किसी अभिनेता की इमेज किसी फिल्म को कैसे कचरा कर सकती है, इसका उदाहरण निर्देशक कुणाल देशमुख की थ्रिलर सोशल फिल्म 'राजा नटवरलाल' है. राजा नटवरलाल इमरान हाशमी की फिल्म है. इस फिल्म में वह अपने मित्र दीपक तिजोरी के साथ मिलकर छोटी मोटी ठगी किया करते हैं. वह होटल में डांस करने वाली जिया से मोहब्बत करते हैं. फिल्म में जिया की भूमिका पाकिस्तानी अभिनेत्री हुमैमा मलिक ने की है। एक बड़ा हाथ मारने की फिराक में दोनों इंटरनेशनल डॉन वर्धा यादव के ८० लाख पर हाथ साफ़ कर देते हैं. वर्धा यानि केके मेनन राजा के दोस्त को मार डालता है. अब वह राजा के पीछे लगा है. राजा भाग कर धर्मशाला आ जाता है एक पूर्व ठग योगी से मदद माँगने के लिए। दोनों मिल कर क्रिकेट के प्रेमी वर्धा यादव को किस प्रकार बर्बाद कर डालते हैं, यही फिल्म का थ्रिल है.
सब कुछ बेहद कमज़ोर है. परवेज़ शेख ने बेहद कमज़ोर कहानी पर लचर पटकथा लिखी है. फिल्म में सब कुछ वैसा ही चलता रहता है, जैसा निर्देशक कुणाल परवेज़ चाहते हैं. इस प्रयास में खलनायक वर्धा यादव का चरित्र के जोकर जैसा बन जाता है। जो डॉन राजा के दोस्त को ढूंढ कर मार डालता है, वह राजा की एक फोटो तक नहीं देख पाता। केप टाउन जाकर कहानी बिलकुल भटक जाती है। बचकाने ढंग से इमरान हाशमी, परेश रावल और उनके साथी तथा हुमैमा अपना काम अंजाम देते हैं. इस कहानी का पूरा मक़सद मशहूर ठग नटवरलाल की स्क्रीन कॉपी योगी की मौजूदगी के बावजूद राजा को राजा नटवरलाल साबित करना था। पूरे बचकाने ढंग से इसे साबित करने में कुणाल, संजय और शेख कामयाब भी होते हैं. संजय मासूम के संवाद अब असरकारी नहीं रहे. वह चालू टाइप का लिख मारते हैं. हालाँकि,इस कहानी में कुछ अच्छे संवाद लिखे जाने की गुंजाइश थी।
इमरान हाशमी की इमेज सीरियल किसर की है। वह अपनी हीरोइन को पहली सिटींग में ही बिस्तर तक लेजाकर गर्मागर्म रोमांस करने के लिए विख्यात या कुख्यात हैं। इस इमेज के अनुरूप फिल्म में उनके तीन किस भी हैं. पाकिस्तानी 'बोल' अभिनेत्री हुमैमा खान लपक कर इमरान का पहला किस लेती है। हुमैमा के इस बोल्ड एक्ट पर सिनेमाहॉल में बैठे दर्शकों की उम्मीदें जवान होने लगती हैं। लगता है अब काफी बोल्ड होगा। पर कुछ होता नहीं. हुमैमा के साथ बिस्तर पर पहुँच कर भी इमरान हाशमी कुछ गर्मागर्म नहीं कर पाते। दर्शक इमरान और हुमैमा की माँ बहन का ऐलान करना शुरू कर देते हैं। इमरान हाशमी की इमेज उनके किरदार पर भारी पड़ती है।पाकिस्तानी मॉडल, टीवी और फिल्म एक्ट्रेस हुमैमा 'बोल' मलिक ने बोल्ड लगने की भरसक कोशिश की है। साड़ी को अंग प्रदर्शक तरीके से बाँधा है. राज चक्रवर्ती का घूरता हुआ कैमरा बार बार हुमैमा की नाभि से शुरू हो कर उनके शरीर के पूरे भूगोल से दर्शकों का परिचय कराता है. पर दर्शक मांगे मोर। हुमैमा चेहरे से बदसूरत नहीं तो खूबसूरत बिलकुल नहीं लगती। वह इमरान का चुम्बन लेने में पहल करती हैं, स्मूचिंग करती हैं, पानी में भीग कर अपने शरीर के विटामिन का प्रदर्शन करती हैं, इमरान की हमबिस्तर तक होती हैं, इसके बावजूद फिल्म को गर्म नहीं कर पाती। फिल्म में इमरान और हुमैमा के बेड सीन से दर्शकों की उम्मीदें परवान चढ़ कर खत्म हो जाती हैं. न जाने क्यों फिल्म के इस बिस्तर सीन को पहले ही कम कर दिया गया. शायद पाकिस्तान में हुमैमा के प्रति भावनाओं का ख्याल रखते हुए इस सीन को काटा गया। अभिनय के मामले में हुमैमा सामान्य ही लगीं। शायद फिल्म में उनके किरदार में कोई दम ही नहीं था, इसलिए। केके मेनन वर्धा यादव के किरदार में मौका खोते लगते हैं. पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में सुमीत निझावन और शूटर के रोल में मोहम्मद ज़ीशान अयूब दर्शकों का ध्यान आकृष्ट करते हैं।
राजा नटवरलाल की सबसे बड़ी कमज़ोरी, कहानी और पटकथा के अलावा, संगीत है. इस प्रकार की फिल्मों, ख़ास तौर पर इमरान हाशमी की फिल्मों में मधुर संगीत खासियत हुआ करता है। राजा नटवरलाल में यह नदारद है। युवान शंकर राजा एक भी मधुर धुन नहीं दर्ज़ कर पाये। संदीप शिरोढकर का बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म को सपोर्ट करता है। रेमो डि सूजा ने हुमैमा को मामूली स्टेप्स ही दिए हैं. वैसे उनसे काफी कल्पनाशीलता की उम्मीद की जाती है.
