Wednesday 26 October 2016

आईमैक्स में रिलीज़ होगी ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स की चार फ़िल्में

पूरी दुनिया में आईमैक्स में रिलीज़ फिल्म डेडपूल की सफलता को देखते हुए आईमैक्स कॉर्पोरेशन ने ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स की चार फिल्मों को ख़ास तौर पर रिलीज़ करने का समझौता किया है।  इसके अनुसार आईमैक्स द्वारा अगले साल दस जून को रिलीज़ होने जा रही मार्वल की अनाम फिल्म के अलावा २०१८ में तीन फिल्मों १ दिसम्बर को मेज़ रनर: द डेथ क्योर, २ सितम्बर को प्रिडेटर और ७ जुलाई को अलिटा: बैटल एंजेल दुनिया के तमाम आईमैक्स थिएटरो में रिलीज़ की जाएंगी।  इन फिल्मों को आईमैक्स फॉर्मेट में डिजिटली मिलाया जायेगा।  इससे फिल्म की तमाम इमेज बिलकुल साफ़ और चमक वाली नज़र आएंगी। ऎसी फ़िल्में जब आईमैक्स ख़ास थिएटरो में शक्तिशाली डिजिटल ऑडियो में दिखाई जाएंगी तो दुनिया के दर्शकों को बिलकुल ऐसा अनुभव मिलेगा, जैसे वह खुद मूवी का हिस्सा हैं।

इंदिरा गाँधी, आपातकाल और बॉलीवुड फ़िल्में

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता निर्देशक शिवाजी लोटन पाटिल की इंदिरा गाँधी हत्याकांड की पृष्ठभूमि पर पोलिटिकल थ्रिलर फिल्म ३१ अक्टूबर को सेंसर बोर्ड ने नौ कट के साथ पारित कर दिया है  अब यह फिल्म इंदिरा गाँधी की हत्याकांड की तारिख से २४ दिन पहले ७ अक्टूबर को रिलीज़ होगी ।  ३१ अक्टूबर इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोध दंगों में सिख परिवार के जीवित रहने के लिए संघर्ष की सच्ची कहानी है । इस फिल्म को दुनिया के कई फिल्म फेस्टिवल में सराहना मिली है । फिल्म के निर्माता हैरी सचदेवा और आनंद प्रकाश कहते हैं, “हमें गर्व है कि हम तमाम बाधाओं को पार इस विषय को लोगों के सामने बड़े परदे पर लाने में सफल हुए हैं ।“
कैंची के शिकार ‘कौम दे हीरे’
इसमे कोई शक नहीं कि इस निर्माता जोड़ी को फिल्म पारित कराने में सेंसर से जूझना पडा । तमाम आलोचनाओं से जूझ रहे सेंसर बोर्ड को ध्यान रखना था कि फिल्म में ऎसी कोई बात न चली जाए, जिससे हिंसा भड़के । इसके बावजूद ३१ अक्टूबर के निर्माता भाग्यशाली हैं कि उनकी फिल्म चार महीने के बाद सेंसर द्वारा पारित कर दी गई । इस लिहाज़ से दो साल पहले एक पंजाबी फिल्म इतनी भाग्यशाली नहीं साबित हो सकी । सेंसर बोर्ड ने २०१४ में इस आधार पर निर्देशक रविंदर रवि की पंजाबी फिल्म कौम दे हीरे को बैन कर दिया कि यह इंदिरा गांधी की हत्या को जस्टिफाई करती थी और उनके हत्यारों बेंत सिंह, सतवंत सिंह और केहर सिंह को ग्लोरीफी करती थी। इस फिल्म को लीला सेमसन के सेंसर बोर्ड द्वारा हिंसा भड़कने की आशंका पर पारित नहीं किया गया था ।
इंदिरा गाँधी पर फ़िल्म !
