भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Thursday 16 June 2016
Wednesday 15 June 2016
बारह साल पहले एक थी सुरैया !
सुरैया का एक्टिंग
करियर १९४१ में नानूभाई वकील की फिल्म ‘ताज महल’ में बालिका मुमताज महल के रोल से
शुरू हुआ था। वह अपने मामा और चरित्र अभिनेता एम ज़हूर के साथ ताज महल की शूटिंग
देखने के लिए मोहन स्टूडियो गई थी। नानूभाई वकील ने उन्हें देखा और नन्ही मुमताज का रोल दे दिया। इसके साथ ही सुरैया के बतौर अभिनेत्री करियर की शुरुआत हो गई।
सुरैया अपने बचपन के दोस्तों राजकपूर और
मदन मोहन के आल इंडिया रेडियो के बच्चों के प्रोग्राम में हिस्सा लिया करती थी। वहीँ, उन्हें संगीतकार नौशाद ने पहली बार सुना। उन्होंने सुरैया से पहली बार ए आर
कारदार की फिल्म ‘शारदा’ के लिए पंछी जा पीछे रहा है मेरा बचपन गीत गवाया था। इस
गीत को उस समय की बड़ी अभिनेत्री महताब पर फिल्माया गया था। महताब उम्र में सुरैया
से काफी बड़ी थी। वह सशंकित थी कि इस १३ साल की बच्ची की आवाज़ उन पर कैसे सूट करेगी। लेकिन, नौशाद ने सुरैया से ही गीत गवाया। इसके साथ ही सिंगिंग स्टार सुरैया का जन्म हुआ।
स्टेशन मास्टर और तमन्ना जैसी फिल्मों के बाद सुरैया को गायिका अभिनेत्री के बतौर बड़ा ब्रेक मिला फिल्म हमारी बात में। १९४५ में रिलीज़ फिल्म फूल ने सुरैया को बतौर गायिका अभिनेत्री ज़बरदस्त शोहरत दी। सुरैया की गायन की अग्नि परीक्षा हुई, नौशाद की संगीत से सजी फिल्म अनमोल घडी (१९४६) से। इस फिल्म में नूरजहाँ नायिका थी। फिल्म में नूरजहाँ ने जवां है मोहब्बत, आवाज़ दे कहाँ है, आ जा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे, मेरे बचपन के साथी और क्या मिल गया भगवान जैसे आल टाइम सुपर हिट गीत गाये थे . लेकिन, बाज़ी मारी सुरैया ने सोचा था क्या, क्या हो गया गीत से। लोग इस गीत को सुनने के लिए बार बार फिल्म देखने आते थे और जैसे ही गीत ख़त्म होता हॉल से बाहर निकल जाते थे।
स्टेशन मास्टर और तमन्ना जैसी फिल्मों के बाद सुरैया को गायिका अभिनेत्री के बतौर बड़ा ब्रेक मिला फिल्म हमारी बात में। १९४५ में रिलीज़ फिल्म फूल ने सुरैया को बतौर गायिका अभिनेत्री ज़बरदस्त शोहरत दी। सुरैया की गायन की अग्नि परीक्षा हुई, नौशाद की संगीत से सजी फिल्म अनमोल घडी (१९४६) से। इस फिल्म में नूरजहाँ नायिका थी। फिल्म में नूरजहाँ ने जवां है मोहब्बत, आवाज़ दे कहाँ है, आ जा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे, मेरे बचपन के साथी और क्या मिल गया भगवान जैसे आल टाइम सुपर हिट गीत गाये थे . लेकिन, बाज़ी मारी सुरैया ने सोचा था क्या, क्या हो गया गीत से। लोग इस गीत को सुनने के लिए बार बार फिल्म देखने आते थे और जैसे ही गीत ख़त्म होता हॉल से बाहर निकल जाते थे।
सुरैया की तक़दीर
बदली देश के विभाजन ने। देश विभाजन के दौरान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की कई
हस्तियाँ पाकिस्तान चली गई थीं। इनमे नूरजहाँ भी एक थी। नूरजहाँ पाकिस्तान चली गई। लेकिन, सुरैया ने भारत रहना
ही मंज़ूर किया। इसके बाद सुरैया का करियर बिलकुल बदल गया। चूंकि, वह गा भी सकती
थी, इसलिए वह फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद बन गई। उस समय की बड़ी अभिनेत्रियों
नर्गिस और कामिनी कौशल पर सुरैया को तरजीह मिलने लगी। क्योंकि, यह अभिनेत्रियाँ
अपने गीत नहीं गा सकती थी। जबकि, सुरैया की खासियत यह थी कि वह नूरजहाँ की तरह
अच्छा गा सकती थी और नर्गिस और कामिनी कौशल की तरह बढ़िया अभिनय भी कर सकती थी।
सुरैया को उनकी तीन
फिल्मों ने हिन्दुस्तानी फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी स्टार बना दिया। दो फ़िल्में
प्यार की जीत (१९४८) और बड़ी बहन (१९४९) में सुरैया के नायक रहमान थे। तीसरी फिल्म
दिल्लगी (१९४९) में वह श्याम की नायिका थी। यह तीनों फ़िल्में बड़ी म्यूजिकल हिट
फ़िल्में थी। प्यार की जीत और बड़ी बहन के संगीतकार हुस्नलाल भगतराम थे, जबकि
दिल्लगी का संगीत नौशाद ने दिया था। दिल्लगी के बाद नौशाद और सुरैया की जोड़ी जम गई। १९४७
से १९५० के बीच इन दोनों ने कोई ३० फ़िल्में बतौर संगीतकार और गायिका जोड़ी की। लेकिन,
सुरैया की यह सफलता बहुत थोड़े दिन रही। एक उभरती गायिका लता मंगेशकर ने सुरैया के
