वैभव मिश्रा निर्देशित फिल्म 'लवशुदा' गिरीश कुमार और नवोदित अभिनेत्री नवनीत कौर ढिल्लों की आधुनिक प्रेम कहानी है। दोनों लंदन, मॉरीशस और फिर शिमला में मिलते हैं। एक दूसरे को चाहते हैं, लेकिन मिलने पर कुछ दूसरा ही हो जाता है। इस लव स्टोरी में फिजिकल रिलेशनशिप है और उसके बाद का रोमांस है। 'लेकिन', फिल्म के निर्माता विजय गलानी कहते हैं, "हमने इस युवा जोड़े पर एक बेहद खूबसूरत, मगर नई प्रेम कहानी फिल्माई है।' गिरीश कुमार की यह दूसरी फिल्म है। इससे पहले वह प्रभुदेवा की फिल्म 'रमैया वस्तावैया' में श्रुति हासन के अपोजिट काम कर चुके हैं। वैभव मिश्रा और नवनीत कौर ढिल्लों की यह पहली फिल्म है। इस लिहाज़ से 'लवशुदा' मे नवनीत का पूजा का किरदार काफी टफ है। इस फिल्म से नवनीत की अभिनय प्रतिभा की भी परीक्षा होगी।
लिव-इन रिलेशनशिप वाली फिल्मों में अभिनयशीलता ख़ास होती है। निर्देशक निखिल आडवाणी की इस साल रिलीज़ फिल्म कट्टी बट्टी भी लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे युवा जोड़े की दास्तान थी। कंगना रनौत और इमरान खान परदे पर इस जोड़े को कर रहे थे। मैड़ी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही पायल एक दिन यकायक गायब हो जाती है। क्या तेज़ तर्रार पायल बेवफा थी ? बकौल इमरान खान, जो खुद दो साल तक अपनी पत्नी अवंतिका के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहे, 'लिव इन रिलेशनशिप से एक दूसरे को अच्छी तरह से समझ जा सकता है। मैं इसका समर्थन करता हूँ।' अब यह बात दूसरी है कि इमरान खान की कट्टी बट्टी को दर्शकों की दोस्ती नहीं मिली। फिल्म फ्लॉप हुई। हालाँकि, इस फिल्म में कंगना रनौत का भावाभिनय तारीफ के काबिल था।
'लवशुदा' को बॉक्स ऑफिस पर कैसा रिस्पांस मिलता है, पता नहीं। लेकिन, कट्टी बट्टी असफल रही थी। इसका मतलब यह नहीं निकाला जा सकता कि हिंदुस्तान के जवान दिल लिव-इन रिलेशन के खिलाफ है। क्योंकि अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मान्यता दे दी है। लेकिन, इससे पहले भी लिव-इन रिलेशन हिंदी फिल्मों में आ गया था। २००५ में रिलीज़ सिद्धार्थ आनंद की फिल्म 'सलाम नमस्ते' ऑस्ट्रेलिया में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़े की कहानी थी, जिसमे लड़की इस सम्बन्ध में रहते हुए ही माँ बनती है। इस भूमिका को सैफअली खान और प्रीटी जिंटा ने किया था। यह फिल्म हिट साबित हुई थी। २००९ में सतीश कौशिक ने फिल्म 'तेरे संग' में कुछ ऎसी ही कहानी को शीना शाहाबादी और रुसलान मुमताज़ की टीन जोड़ी पर फिल्माया था। शीना और रुसलान एक दूसरे को प्यार करते हैं। लड़की गर्भवती हो जाती है। दोनों घर इस सम्बन्ध को नहीं मानते। लड़की का एबॉर्शन कराना तय किया जाता है। यह सुन कर दोनों घर से भाग जाते हैं और लिव-इन में रहते हुए अपने बच्चे को पैदा करते हैं।