भारत की प्रथम महिला प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी पर उनके जीवन और उनकी मृत्य के बाद फ़िल्में बनाने की कई कोशिशें की गई । बीबीसी द्वारा २००२ में निक रीड की ८० मिनट का एक वृत्तचित्र इंदिरा गाँधी: द डेथ ऑफ़ मदर इंडिया टेलीकास्ट की गई । लेकिन, इसके अलावा काफी दूसरे प्रयास परवान नहीं चढ़ सके । २००९ में इंदिरा गाँधी हत्याकांड पर एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म बनाने का फैसला किया गया था । यह फिल्म इंदिरा गाँधी के हत्याकांड पर केन्द्रित थी । हत्याकांड के दिन इंदिरा गाँधी का इंटरव्यू करने पहुंचे पीटर उस्तीनोव की भूमिका के लिए अल्बर्ट फिन्ने को लिया गया था । हेलेन मिरेन क्वीन एलिज़ाबेथ, टॉम हंक्स और टोमी ली जोंस क्रमशः लिंडन बी जॉनसन और रिचर्ड निक्सन का किरदार करने वाले थे । ब्रितानी एक्ट्रेस एमिली वाटसन मार्गरेट थैचर का किरदार करने वाली थी । इस फिल्म में इंदिरा गाँधी की भूमिका के लिए माधुरी दीक्षित का नाम चल रहा था । उस समय इस फिल्म का बजट ४० मिलियन पौंड रखा गया था । लेकिन, कृष्णा शाह की यह फिल्म शूटिंग की दहलीज़ तक नहीं पहुँच सकी ।
बॉलीवुड अभिनेत्रियाँ चाहें इंदिरा गाँधी बनना
इंदिरा गाँधी और उनके बेटे संजय गाँधी ने आपातकाल के दौरान बॉलीवुड को नाहक परेशान किया था । किशोर कुमार के गीतों के प्रसारण पर रोक, हिंदी फिल्मों पर कडा सेंसर और बैन बॉलीवुड पर भारी पड़ रहे थे । इसके बावजूद हिंदी फिल्मों की तमाम अभिनेत्रियाँ सेलुलाइड पर इंदिरा गाँधी बनने के लिए बेताब नज़र आती थी । कृष्णा शाह की इंदिरा गाँधी पर फिल्म में इंदिरा गाँधी बनाने के लिए बॉलीवुड की धक् धक् गर्ल माधुरी दीक्षित बेताब थी । २००२ में निर्माता नितिन केनी ने १५ करोड़ की लागत से इंदिरा गांधी के जीवन पर फिल्म इंदिरा गांधी अ ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी बनाने का ऐलान किया था।  इस फिल्म में मनीषा कोइराला इंदिरा गांधी की भूमिका करने वाली थी। मनीषा ने फिल्म के लिए अपना फर्स्ट लुक भी जारी कर दिया था । हाल ही में, अभिनेत्री विद्या बालन ने एक इंटरव्यू में यह स्वीकार किया था कि वह बड़े परदे पर इंदिरा गाँधी की भूमिका करना चाहती हैं । रहस्य फिल्म के निर्देशक मनीष गुप्ता ने इंदिरा गाँधी पर फिल्म के लिए विद्या बालन से संपर्क भी किया था । विद्या बालन ने स्क्रिप्ट पसंद भी की थी । मनीष गुप्ता कहते हैं, “विद्या बालन थोड़ी सशंकित थी । इंदिरा गाँधी पर फिल्म से पहले काफी सावधानियां बरतनी होती हैं ।“ प्रेम रतन धन पायो और गोलियों की रासलीला राम-लीला की अभिनेत्री स्वरा भास्कर को भी इंदिरा गाँधी का किरदार करने की बेताबी है ।
इमरजेंसी और भारतीय सिनेमा
इमरजेंसी का बुरा प्रभाव भारतीय सिनेमा पर भी पडा । इंदिरा गांधी ने २५ जून १९७५ को इमरजेंसी का ऐलान किया था।  यह आपातकाल २१ मार्च १९७७ तक जारी रहा।  इस दौरान भारत की फिल्म इंडस्ट्री को आपातकालीन ज़्यादतियां साहनी पड़ी।  आपातकाल के दौरान गुलजार की राजनीतिक फिल्म आंधी का प्रदर्शन रोक दिया गया । गुलज़ार की फिल्म आंधी का प्रदर्शन इस आधार पर रोका गया कि यह फिल्म इंदिरा गांधी पर आधारित थी। इस फिल्म में सुचित्रा सेन का करैक्टर इंदिरा गाँधी से मिलता जुलता था । अमृत नाहटा की फिल्म किस्सा कुर्सी का इमरजेंसी का तगड़ा मज़ाक उड़ाती थी।  इस फिल्म में शबाना आज़मी ने गूंगी बाहरी जनता का किरदार किया था।  इसके प्रिंट संजय गांधी द्वारा गुड़गांव की मारुती फैक्ट्री में जला दिए गए। तेलुगु फिल्म यमगोला (१९७७) भी इमरजेंसी का मज़ाक बनाती थी।  इस फिल्म को हिंदी में लोक परलोक टाइटल के साथ रीमेक किया गया। इन सभी फिल्मों को आपातकाल की ज्यादतियों का सामना करना पड़ा 
एक शोले दो क्लाइमेक्स
