बॉलीवुड को रील लाइफ में भी फ्लर्टिंग रास आती है। थ्रिलर फिल्मों के फन में उस्ताद अब्बास-मुस्तान की जोड़ी इस बार फ्लर्टिंग में हाथ आजमा रही है। इस जोड़ी की फिल्म 'किस किस को प्यार करू' कहानी है चार नाम शिव, राम, किशन और कुमार वाले एक ही व्यक्ति की है, जिसकी एक ही अपार्टमेंट में रहने वाली तीन बीवियां है। अब होता क्या है कि वह तीन औरतों के होते हुए भी चौथी से फ़्लर्ट करने लगता है। यह बॉलीवुड स्टाइल की फ्लर्टिंग है कि एक ही आदमी चार चार औरतों से फ़्लर्ट करता है।
फ्लर्टिंग कर बुरे फंसे
बॉलीवुड फिल्मों में फ्लर्टिंग के रूप अनेक है। कॉमेडी के लिहाज़ से एक आदमी दो या तीन औरते और इन दो या तीन औरतों के बीच फंसे आदमी की बेचारगी, दर्शकों को हंसा हंसा कर लोट पोट कर देती है। स्टैंडअप कॉमेडियन कपिल शर्मा की फिल्म 'किस किस को प्यार करू' के केंद्र में भी हास्य है। ऎसी फिल्में इस प्रकार के अनैतिक संबंधों को हंसने हंसाने के लिए मान्यता देती हैं। कॉमेडी फिल्मों के बादशाह गोविंदा साजन चले ससुराल और सैंडविच में दो बीवियों के बीच फंसे पति बने थे। दर्शक उनकी बेचारगी पर हँसता है। लेकिन, अंत में उनकी दोनों रील लाइफ बीवियां उनकी शादियों को मंज़ूरी दे देती हैं। लेकिन, क्योंकि, मैं झूठ नहीं बोलता और डू नॉट डिस्टर्ब में गोविंदा उस समय बुरे फंसते हैं, जब वह बीवी को छोड़ कर दूसरी औरत से रोमांस करने लगते हैं और रंगे हाथों पकड़े जाते हैं । आखिर में उन्हें अच्छे पति की तरह अपने रोमांस से तौबा करनी पड़ती है। रियल लाइफ में उनके अच्छे दोस्त सलमान खान भी बीवी नंबर १ में बीवी करीना कपूर को छोड़ कर सुष्मिता सेन से प्रेम की पींगे मारने लगते हैं। अब यह बात दीगर है कि गोविंदा की तरह उन्हें भी अपनी रील लाइफ प्रेमिका से तौबा करनी पड़ती है। साजन चले ससुराल के गोविंदा की कहानी की तरह घरवाली बाहरवाली के अनिल कपूर की भी थी। नेपाल घूमने गए अनिल कपूर को रम्भा से शादी करनी पड़ती है। दो बीवियों वाले हीरो की फ़िल्में नायक की हास्यास्पद स्थिति को दर्शाने वाली विशुद्ध कॉमेडी फ़िल्में हैं।
बिरयानी खाने की चाहत
लेकिन, मुसीबत तब होती है जब घरवाली-बाहरवाली फ्लर्टिंग घर की दाल रोटी छोड़ कर बिरयानी का मज़ा लेना बन जाती है। तीन दोस्त विवेक ओबेरॉय, रितेश देशमुख और आफताब शिवदासानी अपनी पत्नियों से ऊबे हुए हैं। आफताब की बीवी तारा शर्मा तो धार्मिक पृवृति की होने के कारण सेक्स के प्रति उदासीन है। इस पर तीनों बहार की बिरयानी का मज़ा लेने निकल पड़ते हैं। इंद्रकुमार की फिल्म मस्ती के यह तीनों लम्पट किरदारों को एक लड़की के कथित मर्डर के अपराध में फंसने के कारण बिरयानी खाने से तौबा करनी पड़ती है। अब यह बात दीगर है कि ग्रैंड मस्ती में यह तीनों किरदार के बार फिर बिरयानी खाने निकल पड़ते हैं। बीवियों के होते हुए फ्लर्टिंग का एक ऐसा ही मसाला नो एंट्री में भी अनीस बज़्मी ने दिखाया था। बाहर की बिरयानी के शौक वाली थीम दर्शकों में हिट हुई।
पति पत्नी और वह
जब पति और पत्नी के बीच दूसरी औरत आती है तो कभी हंसी आती है तो कभी रोना भी। डू नॉट डिस्टर्ब में अनिल कपूर और पति पत्नी और वह में संजीव कुमार कभी खुद को बीमार तो कभी पत्नी को बीमार बता कर दूसरी औरत से सहानुभूति बटोरते हैं। उनका यह प्रयास विशुद्ध रूप से दर्शकों को हंसाता है। लेकिन, इस नायक को उस समय रोना पड़ता है, जब फिल्म की थीम गंभीर हो जाती है। यश चोपड़ा की फिल्म 'दाग' में राजेश खन्ना अपनी दो बीवियों राखी और शर्मीला टैगोर के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं। मासूम में तो नसीरुद्दीन शाह का पहली बीवी से एक बच्चा भी है। पति पत्नी और तवायफ में पति और पत्नी के बीच तवायफ आ जाती है तो बड़ा ड्रामा खड़ा हो जाता है। सिलसिला में पति अपने पहले प्यार में लट्टू हो जाता है। इसी प्रकार की कभी कभी, तमाम फ़िल्में किसी न किसी सन्देश के साथ भावाभिनय के लिए देखी जाने वाली फ़िल्में बन गई थी।
जब बन जाती है दूसरी औरत
महेश भट्ट ने फिल्म अर्थ में दूसरी औरत के जरिये महिला अधिकारों की वकालत की थी। जब पति अपनी पत्नी को छोड़ कर दूसरी औरत के पास चला जाता है तो औरत टूट सी जाती है। लेकिन, अर्थ में महेश भट्ट पत्नी को अपने पैरों पर खड़े होने की सलाह देते हैं। 'आखिर क्यों' की नायिका स्मिता पाटिल भी अपने पति के अवैध सम्बन्धो पर सवाल उठाती है कि पति कैसे अवैध सम्बन्ध रख सकता है, जबकि औरत के लिए यह टैबू है। गुलजार की फिल्म 'इजाज़त' का पति अपनी पूर्व महिला मित्र को भूल नहीं पाता और उससे सम्बन्ध रखता है। इस थीम पर दूसरी बहुत सी फ़िल्में बनी हैं। इन फिल्मों को इनके एक्टर्स का अभिनय मील का पत्थर साबित होता है।
फिसल जाती है औरत !
हिंदी फिल्मों ने औरत को भी फिसलते दिखाया है। यह वह समय था, जब वीमेन लिब का नारा पूरे संसार में गूँज रहा था। इसी दौर में हिंदी फिल्मों की नायिका भी फिसली। एक बार फिर की फिल्म एक्टर सुरेश ओबेरॉय की बीवी दीप्ति नवल पति की उपेक्षा और लम्पटपन के कारण एक पेंटर में अपना सुख ढूढती है। एक पल की शबाना आज़मी का पति फारूख शेख अपने काम में बहुत ज़्यादा व्यस्त रहता है। ऐसी समय में शबाना आज़मी के जीवन में उसका पुरुष मित्र नसीरुद्दीन शाह आता है। दोनों के सम्बन्ध हो जाते हैं। माया मेमसाहब में भी दीपा शाही का डॉक्टर पति अपनी क्लिनिक में बिजी रहता है। माया अपनी निजी ज़िंदगी की बोरियत मिटाने के लिए कम उम्र के शाहरुख़ खान से सम्बन्ध बनाती है। अस्तित्व की तब्बू एक बरसाती रात में अपने संगीत टीचर की बाहों में आ समाती है। इस सम्बन्ध से उनके एक लड़का होता है। काफी साल बाद यह राज खुलता है तो उसका अवैध संबंधों से पैदा बेटा भी उसे निकाल देता है। मर्डर की मल्लिका शेरावत भी पति को धोखा देकर अपने दोस्त से सेक्सुअल रिलेशन बनाती हैं। जिस्म में एक बूढ़े आदमी की औरत बिपाशा बासु एक युवा वकील को अपने शारीरिक जाल में फंसा कर पति की हत्या करवाती है। यह सभी फ़िल्में बोल्ड कथानक, नायिका के सेक्स दृश्यों और चुम्बनों, आदि के कारण चर्चित हुई।
