Thursday, 14 November 2013

दीपिका की राम लीला या प्रियंका की काम लीला !

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कल से संजयलीला भंसाली की राम-लीला देश के सभी सिनेमाघरों में रिलीज़ होगी. मंगलवार १२  नवम्बर को जब दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने जब आधा दर्जन धार्मिक संगठनों की अपील पर राम-लीला की रिलीज़ पर रोक लगायी थी तथा भंसाली को रामलीला टाइटल का इस्तेमाल करने से रोका था, उस समय भी ऎसी उम्मीद नहीं थी कि फिल्म १५ नवम्बर को रिलीज़ नहीं हो पायेगी. क्योंकि, आजकल कभी अपनी फिल्म को प्रचार देने के लिए इस प्रकार की रिट फिल्म निर्माताओं द्वारा दायर की जाती हैं या फिर धर्म के नाम पर कुछ संगठनों  द्वारा दायर की जाती है. लेकिन, अंततः किसी न किसी न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद यह फ़िल्में रिलीज़ भी होती रहती है. बशर्ते,  ऎसी फिल्म राजनीतिक स्वरों वाली न रही हों.
सवाल यह नहीं कि संजयलीला भंसाली की फिल्म का नाम धार्मिक स्वर और रंगत वाला है या नहीं. इसमे कोई शक नहीं कि रामलीला का प्रयोग हिन्दुओ के अराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम राम की लीलाओं के मंचन के लिए उपयोग होता रहा है. देश का बच्चा बच्चा रामलीला और इसके प्रमुख चरित्रों के बारे में जानता है. इसलिए संजयलीला भासली भी जानते थे कि उनकी फिल्म का नाम हिन्दुओं की भावनाओं को छुएगा. इसीलिए उन्होंने फिल्म शुरू करते समय अपनी फिल्म के टाइटल को लेकर कहा भी था कि मेरी फिल्म के राम और लीला गुजराती हैं. उनका ऐसा बयान देने का मतलब उस भावना को शांत करना था, जो धार्मिक ज्वार लिए हो सकती थी. इसके बावजूद भंसाली ने कभी अपनी फिल्म का शीर्षक 'रामलीला' रखने से गुरेज नहीं किया. फिल्मों के तमाम पोस्टरों में (देखें ऊपर का पोस्टर) इसे  'रामलीला' बताया गया, जो कि कहीं न कहीं धार्मिक राम लीला का आभास देता था. लोअर कोर्ट ने कल १३ नवम्बर को अपने पूर्व के आदेश को इस






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आधार पर वापस लिया कि उन्हें नहीं मालूम था कि दिल्ली उच्च न्यायालय फिल्म पर रोक लगाने से पहले ही इनकार कर चूका है. कोर्ट को यह तथ्य भी तब संज्ञान में आये जब इरोस इंटरनेशनल मीडिया लिमिटेड के वकील ने उनके सामने रखे. यहाँ सोचने पर विवश होना पड़ता है कि कई देशों में धंधा चलाने वाली इरोस के विधिवेत्ताओं को यह तथ्य संज्ञान में नहीं था कि उन्होंने मंगलवार को रोक लगाने वाली याचिका की सुनवाई के समय इसे कोर्ट के  संज्ञान में नहीं रखा. इससे कहीं न कहीं इस शंका का उठाना स्वाभाविक है कि यह पूरा ड्रामा इरोस इंटरनेशनल मीडिया का तो खेला हुआ नहीं था. इरोस ने कोर्ट को बरगलाया भी कि उनकी फिल्म के पोस्टरों में 'राम-लीला : गालियों की रासलीला' लिखा है न कि 'रामलीला'. जबकि, फिल्म के तमाम पोस्टर हो हल्ला और वाद दायर होने के बाद ही बदले गए.
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कहा जा सकता है कि राम-लीला की कोर्ट लीला संजयलीला भंसाली द्वारा फिल्म को प्रचार देने के लिए रची गयी लीला थी. भंसाली ने अपनी फिल्म को धार्मिक रंग देने के बाद सेक्स के रंग भरने की पूरी कोशिश की गयी. राम बने रणवीर सिंह और लीला बनीं दीपिका पादुकोण के गर्मागर्म रोमांस दृश्यों को रंगीन लाल चित्रों द्वारा सुर्ख करने की भरपूर कोशिश की गयी. दीपिका और रणवीर के कामुक दृश्यों वाले फोटो से काम नहीं चला तो प्रियंका चोपड़ा की काम लीला का इस्तेमाल किया गया. उनका फिल्म में एक आधुनिक मुजरा सामने लाया गया. इसमे प्रियंका पूरे कामुक हाव भाव के साथ नाच गा रही थीं. हालाँकि, गा रही थी 'राम चाहे लीला, लीला चाहे राम', मगर दर्शकों का पूरा ध्यान प्रियंका चोपड़ा की उन्मुक्त देह की ओर ही था.
 
संजयलीला भंसाली के लिए खुद को संजीदा निर्देशक साबित करने के लिए राम-लीला का महत्व है. सांवरिया और गुज़ारिश की बड़ी असफलता के बाद राम-लीला उनके करियर का बड़ा दांव है. उन्होंने इस साल की सबसे सफल दो अभिनेत्रियों- दीपिका पादुकोण को बतौर नायिका तथा प्रियंका चोपड़ा को बतौर आइटम गर्ल ले रखा है. यह दोनों बॉक्स ऑफिस को काफी कुछ सम्हाल सकती हैं. लेकिन, भंसाली को ड्रामा खेलने में महारत हासिल है. हम दिल दे चुके सनम और देवदास इसका प्रमाण हैं. राम-लीला में भी गंग्स्टरों के टकराव और प्रेम का ड्रामा की परखा हुआ ड्रामा है. गुलशन देवैया और ऋचा चड्ढा जैसे सशक्त कलाकार भी हैं. अब कल ही मालूम पड़ेगा कि राम और उसकी लीला दर्शकों को कितना भाती है. वैसे यह अच्छा ही हुआ कि कोर्ट के आदेश की आड़ में बुद्धवार को  फिल्म का प्रीव्यू कैंसिल कर दिया गया. हो सकता है कि यह फिल्म पर भारी पड़ता.

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