साम्राज्य को ध्वस्त कर दिया। यह सिलसिला शुरू हुआ नौशाद के संगीत निर्देशन में
फिल्म अंदाज़ के गीत उठाये जा उनके सितम गीत से। सुरैया की हिट
फिल्म ‘बड़ी बहन’ में लता मंगेशकर ने भी गीत गए थे। जहाँ सुरैया ने खुद पर फिल्माए
गए गीत ओ लिखने वाले ने और बिगड़ी बनाने वाले गाये थे, वहीँ लता मंगेशकर ने सुरैया
के साथ फिल्म की सह नायिका गीता बाली के
लिए दो गीत चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है और चले जाना नहीं गाये थे। इन चारों
गीतों को ज़बरदस्त सफलता मिली। सुरैया जैसी स्थापित गायिका की मौजूदगी में मिली इस कामयाबी ने लता मंगेशकर को बतौर गायिका स्थापित
कर दिया। इसके साथ ही सुरैया का सितारा भी धुंधलाने लगा। फिसलते करियर के दौरान
भी सुरैया ने कुछ ऐसी फ़िल्में की, जिहोने सुरैया को शोहरत और सम्मान दोनों दिए।
मिर्ज़ा ग़ालिब (१९५४)
में सुरैया ग़ालिब की प्रेमिका और तवायफ मोती बाई के किरदार में थी। यह फिल्म सुपर हिट फिल्म तो साबित हुई ही, इस फिल्म ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में श्रेष्ठ
फिल्म का स्वर्ण कमल जीता। इस फिल्म में सुरैया ने गुलाम मोहम्मद के संगीत
निर्देशन में दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है और ये न थी हमारी किस्मत जैसे सदाबहार
हिट गीत गाये। इस फिल्म का सुरैया के लिए क्या महत्त्व रहा होगा, इसका अंदाजा इसी
से लगाया जा सकता है कि भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने उनकी
प्रशसा करते हुए कहा था कि तुमने मिर्ज़ा ग़ालिब की रूह को जिंदा कर दिया। सुरैया
की आखिरी फिल्म रुस्तम सोहराब १९६३ में रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म में सुरैया के
नायक पृथ्वीराज कपूर थे, जो बीस साल पहले की सुरैया की फिल्म इशारा में उनके नायक
थे। इस फिल्म का गीत ये कैसी अजाब दास्ताँ हो गई सुरैया का गाया आखिरी गीत भी साबित
हुआ।
सुरैया ने अपने २० साल के फिल्म करियर
में अपने समय के सभी बड़े अभिनेताओं मोतीलाल और अशोक कुमार से ले कर भारत भूषण तक के साथ अभिनय किया तथा के एल सहगल और तलत महमूद से लेकर मोहम्मद रफ़ी और मुकेश तक सभी गायकों
के साथ युगल गीत गाये। उन्होंने लता मंगेशकर के साथ भी दो युगल गीत गाये। इनमे एक
गीत संगीतकार हुस्नलाल भगतराम का संगीतबद्ध फिल्म बालम (१९४९) का ओ परदेसी मुसाफिर
तथा दूसरा नौशाद का संगीतबद्ध फिल्म दीवाना (१९५२) का मेरे लाल मेरे चंदा तुम
जियों हजारों साल था। दिलचस्प तथ्य यह था कि सुरैया ने गायन की कोई क्लासिकल
ट्रेनिंग नहीं ली थी। इसके बावजूद उन्होंने सचिन देव बर्मन का संगीतबद्ध क्लासिकल गीत गीत मन मोर हुआ मतवाला गाया था। यहाँ एक दिलचस्प तथ्य यह है कि बचपन के दोस्त मदन मोहन केवल एक फिल्म ख़ूबसूरत (१९५२) के लिए गीत गवाए।
सुरैया के प्रति दर्शकों में पागलपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि छात्र उनकी फिल्म का पहले दिन का पहला शो देखने के लिए क्लास तथा ऑफिसों में काम करने वाले लोग दफ्तर छोड़ कर सिनेमाघरों के बाहर खड़े नज़र आते थे। अभिनेता धर्मेन्द्र ने एक बातचीत में बताया था कि उन्होंने सुरैया की फिल्म दिल्लगी ४० बार देखी थी। सुरैया जमाल शेख बॉलीवुड की ऎसी गायिका अभिनेत्री थी, जो अपने रिटायरमेंट लेने तक अभिनय करती रही और अपने गीत गाती रही। उनका आखिरी गाया गीत रुस्तम शोहराब फिल्म का 'ये कैसी अजाब दास्ताँ हो गई' था, जो उन पर ही फिल्माया गया था। इसके साथ ही सुरैया का बतौर एक्टर और सिंगर करियर ख़त्म हो गया। ३१ जनवरी २००४ को वह एक थी सुरैया हो गई।
सुरैया के प्रति दर्शकों में पागलपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि छात्र उनकी फिल्म का पहले दिन का पहला शो देखने के लिए क्लास तथा ऑफिसों में काम करने वाले लोग दफ्तर छोड़ कर सिनेमाघरों के बाहर खड़े नज़र आते थे। अभिनेता धर्मेन्द्र ने एक बातचीत में बताया था कि उन्होंने सुरैया की फिल्म दिल्लगी ४० बार देखी थी। सुरैया जमाल शेख बॉलीवुड की ऎसी गायिका अभिनेत्री थी, जो अपने रिटायरमेंट लेने तक अभिनय करती रही और अपने गीत गाती रही। उनका आखिरी गाया गीत रुस्तम शोहराब फिल्म का 'ये कैसी अजाब दास्ताँ हो गई' था, जो उन पर ही फिल्माया गया था। इसके साथ ही सुरैया का बतौर एक्टर और सिंगर करियर ख़त्म हो गया। ३१ जनवरी २००४ को वह एक थी सुरैया हो गई।
