जब तक यह लेख प्रकाशित होगा, यशराज फिल्म्स की रणबीर कपूर, संजय दत्त और वाणी कपूर अभिनीत एक्शन फिल्म शमशेरा प्रदर्शित हो चुकी होगी. यह फिल्म कितनी सफल होगी, यह आज के सप्ताहांत के समाप्त होते होते स्पष्ट हो जाएगा. पर इस फिल्म की सफलता का महत्त्व रणबीर कपूर के लिए अत्यधिक है. एक तो उनकी यह फिल्म संजू (२०१८) के चार साल बाद, प्रदर्शित हो रही है. इस फिल्म में रणबीर कपूर पहली बार एक्शन और डकैत चरित्र कर रहे है. अगर यह फिल्म सफल होती है तो रणबीर कपूर रोमांटिक इमेज के अतिरिक्त फिल्में भी सफल बनाने वाले अभिनेता बन जायेंगे. इस फिल्म के बाद उनकी बॉक्स ऑफिस पर पकड़ मजबूत होगी. इसका सीधा प्रभाव उनकी आगामी फिल्म फंतासी ब्रहमास्त्र पार्ट १ शिवा पर भी पड़ेगा.
डाकू फिल्मों का भविष्य- परन्तु, शमशेरा का महत्त्व इसके जोनर के लिए भी है. यह फिल्म डकैत एक्शन फिल्म है. फिल्म के डकैत रणबीर कपूर दोहरी भूमिका में है. रणबीर कपूर के डकैत की सफलता इस जोनर की सफ़लता भी मानी जायेगी. क्या डकैत शमशेरा सफल होगा? क्या हिंदी फिल्मों में डकैत फिल्मो का सिलसिला जमेगा?
प्रारंभिक डाकू- १९६० के दशक में. बॉलीवुड में, डकैत काफी लोकप्रिय हुआ करता था. हर बड़ा अभिनेता फिल्म के परदे पर मुंह ढंके हुए, आधी रात के बाद, घोड़े पर टकबक टकबक करता धुल उड़ता निकलता था. पर हिंदी फिल्मों के इस डाकू को पहली बार अलग रूप में फिल्म आवारा में देखा गया था. आवारा के डाकू जग्गा के एन सिंह बने थे. यह डाकू जज से बदला लेने के लिए उसकी गर्भवती पत्नी का अपहरण करता है और उसके बेटे को आवारा बना देता है. राजकपूर निर्देशित फिल्म अवारा का डाकू कहानी दिशा देने के लिए गढ़ा गया था. इसके बाद, दिलीप कुमार फिल्म आज़ाद में डाकू बने दिखाई दिए. महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया का बिरजू ऐसा लोकप्रिय डाकू चरित्र हुआ, जिसने सुनील दत्त के फिल्म जीवन को सुदृढ़ कर दिया.
डाकुओं का आत्म समर्पण- महात्मा गाँधी से प्रभावित विनोबा भावे ने भूदान यज्ञ चला कर जमींदारों से उनकी जमीन का दान करवाया, जिसे उन्होंने भूमिहीन किसानों में बांटा. १९६० में उनके प्रयत्नों से चम्बल के डाकुओं ने एक के बाद एक समर्पण करना शुरू कर दिया. इस समर्पण से सबसे अधिक प्रभावित हुए राजकपूर. कभी नेहरु की भारत की कल्पना के वशीभूत बूट पोलिश जैसी फिल्म बनने वाली राजकपूर ने विनोबा भावे के चम्बल के डाकुओं के समर्पण के कथानक पर फिल्म जिस देश में गंगा बहती है का निर्माण किया. इस फिल्म का निर्देशन राजकपूर की फिल्मों के छायाकार राधू कर्मकार ने किया था. राजकपूर डाकुओं को आत्मसर्पण के लिए प्रेरित करने वाले राजू बने थे. प्राण ने डाकू राका की भूमिका की थी. इस श्वेत श्याम फिल्म को बड़ी सफलता मिली. इस फिल्म के बाद, सुनील दत्त की फिल्म मुझे जीने दो भी डाकू कथानक पर प्रेरणात्मक फिल्म थी. सुनील दत्त दूसरी बार डाकू की भूमिका में थे.
जब नायक बने डाकू- इन दो फिल्मों के बाद, बॉलीवुड में डाकू चरित्र पहली पसंद बन गया. तमाम बड़े फिल्म अभिनेता डाकू की काली नकाब में घोड़े पर धूल उड़ा रहे थे. १९६० के दशक के लोकप्रिय डाकू राजेंद्र कुमार फिल्म सूरज और दिलीप कुमार फिल्म गंगा जमुना थे. बाद में सुनील दत्त ने डाकू चरित्रों को अपनी फिल्मो प्राण जाये पर वचन न जाये और हीरा में जीवंत किया. अपने स्टाइल से परिचय देने वाले अभिनेता फ़िरोज़ खान ने फिल्म मेला में चमड़े की जैकेट पहन कर डाकू शक्ति सिंह को जीवंत किया. इसी प्रकार सत्तर के दशक में धर्मेन्द्र ने फिल्म समाधि और पत्थर और पायल में डाकू की भूमिकाएं की. अमिताभ बच्चन ने फिल्म गंगा की सौगंध, राजेश खन्ना ने भोला भाला और धरम काँटा के बाद सनी देओल ने फिल्म डकैत और संजय दत्त ने जय विक्रान्ता में डाकू बन कर घुड़सवारी की. फिल्म मेरा गाँव मेरा देश में विनोद खन्ना ने डाकू चरित्र को बिलकुल नया अंदाज दिया. धर्म कांता में राजकुमार और लज्जा में अजय देवगन के डाकू चरित्र भी दर्शकों द्वारा पसंद किये गए.
रील में रियल डकैत - कुछ रियल डकैतों ने भी रील लाइफ में जगह बनाई. मोहम्मद हुसैन की सुल्ताना डाकू में दारा सिंह शीर्षक भूमिका में थे. महिला डकैत पुतली बाई पर दो फिल्मने १९७२ और १९९९ में बनाई गई. शेखर कपूर ने तो फूलन देवी पर फिल्म बैंडिट क्वीन बना कर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की. तिग्मांशु धुलिया की फिल्म पान सिंह तोमर में स्वर्गीय इरफ़ान खान शीर्षक भूमिका में थे. रामगोपाल वर्मा की डाकू फिल्म वीरप्पन चन्दन की लकड़ी के तस्कर वीरप्पन पर थी. २००६ में प्रदर्शित फिल्म वुंडेड इस लिहाज से अलग थी कि इस फिल्म में डकैत सीमा परिहार की भूमिका खुद सीमा परिहार ने की थी.
खलनायक भी डकैत - बॉलीवुड में केवल नायक अभिनेता ही डाकू नहीं बने, बल्कि डाकू खलनायकों ने भी बहुत लोकप्रियता प्राप्त की. इस लिहाज से शोले का गब्बर सिंह उल्लेखनीय है, जिससे अभिनेता अमजद खान ने अपने फिल्म जीवन की शुरुआत की थी. इस फिल्म के कालिया (बीजू खोटे) और साम्भा (मैक मोहन) भी काफी मशहूर हुए. इनके अलावा फिल्म प्रतिज्ञा में अजित, चुनौती में डैनी डैग्जोप्पा, लोहा और यतीम में अमरीश पुरी, चाइना गेट में मुकेश तिवारी, कच्चे धागे में कबीर बेदी, बैंडिट क्वीन मे निर्मल पाण्डेय भी अपनी खल भूमिकाओं में डाकू बने थे.
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