कहा जाता है कि गाँधी परिवार से नज़दीकियों के कारण अमिताभ बच्चन की मुख्य भूमिका वाली फिल्म शोले को हिंसा के बावजूद पारित कर दिया गया था । लेकिन, वास्तव में इस फिल्म को काफी कट्स और रीशूट के बाद ही पारित किया गया । रमेश सिप्पी ने फिल्म के अंत में ठाकुर के द्वारा गब्बर सिंह की हत्या होते दिखाया गया था । मगर सेंसर को लगा था कि एक पूर्व पुलिस अधिकारी द्वारा एक डाकू की हत्या गलत सन्देश देने वाली हो सकती थी । इस पर रमेश सिप्पी को क्लाइमेक्स की फिर शूटिंग करनी पड़ी । इसमे ठाकुर द्वारा गब्बर सिंह को मारने से पहले ही पुलिस पहुँच जाती थी और गब्बर सिंह को अपने कब्ज़े में ले लेती थी । ठाकुर के परिवार की गब्बर सिंह द्वारा हत्या के दृश्यों को भी काट दिया गया था । इमाम के बेटे को गब्बर द्वारा मारे जाने का दृश्य भी काट दिया गया था । बाद में रमेश सिप्पी ने डीवीडी के चार घंटे के अनकट वर्शन में ठाकुर द्वारा गब्बर सिंह के मारे जाने के दृश्य सहित सभी सेंसर किये गए दृश्यों को रखा था ।
इमरजेंसी पर फ़िल्में
आईएस जौहर की फिल्म नसबंदी में संजय गांधी के नसबंदी कार्यक्रम का मज़ाक बनाया गया था । सत्यजीत रे की १९८० में रिलीज़ फिल्म हीरक राजर देशे बाल हास्य फिल्म थी। लेकिनइसमे भी आपातकाल पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की गई थी।  बालू महेंद्रू निर्देशित १९८५ की मलयालम फिल्म यात्रा की मुख्य कथा आपातकाल के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन का चित्रण करने वाली थी।  एक अन्य मलयालम फिल्म पिरावी (१९८८) भी एक पिता की अपने बेटे की खोज की कहानी थीजिसे पुलिस ने गिरफ्तार करने के बाद प्रताड़ना देकर मार डाला था।  सुधीर मिश्र की शाइनी आहूजाकेके मेनन और चित्रांगदा सिंह अभिनीत फिल्म हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की पृष्ठभूमि भी आपतकाल पर थी।  यह फिल्म आपातकाल के दौरान नक्सल आंदोलन के विस्तार और खात्मे की कहानी थी।  इस फिल्म में सत्तर के दशक के भारतीय युवा के सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन का बढ़िया चित्रण किया गया था। मराठी फिल्म शाला (२०१२) भी इमरजेंसी के दौरान की कठिनाइयों पर फिल्म थी। सलमान रुश्दी के उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन में इंदिरा गांधी का निगेटिव चित्रण किया गया था।  यह फिल्म भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्म मेले में नहीं दिखाई गई।  

बॉलीवुड ने ही ‘पिंक’ को शर्म से ‘लाल’ किया !

निर्माता शूजित सरकार की फिल्म पिंक में अमिताभ बच्चन का चरित्र स्थापित करता है कि अगर औरत न कह रही है तो उसे न समझा जाना चाहिए सेक्सुअल रिलेशन बनाने के लिए ज़बरदस्ती नहीं की जानी चाहिए। हालाँकि, इससे पहले फिल्म इसे स्वीकार करती हैं कि अगर कोई लड़की छोटे कपडे पहन कर क्लब या पार्टी में जाती है, दोस्त या दोस्त के दोस्तों के साथ शराब पीती है और डिनर खाती है और पैसे मांगती है तो वह चरित्रहीन समझी जाती है। कोई लड़का उससे ज़बरदस्ती कर सकता है। हालाँकि, ऐसा उस लडके की घटिया मानसिकता का परिणाम दिखाया गया है। लेकिन, यहाँ सवाल यह है कि किसी लडके में यह संस्कार आये कहाँ से। यह संस्कार किसने दिए। पिंक तो यह कह ही रही है। 

क्या बॉलीवुड ज़िम्मेदार नहीं !
बड़ा सवाल यह है कि इस प्रकार के संस्कार युवाओं या पुरुषों के मन में किसने भरे ! उस समाज ने जिसके परिवारों में बेटों के साथ बेटियाँ भी होती हैं ! बेशक, पड़ोस की आधुनिक या तेज़ तर्रार लड़की को देख कर ऐसा समझा जा सकता है। लेकिन क्या हिंदी फ़िल्में युवाओं में गंदे संस्कार भरने के आरोप से बरी हो सकती है ? बिलकुल नहीं। हिंदी फिल्मों ने ही महिला चरित्र को रसातल में डुबोने की साज़िश की है, अपने हीरो की हीरोइज्म स्थापित करने के लिए। बॉलीवुड का इतिहास गवाह है कि तमाम अभिनेता अपनी नायिका को अपमानित कर सुपर स्टार ही नहीं मेगा स्टार तक बने।  
कोड़े से पीटने वाले अमिताभ !