हत्या पर केंद्रित होती है क्राइम थ्रिलर फ़िल्में
अनुराग कश्यप एक बार फिर अपनी पसंदीदा शैली थ्रिलर रमन राघव २.० लेकर आ रहे हैं। आज की मुंबई की पृष्ठभूमि पर यह फिल्म वास्तव में १९६० में हुए एक सीरियल किलर रमन राघव के करैक्टर से प्रेरित फिल्म है। रमन राघव २.० एक क्राइम थ्रिलर फिल्म है, क्योंकि इस फिल्म के केंद्र में एक हत्यारा है और उसके द्वारा की गई हत्याओं का रहस्य है। इस फिल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने रमन की भूमिका की है। आम तौर पर थ्रिलर फ़िल्में दर्शकों की पसंदीदा होती हैं। लेकिन, अगर यह क्राइम थ्रिलर है तो कहने ही क्या ? पहली ही रील में हत्या दर्शकों को सिनेमाघरों में अपनी सीटों से चिपकाए रहती है। आइये जानते हैं ऎसी कुछ अलग किस्म की क्राइम थ्रिलर फिल्मों के बारे में-
तलाश: द आंसर लाइज विदिन- आमिर खान, करीना कपूर और रानी मुख़र्जी
की साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म तलाश: द आंसर लाइज विदिन एक हत्या का रहस्य सुलझाने की ज़िम्मेदारी ओढ़े इंस्पेक्टर सुरजन शेखावत,
उसके परिवार और एक कॉल गर्ल के इर्द गिर्द घूमती थी। इसी रहस्य को खोलने में वह एक कॉल गर्ल के नज़दीक
आता है। जब हत्या का रहस्य खुलता है तो सभी चौंक पड़ते हैं। फिल्म की निर्देशक
रीमा कागती थीं।
मनोरमा सिक्स फीट
अंडर- अभय देओल, गुल पनाग और राइमा सेन की इस फिल्म मनोरमा सिक्स फ़ीट अंडर को बहुत चर्चा नहीं मिली। यह फिल्म एक नौसिखिउए जासूस की थी, जो राजस्थान में एक
हत्या के रहस्य से पर्दा उठाते हुए विचित्र परिस्थितियों में फंस जाता है। इस
फिल्म के निर्देशक नवदीप सिंह थे।
गुप्त: द हिडन ट्रुथ- बॉबी देओल, काजोल और मनीषा कोइराला की मुख्य
भूमिका वाली इस फिल्म में साहिल सिन्हा (बॉबी देओल) पर अपने सौतेले पिता की हत्या
का आरोप है। वह, जब इस इस हत्या की तह में जाने की कोशिश करता है तो नई मुसीबत
में फंस जाता है। इस फिल्म का निर्देशन राजीव राय ने किया था।
इत्तफाक- राजेश खन्ना और नंदा अभिनीत इस फिल्म में एक
पेंटर पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप लगा है । उसे पागलखाने भेजा जाता है कि वह
वहां से भाग निकलता है। वह भागते हुए एक घर में आ छुपता है। लेकिन, उसे क्या
मालूम कि यहाँ उस पर दूसरे खून का आरोप लगने वाला है। इस फिल्म के निर्देशक यश
चोपड़ा थे।
द स्टोनमैन मर्डर्स- अस्सी के दशक की रियल लाइफ घटनाओं पर फिल्म द
स्टोनमैन मर्डर्स पत्थर मार कर अपने शिकार की हत्या करने वाले हत्यारे की
गिरफ्तारी पर फिल्म थी। इस फिल्म में के के मेनन और अरबाज खान मुख्य भूमिका में
थे। फिल्म के निर्देशक मनीष गुप्ता थे ।
अजनबी- अक्षय कुमार, बॉबी देओल, करीना कपूर और बिपाशा
बासु अभिनीत फिल्म अजनबी में राज मल्होत्रा पर हत्या का आरोप लगता है। वह शक के
आधार पर एक जोड़े का पीछा करता है। इस फिल्म के निर्देशक थ्रिलर फिल्मों के उस्ताद
अब्बास मुस्तान की जोड़ी थी।
गुमनाम- मनोज कुमार, नंदा, हेलेन, प्राण और महमूद
निर्देशित फिल्म गुमनाम एक वीराने बंगले में छोड़ दिए लोगों और उनकी एक के बाद एक
होती हत्याओं पर फिल्म थी। इस फिल्म का निर्देशन राजा नवाथे ने किया था। फिल्म का
संगीत सुपर हिट हुआ था ।
तीसरी मंजिल- शम्मी कपूर और आशा पारेख की फिल्म तीसरी मंजिल
सुनीता की बहन को तीसरी मंजिल से फेंक कर मार देने के दृश्य से शुरू होती थी। सुनीता अपनी बहन के कातिल को ढूढ़ना चाहती है।उसे बताया जाता है कि उसकी बहन एक
होटल के बैंड प्लेयर रॉकी से प्रेम करती थी।
जब हत्या का रहस्य खुलता है, तब दर्शक चौंक पड़ते हैं। इस फिल्म का
निर्देशन विजय आनंद ने किया था ।
१०० डेज- माधुरी दीक्षित के किरदार देवी को होने वाली
घटनाओं का आभास हो जाता है. वह भी अपनी बहन के हत्यारे की खोज में लगी है . इस
फिल्म का निर्देशन पार्थो घोष ने किया था ।
खिलाडी- अक्षय कुमार, आयशा जुल्का, सबीहा और दीपक तिजोरी की मुख्य
भूमिका वाली फिल्म चार दोस्तों राज, बोनी, शीतल और नीलम की कहानी है। शीतल की हत्या
हो जाती है। किसने की है यह हत्या? अब्बास मुस्तान की जोड़ी को बतौर निर्देशक