लिव-इन रिलेशनशिप पर बहुत कम फ़िल्में बनी हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि लिव-इन रिलेशनशिप पर फिल्म स्वीकार नहीं की जा रही। इन फिल्मों के निशाने पर युवा होता है। वह ऎसी फ़िल्में देखने से परहेज नहीं करता। लेकिन, फिल्म को प्रभावशाली ढंग से पेश करना ज़रूरी होता है। इसके लिए कलाकारों का बेहतरीन अदाकार होना ज़रूरी शर्त होती है। 'तेरे संग' की रुसलान मुमताज़ और शीना शाहाबादी की जोड़ी कमज़ोर अभिनय वाली थी। इसलिए, फिल्म दर्शकों को प्रभावित नहीं कर सकी। वहीँ, सलाम नमस्ते मे प्रीटी जिंटा ने दर्शकों को प्रभावित किया था। विषय की नवीनता भी दर्शकों को रास आई थी।
नायक नायिका का लिव-इन रिलेशनशिप में रहना आज की बात है। लेकिन, शादी से पहले नायक-नायिका का शारीरिक सम्बन्ध बना लेना हिंदी फिल्मों की कहानी का विषय बनाता रहा है। ऐसा ही एक कथानय फिजिकल रिलेशनशिप के कारण नायिका के गर्भवती होने का भी है। यह विषय बोल्ड ज़रूर है। लेकिन, बॉलीवुड ने इसे समय समय पर अपनाया भी है। हालाँकि, इस सदी की शुरुआत में लिव-इन रिलेशनशिप का चलन युवाओं पर पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव और बॉलीवुड को हॉलीवुड फिल्मों से मिली प्रेरणा का परिणाम था। जहाँ तेरे संग हांगकांग की फिल्म '२ यंग' से प्रेरित थी, वही 'सलाम नमस्ते' हॉलीवुड की क्रिस कोलंबस निर्देशित फिल्म 'नाइन मंथ्स' पर आधारित थी। इस फिल्म में हु ग्रांट और जुलिआने मूर ने सैफ और प्रीटी वाली भूमिकाये की थी। परन्तु, नायिका का नायक पर मुग्ध हो कर खुद को समर्पित कर देना पुरानी बात है।
जब नायिका खुद को नायक को समर्पित कर देती है तो कहानी का ड्रामा शुरू हो जाता है। इस समर्पण के नतीजे में नायिका माँ बन सकती है। जहाँ तक नायिका के बिना शादी के माँ बनने की बात है, १९४३ में रिलीज़ निर्देशक ज्ञान मुख़र्जी की फिल्म 'किस्मत' की नायिका कुंवारी गर्भवती बताई गई थी। यश चोपड़ा ने भी कुँवारी माँ पर दो फ़िल्में बनाई थी। १९५९ में रिलीज़ राजेंद्र कुमार, नंदा और माला सिन्हा अभिनीत फिल्म 'धूल का फूल' में फिजिकल रिलेशनशिप के कारण माला सिन्हा गर्भवती हो जाती है। लेकिन, राजेंद्र कुमार उससे शादी न कर एक दूसरी लड़की नंदा से शादी कर लेता है। माला सिन्हा के अवैध बच्चे को एक मुस्लमान पालता है। इस फिल्म का गीत 'तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा' तब काफी हिट हुआ था। इस फिल्म को नेहरू छाप धर्मनिरपेक्षता से प्रेरित बताया गया था। लेकिन, अगली बार यश चोपड़ा ने इसी विषय को फिल्म 'धर्मपुत्र' में हिन्दू माँ द्वारा पाले गए मुस्लमान बच्चे में बदल दिया था। मुस्लिम माला सिन्हा का रेहमान से प्रेम सम्बन्ध है। वह गर्भवती हो जाती है। लेकिन, ऐन शादी के मौके पर रहमान गायब हो जाता है। माला सिन्हा के अवैध बच्चे को एक हिन्दू परिवार पालता है। बड़ा हो कर यह बच्चा मुस्लिम विरोधी हो जाता है। शशि कपूर ने इस भूमिका को किया था। यश चोपड़ा ने एक कहानी को धर्मों के सहारे एक बार जहाँ धर्म निरपेक्ष बनाया, वहीँ दूसरी बार इसे हिन्दू अतिरेक में तब्दील कर दिया।