पिंक में अमिताभ बच्चन का चरित्र महिला की न को महत्त्व देता था। लेकिन इन्ही अमिताभ बच्चन की फिल्मों में बॉक्स ऑफिस की खातिर नायिका के चरित्र को रसातल में डुबो दिया। उसकी अवमानना की। अमिताभ की ज़्यादातर फिल्मों की नायिका शो पीस थी। वह खुद एंटी सोशल करैक्टर किया करते थे।  जिसे एंग्री यंगमैन खिताब दिया गया था। यह करैक्टर अपनी नायिका कोा छेड़ता ही नहीं था, बल्कि, शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी करता था। फिल्म शहंशाह में अमिताभ बच्चन के करैक्टर के लिए मीनाक्षी शेषाद्री का चरित्र इस लिए हल्का था कि वह आधुनिक थी और कम कपडे पहन कर घूमा करती थी। वह फिल्म में उसे नोचते खसोटते दिखाए गए। फिल्म मर्द में अमिताभ बच्चन बिगडैल, बददिमाग अमृता सिंह को कोड़े से पीटते हैं और उसकी पीठ पर नमक मलते हैं। दर्शक उस समय सीटियाँ बजाते हैं, जब अमृता सिंह उनकी इस हरकत का मज़ा ले रही होती हैं। अमिताभ बच्चन ने ही यह स्थापित किया कि अमीर होना बुरी बात है। ऎसी अमीरज़ादियों का अपहरण कर घर में बाँध कर रखा जा सकता है (फिल्म कुली) और पीटा जा सकता है। दीवार में परवीन बॉबी को हमबिस्तर बनाने वाले अमिताभ बच्चन हीरो है लेकिन परवीन बॉबी को कॉल गर्ल होने के कारण जान देनी पड़ती है। 
हीरो बना अपहर्ता
नायिका का अपहरण कर हीरो बनना तो कई अभिनेताओं का शगल रहा है। सनी देओल अपनी पहली फिल्म बेताब की नायिका अमृता सिंह का उसके घर से अपहरण कर बंधक बना लेते हैं। फिल्म हीरो का नायक (जैकी श्रॉफ) भी मीनाक्षी शेषाद्री का अपहरण कर लेता है।  बॉबी, लव स्टोरी, आदि तमाम टीन एज रोमांस वाली फिल्मों में नायक अपनी नायिका को भगा ले जाता है। दिलचस्प तथ्य यह है कि दर्शक इन चरित्रों के अभिनेताओं को सुपर स्टार बना देता है। नायिका ऐसे लम्पट चरित्र पर मर मिटती है। नायिका के घरवालों को नायक को स्वीकार करना पड़ता है। 
जंपिंग जैक जीतेंद्र
कदाचित जीतेंद्र पहले ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने ऑन स्क्रीन अपनी नायिका को सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया। अपनी पहली एक्शन फिल्म फ़र्ज़ में जीतेंद्र बबिता को बेतरह झिंझोड़ कर रख देते थे। जीतेंद्र की नायिका बनने वाली हेमा मालिनी, श्रीदेवी, जयाप्रदा आदि इस नोचखसोटी की गवाह हैं। इन फिल्मों की नायिका माने या न माने जीतेंद्र के करैक्टर को खुद को उसका प्यार साबित करवाना ही है। फिल्मों में इसी प्रकार के रोल कर जीतेंद्र सबसे ज्यादा कमाई करने वाले स्टार बने। आज भी दक्षिण की फिल्मों में जीतेंद्र वाला हीरो कायम है। जीतेंद्र से पहले शम्मी कपूर, विश्वजीत और जॉय मुख़र्जी भी अपनी नायिकाओं को जबरन छेड़ा करते थे।  
पवित्र रिश्ता, बिन ब्याही माँ
अमिताभ बच्चन, जीतेंद्र, शम्मी कपूर या किसी दूसरे अभिनेता को क्या दोष दें, हिंदी फिल्मों ने हमेशा से स्त्री चरित्र को ढीले चरित्र वाली महिला के बतौर दिखाया है। पचास-साठ के दशक तक महिला चरित्र कामुकता में बह कर पहली रात ही शारीरिक सम्बन्ध बना लेती थी। नतीजे के तौर पर वह गर्भवती हो जाती थी। अब इस बिन ब्याही माँ को समाज के ताने सुनने ही हैं, अपने बच्चे को भी पालपोस कर बड़ा करना है। नायिका अपने प्रेम को पवित्र बताते हुए ढाई घंटे की फिल्म में रोती बिलखती हुई बेटे को पालती रहती है। अमर में दिलीप कुमार का चरित्र एक रात का सम्बन्ध बना कर निम्मी को छोड़ कर चल देता है। धुल का फूल की माला सिन्हा भी ऐसे ही पवित्र प्रेम के परिणामस्वरूप गर्भवती हो जाती है। एक फूल दो माली की साधना, आखिरी ख़त की इन्द्राणी मुख़र्जी, अंदाज़ की हेमा मालिनी ऎसी ही बिन ब्याही माँ के फ़िल्मी उदाहरण है। हिंदी फिल्मों में टू पीस बिकनी की ईजाद करने वाली शर्मीला टैगोर ने तो आ गले लग जा फिल्म में शशि कपूर के साथ एक रात के सम्बन्ध से माँ बनने के बाद दाग, आराधना, मौसम, आ गले लग जा, सत्यकाम, सनी, स्वाति, आदि फिल्मों में बिन ब्याही माँ बनने का कीर्तिमान स्थापित कर दिया। तभी तो फिल्म क्या कहना की प्रीती जिंटा अपनी कामुकता से लज्जित होने के बजाय ताल ठोंक कर खुद को पवित्र रिश्ता बनाने वाली बिन ब्याही माँ घोषित करती है। हिंदी फिल्मकारों ने नायिका की एक रात की कामुकता को पवित्र प्यार का दर्ज़ा दे कर समाज के (ख़ास तौर पर महिला दर्शकों के) आंसू निकालने और दर्शक बटोरने में कामयाबी हासिल की थी। 