स्थापित कर देने वाली इस फिल्म में रहस्य का पर्दाफाश चौंकाने वाला था।
कौन- केवल मनोज बाजपेई, उर्मिला मातोंडकर और सुशांत
सिंह के करैक्टर के इर्दगिर्द घूमती यह फिल्म एक साइको किलर की तलाश कराती थी। मनोज बाजपेई का करैक्टर कुछ इसी प्रकार की हरकते करता था, जो उर्मिला के घर घुस
आया है। इस फिल्म का निर्देशन रामगोपाल वर्मा ने किया था ।
एक रुका हुआ फैसला- पंकज कपूर, के के रैना, एम् के रैना, अन्नू कपूर, आदि सशक्त
अभिनेताओं की यह फिल्म अपने आप में अनोखी फिल्म थी। बारह सदस्यों की जूरी को अपने
पिता के कातिल युवक को दोषी ठहराए जाने पर निर्णय लेना है। ज़्यादातर एक कमरे में
फिल्माई गई इस फिल्म का निर्देशन बासु चटर्जी ने किया था ।
समय: व्हेन टाइम
स्ट्राइक्स- सुष्मिता सिंह, जैकी श्रॉफ और सुशांत
सिंह की मुख्य भूमिका वाली फिल्म में महिला पुलिस अधिकारी एक सीरियल किलर की तलाश
कर रही है। फिल्म का निर्देशन रोबी ग्रेवाल ने किया था ।
धुंद- अशोक कुमार, संजय खान, जीनत अमान, डैनी डैंग्जोप्पा और नवीन निश्चल की फिल्म धुंद में एक अपाहिज की हत्या हो जाती है । शक के घेरे में उसकी पत्नी है। इस
फिल्म का निर्देशन बीआर चोपड़ा ने किया था ।
रहस्य- के के मेनन, आशीष विद्यार्थी, टिस्का चोपड़ा और
अश्विनी कलसेकर अभिनीत रहस्य डॉक्टर दम्पति की बेटी की हत्या पर फिल्म थी, जिसका दोषी
डॉक्टर दम्पति को ही बताया जा रहा है। इस फिल्म का निर्देशन मनीष गुप्ता ने किया
था ।
बीस साल बाद- विश्वजीत, वहीदा रहमान, मदन पूरी, मनमोहन कृष्ण,
सज्जन और असित सेन अभिनीत फिल्म बीस साल बाद एक हवेली के वंशजो की हो रही हत्याओं
पर केन्द्रित फिल्म थी। यह बॉलीवुड की पहली हॉरर फिल्म मानी जाती है। इस फिल्म
से डायरेक्टर बिरेन नाग का डेब्यू हुआ था ।.
खामोश- नसीरुद्दीन शाह, शबाना आज़मी, अमोल पालेकर, सोनी
राजदान और पंकज कपूर की फिल्म खामोश एक उभरती अभिनेत्री की हत्या की गुत्थी
सुलझाने की कहानी थी। इस फिल्म में अमोल पालेकर, सोनी राजदान और शबाना आज़मी ने खुद
के काल्पनिक किरदार किये थे। फिल्म के निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा थे ।
हॉलीवुड से प्रेरित क्राइम थ्रिलर
बॉलीवुड की ज्यादा
क्राइम थ्रिलर फ़िल्में हॉलीवुड की फिल्मों पर आधारित थी। मसलन मनोरमा सिक्स फीट
अंडर हॉलीवुड की रोमन पोलंस्की निर्देशित जैक निकल्सन और फाए डनअवे अभिनीत फिल्म
चाइनाटाउन (१९७४०) पर, इत्तफाक हॉलीवुड फिल्म साइनपोस्ट पर, अजनबी निर्देशक एलन जे
पकुला निर्देशित अमेरिकन थ्रिलर कंसेंटिंग एडल्ट्स पर, एक रुका हुआ फैसला सिडनी
लुमेट निर्देशित अमेरिकन फिल्म १२ एंग्री में पर, समय: व्हेन टाइम स्ट्राइक्स
ब्रैड पिट और मॉर्गन फ्रीमैन अभिनीत फिल्म Se7en (सेवेन) पर, बीस साल बाद आर्थर
कानन डायल की फिल्म द हाउंड ऑफ़ बास्कर्विलेस पर आधारित थी। वहीँ द स्टोनमैन
मर्डर्स और रहस्य (मोटे तौर पर आरुषी हत्याकांड) रियल लाइफ घटना पर फ़िल्में थी। गुमनाम अगाथा क्रिस्टी के मशहूर थ्रिलर उपन्यास एंड देन देयर वर नन, धुंद भी अगाथा
क्रिस्टी के उपन्यास द अनएक्सपेक्टेड गेस्ट पर आधारित थी।
बढ़िया हिट संगीत
आम तौर पर थ्रिलर
फिल्मों में संगीत का ख़ास महत्त्व नहीं होता। मगर, बॉलीवुड ने कुछ बढ़िया हिट संगीत वाली सस्पेंस थ्रिलर
फिल्मों का निर्माण किया है। क्राइम थ्रिलर फ़िल्में भी इसका अपवाद
नहीं । एक रुका हुआ फैसला, द स्टोनमैन मर्डर्स और इत्तफाक में कोई नाच गीत नहीं थे। लेकिन, तीसरी मंज़िल में आरडी बर्मन, गुमनाम में शंकर जयकिशन, बीस साल बाद में हेमंत कुमार, खिलाडी में जतिन-ललित, धुंद में रवि, गुप्त में विजू शाह और अजनबी में अनु मालिक का संगीत हिट हुआ था ।
अल्पना कांडपाल
Tuesday 14 June 2016
The official poster of Disney's Pete's dragon
Here's presenting the official poster of Pete's Dragon starring Bryce Dallas Howard, Oakes Fegley, Wes Bentley, Karl Urban, Oona Laurence, Isiah Whitlock, Jr. and Robert Redford. Pete's Dragon, a re-imagining of Disney’s cherished family film, is the adventure of an orphaned boy named Pete and his best friend Elliot, who just so happens to be a dragon.Pete's Dragon releases in India in August 2016.
