पूरे देश में कोरोना के सन्नाटे के बाद, ऐसा लगता है कि बॉक्स ऑफिस पर ग़दर छिड़ गया है. यह सब हुआ है विवेक रंजन अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स के कारण. ऐसा लगता है कि द कश्मीर फाइल्स बुलडोज़र बन गई है. पहले इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर, अखिल भारतीय सुपरस्टार प्रभास और पूजा हेगड़े की रोमांस फिल्म राधे श्याम को धूलधूसरित कर दिया. अब इस फिल्म ने, एक हफ्ते बाद, यानि १८ मार्च को प्रदर्शित अक्षय कुमार की खालिस मसाला फिल्म बच्चन पाण्डेय को धुल चटा दी है. बच्चन पाण्डेय ने पहले साप्ताहांत में १३.२५ करोड़, १२ करोड़ और १२ करोड़ का कलेक्शन करते हुए ३७.२५ करोड़ का राजस्व प्राप्त किया. इसके मुकाबले द कश्मीर फाइल्स का काफिला इसे दुगना यानि १९.१५ करोड़, २४.८० करोड़ और २६.२० करोड़ के कारोबार के साथ ७०,७५ करोड़ का साप्ताहांत कर पाने में सफल हुई. इस प्रकार से दूसरे सप्ताहांत तक १६७.४५ करोड़ कारोबार कर चुकी द कश्मीर फाइल्स २०० करोड़ के क्लब में प्रवेश पाने जा रही है. इसकी सफलता को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह फिल्म ३०० करोड़ क्लब तो आसानी से प्राप्त कर लेगी.
चेन्नई में झंडा - द कश्मीर फाइल्स हिंदी बेल्ट तक ही सफल नहीं. फिल्म ने चेन्नई में भी झंडा गाड़ दिया है. यह तमिलनाडु की राजधानी में किसी हिंदी फिल्म की धमक नहीं, बल्कि हिंदी और ब्राह्मण विरोधी चेन्नई में द कश्मीर फाइल्स की सफलता मानवीय संवेदनाओं को छू लेने वाली है. चेन्नई में, द कश्मीर फाइल्स को पहले दिन तीन सिनेमाघरों में लगाया गया था. परन्तु आज वहां यह फिल्म २६ सिनेमाघरों में दिखाई जा रही है. दिलचस्प तथ्य यह है कि फिल्म के शो या तो हाउस फुल है या लगभग भर चुके हैं.
भारतीयों के लिए फिल्म - इसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि द कश्मीर फाइल्स की सफलता किसी राजनीति या सरकार के कारण नहीं. अगर ऐसा होता तो द कश्मीर फाइल्स किसी खास दल द्वारा शासित राज्यों में ही सफलता प्राप्त करती. जबकि, द कश्मीर फाइल्स पूरे हिंदुस्तान में सफलता प्राप्त कर रही है. इससे पता चलता है कि फिल्म ने कश्मीरी पंडितों के दर्द को बहुत स्वाभाविक और मानवीय तरीके से उठाया है. उनके दर्द को पार्टी और राज्य से ऊपर उठ कर आमजन ने महसूस किया है. यही कारण है कि कांग्रेस के सांसद शशी थरूर भी फिल्म की प्रशंसा करने से खुद को नहीं रोक पाए. यहाँ तक कि कभी भारत में पत्नी का भय व्यक्त करने वाले आमिर खान ने भी फिल्म को सभी भारतीयों द्वारा देखे जाने की बात कही.