ठण्ड का इलाज़
हिंदी फिल्मों के नायक ने कई फार्मूले ईजाद किये। इनमे से एक फार्मूला ठण्ड का ईलाज था। तमाम हिंदी फिल्मों में नायक ठण्ड से ठिठुरती नायिका का शरीर गर्म करने के लिए खुद नंगा हो कर, नंगी नायिका के साथ सो जाता है। कथित रूप से शरीर गर्म करने की इस प्रक्रिया को आ गले लग जा में शर्मीला टैगोर पर शशि कपूर ने आजमाया था। अमिताभ बच्चन फिल्म गंगा जमुना सरस्वती में अपनी नायिका मीनाक्षी शेषाद्री के ठन्डे शरीर को गर्म करने के लिए यही तरीका अपनाते हैं। शक्ति सामंत अपनी फिल्म आराधना में बारिश में भीग चुकी शर्मीला टैगोर और राजेश खन्ना पर एक कामुक टॉवल डांस (रूप तेरा मस्ताना) फिल्माते हैं और इसके बाद दोनों को सांकेतिक भाषा में शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करते दिखाते हैं। उस दौर की फिल्मों को देखने वाले दर्शको याद होगा कि कैसे ऐसे दृश्य के शुरू होते ही सिनेमाघरों में दर्शक सीटियाँ बजाना और चिल्लाना शुरू कर देते थे। 
कुलटा! हमें कहीं का न छोड़ा !
उस दौर की फिल्मों की खासियत थी कि इन में नायिका की निजता का कोई महत्त्व नहीं था। उस दौर की उन फिल्मों में जहां नायिका एक रात के संबंधों के कारण गर्भवती हो जाती थी, उसकी दाई या डॉक्टर तमाम लोगों के सामने खुलेआम ऐलान करती थी कि नायिका गर्भवती है। इस ऐलान के लिए लीला मिश्रा ख़ास तौर पर मशहूर थी जो निराशा भरे तेवरों के साथ यह कहती थी ‘अरे कुलटा तूने हमें कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ा। पुराने ज़माने की सुलोचना और लीला चिटनिस से लेकर नयी जमाने की प्रीटी जिंटा तक को यह डायलाग सुनने पड़े। इसके बावजूद ऎसी कुलटा नायिका बॉलीवुड फिल्मों में बार बार नज़र आती रही। 

'वॉर' ही है पाकिस्तान की घृणा का 'बॉर्डर' !

पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा उरी में भारतीय सेना के कैंप पर हमला कर १८ सैनिकों को मार डालने की घटना के बाद हिन्दुस्तानियों में बेचैनी है।  शहर शहर प्रदर्शनों की श्रंखला में महाराष्ट्र में शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का पाकिस्तानी कलाकारों को ४८ घंटों में देश छोड़ देने का अल्टीमेटम भी आ जुडा है। इन दोनों सेनाऑ के बयान के बाद बॉलीवुड में भी पक्ष और विपक्ष बनने शुरू हो गए हैं। पाकिस्तानी कलाकारों के खेमे में खड़े लोगों का कहना है कि इसमे कलाकार कहाँ से आ गए।  उनका क्या दोष ! क्या सचमुच पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री लॉलीवुड निर्दोष  है ! वास्तविकता तो यह है कि पाकिस्तानी फिल्मे एंटी-इंडियन ही नहीं खालिस सांप्रदायिक हैं, हिन्दू  विरोध पर टिकी हुई।  इन फिल्मो से हिन्दुओ के प्रति घृणा का  प्रदर्शन होता है।
पाकिस्तानी घृणा की 'बॉर्डर'
पाकिस्तानी फिल्म बॉर्डर भारत और खास तौर पर हिन्दुओ के खिलाफ ज़हरीली घृणा का उम्दा उदाहरण है।  इस फिल्म में हिंदुओं के प्रति घृणा साफ झलकती है।  फिल्म में भारतीय सैनिकों को सांप्रदायिक हिंदुओं द्वारा नियंत्रित और मुसलमान औरतों के साथ बलात्कार करने वाला बताया गया है।  फिल्म में एक हिन्दू लड़की (यह किरदार पाकी एक्ट्रेस सना नवाज़ ने किया है) एक फौजी अधिकारी के गठीले शरीर पर कामुक हो जाती है।  जब लड़की को मालूम होता है कि उसका हमबिस्तर सैनिक भारतीयों को मारना चाहता है तो वह इस्लाम क़ुबूल कर भारतीय फौज को मारने निकल पड़ती है।  फिल्म में पाकिस्तानी सैनिक 'नौसिखुए' भारतीय सैनिकों को मार डालती है।  एक सीन में दुबई में भारतीय फौजी और पाकिस्तानी फौजी अफसर के बीच बॉक्सिंग मुक़ाबला दिखाया गया है जिसमे वह अफसर भारतीय सैनिक को बुरी तरह से पीट देता है। इस फिल्म के संवाद भारत और हिन्दुओ के विरुद्ध घृणा फैलाने वाले हैं।
