Friday, 29 November 2013

गैंगस्टर, नेता और पुलिस की आड़ में दर्शकों को मूर्ख बनाने का तिग्मांशु धुलिया का नेक्सस

  Displaying Saif Ali Khan at Kakori Railway track.JPG


                   तड़ातड़  तड़ातड़ गोलियां चल रही हैं. लोग चीखते चिल्लाते इधर उधर भाग रहे हैं. पुलिस का नामोनिशान नहीं है. सैफ अली खान लखनऊ के सबसे फैशनेबुल बाज़ार हज़रतगंज से कारों के बीच दौड़ते हुए गुलशन ग्रोवर का पीछा कर रहे हैं और अंततः उन्हें कैसरबाग़ बारादरी हैं.
                   आम तौर पर निर्देशक तिग्मांशु धुलिया की फिल्मों से किसी नयेपन की उम्मीद की जाती है. डाकू पान सिंह तोमर को हीरो बनाने वाले, साहब बीवी और गैंगस्टर तथा साहब बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स में महिला चरित्र को बोल्ड और बन्दूक पसंद  दिखाने वाले तिग्मांशु धुलिया की आज रिलीज़ फ़िल्म बुलेट राजा की कुछ ऎसी ही शुरुआत होती है और ऐसे ही ख़त्म भी होती है. फ़िल्म में सैफ अली खान का बोला डायलाग कि जब हम आते है तो गरमी बढ़ जाती है ठंडक का एहसास ख़त्म नहीं करता। तिग्मांशु धुलिया नेता, गैंगस्टर और पुलिस का कथित नेटवर्क पेश करने की कोशिश करने में बिलकुल असफल रहते है. वह एक गैंगस्टर की गैर मामूली कहानी को उतने ही ज़यादा मामूली ढंग से दर्शकों के सामने परोसते हैं. सैफ अली खान और जिम्मी शेरगिल लखनऊ में अपनी बेकारी दूर करने आते हैं और नेताओं के चक्कर में जेल  जाने को मज़बूर होते हैं. वहाँ उनकी मुलाक़ात एक क़ैदी से होती है, जो उन्हें एक नेता के लिए काम करने के लिए कहता है. प्रोफेशनल गुंडों से काम करवाने वाला वह नेता, क्यों  दो लौंडों को अपना काम सौंपता हैं, इसे धुलिया ही अच्छी तरह से बता सकते हैं. बहरहाल, इसके बाद पूरी फ़िल्म में अनियंत्रित गोलीबारी, भाग दौड़ और सैफ अली खान और सोनाक्षी सिन्हा का ठंडा रोमांस देखने को मिलाता है. यहाँ तक कि सेक्स बम माही गिल भी कोई गरमी पैदा नहीं कर पाती।
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                            पूरी फ़िल्म अविश्वसनीय कारनामों से भरी हुई है. दो मामूली लड़कों का बरसती गोलियों के बीच बच निकलना, बिल्डिंग में काम कर रहे मज़दूरों का भागने के बजाय उनके लिए तालियां बजाना, बीच हज़रतगंज में गैंगवॉर  के बावज़ूद पुलिस का नज़र न आना, सोनाक्षी सिन्हा का चालू पीस न होने के बावज़ूद दो गुंडों के साथ एक कमरा शेयर करना, जैसे प्रसंग काफी नकली लगते हैं. राज बब्बर का लखनऊ के आईजी पुलिस से इटावा के इंस्पेक्टर का लखनऊ ट्रान्सफर करवाना जैसे प्रसंग धुलिया की समझदारी का नमूना हैं. ऎसी बहुत सी नासमझदारी वाली खामियां हैं, जिन्हे धुलिया को अवॉइड करना चाहिए था. 
 Displaying Mahie Gill in the song 'Dont Touch my Body' from Bullett Raja.JPG
                           फ़िल्म की कमज़ोर कड़ी खुद तिग्मांशु धुिलया है. वह सैफ अली खान के स्टारडम में फंस  हैं. उनका पूरा ध्यान सैफ के करैक्टर के बूते पर फ़िल्म को सफल बनाने की और लगा रहा. इस फेर में उन्होंने राज बब्बर, गुलशन ग्रोवर, विद्युत् जम्वाल और चंकी पाण्डेय के चरित्र अधूरे लिखे। अब यह बात दीगर है कि बिलकुल निष्प्रभावी सैफ अली खान पर जिमी शेरगिल भरी पड़ते हैं. सोनाक्षी सिन्हा फ़िल्म की जान बन सकती थीं, लेकिन तिग्मांशु ने उन्हें बिलकुल बेजान भूमिका दी. वह किसी भी प्रकार से न तो फ़िल्म अभिनेत्री लगती हैं, न ही बंगालिन सुंदरी। जिमी शेरगिल ज़रूर प्रभावित करते हैं. रवि किशन का धंधा भोजपुरी फिल्मों में मंदा लगता है. अन्यथा, वह इस प्रकार का रोल नहीं चुनते। 



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                          हिंसा से भरपूर इस फ़िल्म में संगीत रिलीफ दे सकता था. फ़िल्म की रिलीज़ से पहले यह कहा गया था कि साजिद वाजिद ने तिग्मांशु धुलिया के लिए डोंट टच माय बॉडी कई सालों से सुरक्षित राखी थी. समझ में नहीं आ रहा कि माही गिल पर फिल्मांकित इस गीत को कौन फ़िल्म मेकर पसंद करता। इतना बेकार गीत है यह. ऐसे में बाकी गीतों पर कुछ कहना बेकार है. फ़िल्म के संवाद तिग्मांशु धुलिया के साथ अमरेश मिश्रा ने ऐंवें ही लिखे हैं. आर एस विनोद ने अपना कैमरा जहाँ तिग्मांशु ने चाहा रख दिया है।  बाकी कुछ भी ख़ास नहीं।
                          कुछ बातें फ़िल्म के निर्देशक, नायक और नायिका से.
                          सोनाक्षी सिन्हा सावधान हो जाओ. ऐसे ही रोल करती रही तो बॉलीवुड से बाहर होने में देर नहीं लगेगी। लुटेरा जैसे रोल ढूंढो।
                         सैफ अली खान अब तुम्हे मालूम हो गया होगा कि एसआरके डॉन क्यों है!
                         तिग्मांशु धुलिया, गैंगस्टर मूवीज के उस्ताद रामगोपाल वर्मा ने गैंगस्टर फिल्मों से तौबा कर ली है। अब आप भी तौबा कर लो. पान सिंह तोमर जैसे कुछ करैक्टर देखो।
                          अब दर्शकों से. सैफ अली खान के प्रशंसक हो फ़िल्म देख अ पछतावा कम होगा। अन्यथा---!

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