Friday, 4 July 2014

राजीव कपूर की शक्ल वाले अरमान

ले कर हम दीवाना दिल के अरमान जैन को एक्टिंग करने की क्या सूझी. पिता का अच्छा खासा बिज़नेस है, उसे आगे बढ़ाते. अब अगर एक्टिंग करने का कीड़ा काट ही गया था तो एक बार अपनी शक्ल आईने में देख लेते. उन्हें मामा राजीव कपूर याद आ जाते. उस समय उन्हें यह भी याद आ जाता कि मामे को एक्टिंग नहीं आती थी. तभी राम तेरी गंगा मैली जैसी हिट फिल्म के बावजूद घर में पिज़्ज़ा खाते हुए समय न काटते. अरमान की शक्ल और एक्टिंग राजीव कपूर से मिलती जुलती है. काफी हद तक बोर करते हैं. रही दीक्षा सेठ की बात तो उन्हें सबसे पहले किसी से अच्छी स्क्रिप्ट छांटने की दीक्षा प्राप्त करनी चाहिए थी. इस फिल्म से ऐसा नहीं लगता कि दीक्षा फिल्मों के मामले में सेठ साबित होंगी. गरीब दीक्षा. इस फिल्म को देखने से यह पता चलता है कि एक कुत्ते का पिल्ला दो प्रीमियों को जुड़ा भी कर सकता है और मिला भी सकता है. जीते रहो आरिफ अली. कभी रोड मूवी जैसा कुछ बनाते हो तो कभी नक्सल इलाके में घुस जाते हो, फिर नाहक नायक नायिका में टकराव पैदा करते हो. और अपने भाई जैसी बचकानी शैली में नायक नायिका को मिला भी देते हो.
लगता नहीं कि दर्शक इस फिल्म को देखने अपना दीवाना दिल लेकर आएंगे.

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