इमरान हाशमी और हुमैमा खान के प्रशंसक चाहें तो फिल्म देख सकते हैं। पर इस समीक्षा को दोष न दें
सब कुछ बेहद कमज़ोर है. परवेज़ शेख ने बेहद कमज़ोर कहानी पर लचर पटकथा लिखी है. फिल्म में सब कुछ वैसा ही चलता रहता है, जैसा निर्देशक कुणाल परवेज़ चाहते हैं. इस प्रयास में खलनायक वर्धा यादव का चरित्र के जोकर जैसा बन जाता है। जो डॉन राजा के दोस्त को ढूंढ कर मार डालता है, वह राजा की एक फोटो तक नहीं देख पाता। केप टाउन जाकर कहानी बिलकुल भटक जाती है। बचकाने ढंग से इमरान हाशमी, परेश रावल और उनके साथी तथा हुमैमा अपना काम अंजाम देते हैं. इस कहानी का पूरा मक़सद मशहूर ठग नटवरलाल की स्क्रीन कॉपी योगी की मौजूदगी के बावजूद राजा को राजा नटवरलाल साबित करना था। पूरे बचकाने ढंग से इसे साबित करने में कुणाल, संजय और शेख कामयाब भी होते हैं. संजय मासूम के संवाद अब असरकारी नहीं रहे. वह चालू टाइप का लिख मारते हैं. हालाँकि,इस कहानी में कुछ अच्छे संवाद लिखे जाने की गुंजाइश थी।
इमरान हाशमी की इमेज सीरियल किसर की है। वह अपनी हीरोइन को पहली सिटींग में ही बिस्तर तक लेजाकर गर्मागर्म रोमांस करने के लिए विख्यात या कुख्यात हैं। इस इमेज के अनुरूप फिल्म में उनके तीन किस भी हैं. पाकिस्तानी 'बोल' अभिनेत्री हुमैमा खान लपक कर इमरान का पहला किस लेती है। हुमैमा के इस बोल्ड एक्ट पर सिनेमाहॉल में बैठे दर्शकों की उम्मीदें जवान होने लगती हैं। लगता है अब काफी बोल्ड होगा। पर कुछ होता नहीं. हुमैमा के साथ बिस्तर पर पहुँच कर भी इमरान हाशमी कुछ गर्मागर्म नहीं कर पाते। दर्शक इमरान और हुमैमा की माँ बहन का ऐलान करना शुरू कर देते हैं। इमरान हाशमी की इमेज उनके किरदार पर भारी पड़ती है।पाकिस्तानी मॉडल, टीवी और फिल्म एक्ट्रेस हुमैमा 'बोल' मलिक ने बोल्ड लगने की भरसक कोशिश की है। साड़ी को अंग प्रदर्शक तरीके से बाँधा है. राज चक्रवर्ती का घूरता हुआ कैमरा बार बार हुमैमा की नाभि से शुरू हो कर उनके शरीर के पूरे भूगोल से दर्शकों का परिचय कराता है. पर दर्शक मांगे मोर। हुमैमा चेहरे से बदसूरत नहीं तो खूबसूरत बिलकुल नहीं लगती। वह इमरान का चुम्बन लेने में पहल करती हैं, स्मूचिंग करती हैं, पानी में भीग कर अपने शरीर के विटामिन का प्रदर्शन करती हैं, इमरान की हमबिस्तर तक होती हैं, इसके बावजूद फिल्म को गर्म नहीं कर पाती। फिल्म में इमरान और हुमैमा के बेड सीन से दर्शकों की उम्मीदें परवान चढ़ कर खत्म हो जाती हैं. न जाने क्यों फिल्म के इस बिस्तर सीन को पहले ही कम कर दिया गया. शायद पाकिस्तान में हुमैमा के प्रति भावनाओं का ख्याल रखते हुए इस सीन को काटा गया। अभिनय के मामले में हुमैमा सामान्य ही लगीं। शायद फिल्म में उनके किरदार में कोई दम ही नहीं था, इसलिए। केके मेनन वर्धा यादव के किरदार में मौका खोते लगते हैं. पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में सुमीत निझावन और शूटर के रोल में मोहम्मद ज़ीशान अयूब दर्शकों का ध्यान आकृष्ट करते हैं।
राजा नटवरलाल की सबसे बड़ी कमज़ोरी, कहानी और पटकथा के अलावा, संगीत है. इस प्रकार की फिल्मों, ख़ास तौर पर इमरान हाशमी की फिल्मों में मधुर संगीत खासियत हुआ करता है। राजा नटवरलाल में यह नदारद है। युवान शंकर राजा एक भी मधुर धुन नहीं दर्ज़ कर पाये। संदीप शिरोढकर का बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म को सपोर्ट करता है। रेमो डि सूजा ने हुमैमा को मामूली स्टेप्स ही दिए हैं. वैसे उनसे काफी कल्पनाशीलता की उम्मीद की जाती है.
इमरान हाशमी और हुमैमा खान के प्रशंसक चाहें तो फिल्म देख सकते हैं। पर इस समीक्षा को दोष न दें