लास्ट मूमेंट बताया गया कि लिप-लॉक करना है- संगीता चौहान
कई विज्ञापन फिल्मों
में अपनी आकर्षक मुस्कान का प्रदर्शन कर चुकी संगीता चौहान आजकल अपनी एक बड़ी फिल्म
की रिलीज़ की तैयारी में व्यस्त है । लव यू अलिया टाइटल वाली इस कन्नड़ फिल्म में
संगीता को भूमिका चावला, वी रविचंद्रन और सुदीप जैसे बड़े सितारों के साथ
अभिनय का मौका मिला है । फिल्म के डायरेक्टर इन्द्रजीत लंकेश साउथ के बड़े
निर्देशकों में शुमार किये जाते हैं । लव यू अलिया कन्नड़ के अलावा हिंदी में भी
डब कर रिलीज़ की जा रही है । पेश है संगीता चौहान से एक बातचीत-
लव यू अलिया क्या
कोई सन्देश देने वाली फिल्म है ?
आजकल के परिवार में
साथ खाने और बैठ कर बातचीत करने के रिश्ते ख़त्म हो चुके है । यह सम्बन्ध ट्वीट और मेसेज भेजने तक ही
सीमित हैं । लव यू अलिया आधुनिक परिवार के सदस्यों के डिनर टेबल पर बैठ कर बातचीत
करने और आपसी संबंधो, आदि पर गहराई से नज़र डालती है ।
अलिया के बारे में
कुछ बताये ?
अलिया तलाकशुदा
माता-पिता की संतान है । उसे शादी जैसी संस्था पर कतई विश्वास नहीं । वह शादी करना
नहीं चाहती । परिस्थितियां उसे महसूस कराती है । मैं इस मुख्य किरदार को करके खुद
को । भाग्यशाली समझती हूँ । अलिया एक सीधी साडी लड़की है, जिसे संबंधों से
जुड़ना पड़ता है और तब उसकी ज़िन्दगी में जटिलताएं पैदा होने लगती है । आपने अब तक
जितने करैक्टर देखें हैं, अलिया उनसे काफी अलग है ।
इन्द्रजीत लंकेश
दक्षिण के प्रतिष्ठित नाम है । उनके साथ काम करने का कैसा अनुभव रहा ?
मैं उनकी कार्य शैली
से बेहद प्रभावित हुई हूँ । उन्हें दक्षिण की फिल्मों का यश चोपड़ा कहा जा सकता है
। मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे यह रोल मिला और लंकेश ने मुझ पर विश्वास किया ।
क्या इस फिल्म के
लिए कोई ख़ास ट्रेनिंग ली ?
मैंने नीरज कबी के
साथ एक्टिंग की वर्कशॉप की । नीरज एक्टर भी हैं और एक्टिंग टीचर भी ।
शूटिंग के दौरान का
कोई कठिन दौर ?
फिल्म में एक
लिप-लॉक का सीन है । मुझे इसकी इत्तला बैंकाक में शूटिंग के दौरान आखिरी मौके पर
दी गई । शुरू में मैं समझ नहीं पा रही थी कि इसे कैसे करूंगी । लेकिन, फिर कर लिया ।
आपकी दूसरी फ़िल्में ?
यह मेरी दूसरी फिल्म
है । मेरी पहली फिल्म शार्पशूटर थी । मैंने अभी हिंगलिश में एक शॉर्ट फिल्म शूट की
है । इसकी निर्देशक हीना डीसूजा हैं । इस फिल्म का वर्किंग टाइटल काफी जटिल था ।
इसलिए अभी टाइटल फाइनल होना है ।
आप इंडस्ट्री में
किसे आदर्श मानती है ?
विद्या बालन मेरी
रोल मॉडल हैं । उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बलबूते पर अपना एक यह मुकाम बनाया
है । संघर्षों के बावजूद उन्होंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी । अभिनेताओं में आर माधवन
और आमिर खान मेरे पसंदीदा है ।
Saturday 11 June 2016
नशीली दवाओं चंगुल में फंसा बॉलीवुड
अभिषेक चौबे की फिल्म उड़ता पंजाब आजकल के पंजाब प्रान्त में युवाओं के बीच नशीली दवाओं की समस्या पर फिल्म है। इस फिल्म में करीना कपूर और शाहिद कपूर लम्बे समय बाद किसी फिल्म में आ ज़रूर रहे हैं, लेकिन उनके साथ साथ कोई सीन नहीं होंगे। लेकिन,दर्शकों के लिए समस्या यह नहीं होगी। वह देखना चाहेंगे कि उनके द्वारा चार साल तक की गई कथित मेहनत ने स्क्रिप्ट में क्या आकार लिया है। क्या यह फिल्म पंजाबी युवाओं के नशीली दवाओं के जाल में फंसने की घटनाओंं को वास्तविक तथ्यों पर उभार पाए होंगे ? बॉलीवुड ने तो नशीली दवाओं को युवाओं के शौक और मज़े के तौर पर ही दिखाया है।
ड्रग्स पर 'गुमराह' करती फिल्म
निर्माता यश जौहर और निर्देशक महेश भट्ट ने १९९३ में नशीली दवाओं की तस्करी के विषय पर एक फिल्म गुमराह बनाई थी। इस फिल्म में श्रीदेवी ने एक सिंगर रोशनी का किरदार किया था, जिसे राहुल प्रमोट करता है और विदेशों में शो करवाता है। ऐसे ही एक शो के लिए जाते समय रोशनी हांगकांग एयरपोर्ट पर नशीली दवाओं की तस्करी के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया जाता है। उसे फांसी की सज़ा हो जाती है। ऐसे में जगन्नाथ उसकी मदद करता है। संजय दत्त ने जगन्नाथ और राहुल रॉय ने प्रमोटर राहुल का किरदार किया था। इस फिल्म को रॉबिन भट्ट और सुजीत सेन ने लिखा था। लेकिन, वह पकड़ नहीं बन पाई थी। फिल्म में न तथ्य थे, न विषय की गहराई से समझ थी। यह फिल्म श्रीदेवी और संजय दत्त की फ्लॉप फिल्मों में शुमार की जाती है।
