Friday, 15 November 2013

लम्पट रोमांस और हिंसा के चटख रंगों वाली दीपिका-रणवीर की लीला

 


निर्देशक संजयलीला भंसाली दिल से फ़िल्में बनाते रहे हैं. उनकी रोमांस फ़िल्में दर्शकों को अन्दर तक छू जाती हैं. हम दिल दे चुके सनम के समीर और नंदिनी का रोमांस दर्शकों पर खुमार की तरह कुछ इस तरह चढ़ा है कि सलमान खान और ऐश्वर्या राय की जोड़ी, केवल एक फिल्म के बावजूद, सबसे अधिक रोमांटिक जोड़ी समझी जाती है. शाहरुख़ खान के देवदास से छलका दर्द आज की खिलंदड युवा पीढ़ी को भी प्रभावित कर गया. लेकिन, राम-लीला में वह दिल खो चुके सनम लग रहे हैं. उन्होंने यह फिल्म दिल से नहीं दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल कर बनायी हैं. मोटे तौर पर राम-लीला शेक्सपियर के नाटक रोमियो एंड जूलिएट पर आधारित है. ऐसे कथानक पर बनी फ़िल्में दर्शकों के दिमाग पर कब्ज़ा कर लेती हैं. पिछले साल रिलीज़ अर्जुन कपूर और परिणीती चोपड़ा अभिनीत फिल्म इशक़जादे वायलेंट
रोमांस फिल्म का बढ़िया उदाहरण है. इस लिहाज़ से राम-लीला मे भी रोमांस तगड़ा होना चाहिए था. मगर, संजयलीला भंसाली  ने रोमियो जूलिएट को अपने तौर पर परिभाषित कर रोमांस को सेक्स की तगड़ी डोज़ में बदल दिया है तथा इमोशन  पर एक्शन और वायलेंस को तरजीह दी है. गुजरात के दो गैंगस्टर गुटों के खून खराब से शुरू हो कर यह कहानी रणवीर सिंह के छैला डांस और फिर होली के दिन दीपिका पादुकोण आक्रामक रोमांस में आकर यह फिल्म गर्मागर्म उत्तेजक
 
चुम्बनों की बौछार के साथ साथ गोलियों की बौछार की रासलीला से भी दर्शकों का मनोरंजन करती है. फिल्म की शुरुआत में, होली के दिन रणवीर के होंठों पर अपने होंठ रख कर तथा जाते जाते दाहिनी आँख हलके से दबा कर दीपिका पादुकोण जिस गर्मागर्म रोमांस का वायदा करती हैं, उसे वह फिल्म की आखिरी से पहले तक पूरा करती हैं. दीपिका ने अपनी सेक्स अपील का रोमांस प्रदर्शन के लिए भरपूर इस्तेमाल किया है. वह गुजराती बाला के रूप में खूबसूरत लगी हैं. उन्होंने अंग प्रदर्शन करने में कोताही नहीं बरती है. बेहिचक बोल्ड संवाद बोले हैं. रणवीर सिंह रसिया राम को साकार करते हैं. लेकिन, सब कुछ मशीनी तरीके से होता है. फिल्म का अंत होते होते रणवीर और दीपिका डॉन का चोला ओढ़ लेते हैं. उस समय ऐसा लगता है कि ज़बरदस्त अभिनय, भावनाओं का टकराव और तालियाँ बटोरी संवाद  सुनने को मिलेंगे. लेकिन, यहीं आकर संजयलीला भंसाली बिखर जाते है. फिल्म के आखिरी में इशक़जादे के अर्जुन कपूर और परिणीती चोपड़ा की तरह रणवीर और दीपिका का एक दूसरे को गोली मारना दर्शकों को निराश कर देता है.
 
संजयलीला भंसाली ने गरिमा और सिद्धार्थ के साथ मिल कर फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी है. उन्होंने उत्तेजक रोमांस के मौके तैयार किये है. बोल्ड सिचुएशन और उन्माद की परिस्थितियां हैं. बीच बीच में खून खराबा भी है. बेतहाशा तनाव भी. दर्शकों को देखते रहने के अलावा कुछ सोचने का मौका नहीं मिलता. अलबत्ता, अपने इस प्रयास में यह टीम इन दो  गेंगस्टर के बीच टकराव के खतरनाक होने को उभार नहीं पाए हैं. सब बच्चों का खेल जैसा सोचा समझा लगता है. कुछ दृश्य बहुत शानदार बने हैं. मसलन, रणवीर के भाई और दीपिका के भाई के बीच गोली चला कर शराब की बोतल तोड़ने, रणवीर की विधवा भाभी का दूसरे गैंग के लोगों से बचने के लिए भागने, रणवीर सिंह का दीपिका के पास जाने के लिए नदी में छलांग लगाने के दृश्य कल्पनाशील हैं.
 
