जहाँ एक तरफ तमाम वेब पेज, अख़बार और सोशल साइट्स पर चरित्र अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर के दुखद निधन के समाचार से भरे हुए थे, वहीँ एक दिन पहले स्वर्गवासी हुए नृत्य निर्देशक जय बोरडे का कोई नाम लेवा तक नहीं था। अलबत्ता, सलमान खान ने ट्विटर पेज पर उनके निधन पर शोक ज़रूर व्यक्त किया था। सलमान खान का जय बोरडे को याद करना स्वाभाविक था। सलमान खान के स्टारडम पर जय बोरडे के डांस स्टेप्स का बड़ा योगदान था। उन्होंने सलमान खान की पहली सुपर डुपर हिट फिल्म मैंने प्यार किया का नृत्य निर्देशन किया था। इस फिल्म ने सलमान खान को टॉप पर पहुँचाने में मदद की। इसके बाद जय बोरडे सलमान खान और राजश्री की सभी फिल्मों का निर्देशन कर रहे थे। उन्होंने कुदरत, कसम पैदा करने वाले की और लव इन गोवा के नृत्य निर्देशन में सह भूमिका निभाई थी। उन्हें स्वतंत्र रूप से किसी फिल्म की कोरियोग्राफी करने का मौका नसीरुद्दीन शाह की फिल्म हीरो हीरालाल से मिला। उन्होंने सलमान खान की बाग़ी, सनम बेवफा, कुर्बान, सूर्यवंशी, एक लड़का एक लड़की, निश्चय, हम आपके हैं कौन, वीरगति और हम साथ साथ हैं का नृत्य निर्देशन भी किया था। ग़दर एक प्रेमकथा में सनी देओल जैसे नृत्य के गैर जानकार अभिनेता से मैं निकला गड्डी लेकर जैसे गीत पर नृत्य करा ले जाना जय बोरडे की प्रतिभा का ही कमाल था। उन्होंने राजश्री की मैं प्रेम की दीवानी हूँ और विवाह फिल्मों का नृत्य निर्देशन भी किया। उन्हें फिल्म हम आपके हैं कौन के नृत्य निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला। जय बोरडे निधन पर दुःख व्यक्त करते हुए सलमान खान ने कहा, "जय मेरे प्रिय कोरियोग्राफर थे। मैंने उनके साथ हम आपके हैं कौन,मैंने प्यार किया, हम साथ साथ हैं, आदि के गीतों पर स्टेप्स करने का पूरा पूरा आनंद लिया था। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Monday 3 November 2014
सलमान खान की बॉक्स ऑफिस पर 'जय' कराने वाले 'बोरडे'
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श्रद्धांजलि
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
सदाशिव के रामा शेट्टी ने हिंदी फिल्मों के विलेन को नए आयाम दिए थे
११ मई १९५० को जन्मे गणेश कुमार नर्वोडे , जब २४ साल बाद सदाशिव नाम से रंगमंच पर उतरे थे, उस समय शायद ही किसी को एहसास रहा होगा कि यह गहरे रंग वाला अहमदनगर में पैदा हुआ व्यक्ति एक दिन बॉलीवुड को एक नयी विधा देगा। १९७४ में मराठी नाटकों से अपने अभिनय करियर की शुरुआत करने वाले सदाशिव ने १९७४ में पहली मराठी फिल्म अमरस पा ली. शुरू में सदाशिव को मराठी फिल्मों में छोटे रोल ही मिले। उन्हें बड़ा और मशहूर करने वाला रोल मिला मराठी फिल्म बाल गंगाधर तिलक में तिलक का । इस फिल्म के बाद सदाशिव ने कई मराठी फ़िल्में की। उन्होंने अपनी फिल्म निर्माण कंपनी अंजना आर्ट्स के तहत मराठी फ़िल्में भी बनायी । इसी दौरान बॉलीवुड कला फिल्मों की आलोचना हो