नेपाल से गोवा तक ड्रग्स
१८ साल बाद निर्देशक रोहन सिप्पी को गोवा में नशीली दवाओं का धंधा नज़र आया। उस दौर में गोवा इस खासियत के कारण मशहूर हो रहा था। फिल्म में नशीली दवाओं के तस्करों की तरकीबों, पुलिस की कोशिशों और नशे के दुष्परिणाम का चित्रण काफी अच्छी तरह से हुआ था। इस फिल्म में दीपिका पादुकोण पर हरे राम हरे कृष्णा का दम मारो दम गीत का रीमिक्स वर्शन फिल्माया गया था । इसके बावजूद फिल्म फ्लॉप हुई। जिस हरे राम हरे कृष्णा के गीत पर रोहन सिप्पी ने गोवा पर अपनी फिल्म का नाम रख था, देव आनंद और ज़ीनत अमान की यह फिल्म नेपाल में हिप्पियों और नशे के जाल पर केंद्रित थी। इस संगीतमय फिल्म ने हिंदुस्तानी दर्शकों को काफी प्रभावित किया था फिल्म सुपर हिट साबित हुई। लेकिन, इसके बाद कोई ऎसी सफल फिल्म नहीं बनाई जा सकी।
ड्रग्स से लग जाते हैं 'पंख'
सुदीप्तो चट्टोपाध्याय निर्देशित फिल्म को नशीली दवाओं पर केंद्रित फिल्म कहना ठीक नहीं होगा। इस फिल्म में एक बच्चे के मनोविज्ञान का भी चित्रण किया गया था। जेरी एक बर्बाद परिवार से है। वह फिल्मों में लड़कियों का किरदार करता है। माँ के साथ ख़राब सम्बन्ध उसे नशे में धकेल देते हैं। नशीली दवाओं की डोज़ लेकर वह बिपाशा बासु की फंतासी करता है। यह फिल्म बाल मनोविज्ञान की दृष्टि से प्रशंसनीय थी। नशा तो एक पहलू था ही।
नशीली दवाओं के आदती किरदार
बॉलीवुड की काफी फिल्मों के किरदार नशा लेने वाले दिखाये गए हैं। मधुर भंडारकर की फैशन इंडस्ट्री पर फिल्म फैशन की कहानी मेघना माथुर यानि प्रियंका चोपड़ा पर केंद्रित थी। फिल्म का शोनाली का किरदार पतन को जा रही मॉडल का था, जो हताशा में नशीली दवाओं में डूब जाता है। इस भूमिका के लिए कंगना रनौत को सपोर्टिंग एक्ट्रेस का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। अनुराग कश्यप की आधुनिक देवदास पर फिल्म देव डी में देवदास का किरदार पारो की शादी हो जाने के बाद ड्रग्स लेने लगता है। अनुराग कश्यप के चले बिजॉय नांबियर की फिल्म शैतान के नशीली दवाओं और शराब में डूबे पांच दोस्त नशे में चूर हो कर अपनी कार से एक स्कूटर सवार को ठोंक डालते हैं। इसके बाद शुरू होता है उनका पश्चाताप और एक के बाद ज़िंदगियों का ख़त्म होना। कंगना रनौत की फिल्म रिवाल्वर रानी में एक्टर बनने मुंबई आया वीर दास का किरदार हमेशा कोकीन सुडकता रहता है। हँसी तो फसी में परिणीति चोपड़ा का किरदार डिप्रेशन से उबरने के लिए ड्रग्स लेता है। रागिनी एमएमएस में एक जोड़ा नशे वाली सिगरेट पीता है। इसके बाद वह लोग सेक्स करने शावर के नीचे जाते हैं। तभी लड़का प्रेत बन जाता है। लड़की नशीली सिगरेट को इसका कारण बताती है। गैंग्स ऑफ़ वास्सेपुर में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी हर समय चरस पीते रहते हैं। विशाल भरद्वाज की फिल्म ७ खून माफ़ में सुसन्ना (प्रियंका चोपड़ा) के दूसरे पति बने जॉन अब्राहम ड्रग्स लेते थे । उसकी ज़्यादतियों से तंग आकर सुसन्ना ड्रग की ओवर डोज़ देकर मार देती है।
ड्रग्स ने बनाया ज़ोंबी
कृष्णा डी के और राज निदिमोरु की निर्देशक जोड़ी की फिल्म गो गोवा गॉन में कुणाल खेमू और वीर दास के करैक्टर गोवा की एक रेव पार्टी में जाते हैं। नशे में डूबने के बाद जब वह सुबह उठते हैं तो पाते हैं कि नशे ने वहा मौजूद तमाम लोगों को ज़ोंबी बना दिया है। इसके बाद शुरू होती है कॉमिक भागदौड़ और जोम्बियों की मारकाट। सैफ अली खान ज़ोंबी के वायरस के शिकार ज़ोंबी हंटर बने थे।
ड्रग्स पर हॉलीवुड
