Sunday, 30 May 2021

स्टार इमेज, करैक्टर को खतरा !



निर्देशक अमोल गुप्ते की बायोपिक फिल्म साइना में बॉलीवुड अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा भारत की प्रख्यात बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल की भूमिका में है। भारत के लिए बैडमिंटन के २४ पदक जीतने वाली साइना नेहवाल की एक दमदार खिलाड़ी वाली इमेज है । परन्तु, इस किरदार को करने वाली परिणीती चोपड़ा अपनी बॉलीवुड की रोमांटिक इमेज के कारण साइना को कमज़ोर बनाती है। वह खुद एक कमज़ोर अभिनेत्री भी हैं । यही कारण है कि साइना नेहवाल पर फिल्म दर्शकों द्वारा नापसंद कर दी गई है ।


गलत चुनाव - ऐसे तमाम उदाहरण है, जिनमे कमज़ोर कलाकारों ने या कलाकारों के गलत चुनाव ने जीवनी फिल्मों में वास्तविक चरित्रों का कबाड़ा कर दिया । निर्देशक जेपी दत्ता ने २००६ में अवध की तवायफ उमरावजान पर उमरावजान फिल्म का निर्माण किया तो उमरावजान उर्फ़ अमीरन की भूमिका लिए ऐश्वर्य राय बच्चन तथा अभिषेक बच्चन उनके प्रेमी नवाब सुल्तान बने।  लेकिन, दर्शक २५ साल पहले की अमीरन रेखा और उनके प्रेमी सुल्तान नवाब फारूख शैख़ को भूले नहीं थे। ऐश्वर्या राय बच्चन और अभिषेक बच्चन का चुनाव गलत साबित हुआ। कुछ ऎसी ही गलती गुड्डू धनोआ से भी हुई थी, जब उन्होंने २३ मार्च १९३१ शहीद (२००२) में भगत सिंह की  भूमिका के लिए बॉबी देओल को लिया।  एक्शन फिल्मों के फिल्मकार के तौर पर पहचान  रखने वाले गुड्डू भूल गए कि भगत सिंह एक बलिदानी किरदार था, एक्शन हीरो नहीं।  बॉबी देओल का कमज़ोर अभिनय भी फिल्म को ले डूबा।


विद्या बालन ने बचाया ! - मिलन लुथरिया की फिल्म द डर्टी पिक्चर को सिल्क स्मिता की भूमिका में विद्या बालन के सशक्त अभिनय ने बचा लिया। अन्यथा, इस फिल्म में एमजी रामचंद्रन की भूमिका के लिए इमरान हाश्मी और करूणानिधि के किरदार में नसीरुद्दीन शाह के गलत चुनाव ने फिल्म को  डुबो ही दिया था। द लीजेंड ऑफ़ द्रोण में केंद्रीय भूमिका में अभिषेक बच्चन पूरी फिल्म को ले डूबे। इसी प्रकार फिल्म अशोका में सम्राट अशोक के लिए शाहरुख़ खान और राजकुमारी कौरवाकी के लिए करीना कपूर बिलकुल मिसफिट थे । इसी प्रकार से, दिलजीत दोसांझ की फिल्म सूरमा और तपसी पन्नू और भूमि पेड्नेकर की पश्चिम उत्तर प्रदेश की शूटर दादियों पर फिल्म सांड की आँख कलाकारों के कमज़ोर अभिनय का शिकार हो गई।


सशक्त स्क्रिप्ट, अभिनय का कमाल -लेकिन, अगर स्क्रिप्ट सशक्त हो और कलाकार अभिनयशील हो तो कमाल ही हो जाता है । कुछ ऎसी बायोपिक फ़िल्में है, जो स्टार अभिनेता अभिनेत्रियों के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर सफल हो गई । सुशांत सिंह राजपूत की महेंद्र सिंह धोनी की भूमिका वाली फिल्म एमएस धोनी अ अनटोल्ड स्टोरी और प्रियंका चोपड़ा की बॉक्सर मैरी कोम की भूमिका वाली फिल्म मैरी कोम कसी हुई स्क्रिप्ट और इनके कलाकारों की मेहनत और संवेदनशील अभिनय के कारण दर्शकों का दिल जीत पाने में कामयाब हुई । इसी प्रकार से रणबीर कपूर की संजय दत्त की भूमिका वाली फिल्म संजू की सफलता खुद को संजू के किरदार में ढाल लेने का कमाल थी । अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन और केसरी भी सुपरस्टार इमेज के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर सफल हो सकीं ।


कम देखी गई फ़िल्में - कुछ ऎसी फ़िल्में उल्लेखनीय हैं, जिन्हें बॉक्स ऑफिस पर आने का मौका या तो नहीं मिला या बहुत सीमित मिला । नतीजे के तौर पर वास्तविक चरित्रों पर पान सिंह तोमर, गौर हरी, मंजुनाथ, अलीगढ, मैं और चार्ल्स, शाहिद और मंटो जैसी फ़िल्में दर्शकों को आकर्षित कर पाने में नाकाम रही । हालाँकि, इनमे इरफ़ान खान और मनोज बाजपेई जैसे कलाकारों ने अभिनय बढ़िया किया था ।


इमेज का शिकार हर्षद मेहता का किरदार - बॉलीवुड एक्टरों की इमेज किस प्रकार सशक्त वास्तविक चरित्रों को कमज़ोर कर सकती है, इसका उदाहरण दो फ़िल्में हैं । नब्बे के दशक के स्टॉक घोटालेबाज हर्षद मेहता को हाल ही में रील में उतारा गया है। हंसल मेहता की सीरीज स्कैम १९९२ तथा कुकू कोहली निर्देशित फिल्म द बिग बुल हर्षद मेहता के जीवन पर ही थी । जहाँ स्कैम १९९२ में यह भूमिका प्रतीक गाँधी ने ज़बरदस्त तरीके से की थी, वहीँ बॉलीवुड के बड़े सितारों में शुमार अभिषेक बच्चन इस भूमिका में अपनी इमेज के कारण काफी कमज़ोर साबित होते थे । उनकी इमेज हर्षद मेहता पर भारी पड़ती थी ।


क्या होगा ? - अभी कुछ ऎसी फ़िल्में आने को है, जो वास्तविक घटनाओं पर वास्तविक किरदारों वाली फिल्मे हैं। इन ज़्यादातर फिल्मों के कलाकार बॉलीवुड के बड़े और स्थापित अभिनेता अभिनेत्रियाँ हैं । इनमे रणवीर सिंह की कपिल देव की भूमिका वाली फिल्म ८३, फुटबॉल पर अमिताभ बच्चन की फिल्म झुण्ड और अजय देवगन की फिल्म मैदान, युद्ध फ़िल्में सिद्धार्थ मल्होत्रा की फिल्म शेरशाह, अदिवी शेष की फिल्म मेजर और भुज द प्राइड ऑफ़ इंडिया, मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन पर प्रभास और सैफ अली खान की फिल्म आदिपुरुष तथा कंगना रानौत की राजनीतिक फिल्म थालैवी उल्लेखनीय हैं । क्या यह फ़िल्में सितारों के बावजूद कहानी और पटकथा के बूते पर सफलता हासिल कर पाएंगी ? इन फिल्मों की स्टार अपील फिल्मों को उबारेगी या डुबो देगी ?

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