जनता से उपेक्षित - जो लोग द कश्मीर फाइल्स को प्रचार फिल्म बता रहे हैं, उन्हें शर्म करने के लिए यह बताना काफी होना चाहिए कि गुजरात के २००२ के दंगों पर अभिनेत्री और निर्देशक नंदिता दास ने फिल्म फ़िराक तथा राहुल ढोलकिया ने फिल्म परजानिया का निर्माण किया था. इन फिल्मों के दृश्य प्रचारात्मक इस लिहाज से थे कि फिल्मों में गोधरा कांड को बिलकुल उपेक्षित करते हुए, हिन्दुओ को मुसलमानों को मारने वाला बताया था. इसलिए यह दोनों फ़िल्में बेजान साबित हुई थी. इन्हें बॉक्स ऑफिस पर इक्कादुक्का शो वाला छोटा जीवन ही मिला. फ़िल्में बड़ी फ्लॉप हुई. जबकि, इन फिल्मों के समय में देश में कांग्रेस का राज्य था. फिल्मों के प्रति देश की जनता आकर्षित नहीं हुई थी.
मिलता समर्थन - इसके ठीक विपरीत है द कश्मीर फाइल्स का मामला. फिल्म को आम जन के साथ साथ ख़ास जन का भी समर्थन मिल रहा है. व्यक्तिगत कोशिशे की जा रही है कि फिल्म को ज्यादा से ज्यादा लोग देखें. बेलगाम में एक थिएटर के बाहर एक पोस्टर नज़र आता है. जिसमे किसी ब्रह्मिंस कैफ़े द्वारा लिखा गया है कि फिल्म के टिकट ला कर दिखाओ और पूरा पैसा ले जाओ. कर्णाटक के विधायक बसावन गौड़ा पाटिल ने कश्मीर फाइल्स के १० दिनों तक मुफ्त शो चलाने की घोषणा की. सूरत गुजरात में भी, एक हीरा व्यापारी रामभाई ने अपने सभी कर्मचारियों को द कश्मीर फाइल्स देखने के लिए पैसे दिए. क्रिकेट खिलाड़ी और कश्मीरी सुरेश रैना ने ट्वीट किया- अगर फिल्म आपके दिल को छूती है तो आप कश्मीरियों के न्याय के अधिकार का समर्थन करें. द कश्मीर फाइल्स को विदेश में भी समर्थन मिल रहा है. जर्मनी में द कश्मीर फाइल्स का शो ख़त्म होने के बाद दर्शक अपने सेल फ़ोन की लाइट जला कर खड़े हो गए. कुछ ऐसे ही दृश्य कनाडा आदि दूसरे देशों में भी देखने को मिले.
फिल्म का विरोध भी - जहाँ फिल्म को आमजन का समर्थन मिल रहा है, वही इसका विरोध करने वालों और फिल्म को असफल बनाने की कोशिश करने वालों की कमी भी नहीं. राजस्थान के कुछ सिनेमाघरों के बाहर हाउसफुल का बोर्ड टंगा हुआ था. लेकिन, सिनेमाघर में आधी से अधिक सीटें खाली थी. बताया गया ही कि ऐसा जानबूझ कर, दर्शकों को फिल्म से दूर रखने के लिय किया गया. शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि फिल्म निर्माता क्यों चाहते हैं कि उनकी फिल्म को राज्य जीएसटी से छूट दें. वह तो यहाँ तक सुझाव देती है कि अगर फिल्म निर्माता सचमुच चाहते है कि अधिक से अधिक लोग देखें तो क्यों नहीं फिल्म को ओटीटी पर फ्री स्ट्रीम करवाएं. अर्थात, प्रियंका चतुर्वेदी नहीं चाहती कि फिल्म को जनसमर्थन मिले तथा आगे भी ऐसी फ़िल्में बनाए जाने की कोशिश की जाए.
