विक्टोरिया नंबर २०३, चोरी मेरा काम, यह रात फिर न आएगी, प्रोफ़ेसर प्यारेलाल, जैसे फिल्मों के निर्देशक ब्रिज सडाना और पुरानी स्टंट फिल्मों की नायिका सईदा खान के बेटे कमल सडाना ने लम्बे समय तक अजय गोयल और सुखवंत ढड्डा का निर्देशक असिस्टेंट रहने के बाद कमल ने फिल्म बेखुदी से काजोल के साथ फिल्म डेब्यू किया। बेखुदी को बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की बेरुखी मिली। लेकिन, काजोल चल निकली, कमल सडाना पीछे रह गए। उन्होंने रंग और बाली उम्र को सलाम जैसी फ्लॉप फ़िल्में करने के बाद अपने हीरो को सलाम कर दिया और कर्कश फिल्म का निर्देशन किया। फिल्म ज़्यादातर फेस्टिवल्स में देखि जा सकी। अपने पिता की फिल्म विक्टोरिया नंबर २०३ का रीमेक बनाने के बाद वह तकनीकी प्रक्षिक्षण के लिए विदेश चले गए। उन्होंने स्पेशल इफेक्ट्स में ख़ास तौर पर वीएफएक्स में, रूचि दिखलायी। इसी का नतीजा है इस शुक्रवार रिलीज़ फिल्म रोर टाइगर्स ऑफ़ द सुंदरबन्स। कमल सडाना ने रोर को लिखा और निर्देशित किया है। फिल्म के संवाद और पटकथा आनंद गोराडिया ने लिखी है।
फिल्म की कहानी सिर्फ इतनी है कि पंडित का भाई सुंदरबन के जंगलों में वाइल्ड फोटोग्राफी करने आता है। वह जंगल में शिकारियों द्वारा लगाए गए ट्रैप से एक सफ़ेद शेर के बच्चे को बचा कर अपने कमरे में ले आता है। फारेस्ट अफसर उस बच्चे को अपने साथ ले जाती है। शेर के बच्चे के मुंह में लगे खून को जिस तौलिये से पोंछा जाता है, वह जंगल के कमरे में ही रखा है। शेरनी उसे सूंघते हुए आती है और पंडित के भाई को मार डालती है। शेरनी से अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए पंडित अपने फौजी साथियों के साथ जंगल आता है। वह फारेस्ट अफसर के मना करने बावजूद शेरनी को मारने के लिए जंगल में पानी के रास्ते घुसता है। फिर सब कैसे एक एक कर मारे जाते हैं? क्या पंडित शेरनी को मार पाता है? क्या होता है यह जानना देखने के लिहाज से ज़बरदस्त है।
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हिमार्षा |
फिल्म की कहानी बेकार है। अगर, इस फिल्म की कहानी केवल जंगल की घटनाओं को लेकर बनायीं जाती तो कुछ बात बनती। क्योंकि, शेरनी बदला लेने की थ्योरी तो पहली ही नज़र खारिज हो जाती है। इसे रोमांचक घटनों से गूंथा जा सकता था। स्क्रिप्ट और स्क्रीन प्ले के द्वारा इसे बखूबी किया गया है। वीएफएक्स के द्वारा ऐसे ऐसे रोमांचक दृश्य फिल्माएं गए हैं, जो अभूतपूर्व हैं। सिनेमाघर में बैठे दर्शक जंगल का रोमांच महसूस करते हैं। इस फिल्म की खासियत यह है कि यह कहानी चलने के साथ साथ सुंदरबन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां भी देती जाती हैं। जानवरों और साँपों के व्यवहार का भी दर्शकों से परिचय कराती जाती है। इन्ही सब कारणों से फिल्म रोर टाइगर्स ऑफ़ द सुंदरबन्स ख़ास बन जाती है। निर्देशन के लिहाज़ से कमल सडाना अच्छा काम कर ले जाते हैं। रोमांच फिल्मों में संगीत (बैक ग्राउंड) और फोटोग्राफी का ख़ास महत्त्व होता है। जॉन स्टीवर्ट और माइकल वाटसन इस क्षेत्र में अपना काम ज़बरदस्त करते हैं। उनके कारण फिल्म साधारण से असाधारण बन जाती है। कमल सडाना के साथ मुजम्मिल नासिर ने अपने संपादन से फिल्म को सुस्त नहीं पड़ने दिया है। एक के बाद एक रोमांचक दृश्य दर्शकों को चौंकाते जाते है। जब फिल्म ख़त्म होती है तो वह तालियां बजाने से खुद को रोक नहीं पाता। यही कमल सडाना और उनके साथियों की सफलता है।
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नोरा फतेही |
फिल्म में पंडित की मुख्य भूमिका में टीवी एक्टर अभिनव शुक्ल है। उनका काम अच्छा है। सुब्रता दत्त को भीरा की खल भूमिका दी है। पर लिखते समय भीरा को ख़ास तवज़्ज़ो नहीं दी गयी है। इसलिए वह उभरने नहीं पाते। फिल्म की तमाम स्टारकास्ट काम पहचानी या नयी है। आरन चौधरी ने सूफी, प्रणय दीक्षित ने मधु, वीरेंदर सिंह घूमन ने सीजे, अचिंत कौर ने फारेस्ट अफसर, पुलकित ने उदय और अली क़ुली ने हीरो की भूमिका की है। यह सब अपनी भूमिकाओं के उपयुक्त है। यहाँ जिक्र करना होगा दो अभिनेत्रियों का। सीजे की भूमिका में नोरा फतेही और झुम्पा की भूमिका में हिमर्षा फिल्म को ख़ास बनाती है। हालाँकि, यह दोनों अभिनेत्रियां अभिनय के लिहाज़ से कमज़ोर हैं, लेकिन अपनी सेक्स अपील से दर्शकों को बहला ले जाती हैं। नोरा फतेही तो एक्शन भी खूब करती हैं। जंगल में शेरों से बच कर भाग सीजे दर्शकों को तालियां बजाने को मज़बूर कर देती हैं।
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| अगर आप जंगल की वास्तविकता देखना चाहते हैं, जंगल और उसके प्राणियों को समझना चाहते हैं, अगर आप रोमांच के दीवाने हैं, तो रोर टाइगर्स ऑफ़ द सुंदरबन्स आपके लिए ही बनी है। ज़रूर देखिएगा। कमल सडाना से आगे भी कुछ अच्छी फिल्मे देखने को मिल सकती हैं। | |
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