फव्वाद खान का घृणित सीरियल दास्तान
पाकी एक्टर फव्वाद खान करण जौहर की दिवाली में रिलीज़ होने जा रही फिल्म ऐ दिल है मुश्किल में सेकंड लीड है।  इस पाकिस्तानी एक्टर के विरोध में आई शिव सेना और एमएनएस का विरोध देश के काफी सेक्युलर टाइप के लोग आवाज़ उठा रहे हैं।  लेकिन शायद इन लोगों को नहीं मालूम की फव्वाद खान ने एक ऐसे टीवी सीरियल दास्तान में अभिनय किया है जिसमे हिन्दुओ और सिक्खों को मुसलमानों को सांप्रदायिक और पार्टीशन के दौरान मुसलमानों की ह्त्या करने वाली कौम बताया गया है। इस सीरियल को 'ज़ी ज़िन्दगी' ने 'वक़्त ने किया क्या हसीं सितम' टाइटल के साथ टेलीकास्ट किया था।  लेकिन इस सीरियल को काफी एडिट कर एक प्रेम कहानी के बतौर ही पेश किया गया।
हिन्दू घृणा से भरी अन्य पाकी फ़िल्में
२००० में रिलीज़ एक अन्य पाकिस्तानी फिल्म तेरे प्यार में में भारतीय हिन्दू लड़की का पाकिस्तानी फौजी से रोमांस दिखाया गया है।  इस फिल्म में भारत की आर्मी को सिख विरोधी और सिखों को पाकिस्तान समर्थक दिखाया गया है।  फिल्म के क्लाइमेक्स में पाकिस्तान का हीरो पूरी भारतीय सेना की बटालियन को नष्ट कर भारत में घुस कर अपनी प्रेमिका को ले जाता है।  मूसा खान (२००१) में कश्मीरी पंडितों को दुष्ट और चालबाज़ बताया गया है।  इस फिल्म का हीरो सुपरपावर रखने वाला पाकिस्तानी है।  भारतीय सैनिकों के प्रति पाकिस्तानी घृणा का अंदाजा इसी  से लगाया जा सकता है कि सीरीज अल्फा ब्रावो चार्ली में पाकिस्तानी महिला सैनिक भारतीय सैनिकों को सियाचिन में बुरी तरह से परास्त करती है।   फिल्म जन्नत की तलाश भी  हिंदुओं और सिखों के खिलाफ घृणा से भरी है।
'पृथ्वी' से श्रेष्ठ 'गोरी' !
फिल्म घर कब आओगे में बड़ी दिलचस्प फिल्म है।  इस फिल्म में फिलीपीन्स से यहूदी आतंकवादियों द्वारा पूरे कराची में बम ब्लास्ट करते दिखाया गया है।  लेकिन इन यहूदी आतंकवादियों के नाम चार्ल्स शोभराज, पृथ्वी और ओबेरॉय है।  सबसे ज़्यादा दिलचस्प है फिल्म का एक संवाद 'पृथ्वी के सामने सिर्फ गोरी ही आ सकता है' है।  इस संवाद के ज़रिये हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान की मोहम्मद गोरी से पराजय दिखाने और भारतीय मिसाइल पृथ्वी के सामने पाकिस्तानी मिसाइल  गोरी की श्रेष्ठता स्थापित करने  की कोशिश की गई है।  
भारत विरोधी आई-एस पी आर
पाकिस्तानी सेना की मीडिया विंग है।  यह विंग सुनिश्चित करती है कि एंटी इंडिया और एंटी हिन्दू खबरें, वृत्त चित्र और खबरे प्रसारित और प्रकाशित हों।  यह विंग पाकिस्तानी फिल्मों को शुरू से आखिर तक मॉनीटर करती है। कहानी में बदलाव से लेकर शूटिंग में दखल और सेंसर करने तक इसकी भूमिका होती है।  अगर किसी भारतीय फिल्म में पाकिस्तानी सेना और उग्रवादियों  के खिलाफ एक शब्द भी होता है तो आई-एस पी आर ऎसी फिल्म को सेंसर से पारित नहीं होने देती।  इस विंग के इशारे पर इसी साल तीन हिंदी फ़िल्में नीरजा, ढ़िशूम और अम्बरसरिया पाकिस्तान में रिलीज़ नहीं हो पाई।
हिंदुस्तानी फिल्मों के खिलाफ पाकिस्तानी निर्माता-वितरक
इसी साल पाकिस्तान के फिल्म निर्माताओं और वितरकों ने हिंदुस्तानी फिल्मों को पाकिस्तान में रिलीज़ से रोकने के लिए एक पिटीशन लाहौर हाई कोर्ट में दायर की थी।  इस पिटीशन में मोशन पिक्चर्स आर्डिनेंस लॉ १९७९ को लागू करने की मांग की गई थी।  पिछले साल पाकिस्तानी कॉमेडियन इफ्तिखार अहमद ठाकुर ने लाहौर कोर्ट में रिट दायर कर भारतीय फिल्मों पर स्थाई रोक लगाने  की  थी।  कोर्ट ने इस रिट को ठाकुर को पाकिस्तान के सांस्कृतिक विभाग से अनुरोध करने की  हिदायत के साथ खारिज़ कर दिया था ।  भारतीय फिल्मों पर रोक लगाने के पक्ष में पाकिस्तान के मोअम्मर राणा, शान, संगीता और शाहिद जैसे बड़े एक्टर रहते हैं।  फिल्म निर्देशक सईद नूर, असलम डार, अल्ताफ हुसैन, मसूद बट और परवेज़ राणा, फिल्म निर्माता जानी मालिक और चौधरी कामरान भी इसी विचार के हैं।
भारतीय एजेंट राहत फ़तेह अली खान !