नशीली दवाओं के अंतर्राष्ट्रीय रैकेट को हॉलीवुड की कई फिल्मों में दिखाया गया है। इनमे डायरेक्टर रिडले स्कॉट की डंजेल वाशिंगटन और रशेल क्रोव की फिल्म अमेरिकन गैंगस्टर, डायरेक्टर ब्रायन डी पाल्मा की अल पचीनो अभिनीत स्कारफेस, निर्देशक डैनी बॉयल की ट्रेनस्पॉटिंग, फर्नांडो मेिरेलस की फिल्म सिटी ऑफ़ गॉड, स्टीवन सोडरबर्ग निर्देशित ट्रैफिक, कोएन ब्रदर्स निर्देशित ऑस्कर अवार्ड विजेता फिल्म नो कंट्री फॉर ओल्ड मेन, डैरेन अरोनोफस्की निर्देशित रिक्विम फॉर अ ड्रीम, निर्देशक टेरी विलियम की फियर एंड लोथिंग इन लॉस वेगासक्वेंटिन टारनटिनो की फिल्म पल्प फिक्शन, टेड डेमे की ब्लो, रिचर्ड लिंकलेटर के डैजड एंड कन्फ्यूज्ड और डायरेक्टर जोशुआ मर्स्टन की मारिया फुल ऑफ़ ग्रेस के नाम उल्लेखनीय हैं।
ममता कुलकर्णी
नाना पाटेकर की हिट फिल्म तिरंगा से अपने करियर की शुरुआत करने वाली ममता कुलकर्णी ने अपनी सेक्स अपील के बलबूते शाहरुख़ खान, सलमान खान, आमिर खान और सैफ अली खान के साथ फिल्में की। वह जब तब अपने नखरों और हरकतों के कारण चर्चित होती रही। एक दिन ममता कुलकर्णी यकायक गायब हो गई।हाल ही में महाराष्ट्र में ठाणे पुलिस के ममता कुलकर्णी के पति विकी गोस्वामी के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस जारी करने की खबर आई है। ममता और उनके पति नशीली दवाओं की तस्करी में लिप्त बताये जाते हैं।
ड्रग्स पर 'गुमराह' करती फिल्म
निर्माता यश जौहर और निर्देशक महेश भट्ट ने १९९३ में नशीली दवाओं की तस्करी के विषय पर एक फिल्म गुमराह बनाई थी। इस फिल्म में श्रीदेवी ने एक सिंगर रोशनी का किरदार किया था, जिसे राहुल प्रमोट करता है और विदेशों में शो करवाता है। ऐसे ही एक शो के लिए जाते समय रोशनी हांगकांग एयरपोर्ट पर नशीली दवाओं की तस्करी के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया जाता है। उसे फांसी की सज़ा हो जाती है। ऐसे में जगन्नाथ उसकी मदद करता है। संजय दत्त ने जगन्नाथ और राहुल रॉय ने प्रमोटर राहुल का किरदार किया था। इस फिल्म को रॉबिन भट्ट और सुजीत सेन ने लिखा था। लेकिन, वह पकड़ नहीं बन पाई थी। फिल्म में न तथ्य थे, न विषय की गहराई से समझ थी। यह फिल्म श्रीदेवी और संजय दत्त की फ्लॉप फिल्मों में शुमार की जाती है।
नेपाल से गोवा तक ड्रग्स
१८ साल बाद निर्देशक रोहन सिप्पी को गोवा में नशीली दवाओं का धंधा नज़र आया। उस दौर में गोवा इस खासियत के कारण मशहूर हो रहा था। फिल्म में नशीली दवाओं के तस्करों की तरकीबों, पुलिस की कोशिशों और नशे के दुष्परिणाम का चित्रण काफी अच्छी तरह से हुआ था। इस फिल्म में दीपिका पादुकोण पर हरे राम हरे कृष्णा का दम मारो दम गीत का रीमिक्स वर्शन फिल्माया गया था । इसके बावजूद फिल्म फ्लॉप हुई। जिस हरे राम हरे कृष्णा के गीत पर रोहन सिप्पी ने गोवा पर अपनी फिल्म का नाम रख था, देव आनंद और ज़ीनत अमान की यह फिल्म नेपाल में हिप्पियों और नशे के जाल पर केंद्रित थी। इस संगीतमय फिल्म ने हिंदुस्तानी दर्शकों को काफी प्रभावित किया था फिल्म सुपर हिट साबित हुई। लेकिन, इसके बाद कोई ऎसी सफल फिल्म नहीं बनाई जा सकी।
ड्रग्स से लग जाते हैं 'पंख'
सुदीप्तो चट्टोपाध्याय निर्देशित फिल्म को नशीली दवाओं पर केंद्रित फिल्म कहना ठीक नहीं होगा। इस फिल्म में एक बच्चे के मनोविज्ञान का भी चित्रण किया गया था। जेरी एक बर्बाद परिवार से है। वह फिल्मों में लड़कियों का किरदार करता है। माँ के साथ ख़राब सम्बन्ध उसे नशे में धकेल देते हैं। नशीली दवाओं की डोज़ लेकर वह बिपाशा बासु की फंतासी करता है। यह फिल्म बाल मनोविज्ञान की दृष्टि से प्रशंसनीय थी। नशा तो एक पहलू था ही।
नशीली दवाओं के आदती किरदार
बॉलीवुड की काफी फिल्मों के किरदार नशा लेने वाले दिखाये गए हैं। मधुर भंडारकर की फैशन इंडस्ट्री पर फिल्म फैशन की कहानी मेघना माथुर यानि प्रियंका चोपड़ा पर केंद्रित थी। फिल्म का शोनाली का किरदार पतन को जा रही मॉडल का था, जो हताशा में नशीली दवाओं में डूब जाता है। इस भूमिका के लिए कंगना रनौत को सपोर्टिंग एक्ट्रेस का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। अनुराग कश्यप की आधुनिक देवदास पर फिल्म देव डी में देवदास का किरदार पारो की शादी हो जाने के बाद ड्रग्स लेने लगता है। अनुराग कश्यप के चले बिजॉय नांबियर की फिल्म शैतान के नशीली दवाओं और शराब में