बॉलीवुड में अडल्ट्री थीम पर फिल्मों की भरमार है। बोलडनेस के लिहाज़ से ऐसा कथानक सभी को रास आता है। यह कारण है कि लाइफ इन अ मेट्रो, चितकबरे, ज़हर, सलाम ए इश्क़, हैदर, साहब बीवी और गुलाम, बस एक पल, डार्लिंग, हवस, आदि ढेरों फिल्मों में अवैध सम्बन्ध रखने वाले किरदार नज़र आते हैं। दिलचस्प तथ्य यह कि ज़्यादातर फ़िल्में चर्चित हो जाती हैं और हिट भी।
फ्लर्टिंग कर बुरे फंसे
बॉलीवुड फिल्मों में फ्लर्टिंग के रूप अनेक है। कॉमेडी के लिहाज़ से एक आदमी दो या तीन औरते और इन दो या तीन औरतों के बीच फंसे आदमी की बेचारगी, दर्शकों को हंसा हंसा कर लोट पोट कर देती है। स्टैंडअप कॉमेडियन कपिल शर्मा की फिल्म 'किस किस को प्यार करू' के केंद्र में भी हास्य है। ऎसी फिल्में इस प्रकार के अनैतिक संबंधों को हंसने हंसाने के लिए मान्यता देती हैं। कॉमेडी फिल्मों के बादशाह गोविंदा साजन चले ससुराल और सैंडविच में दो बीवियों के बीच फंसे पति बने थे। दर्शक उनकी बेचारगी पर हँसता है। लेकिन, अंत में उनकी दोनों रील लाइफ बीवियां उनकी शादियों को मंज़ूरी दे देती हैं। लेकिन, क्योंकि, मैं झूठ नहीं बोलता और डू नॉट डिस्टर्ब में गोविंदा उस समय बुरे फंसते हैं, जब वह बीवी को छोड़ कर दूसरी औरत से रोमांस करने लगते हैं और रंगे हाथों पकड़े जाते हैं । आखिर में उन्हें अच्छे पति की तरह अपने रोमांस से तौबा करनी पड़ती है। रियल लाइफ में उनके अच्छे दोस्त सलमान खान भी बीवी नंबर १ में बीवी करीना कपूर को छोड़ कर सुष्मिता सेन से प्रेम की पींगे मारने लगते हैं। अब यह बात दीगर है कि गोविंदा की तरह उन्हें भी अपनी रील लाइफ प्रेमिका से तौबा करनी पड़ती है। साजन चले ससुराल के गोविंदा की कहानी की तरह घरवाली बाहरवाली के अनिल कपूर की भी थी। नेपाल घूमने गए अनिल कपूर को रम्भा से शादी करनी पड़ती है। दो बीवियों वाले हीरो की फ़िल्में नायक की हास्यास्पद स्थिति को दर्शाने वाली विशुद्ध कॉमेडी फ़िल्में हैं।
बिरयानी खाने की चाहत
लेकिन, मुसीबत तब होती है जब घरवाली-बाहरवाली फ्लर्टिंग घर की दाल रोटी छोड़ कर बिरयानी का मज़ा लेना बन जाती है। तीन दोस्त विवेक ओबेरॉय, रितेश देशमुख और आफताब शिवदासानी अपनी पत्नियों से ऊबे हुए हैं। आफताब की बीवी तारा शर्मा तो धार्मिक पृवृति की होने के कारण सेक्स के प्रति उदासीन है। इस पर तीनों बहार की बिरयानी का मज़ा लेने निकल पड़ते हैं। इंद्रकुमार की फिल्म मस्ती के यह तीनों लम्पट किरदारों को एक लड़की के कथित मर्डर के अपराध में फंसने के कारण बिरयानी खाने से तौबा करनी पड़ती है। अब यह बात दीगर है कि ग्रैंड मस्ती में यह तीनों किरदार के बार फिर बिरयानी खाने निकल पड़ते हैं। बीवियों के होते हुए फ्लर्टिंग का एक ऐसा ही मसाला नो एंट्री में भी अनीस बज़्मी ने दिखाया था। बाहर की बिरयानी के शौक वाली थीम दर्शकों में हिट हुई।
पति पत्नी और वह
