कमी नहीं।  दरअसल, १९३५ में, जब असमी फिल्म उद्योग की शुरुआत हुई थी, तब पहली फिल्म 'जोयमोती' अहोम की राजकुमारी सोती जोयमोती की राजनीतिक कुशलता पर फिल्म थी।  यह फिल्म १० मार्च १९३५ को रिलीज़ हुई थी। भबेन्द्र नाथ सैकिया और जाह्नू बरुआ अपनी सशक्त संदेशात्मक फिल्मों के कारण ही जाने जाते हैं।  जाह्नू बरुआ की फिल्म 'मैंने गांधी को नहीं मारा'  को काफी सराहना मिली । हिंदी दर्शक अभिनेत्री बिंदिया गोस्वामी को पहचानते हैं।  लेकिन, वह शायद ही जानते हों कि वह असम से थी। संजयलीला भंसाली की फिल्म 'गुज़ारिश' में असम की सुपर मॉडल मोनिकांगना दत्ता की ह्रितिक रोशन की पूर्व प्रेमिका की सशक्त भूमिका थी। सैकिया की फिल्मों संध्या राग, अनिर्बान, अग्निस्नान, कोलाहल, सारथी, अबर्तन और इतिहास को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में रजत कमल मिले। १९९९ में उनकी हिंदी फिल्म 'काल संध्या' नार्थ ईस्ट में विद्रोह पर थी।  इसी कड़ी लोकनाथ देखा आगे बढ़ाना चाहते हैं।  वह पूरब की आवाज़ के अलावा एक दूसरी फिल्म 'ऐपः फुलिल ऐपः सरिल' असमी में है।  लेकिन, यह दोनों फ़िल्में ही महिलाओं पर केंद्रित हैं।  ऐपः फुलिल ऐपः सरिल आज की पीढ़ी की बेटियों के संघर्ष पर आधारित होगी। इन दोनों फिल्मों में निपोन गोस्वामी, उर्मिला महंता, देबाशीष बरथकुर, मणिमाला, तपन शर्मा, रीना बोरा, आदि कर रहे हैं।  असमी सिनेमा के इस उत्साह को देखते हुए शेष भारत के लोग तैयार हो जाएँ 'पूरब की बेटी' का स्वागत करने के लिए।


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