हिंदी फिल्मों में नायिका के शादी से पहले सेक्स करने का फ़साना दर्शकों को रास आता रहा है। राजकपूर निर्देशित फिल्म 'बरसात' में निम्मी का किरदार शहरी बाबू प्रेमनाथ के आकर्षण में अपना कौमार्य खो बैठता है। फिल्म अमर में दिलीप कुमार के गाँव के घर में अपने घर से भागी निम्मी शरण लेती है। लेकिन, वकील दिलीप कुमार उससे बलात्कार करता है। जब वह शादी करने के लिए कहती है तो दिलीप कुमार मना कर देता है। फिल्म आराधना एयरफोर्स का एक अधिकारी राजेश खन्ना शर्मीला टैगोर से प्रेम करता है। दोनों एक मंदिर में सांकेतिक शादी भी कर लेते हैं। लेकिन, समाज के सामने शादी करने से पहले ही वह युद्ध में मारा जाता है। शर्मीला टैगोर अपने बच्चे को जन्म देती है और एयरफोर्स का अधिकारी बनाती है। क्या कहना की प्रीटी जिंटा भी सैफ अली खान को अपना सब कुछ समर्पित कर देती है। वह इस समर्पण के स्वरुप होने वाले बच्चे को जन्म देने का निर्णय करती है। इज्ज़त में जयललिता का चरित्र एक ठाकुर से गर्भवती हो जाता है। जिस ठाकुर के बेटे से वह गर्भवती होती है, उस ठाकुर के एक आदिवासी लड़की से फिजिकल रिलेशन के कारण बच्चा भी होता है।
फिजिकल रिलेशनशिप और कुँवारी माँ की कहानियों में नायिका केंद्र में होती है। ऎसी फिल्मों में अभिनेत्री के लिए अभिनय की काफी गुंजायश होती है। निम्मी और माला सिन्हा से लेकर प्रीटी जिंटा और शीना शाहाबादी तक सभी अभिनेत्रियों ने ऎसी भूमिकाएं कर चर्चा खूब पाई। कमोबेश यह सभी स्क्रिप्ट और अभिनेत्री की अभिनय प्रतिभा पर निर्भर करती हैं। इसी कारण से यह फ़िल्में सफल भी होती है। चूंकि, आजकल लिव-इन रिलेशनशिप का ज़माना है, तो अब नायिका हादसे या समर्पण के कारण गर्भवती नहीं होती। इस कहानी में पेंच यहाँ होता है कि नायिका बच्चे को जन्म देकर पालना चाहती है। उसे इसमे समाज की किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है, यही फिल्म का यूएसपी होता है। लेकिन, जहां पुरानी फिल्मों का नायक दागा दे देता है या मर जाता है, आज की लिव इन रिलेशनशिप वाली फिल्मों में नायिका के पार्टनर या किसी पुरुष मित्र का साथ हमेशा मिलता है। ज़ाहिर है कि नायिका पहले की तरह अकेली नहीं है।
लिव-इन रिलेशनशिप क्या ज़रूरी है ? फिल्मों की बात छोड़िये रियल लाइफ में रणबीर कपूर और कटरीना कैफ जैसे उदाहरण बहुत से हैं। महिमा चौधरी तो शादी से पहले ही अपने पार्टनर के बच्चे की माँ बन गई थी। पोर्न स्टार सनी लियॉन भी लिव-इन रिलेशन की वकालत करती हैं। सनी लियॉन खुद जिस समाज में पली बढ़ी हैं, वहां लिव -इन रिलेशनशिप सामान्य बात है। लेकिन, देसी (भारतीय) माहौल में लिव-इन रिलेशनशिप के समर्थन में उनके तर्क दूसरे हैं। वह कहती हैं, "युवाओं में प्यार की परिभाषा लगातार बदलती रहती है। इसलिए, लिव-इन रिलेशनशिप कोई बड़ी बात नहीं।"