रही थी कि यह कूड़ा फ़िल्में हैं, इनका आम दर्शकों से ख़ास सरोकार भी नहीं होता, जिन्हे ज़्यादा दर्शक देखता ही नहीं । उस दौरान श्याम बेनेगल का सिनेमा चर्चित हो रहा था । उनके सिनेमा को जीवंत करने का काम श्याम के सिनेमेटोग्राफर गोविन्द निहलानी कर रहे थे । गोविन्द निहलानी जब सिनेमा बनाने उतरे तो उन्होंने मेंटर श्याम बेनेगल से थोड़ा हट कर रास्ता चुना । श्याम बेनेगल की फिल्मों के दबे कुचले किरदार गोविन्द निहलानी की फिल्म में आकर आक्रोशित हो रहे थे । ओमपुरी की मुख्य भूमिका वाली फिल्म आक्रोश ऎसी ही फिल्म थी । इस फिल्म ने कला फिल्मों के शोषित नायक को भी विद्रोही चोला पहना दिया । कला सिनेमा और मुख्य धारा के बीच सेतु का काम किया गोविन्द निहलानी की फिल्म अर्द्धसत्य ने । यह फिल्म व्यवस्था के नीचे दबे हुए एक पुलिस अधिकारी अनंत वेलणेकर के विद्रोह की थी । एक नेता रामा शेट्टी के तलुवे चाटते चाटते वह अधिकारी विद्रोह कर उठता है और नेता को उसका गला दबा कर मार देता है । नेताओं और पुलिस भ्रष्टाचार से पीड़ित तत्कालीन दर्शकों की आवाज़ बने ओम पूरी । लेकिन, ओम पूरी का किरदार रामा शेट्टी के बिना अधूरा था । ओमपुरी के पुलिस किरदार को उकसाने वाले रामा शेट्टी का किरदार मराठी फिल्मों के अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर ने किया था । इस फिल्म में सदाशिव की संवाद अदायगी का ख़ास चुभता लहज़ा और माथे में पड़ती सलवटें हिंदी फिल्मों के खलनायक की नहीं परिभाषा गढ़ रही थी । यह पहली फिल्म थी जिसमे व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग एक राजनेता पर उंगली उठायी गयी थी । अर्द्ध सत्य के हिट होते ही सदाशिव अमरापुरकर के रूप में हिंदी फिल्मों को भिन्न शैली में संवाद बोलने वाला विलेन और चरित्र अभिनेता मिल गया । इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला । दिलचस्प बात यह है कि सदाशिव अमरापुरकर को अर्द्ध सत्य की सफलता के बाद जो फिल्म मिली वह श्याम और तुलसी रामसे की हॉरर फिल्म पुराना मंदिर थी । इस फिल्म में उन्होंने दुर्जन चौकीदार की भूमिका की थी । अर्द्ध सत्य से सदाशिव के अभिनय का डंका मुख्य धारा के फिल्मकारों के बीच बज गया । उन्हें जवानी, आर पार, तेरी मेहरबानियाँ, खामोश, आखिरी रास्ता, मुद्दत और हुकूमत जैसी बड़ी फ़िल्में मिल गयीं । हालाँकि, इन फिल्मों में ज़्यादातर में उन्हें नेगेटिव रोल ही मिले । हुकूमत के वह मुख्य विलेन थे । धर्मेन्द्र की मुख्य भूमिका वाली हुकूमत ने उसी साल प्रदर्शित फिल्म मिस्टर इंडिया से ज़्यादा कमाई की थी । इस फिल्म के बाद धर्मेन्द्र और सदाशिव अमरापुरकर की नायक-खल नायक जोड़ी हिट हो गयी । सदाशिव अमरापुरकर अपने करियर के शीर्ष पर पहुंचे महेश भट्ट की फिल्म सड़क से । इस फिल्म में उन्होने औरत के वेश में रहने वाले खल नायक महारानी का किरदार किया था । इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को पहली बार स्थापित फिल्मफेयर का श्रेष्ठ खल अभिनेता का पुरस्कार मिला । नब्बे के दशक के मध्य में सदाशिव अमरापुरकर के करियर को कॉमेडी मोड़ मिला । उन्होंने डेविड धवन की फिल्म आँखें में इंस्पेक्टर प्यारे मोहन का कॉमिक किरदार किया था । इस फिल्म से गोविंदा और कादर खान के साथ सदाशिव अमरापुरकर की जोड़ी खूब जम गयी । सदाशिव अमरापुरकर और कादर खान ने एक साथ दिल लगा के देखों, हम हैं कमाल के, ऑंखें, आग, द डॉन, कुली नंबर १, याराना, छोटे सरकार,मेरे दो अनमोल रतन, आंटी नंबर १,बस्ती, परवाना, खुल्लम खुल्ला प्यार करें , कोई मेरे दिलम में है, झाँसी की रानी, हम हैं धमाल के और दीवाने जैसी १७ फ़िल्में कीं । गोविंदा के साथ सदाशिव अमरापुरकर की कॉमेडी फिल्मों आँखें, आंटी नंबर १, कुली नंबर १, दो आँखें बारह हाथ, राजा भैया को भी अच्छी सफलता मिली । इन कॉमेडी फिल्मों के बीच सदाशिव अमरापुरकर ने एक बार भी खल नायिकी के हुनर दिखाए फिल्म इश्क़ में । वह इस फिल्म में अजय देवगन के अमीर पिता बने थे। सदाशिव अमरापुरकर ने अपने पूरे फिल्म करियर में दो सौ से ज़्यादा फिल्मों में भिन्न किरदार किये । उन्हें हमेशा यह मलाल रहा कि हिंदी फिल्म निर्माताओं ने उन्हें टाइप्ड भूमिकाएं ही दी । इसीलिए उन्होंने धीरे धीरे कर हिंदी फिल्मों में अभिनय करना कम कर दिया । उनकी आखिरी फिल्म बॉम्बे टॉकीज २०१३ में रिलीज़ हुई थी, जिसमे उन्होंने दिबाकर बनर्जी के निर्देशन में बनी कहानी में भूमिका की थी । सदाशिव अमरापुरकर के दौर में कादर खान, परेश रावल, अनुपम खेर, आदि जैसे मज़बूत चरित्र अभिनेता थे । उन्होंने इन सशक्त हस्ताक्षरों के बीच अपने ख़ास अंदाज़ में अपनी ख़ास जगह बनायी । यह काफी है बताने के लिए कि अमरापुरकर हिंदी फिल्मों के हरफनमौला सदाशिव थे।
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श्रद्धांजलि
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Sunday 2 November 2014
यह नोरा सुन्दर, सेक्सी और ताकतवर भी है
नोरा फतेही को बॉलीवुड पर ज़बरदस्त विदेशी हमला कहा जा सकता है। वह मोरक्को की सुन्दरी हैं। सुपर मॉडल रही हैं। अपने देश में हॉट ब्यूटी मानी जाती हैं। कनाडा में वह बेली डांसर के रूप में मशहूर हुईं । बॉलीवुड को ऎसी ही विदेशी और हॉट सुंदरियों की चाहत रहती है। फिर नोरा फतेही में तो पंजाबी रक्त भी मिला है। यानि बॉलीवुड में विदेशी खूबसूरत अभिनेत्रियों का जमावड़ा लगा ही रहता है। लेकिन, नोरा फतेही इनसे काफी अलग हैं। उन्होंने निर्देशक कमल सडाना की फिल्म 'रोर टाइगर ऑफ़ द सुंदरबन्स' सीजे की भूमिका की है। पर यह भूमिका सेक्स बम वाली नहीं। बेशक, फिल्म के पहले ही दृश्य में वह अपनी छातियों के उभारों को दिखाती नज़र आती है। लेकिन, वास्तव में वह फिल्म में सेक्स सिंबल नहीं, बल्कि एक कमांडो की भूमिका कर रही हैं. वह जंगल में नर भक्षी शेर को मारने के लिए अपने साथियों के साथ आयीं हों, इसलिए उनकी बदन दिखाने वाली पोशाकें उपयुक्त हैं। लेकिन,फिल्म के आगे बढ़ते बढ़ते नोरा अपने रंग में आने लगती हैं। वह हॉलीवुड की एक्शन सुंदरियों की तर्ज़ पर एक्शन करती हैं. एयर ग्लाइडिंग करती हैं। उनके एक्शन खतरनाक हद तक किये गए हैं। इस प्रकार से नोरा फतेही अन्य पुरुष किरदारों की मौजूदगी में भी दर्शकों में अपनी मौजूदगी दर्ज़ करा ले जाती हैं। अपनी भूमिका के बारे में नोरा कहती हैं, "जब मैं पहली बार कमल से मिलीं, उन्होंने फिल्म का टेस्ट शॉट दिखाया तो मैं फिल्म पर फ़िदा हो गयी। मेरी भूमिका ब्यूटी, ब्रेन और ब्रॉन यानि शारीरिक शक्ति का मिक्सचर हैं। हम लोगों को अपना सब कुछ लगा देना पड़ता था। जब दिन ख़त्म होता तब हम अपने शरीर के ज़ख्मों को सहला रहे होते।" रोर टाइगर्स ऑफ़ द सुंदरबन्स से नोरा फतेही की शुरुआत बढ़िया हुई है। एक्शन फिल्मों में एक्शन नायिका के लिए वह निर्माताओं की पसंद बन सकती हैं, बशर्ते कि वह अपनी हिंदी को माज लें। वैसे इस समय भी उन्हें इमरान हाशमी के साथ फिल्म मिस्टर एक्स में एक आइटम सांग मिला है। उनके प्रकाश झा की फिल्म क्रेजी कक्कड़ फैमिली में भी एक ख़ास भूमिका मिलने की खबर है।
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नए चेहरे
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कैलेंडर से फिल्म अभिनेत्री तक हिमांषा
हिमांषा वेंकटसामी की ग्लैमर जगत में शुरुआत किंगफ़िशर कैलेंडर मॉडल के बतौर हुई थी। हालाँकि, इस कैलेंडर की शूट के बाद हिमांषा दक्षिण अफ्रीका चली गयीं। उनका ज़्यादा समय वहीँ बीता। क्योंकि, वह दक्षिण अफ्रीका में मेडिकल शिक्षा के साथ साथ ड्रामा और एक्टिंग भी सीख रही थीं। "क्योंकि, मैं हमेशा से फिल्म एक्ट्रेस बनाना चाहती थीं," कहती हैं हिमांषा । लेकिन, किंगफ़िशर कैलेंडर ने तमाम दूसरी मॉडल की तरह हिमांषा के लिए भी बॉलीवुड के दरवाज़े खुलवा दिए थे । पर इससे पहले ही वह दक्षिण अफ्रीका में सुपरमॉडल बन गयी थीं । अलबत्ता, किंगफ़िशर कैलेंडर की बदौलत हिमांषा को कमल सडाना की फिल्म रोर टाइगर ऑफ़ द सुंदरबन्स मिल गयी । उन्हें ऑडिशन के लिए बुलाया गया । उन्हें सात पेज की स्क्रिप्ट पकड़ा दी गयी और संवाद बोलने के लिए कहा गया । हिमांषा के लिए हिंदी बिलकुल अजनबी भाषा जैसी थी । लेकिन, हमांशा कहती हैं, "मुझे चुनौती रास आती है। मैंने अपने संवाद ठीक ठाक बोल डाले ।" इसके बाद कमल सडाना ने हिमांषा को फिल्म में पंडित और उसके साथियों की ट्रैक गाइड झुम्पा बना दिया । हिमांषा ने फिल्म में काफी एक्शन किये हैं । वह साँपों से भरे कीचड़ में दौड़ी हैं । मगरमच्छो से भरी नहर की तेज़ धार में तैरी हैं । उनके लिए अब एक्शन कुछ ख़ास कठिन नहीं रह गया है । इसके बावजूद हिमांषा रोर के बाद एक्शन फिल्म नहीं कर रहीं । वह एक फिल्म में पंजाबी कवयित्री का किरदार कर रही हैं । वह कहती हैं, "मैं इंटरेस्टिंग स्क्रिप्ट और इंटेस भूमिकाएं करना चाहूंगी ।"
राजेंद्र कांडपाल
राजेंद्र कांडपाल
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यह 'अकबर' विलेन है क्योकि…!
सोनी एंटरटेनमेंट चैनल के ऐतिहासिक सीरियल 'भारत का वीर पुत्र महाराणा प्रताप' में माहौल बदलने वाला है। अभी तक कुंवर प्रताप और अजबदे के बीच की मीठी तकरार का माहौल बड़ी तेज़ी से बदलेगा। वास्तविकता तो यह है कि सीरियल महाराणा प्रताप में तेज़ी से बदलाव हुआ है। प्रताप और अजबदे के चरित्र बदल चुके हैं। अब दोनों बड़े हो गए हैं। किशोरावस्था में दोनों परिस्थितियोंवश अलग हो गए थे । अब दोनों युवा हो चुके हैं । शरद मल्होत्रा कुंवर प्रताप और रचना पारूलकर अजबदे बन चुकी हैं । अब दर्शकों को इंतज़ार है युवा अकबर का। टीवी के इस अकबर को अभिनेता कृप सूरी कर रहे हैं। मुग़ल-ए -आज़म के पृथ्वीराज कपूर और जोधा अकबर के ह्रितिक रोशन के बाद, कृप सूरी के अकबर का महत्व इस लिहाज़ से होगा कि यह छोटे परदे का जवान अकबर होगा । परन्तु, मुग़ल-ए -आज़म के पृथ्वीराज कपूर और जोधा अकबर के ह्रितिक रोशन के द्वारा खेले गए अकबर से कृप सूरी का अकबर इस दृष्टिकोण से बहुत अलग है कि टीवी का अकबर विलेन है। वह प्रताप को परास्त करने के लिए घात प्रतिघात करता रहता है । अब यह टकराव आमने सामने का होने जा रहा है । कृप सूरी को अपने अकबर को खल चरित्र बनाने के लिए ख़ास मेहनत करनी होगी । "लेकिन", कहते हैं कृप सूरी, "नेगेटिव रोल करना कठिन होता है। पर एक आर्टिस्ट को चैलेंज स्वीकार करना चाहिए. इसीलिए मैंने अकबर को रोल करना मंज़ूर किया।" कृप सूरी कई टीवी सीरियलों में काम कर चुके हैं। मान रहे तेरा पिता, अपनों के लिए गीता का धर्मयुद्ध और फुलवा जैसे सीरियल कर चुके, कृप सूरी को लाइफ ओके के दर्शक सीरियल सावित्री के राहुकाल की भूमिका से अच्छी तरह पहचानते हैं । आजकल वह उतरन में असगर का रोल कर रहे हैं । पर भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के अकबर को पृथ्वीराज कपूर और ह्रितिक रोशन के अकबर की टक्कर में बनाये रखना कृप सूरी के लिए सचमुच बड़ी चुनौती साबित होगा ।
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Television
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स्ट्रगल कर रहे जिमी शेरगिल !
खबर है कि एक्टर जिमी शेरगिल के स्ट्रगल का दौर शुरू होने जा रहा है। जिमी के प्रशंसकों को यह खबर चौंकाने वाली लग सकती है. जिमी और स्ट्रगल। सवाल हीं नहीं उठता। उनकी हर साल तीन चार फ़िल्में रिलीज़ होती रहती हैं. इस साल भी, उनकी तीन हिंदी फ़िल्में रिलीज़ हो चुकी हैं। पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री के वह स्थापित नाम हैं। ऐसे में उनके स्ट्रगल करने का सवाल ही नहीं उठता। लेकिन, वह स्ट्रगल कर रहे हैं, पर ऑन स्क्रीन। मनोज मेनन और आसिफ क़ाज़ी की फिल्म गन पे डन में जिमी शेरगिल एक स्ट्रगलिंग एक्टर पंचम का किरदार कर रहे हैं, जिसके आइडल फ़िरोज़ खान हैं। वह मिमिक्री करता है और समझता है कि बहुत अच्छा काम कर रहा। अभीक भानु निर्देशित गन पे डन हँसा हँसा कर लोटपोट कर देने वाली रोमांस कॉमेडी फिल्म है। इस फिल्म में जिमी शेरगिल की नायिका तारा अलीशा हैं। विजय राज़, संजय मिश्रा, वृजेश हीरजी जैसे सक्षम अभिनेता जिमी को सपोर्ट करने के लिए मौजूद है। पिछले दिनों इस फिल्म का मुहूर्त संपन्न हुआ। इस मौके पर अपने रोल के बारे में जिमी शेरगिल ने कुछ यों बताया, "पंचम अपने आइडल फ़िरोज़ खान की तरह एक्टर बनने के लिए मुंबई आया है। परन्तु, वह अपनी मिमिक्री को ही अभिनय समझता है। वह नहीं जानता कि वह बहुत ख़राब करता है।"
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ये ल्लों !!!
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Saturday 1 November 2014
'सुपर' तो नहीं ही है यह 'नानी'
इंद्र कुमार ने कभी दिल, बेटा, राजा, इश्क़, मन और रिश्ते जैसी मनोरंजक और परिवार से जुडी फिल्मों का निर्माण किया था। यह फ़िल्में हिट हुई. सभी श्रेणी के दर्शकों द्वारा पसंद की गयी। फिर वह मस्ती पर उतर आये। मस्ती जैसे सेक्स कॉमेडी बना डाली। फिल्म हिट हो गयी तो प्यारे मोहन, धमाल, डबल धमाल और ग्रैंड मस्ती जैसी फ़िल्में बना डालीं। इसके साथ ही परिवार उनका सरोकार छूटता चला गया। अब जबकि वह ग्रैंड मस्ती जैसी सौ करोडिया सेक्स कॉमेडी फिल्म के बाद सुपर नानी से परदे पर रेखा को लेकर आये हैं तो लगता है जैसे वह फिल्म बनाना भूल गए हैं. उन्होंने रेखा जैसी बहुमुखी प्रतिभा वाली अभिनेत्री को नानी बनाया , लेकिन कहानी घिसी पिटी ले बैठे। रेखा नानी बनी है, जिसका उसके घर में उसका पति और बच्चे अपमान और उपेक्षा करते हैं। तभी आता है नाती शरमन जोशी। वह यह सब देख कर अपनी नानी को सुपर नानी बनाने की कोशिश करता है।
जब तक रेखा नानी होती हैं, आकर्षित करती हैं. वह बेहतरीन अभिनय करती थीं , कर सकती हैं और आगे भी लेंगी, फिल्म से साबित करती हैं। लेकिन, जैसे ही वह सुपर नानी का चोला पहनती हैं, बिलकुल बेजान हो जाती हैं. यह इंद्र कुमार की असफलता है कि वह पूरी फिल्म में रेखा की उपयोगिता नहीं कर सके। इंद्र कुमार का रेखा को मॉडल बना कर सुपर नानी बनाने का विचार ही, अस्वाभाविक है। वह किसी दूसरे एंगल से रेखा को सुपर नानी साबित कर सकते थे। जैसे वह फिल्म में रेखा के बेटे से उधार लेनी आये गुंडे खुद के लिए रेखा की ममता देख कर वापस चले जाते हैं.
फिल्म को इंद्र कुमार के लिए नहीं रेखा और शरमन जोशी की जोड़ी के कारण देखा जा सकता है। यह जोड़ी जब भी परदे पर आती है, छा जाती है। शरमन जोशी बेहद सजीव अभिनय करते हैं। पता नहीं क्यों फिल्मकार उनका उपयोग घटिया कॉमेडी करवाने के लिए ही क्यों करते हैं। इंद्र कुमार की बिटिया श्वेता के 'इंद्र कुमार की बिटिया' टैग से उबरने की जुगत फिल्म में नज़र नहीं आती। रणधीर कपूर को न पहले एक्टिंग आती थी, न इस फिल्म में वह कुछ कर पाये हैं। अनुपम खेर ने यह फिल्म निश्चित ही पैसों के लिए ही की होगी। बाकी, दूसरों को जिक्र करने से कोई फायदा नहीं है।
जब तक रेखा नानी होती हैं, आकर्षित करती हैं. वह बेहतरीन अभिनय करती थीं , कर सकती हैं और आगे भी लेंगी, फिल्म से साबित करती हैं। लेकिन, जैसे ही वह सुपर नानी का चोला पहनती हैं, बिलकुल बेजान हो जाती हैं. यह इंद्र कुमार की असफलता है कि वह पूरी फिल्म में रेखा की उपयोगिता नहीं कर सके। इंद्र कुमार का रेखा को मॉडल बना कर सुपर नानी बनाने का विचार ही, अस्वाभाविक है। वह किसी दूसरे एंगल से रेखा को सुपर नानी साबित कर सकते थे। जैसे वह फिल्म में रेखा के बेटे से उधार लेनी आये गुंडे खुद के लिए रेखा की ममता देख कर वापस चले जाते हैं.
फिल्म को इंद्र कुमार के लिए नहीं रेखा और शरमन जोशी की जोड़ी के कारण देखा जा सकता है। यह जोड़ी जब भी परदे पर आती है, छा जाती है। शरमन जोशी बेहद सजीव अभिनय करते हैं। पता नहीं क्यों फिल्मकार उनका उपयोग घटिया कॉमेडी करवाने के लिए ही क्यों करते हैं। इंद्र कुमार की बिटिया श्वेता के 'इंद्र कुमार की बिटिया' टैग से उबरने की जुगत फिल्म में नज़र नहीं आती। रणधीर कपूर को न पहले एक्टिंग आती थी, न इस फिल्म में वह कुछ कर पाये हैं। अनुपम खेर ने यह फिल्म निश्चित ही पैसों के लिए ही की होगी। बाकी, दूसरों को जिक्र करने से कोई फायदा नहीं है।
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फिल्म समीक्षा
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