Monday, 3 November 2014

सदाशिव के रामा शेट्टी ने हिंदी फिल्मों के विलेन को नए आयाम दिए थे

११ मई १९५० को जन्मे गणेश कुमार नर्वोडे , जब २४ साल बाद सदाशिव नाम से रंगमंच पर उतरे थे, उस समय शायद ही किसी को एहसास रहा होगा कि  यह गहरे रंग वाला अहमदनगर में पैदा हुआ व्यक्ति एक दिन बॉलीवुड को एक नयी विधा देगा।  १९७४ में  मराठी नाटकों से अपने अभिनय करियर की शुरुआत करने वाले सदाशिव ने १९७४ में पहली मराठी फिल्म अमरस पा ली. शुरू में सदाशिव को मराठी फिल्मों में छोटे रोल ही मिले।  उन्हें बड़ा और मशहूर करने वाला रोल मिला  मराठी फिल्म बाल गंगाधर तिलक में तिलक का ।  इस फिल्म के बाद सदाशिव ने कई मराठी फ़िल्में की।  उन्होंने अपनी फिल्म निर्माण कंपनी अंजना आर्ट्स के तहत मराठी फ़िल्में भी बनायी । इसी दौरान बॉलीवुड कला फिल्मों की आलोचना हो रही थी कि यह कूड़ा फ़िल्में हैं, इनका आम दर्शकों से ख़ास सरोकार भी नहीं होता, जिन्हे ज़्यादा दर्शक देखता ही नहीं ।  उस दौरान श्याम बेनेगल का सिनेमा चर्चित हो रहा था ।  उनके सिनेमा को जीवंत करने का काम श्याम के सिनेमेटोग्राफर गोविन्द निहलानी कर रहे थे ।  गोविन्द निहलानी जब सिनेमा बनाने उतरे तो उन्होंने  मेंटर श्याम बेनेगल से थोड़ा हट कर रास्ता चुना ।  श्याम बेनेगल की फिल्मों के दबे कुचले किरदार गोविन्द निहलानी की फिल्म में आकर आक्रोशित हो रहे थे ।  ओमपुरी की मुख्य  भूमिका वाली फिल्म आक्रोश ऎसी ही फिल्म थी ।  इस फिल्म ने कला फिल्मों के शोषित नायक को भी विद्रोही चोला पहना दिया ।  कला सिनेमा और मुख्य धारा के बीच सेतु का काम किया गोविन्द निहलानी की फिल्म अर्द्धसत्य ने ।  यह फिल्म व्यवस्था के नीचे दबे हुए एक पुलिस अधिकारी अनंत वेलणेकर  के विद्रोह की थी ।  एक नेता रामा  शेट्टी के तलुवे चाटते चाटते वह अधिकारी विद्रोह कर उठता है और नेता को उसका गला दबा कर मार देता है ।  नेताओं और पुलिस भ्रष्टाचार से पीड़ित तत्कालीन दर्शकों की आवाज़ बने ओम पूरी । लेकिन, ओम पूरी का किरदार रामा  शेट्टी के बिना अधूरा था । ओमपुरी के पुलिस किरदार को उकसाने वाले रामा शेट्टी का किरदार मराठी फिल्मों के अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर ने किया था ।  इस फिल्म में सदाशिव की संवाद अदायगी का  ख़ास चुभता लहज़ा और माथे में पड़ती सलवटें हिंदी फिल्मों के खलनायक की नहीं परिभाषा गढ़ रही थी ।  यह पहली फिल्म थी जिसमे व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग एक राजनेता पर उंगली उठायी गयी थी । अर्द्ध सत्य के हिट होते ही सदाशिव अमरापुरकर के रूप में हिंदी  फिल्मों को भिन्न शैली में संवाद बोलने वाला विलेन  और चरित्र अभिनेता मिल गया । इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला ।   