ज़हर उगलने के लिहाज़ से पाकिस्तानी मीडिया पीछे नहीं।  इस्लामाबाद से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अख़बार द डेली मेल ने भारतीय टीवी सीरियल छोटे उस्ताद को लेकर एक बड़ी दिलचस्प रिपोर्ट  निकाली थी। बच्चों के इस म्यूजिक रियलिटी शो छोटे उस्ताद में भारत और पाकिस्तान के १०-१० बच्चे हिस्सा ले रहे थे।  इन बच्चों को पाकिस्तान से लाने का ज़िम्मा राहत फ़तेह अली खान का था।  अख़बार ने रिपोर्ट में कहा कि राहत भारतीय एजेंसी रॉ यानि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग की वन नेशन थ्योरी के सपोर्ट में काम कर रहे हैं।  इसके लिए उन्हें म्यूजिक और पाकिस्तानी बच्चों का सहारा लिया है।  इन बच्चों के मुंह से हिंदुस्तानी गीत गवाये जायेंगे।  अखबार ने पाकिस्तानी बच्चों का राहत फ़तेह अली खान का कैमल जॉकी बताया।  इस अख़बार ने भारतीय चैनलों स्टार प्लस और ज़ी टीवी को पाकिस्तानी बच्चों के  दिमाग से टू नेशन थ्योरी को मिटाने के लिए रॉ के हाथों खेलने का आरोप लगाते हुए कहा कि पाकिस्तानी बच्चों के मुंह कहलाया गया कि जब वह इंडिया में उतरे तो उन्हें नहीं लगा कि वह पाकिस्तान में नहीं हैं।  द डेली मेल की रिपोर्ट में रॉ द्वारा कथित रूप से एंटी पाकिस्तानी हिंदी फिल्मों की फंडिंग का आरोप भी लगाया।
ज़ाहिर है कि लॉलीवुड भारत का दोस्त नहीं।  इसके शीर्ष एक्टर, निर्माता और वितरक हिंदुस्तानी फिल्मों के विरोधी हैं।  पाकिस्तानी दर्शक सलमान खान शाहरुख़ खान और आमिर खान की फ़िल्में हिट बनाते  हैं।  लेकिन, यही भारत विरोधी फिल्म वार को शाहरुख़ खान की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस से ज़्यादा सफल भी बनाते हैं। यह फ़िल्में हिंदुओं के प्रति उन्मादी भाषा का इस्तेमाल इन्ही कलाकारों के मुंह से बुलवाती है, जो  बॉलीवुड की फिल्मों में पैसा कमाने की मंशा से आते है, न कि सांप्रदायिक या सांस्कृतिक सौहार्द्र के लिए । वॉर और बॉर्डर जैसी एंटी  हिन्दू फिल्मों को हिट बनाने वाला पाकिस्तानी  आवाम ही है।

बॉलीवुड दर्शक फर्क करता है बड़ी उम्र के रोमांस में

क्या हिंदी फिल्मों का दर्शक पूर्वाग्रही है ? हिंदी फिल्मों का इतिहास गवाह है कि दर्शकों के ज़ेहन में अभिनेत्री की उम्र ख़ास अहमियत रखती है।  बड़े उम्र के अभिनेता का कहीं बहुत छोटी अभिनेत्री के साथ रोमांस तो रास  आता है, लेकिन बड़ी उम्र की अभिनेत्री अपने से कम उम्र के अभिनेता की हीरोइन बने, बहुत कम रास आता है।  करण जौहर कह रहे हैं कि ऐ दिल है मुश्किल रमेश तलवार की १९७७ में रिलीज़ फिल्म दूसरा आदमी का रीमेक नहीं है।  हो सकता है कि ऐ दिल है मुश्किल रीमेक फिल्म न हो।  लेकिन, दर्शक साफ़ देख रहा है कि ऐ दिल है मुश्किल में ४२ साल की ऐश्वर्या राय बच्चन ३३ साल के रणबीर कपूर के साथ रोमांस कर रही  हैं।  मुम्बई की एक अंग्रेजी फिल्म पाक्षिक ने इन दोनों के हॉट और स्टीमी रोमांस वाला फोटो सेशन भी करवाया है।  इसके फोटो करण जौहर अखबारों को बाँट भी रहे हैं।  तो क्या दर्शकों को यह बेमेल जोड़ा रास आएगा ? करेले पर नीम यह है कि फिल्म की कहानी भी बड़ी उम्र की औरत के साथ कम उम्र के लडके का रोमांस दिखाया गया है।समर्थक कह सकते हैं कि पिछले साल रिलीज़  बाजीराव मस्तानी में ३३ साल के रणवीर सिंह अपने से तीन साल बड़ी प्रियंका चोपड़ा के साथ रोमांस कर रहे थे ।  लेकिन, फिल्म सफल हुई थी।
ट्रेंड बदल रहा है लेकिन----!