संजयलीला भसाली ने दीपिका पादुकोण के ग्लैमर और उनकी उत्तेजना को खूब अच्छी तरह से भुनाया है. वह उन्हें गुजराती जूलिएट तो नहीं बना पाए, लेकिन  उत्तेजक अभिसारिका ज़रूर बना पाए हैं. राम और लीला का समर्पण नहीं उतर पाया है. संजय ने  फिल्मसिटी में महंगे सेट खड़े कर भव्यता बनायी है. पूरा गुजराती माहौल बखूबी उतरा है.इसके लिए प्रोडक्शन डिज़ाइनर वसीक खान और  costume डिज़ाइनर जोड़ी  मक्सिमा बासु और अंजू मोदी बधाई के पत्र हैं, जिन्होंन   भंसाली को डिज़ाइनर सब्यसाची मुखर्जी की याद तक नहीं आने दी. शाम कौशल के स्टंट ज़बरदस्त हैं. संजयलीला भंसाली ने बतौर संगीतकार फिल्म का माहौल बना दिया है. उनकी धुनें चरित्रों को उभारती है. राम-लीला में उत्तेजक रोमांस और वायलेंस हैं. इस माहौल में लाल और चटख रंग ख़ास होते हैं. एस रवि वर्मन का कैमरा इन चटख रंगों को बखूबी उभरता है. उन्होंने किसी दृश्य को दिखाते समय आसपास के माहौल को भी पकड़ा है. रणवीर की भाभी बरखा बिष्ट को दीपिका के गैंग के लोग पकड़ने के लिए दौडाते हैं. उसके सर पर पानी का कलसा है. वह जब भागती है तो वह सर से गिर कर ढलान पर भागती बरखा के तेज़ रफ़्तार कदमों के साथ कलसा भी लुढ़कता जाता है. यह दृश्य वर्मन की प्रतिभा का परिचायक है.
 
राम-लीला कहानी दो चरित्रों की है. पर गंग्स्टरों के टकराव पर इस फिल्म में चरित्रों की भरमार है. दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह के अलावा फिल्म में सुप्रिया पाठक, अभिमन्यु सिंह, ऋचा चड्ढा, बरखा बिष्ट, गुलशन देवैया, शरद केलकर, अंशुल त्रिवेदी, आदि जैसे सशक्त कलाकार हैं. यह सभी फिल्म को ज़बरदस्त सपोर्ट करते हैं. पर दीपिका पादुकोण एक बार फिर अपनी सेक्सी इमेज को पुख्ता करते हुए अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करती है. ख़ास तौर पर उनके डॉन के रूप में परिवर्तित होने के सीक्वेंस प्रभावशाली है. वह अपनी आँखों और चहरे के हाव भाव से दर्शकों के नाता जोड़ लेती हैं. रणवीर सिंह ने अपना दर्शक वर्ग तैयार कर लिया है. वह राम को अपने तरीके से बखूबी कर ले जाते हैं. हालाँकि,  लेखकों ने दीपिका का चरित्र को उभरने पर ज्यादा ध्यान दिया है. गुलशन देवैया भवानी के रूप में
 
प्रभावित करते हैं. लेकिन, उनका चरित्र काफी कमज़ोर लिखा गया है. वह पूरी तरह से खल चरित्र में नहीं उभरा है. बरखा बिष्ट और ऋचा चड्ढा अपने अपने रोल सहज तरीके से कर ले जाती हैं. अभिमन्यु सिंह और शरद केलकर स्वाभाविक हैं. सुप्रिया पाठक को लेडी डॉन के रूप में देखना सुखद लगता हैं. भाव सम्प्रेषण की तो वह उस्ताद हैं ही. प्रियंका चोपड़ा एक आइटम में नज़र आती हैं. वह मनोरंजक लगती हैं. अगर मनोरंजन नहीं भी करती तो चलता .
संजयलीला भंसाली ने बतौर निर्माता एक भव्य फिल्म बनायी हैं. फिल्म के चटख रंग आँखों को सुखद लगते हैं. लेकिन, जहाँ तक रोमांस की बात है, वह उभरने नहीं पाता. गोलियों की रास लीला के साथ दीपिका की रोमांस लीला साधारण काम-लीला बन जाती हैं.




















































No comments: