सलमान खान के खाते में एक और सौ करोडिया फिल्म 'रेडी' २०११ में रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म के चार साल बाद निर्देशक अनीस बज़्मी एक बार फिर हाज़िर हैं, तो यकीन जानिये आपके लिए हंसने के मौके ही मौके हैं। अनीस बज़्मी ने राजीव कौल के साथ कहानी लिखी है। लेकिन, कहानी कुछ भी नहीं है। २००७ के 'वेलकम' का २०१५ संस्करण। अक्षय कुमार की जगह उनके दोस्त जॉन अब्राहम ने ले ली है। अनीस बज़्मी को कटरीना कैफ के बाद सोनाक्षी सिन्हा नहीं मिली तो श्रुति हासन को ले लिया। मल्लिका शेरावत का किरदार अंकिता श्रीवास्तव के हत्थे चढ़ा है। फ़िरोज़ खान नहीं रहे तो वांटेड भाई बन कर नसीरुद्दीन शाह आ गए। शाइनी आहूजा को चरसी बना कर पेश कर दिया। अक्षय नहीं हैं अनीस बज़्मी ने उनकी सास डिंपल कपाड़िया से काम चला लिया है।
अब बात फिल्म की ! सोचने का टाइम ही नहीं मिला। हँसते हँसते बेहाल। अनीस बज़्मी की आदत है कि वह कभी कभी तो सेट पर आ कर ही स्क्रिप्ट लिखते हैं। उनके सीन यकायक बदल सकते हैं। उन्होंने अपने तीन साथियों राजीव कॉल, राजन अग्रवाल और प्रफुल्ल पारेख के साथ लिखी है। चुन चुन कर सीन लिखे हैं। बेशक कोई सर पैर नहीं ! लेकिन, अनीस की फिल्म में सर पैर क्यों खोजो। हंसों भाई हंसों। फिल्म का हर सीन हंसाता है। एक से बढ़ कर एक हँसी के गोल गप्पे। इन हंसी के गोल गप्पों में राज शांडिल्य ने बढ़िया मसाला पानी मिलाया है। तभी तो हँसते हँसते आँखों से आंसू निकल सकते हैं।
फिल्म के मूड के अनुरूप धूम धड़ाके वाला संगीत है। फिल्म बुरा नहीं लगता। कबीर लाल की फोटग्राफी फिल्म के थ्रिल और यूनाइटेड एमिरेट्स (दुबई और अबु धाबी) की रेगिस्तानी खूबसूरती को बखूबी उभारा है। फिल्म को एडिटर स्टीवन एच बर्नार्ड ने अपने शिकंजे में ऐसा कैसा है कि फिल्म अपने ट्रैक से भटकने नहीं पाती। अरे हाँ ! सुरवीन चावला और संभावना सेठ का एक एक आइटम भी है।
अगर आप इस फिल्म को देखना चाहते हैं तो केवल हंसने के ख्याल से देखिये।
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