तीन दिनों में ४०००+ प्रिंट रिलीज़ कर १०० करोड़ कमाने वाले खानों की इस भीड़ में अक्षय कुमार ही एक ऐसा नाम है, जिनकी फिल्मों से दर्शक कुछ अलग और मनोरंजक फिल्म की उम्मीद करते हैं। अश्विन वर्डे, मुराद खेतानी, अक्षय कुमार की अभिषेक शर्मा निर्देशित फिल्म 'द शौक़ीनस' पूरी तरह से निराश करती है। द शौक़ीनस १९८२ में रिलीज़ बासु चटर्जी की फिल्म शौक़ीन का रीमेक है। पकी पकाई कहानी होने के बावजूद लेखक और संवाद लेखक तिग्मांशु धूलिया कुछ मनोरंजक पेश नहीं कर पाये। उनकी स्क्रिप्ट में झोल ही झोल हैं। सब कुछ ऐसे चलता है जैसे बच्चों का खेल। पूर्वार्ध में पियूष मिश्रा, अन्नू कपूर और अनुपम खेर के चरित्रों का परिचय कराते और उन्हें विकसित करने वाले दृश्य हैं। लेकिन इनमे कोई कल्पनाशीलता नहीं है. अविश्वसनीय और अनगढ़ दृश्यों की भरमार है। संवाद बहुत घिसे पिटे हैं। ऐसे चरित्रों के मुंह से ऐसे ही संवाद बुलाये जाते हैं।
फिल्म की कहानी तीन शौकीनों की हैं, जो किसी न किसी कारण से सेक्स को लेकर असंतुष्ट हैं। इसलिए वह अपनी सेक्सुअल संतुष्टि के लिए अपनी आँखें सेंकने से लेकर कर लड़कियों को छूने तक का असफल प्रयास करते हैं और बेइज़्ज़त होते हैं। फिर वह बैंकॉक जाकर अपनी इच्छा पूरी करने की कोशिश करते हैं। लेकिन, घर में विरोध के कारण वहां नहीं जा पाते। फिर वह मॉरीशस जाते हैं। वहां उनकी मुलाकात अक्षय कुमार की दीवानी लड़की से होती है। वह उसे अक्षय कुमार से मिलाने का जतन करते हैं, ताकि उसकी निकटता पा सकें। बड़े अविश्वसनीय घटनाक्रम होते हैं मॉरीशस में। अजीब लगता हैं फिल्म में खुद की भूमिका कर रहे अक्षय कुमार का प्रेस कॉन्फ्रेरेन्स में पहले तीनों शौक़ीनस और उस लड़की को बेइज़्ज़त करना, फिर दुबारा उनकी सफाई देने के लिए प्रेस कांफ्रेंस करना। यही कारण है कि जब फिल्म ख़त्म होती है तब दर्शक खुद को तीनों शौकीनों की तरह असंतुष्ट महसूस करता है।
फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं जिसका ज़िक्र किया जाए, सिवाय अभिनय के। अक्षय कुमार तो साधारण रहे हैं। शौक़ीनस तिकड़ी में पियूष मिश्रा और अन्नू कपूर का अभिनय बढ़िया है. अन्नू कपूर तो दर्शकों की खूब तालियां बटोरते हैं, जबकि पियूष मिश्रा दर्शकों की प्रशंसा के हक़दार बनते हैं। न जाने क्या बात थी कि अनुपम खेर इन दोनों के सामने मुरझाये लगे। लिसा हेडेन ने फिल्म क्वीन में जितना प्रभावित किया था, इस फिल्म उससे कई गुना ज़्यादा निराश करती हैं। वह अपनी कमनीय काया का प्रदर्शन करती हैं, लेकिन कोई आकर्षण पैदा नहीं कर पातीं कि दर्शक उनके इस अंग प्रदर्शन के लिए फिल्म देखने आये।
इस फिल्म को देख कर अक्षय कुमार के प्रशंसक भी निराश होंगे।
फिल्म की कहानी तीन शौकीनों की हैं, जो किसी न किसी कारण से सेक्स को लेकर असंतुष्ट हैं। इसलिए वह अपनी सेक्सुअल संतुष्टि के लिए अपनी आँखें सेंकने से लेकर कर लड़कियों को छूने तक का असफल प्रयास करते हैं और बेइज़्ज़त होते हैं। फिर वह बैंकॉक जाकर अपनी इच्छा पूरी करने की कोशिश करते हैं। लेकिन, घर में विरोध के कारण वहां नहीं जा पाते। फिर वह मॉरीशस जाते हैं। वहां उनकी मुलाकात अक्षय कुमार की दीवानी लड़की से होती है। वह उसे अक्षय कुमार से मिलाने का जतन करते हैं, ताकि उसकी निकटता पा सकें। बड़े अविश्वसनीय घटनाक्रम होते हैं मॉरीशस में। अजीब लगता हैं फिल्म में खुद की भूमिका कर रहे अक्षय कुमार का प्रेस कॉन्फ्रेरेन्स में पहले तीनों शौक़ीनस और उस लड़की को बेइज़्ज़त करना, फिर दुबारा उनकी सफाई देने के लिए प्रेस कांफ्रेंस करना। यही कारण है कि जब फिल्म ख़त्म होती है तब दर्शक खुद को तीनों शौकीनों की तरह असंतुष्ट महसूस करता है।
फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं जिसका ज़िक्र किया जाए, सिवाय अभिनय के। अक्षय कुमार तो साधारण रहे हैं। शौक़ीनस तिकड़ी में पियूष मिश्रा और अन्नू कपूर का अभिनय बढ़िया है. अन्नू कपूर तो दर्शकों की खूब तालियां बटोरते हैं, जबकि पियूष मिश्रा दर्शकों की प्रशंसा के हक़दार बनते हैं। न जाने क्या बात थी कि अनुपम खेर इन दोनों के सामने मुरझाये लगे। लिसा हेडेन ने फिल्म क्वीन में जितना प्रभावित किया था, इस फिल्म उससे कई गुना ज़्यादा निराश करती हैं। वह अपनी कमनीय काया का प्रदर्शन करती हैं, लेकिन कोई आकर्षण पैदा नहीं कर पातीं कि दर्शक उनके इस अंग प्रदर्शन के लिए फिल्म देखने आये।
इस फिल्म को देख कर अक्षय कुमार के प्रशंसक भी निराश होंगे।
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