डूबे पांच दोस्त नशे में चूर हो कर अपनी कार से एक स्कूटर सवार को ठोंक डालते हैं। इसके बाद शुरू होता है उनका पश्चाताप और एक के बाद ज़िंदगियों का ख़त्म होना। कंगना रनौत की फिल्म रिवाल्वर रानी में एक्टर बनने मुंबई आया वीर दास का किरदार हमेशा कोकीन सुडकता रहता है। हँसी तो फसी में परिणीति चोपड़ा का किरदार डिप्रेशन से उबरने के लिए ड्रग्स लेता है। रागिनी एमएमएस में एक जोड़ा नशे वाली सिगरेट पीता है। इसके बाद वह लोग सेक्स करने शावर के नीचे जाते हैं। तभी लड़का प्रेत बन जाता है। लड़की नशीली सिगरेट को इसका कारण बताती है। गैंग्स ऑफ़ वास्सेपुर में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी हर समय चरस पीते रहते हैं। विशाल भरद्वाज की फिल्म ७ खून माफ़ में सुसन्ना (प्रियंका चोपड़ा) के दूसरे पति बने जॉन अब्राहम ड्रग्स लेते थे । उसकी ज़्यादतियों से तंग आकर सुसन्ना ड्रग की ओवर डोज़ देकर मार देती है।
ड्रग्स ने बनाया ज़ोंबी
कृष्णा डी के और राज निदिमोरु की निर्देशक जोड़ी की फिल्म गो गोवा गॉन में कुणाल खेमू और वीर दास के करैक्टर गोवा की एक रेव पार्टी में जाते हैं। नशे में डूबने के बाद जब वह सुबह उठते हैं तो पाते हैं कि नशे ने वहा मौजूद तमाम लोगों को ज़ोंबी बना दिया है। इसके बाद शुरू होती है कॉमिक भागदौड़ और जोम्बियों की मारकाट। सैफ अली खान ज़ोंबी के वायरस के शिकार ज़ोंबी हंटर बने थे।
ड्रग्स पर हॉलीवुड
नशीली दवाओं के अंतर्राष्ट्रीय रैकेट को हॉलीवुड की कई फिल्मों में दिखाया गया है। इनमे डायरेक्टर रिडले स्कॉट की डंजेल वाशिंगटन और रशेल क्रोव की फिल्म अमेरिकन गैंगस्टर, डायरेक्टर ब्रायन डी पाल्मा की अल पचीनो अभिनीत स्कारफेस, निर्देशक डैनी बॉयल की ट्रेनस्पॉटिंग, फर्नांडो मेिरेलस की फिल्म सिटी ऑफ़ गॉड, स्टीवन सोडरबर्ग निर्देशित ट्रैफिक, कोएन ब्रदर्स निर्देशित ऑस्कर अवार्ड विजेता फिल्म नो कंट्री फॉर ओल्ड मेन, डैरेन अरोनोफस्की निर्देशित रिक्विम फॉर अ ड्रीम, निर्देशक टेरी विलियम की फियर एंड लोथिंग इन लॉस वेगासक्वेंटिन टारनटिनो की फिल्म पल्प फिक्शन, टेड डेमे की ब्लो, रिचर्ड लिंकलेटर के डैजड एंड कन्फ्यूज्ड और डायरेक्टर जोशुआ मर्स्टन की मारिया फुल ऑफ़ ग्रेस के नाम उल्लेखनीय हैं।
ममता कुलकर्णी
नाना पाटेकर की हिट फिल्म तिरंगा से अपने करियर की शुरुआत करने वाली ममता कुलकर्णी ने अपनी सेक्स अपील के बलबूते शाहरुख़ खान, सलमान खान, आमिर खान और सैफ अली खान के साथ फिल्में की। वह जब तब अपने नखरों और हरकतों के कारण चर्चित होती रही। एक दिन ममता कुलकर्णी यकायक गायब हो गई।हाल ही में महाराष्ट्र में ठाणे पुलिस के ममता कुलकर्णी के पति विकी गोस्वामी के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस जारी करने की खबर आई है। ममता और उनके पति नशीली दवाओं की तस्करी में लिप्त बताये जाते हैं।
Thursday 9 June 2016
प्रियंका चोपड़ा की पहली भोजपुरी फिल्म
क्वांटिको के बाद बेवाच मूवी की शूटिंग कर मार्च के आखिर में स्वदेश लौटी प्रियंका चोपड़ा अब तक ३० ब्रांड एनडोर्समेंट, चार फिल्म निर्माताओं से बातचीत और दो पत्रिकाओं के लिए फोटोशूट करवा चुकी है। हॉलीवुड में अपना झंडा गड़वा चुकी प्रियंका चोपड़ा अब क्षेत्रीय सिनेमा के लिए कुछ करना चाहती हैं। उनके बैनर पर्पल पेबल पिक्चरस के अंतर्गत बनाई गई पहली भोजपुरी फिल्म बम बम बोल रहा काशी इस शुक्रवार रिलीज़ हो रही है। इस फिल्म का निर्देशन संतोष मिश्र कर रहे हैं। फिल्म में भोजपुरी फिल्मों बड़े सितारे दिनेश लाल यादव निरहुआ और आम्रपाली पाण्डेय मुख्य भूमिका में है। इस फिल्म के ९ जून के पटना प्रीमियर में प्रियंका चोपड़ा भी शामिल हो रही हैं। इससे साफ़ है कि वह अपनी पहली भोजपुरी फिल्म के प्रति कितना गंभीर है। प्रियंका चोपड़ा के बैनर से एक मराठी और एक पंजाबी फिल्म का निर्माण भी किया जायेगा। प्रियंका का मानना है कि कहानी में गहराई होनी चाहिए। दर्शक ऎसी फिल्म पसंद करेगा। इसे ध्यान में रख कर ही प्रियंका क्षेत्रीय भाषाओँ में फ़िल्में बना रही हैं।
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