दिलचस्प बात यह है कि  सदाशिव अमरापुरकर को अर्द्ध सत्य की सफलता के बाद जो  फिल्म मिली वह श्याम और तुलसी रामसे  की हॉरर फिल्म पुराना मंदिर थी ।  इस फिल्म में उन्होंने दुर्जन चौकीदार की भूमिका की थी ।  अर्द्ध सत्य से सदाशिव के अभिनय का डंका मुख्य धारा के फिल्मकारों के बीच बज गया ।  उन्हें जवानी, आर पार, तेरी मेहरबानियाँ, खामोश, आखिरी रास्ता, मुद्दत और हुकूमत जैसी बड़ी फ़िल्में मिल गयीं ।  हालाँकि,  इन फिल्मों में ज़्यादातर में उन्हें नेगेटिव रोल ही मिले ।  हुकूमत के वह मुख्य विलेन  थे ।  धर्मेन्द्र की मुख्य भूमिका  वाली हुकूमत ने उसी साल प्रदर्शित फिल्म मिस्टर इंडिया से ज़्यादा कमाई की थी ।  इस फिल्म के बाद धर्मेन्द्र और सदाशिव अमरापुरकर की नायक-खल नायक जोड़ी हिट हो गयी ।  सदाशिव अमरापुरकर अपने करियर के शीर्ष पर पहुंचे महेश भट्ट की फिल्म सड़क से ।  इस फिल्म में उन्होने औरत के वेश में रहने वाले खल नायक महारानी का किरदार किया था ।  इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को पहली बार स्थापित फिल्मफेयर का श्रेष्ठ खल अभिनेता का पुरस्कार मिला ।  नब्बे के दशक के मध्य में सदाशिव अमरापुरकर के करियर को कॉमेडी मोड़ मिला । उन्होंने डेविड धवन की फिल्म आँखें में इंस्पेक्टर प्यारे मोहन का कॉमिक किरदार किया था । इस फिल्म से गोविंदा और कादर  खान के साथ सदाशिव अमरापुरकर की जोड़ी खूब जम  गयी ।  सदाशिव अमरापुरकर  और कादर  खान ने एक साथ दिल लगा के देखों, हम हैं कमाल के, ऑंखें, आग, द  डॉन, कुली नंबर १, याराना, छोटे सरकार,मेरे दो अनमोल रतन, आंटी नंबर  १,बस्ती, परवाना, खुल्लम खुल्ला प्यार करें , कोई मेरे दिलम में है, झाँसी की रानी, हम हैं धमाल के और दीवाने जैसी १७ फ़िल्में कीं । गोविंदा के साथ सदाशिव अमरापुरकर की कॉमेडी फिल्मों आँखें, आंटी नंबर १, कुली नंबर १, दो आँखें बारह हाथ, राजा भैया को भी अच्छी सफलता मिली ।  इन कॉमेडी फिल्मों के बीच सदाशिव अमरापुरकर ने एक बार भी खल नायिकी के हुनर दिखाए फिल्म इश्क़ में ।  वह इस फिल्म में अजय देवगन के अमीर पिता बने थे। सदाशिव अमरापुरकर ने अपने पूरे फिल्म करियर में दो सौ से ज़्यादा फिल्मों में भिन्न किरदार किये ।  उन्हें हमेशा यह मलाल रहा कि  हिंदी फिल्म निर्माताओं ने उन्हें टाइप्ड भूमिकाएं ही दी ।   इसीलिए उन्होंने धीरे धीरे कर हिंदी फिल्मों में अभिनय करना कम कर दिया ।  उनकी आखिरी फिल्म बॉम्बे टॉकीज  २०१३ में रिलीज़ हुई थी, जिसमे उन्होंने दिबाकर बनर्जी के निर्देशन में बनी कहानी में भूमिका की थी ।  सदाशिव अमरापुरकर के दौर में कादर  खान, परेश रावल, अनुपम खेर, आदि जैसे  मज़बूत चरित्र अभिनेता थे ।  उन्होंने इन सशक्त हस्ताक्षरों के बीच अपने ख़ास अंदाज़ में  अपनी ख़ास जगह बनायी । यह काफी है बताने के लिए कि  अमरापुरकर हिंदी फिल्मों के हरफनमौला सदाशिव थे।   






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