जब पति और पत्नी के बीच दूसरी औरत आती है तो कभी हंसी आती है तो कभी रोना भी। डू नॉट डिस्टर्ब में अनिल कपूर और पति पत्नी और वह में संजीव कुमार कभी खुद को बीमार तो कभी पत्नी को बीमार बता कर दूसरी औरत से सहानुभूति बटोरते हैं। उनका यह प्रयास विशुद्ध रूप से दर्शकों को हंसाता है। लेकिन, इस नायक को उस समय रोना पड़ता है, जब फिल्म की थीम गंभीर हो जाती है। यश चोपड़ा की फिल्म 'दाग' में राजेश खन्ना अपनी दो बीवियों राखी और शर्मीला टैगोर के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं। मासूम में तो नसीरुद्दीन शाह का पहली बीवी से एक बच्चा भी है। पति पत्नी और तवायफ में पति और पत्नी के बीच तवायफ आ जाती है तो बड़ा ड्रामा खड़ा हो जाता है। सिलसिला में पति अपने पहले प्यार में लट्टू हो जाता है। इसी प्रकार की कभी कभी, तमाम फ़िल्में किसी न किसी सन्देश के साथ भावाभिनय के लिए देखी जाने वाली फ़िल्में बन गई थी।
जब बन जाती है दूसरी औरत
महेश भट्ट ने फिल्म अर्थ में दूसरी औरत के जरिये महिला अधिकारों की वकालत की थी। जब पति अपनी पत्नी को छोड़ कर दूसरी औरत के पास चला जाता है तो औरत टूट सी जाती है। लेकिन, अर्थ में महेश भट्ट पत्नी को अपने पैरों पर खड़े होने की सलाह देते हैं। 'आखिर क्यों' की नायिका स्मिता पाटिल भी अपने पति के अवैध सम्बन्धो पर सवाल उठाती है कि पति कैसे अवैध सम्बन्ध रख सकता है, जबकि औरत के लिए यह टैबू है। गुलजार की फिल्म 'इजाज़त' का पति अपनी पूर्व महिला मित्र को भूल नहीं पाता और उससे सम्बन्ध रखता है। इस थीम पर दूसरी बहुत सी फ़िल्में बनी हैं। इन फिल्मों को इनके एक्टर्स का अभिनय मील का पत्थर साबित होता है।
फिसल जाती है औरत !
हिंदी फिल्मों ने औरत को भी फिसलते दिखाया है। यह वह समय था, जब वीमेन लिब का नारा पूरे संसार में गूँज रहा था। इसी दौर में हिंदी फिल्मों की नायिका भी फिसली। एक बार फिर की फिल्म एक्टर सुरेश ओबेरॉय की बीवी दीप्ति नवल पति की उपेक्षा और लम्पटपन के कारण एक पेंटर में अपना सुख ढूढती है। एक पल की शबाना आज़मी का पति फारूख शेख अपने काम में बहुत ज़्यादा व्यस्त रहता है। ऐसी समय में शबाना आज़मी के जीवन में उसका पुरुष मित्र नसीरुद्दीन शाह आता है। दोनों के सम्बन्ध हो जाते हैं। माया मेमसाहब में भी दीपा शाही का डॉक्टर पति अपनी क्लिनिक में बिजी रहता है। माया अपनी निजी ज़िंदगी की बोरियत मिटाने के लिए कम उम्र के शाहरुख़ खान से सम्बन्ध बनाती है। अस्तित्व की तब्बू एक बरसाती रात में अपने संगीत टीचर की बाहों में आ समाती है। इस सम्बन्ध से उनके एक लड़का होता है। काफी साल बाद यह राज खुलता है तो उसका अवैध संबंधों से पैदा बेटा भी उसे निकाल देता है। मर्डर की मल्लिका शेरावत भी पति को धोखा देकर अपने दोस्त से सेक्सुअल रिलेशन बनाती हैं। जिस्म में एक बूढ़े आदमी की औरत बिपाशा बासु एक युवा वकील को अपने शारीरिक जाल में फंसा कर पति की हत्या करवाती है। यह सभी फ़िल्में बोल्ड कथानक, नायिका के सेक्स दृश्यों और चुम्बनों, आदि के कारण चर्चित हुई।
बॉलीवुड में अडल्ट्री थीम पर फिल्मों की भरमार है। बोलडनेस के लिहाज़ से ऐसा कथानक सभी को रास आता है। यह कारण है कि लाइफ इन अ मेट्रो, चितकबरे, ज़हर, सलाम ए इश्क़, हैदर, साहब बीवी और गुलाम, बस एक पल, डार्लिंग, हवस, आदि ढेरों फिल्मों में अवैध सम्बन्ध रखने वाले किरदार नज़र आते हैं। दिलचस्प तथ्य यह कि ज़्यादातर फ़िल्में चर्चित हो जाती हैं और हिट भी।
No comments:
Post a Comment