पहले हफ्ते में १०० करोड़ पार - द कश्मीर फाइल्स को पहले दिन ६०० के आसपास पर्दों में दिखाया गया था. फिल्म ने पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर ३.५५ करोड़ का कारोबार किया था. द कश्मीर फाइल्स ने पहले शो के बाद से ही जनता के दिलो दिमाग पर कब्ज़ा कर लिया. यही कारण था कि फिल्म को दूसरे शुक्रवार से ४ हजार प्रिंट्स में दिखाया जा रहा है. इस फिल्म ने हर दिन के साथ अधिक कारोबार करना शुरू कर दिया है. फिल्म के कलेक्शन में हर दिन बढ़ोतरी होती चली गई. इस प्रकार से द कश्मीर फाइल्स ने ३.५५ करोड़ की ओपनिंग के बाद अगले दिनों में ८.५० करोड़, १५.१० करोड़, १५.०५ करोड़, १८ करोड़, १९.०५ करोड़ और १८.०५ करोड़ के कारोबार के साथ ९७.३० करोड़ का सप्ताह निकाल लिया. फिल्म ने होली के दिन रिलीज़ अक्षय कुमार की एक्शन कॉमेडी बच्चन पाण्डेय को पीछे धकेलते हुए सबसे अधिक १९.१५ करोड़ का कारोबार कर लिया. इस प्रकार से द कश्मीर फाइल्स ने आठ दिनों में ही शतक यानि ११६.४५ करोड़ का कारोबार कर लिया था. द कश्मीर फाइल्स के दूसरे शुक्रवार का कलेक्शन बाहुबली २ के १९.७५ करोड़ के नज़दीक रहा. इससे साबित होता है कि द कश्मीर फाइल्स भाषा और धर्म से ऊपर आम भारतीय द्वारा पसंद की और देखी जा रही है.
४७ साल बाद इतिहास - द कश्मीर फाइल्स ने, भारतीय फिल्म उद्योग के इतिहास में दूसरी बार कीर्तिमान रचा था. १९७५ में, १५ अगस्त को अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार, जया भादुड़ी और अमजद खान की एक्शन फिल्म शोले प्रदर्शित की गई थी. इस फिल्म के सामने एक छोटे बजट की भक्ति फिल्म जय संतोषी माँ प्रदर्शित हुई थी. जय संतोषी माँ की सफलता को लेकर किसी को कोई उम्मीद नहीं थी. लेकिन, जय संतोषी माँ ने इतिहास रच दिया. जय संतोषी माँ का बजट मात्र २५ लाख था. पर फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर २० गुना यानि ५ करोड़ का कारोबार किया. उम्मीद है कि द कश्मीर फाइल्स इससे भी बड़ा इतिहास रच पाएगी.
छोटे बजट की फिल्मो का इतिहास - हिंदी फिल्मों के इतिहास में, द कश्मीर फाइल्स ऎसी छठी फिल्म है, जिसने कम लागत के बावजूद अपने निर्माता की झोली भर दी. ऐसा ही कारनामा दिखाने वाले पूर्व में प्रदर्शित अन्य फिल्मों में कानन कौशल, अनीता गुहा, आशीष कुमार, भारत भूषण की फिल्म जय संतोषी माँ (१९७५), सलमा आगा की सामाजिक फिल्म निकाह (१९८२), नए चेहरे सुशील कुमार और सुधीर कुमार की फिल्म दोस्ती (१९६४), विक्की कौशल की उरी द सर्जिकल स्ट्राइक (२०१९) और आमिर खान की पहली फिल्म क़यामत से क़यामत तक (१९८८) फ़िल्में है.
फिल्म देखने के बाद लोग - द कश्मीर फाइल्स देख कर निकल रहे लोगों की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है. आलोचना की जा रही है कि द कश्मीर फाइल्स से देश का वातावरण जहरीला हो रहा है. लोग सिनेमाघरों से बहार निकलते समय भारत माता की जय के नारे लगा रहे है. लेकिन, ऐसा कहते लोग भूल जाते हैं कि सिनेमा दृश्य और श्रव्य माध्यम है. जो फिल्म अपनी बात आँखों और कानों के रास्ते दिल में उतर जाती है, वही ऎसी प्रतिक्रिया पाती है. यही कारण है कि जो लोग नारे नहीं भी लगा रहे, वह कह रहे हैं कि किसी फिल्म की सफलता के लिए नग्नता जरूरी नहीं, हिन्दुओं और हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाने की जरूरत नहीं, सबसे बड़ी बात किसी सुपरस्टार की भी जरूरत नहीं.
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