परंतु कहना आसान है।  हिंदी फिल्मों के इतिहास पर नज़र डालनी होगी।  अब ट्रेंड बदल रहा है।  बड़ी उम्र की अभिनेत्रियां अपने से कम उम्र के अभिनेताओं के साथ परदे पर गर्मागर्म रोमांस करती नज़र आ रही हैं।  फिल्म फितूर में कटरीना कैफ और आदित्य रॉय कपूर का रोमांटिक जोड़े की उम्र में सिर्फ दो साल का फर्क है ।  इस फिल्म में दोनों ने ज़बरदस्त हॉट सीन्स किये थे।  इसी उम्र के फासले वाले सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ कैटरिना कैफ का काला चश्मा गीत काफी पसंद किया गया।  इस फिल्म का रोमांटिक जोड़ा यही दोनों थे।  जब आदित्य रॉय कपूर से बड़ी उम्र की अभिनेत्री के साथ रोमांस के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था, "मेरे लिए कैटरिना कैफ जैसी बड़ी अभिनेत्री के साथ फिल्म मिलना ही बहुत था।" वही अपनी उम्र से काफी बड़े खान अभिनेताओं की नायिका बन चुकी कैटरिना कई कहती हैं, "अगर आप अच्छे कलाकार हैं तो आपको हर तरह के एक्सपेरिमेंट करते रहने के लिए तैयार रहना चाहिए।" शायद करीना कपूर भी खुद को अच्छी एक्ट्रेस मानती हैं।  तभी तो वह आर बाल्की की फिल्म कि एंड का में पांच साल छोटे अर्जुन कपूर की पत्नी बन कर गर्मागर्म अंतरंग दृश्य कर रही थी।  यही अर्जुन कपूर अपने हमउम्र रणवीर सिंह के साथ फिल्म गुंडे में तीन साल बड़ी प्रियंका चोपड़ा के साथ प्रेम की पींगे मार रहे थे।  शाहिद कपूर की फिल्म किस्मत कनेक्शन की विद्या बालन और दिल बोले हडीप्पा की नायिका रानी मुख़र्जी उम्र में बड़ी थी।  इन सभी फिल्मों में नायक नायिका के बीच उम्र के फर्क का चित्रण नहीं हुआ था।  इसके बावजूद बड़ी उम्र की अभिनेत्री का अपने से कम उम्र के अभिनेता के साथ ऑन स्क्रीन रोमांस  दर्शकों को रास नहीं आया।  यह सभी फ़िल्में फ्लॉप हुई।
लेकिन, नायक सफल
वहीँ फिफ्टी प्लस के खान अभिनेताओं के साथ दर्शकों का कोई पूर्वाग्रह नहीं।  इसी साल सलमान खान (५० साल) की  अनुष्का शर्मा (२७ साल) की फिल्म सुल्तान हिट हो चुकी हैं। सलमान खान २७ साल की सोनाक्षी सिन्हा और ३० साल की  सोनम कपूर के साथ फिल्म दबंग और दबंग २ तथा प्रेम रतन धन पायो करते हैं। दर्शक कोई पूर्वाग्रह नहीं दिखाते। दबंग सीरीज की फ़िल्में तो सुपर हिट होती है। सलमान खान १४ साल छोटी बिपाशा बासु के साथ फिल्म नो एंट्री में एंट्री और टाइगर ज़िंदा है में कैटरिना कैफ के साथ फिर रोमांस करते नज़र आएंगे। शाहरुख़ खान भी आधी उम्र की अनुष्का शर्मा के साथ रब ने बना दी जोड़ी में हिट जोड़ी बना ले जाते हैं।  वह रईस में ३३ साल की माहिरा खान के साथ रोमांस करते नज़र आएंगे। गौरी शिंदे की डिअर ज़िन्दगी फिल्म में शाहरुख़ खान की नायिका २२ साल की आलिया भट्ट हैं।  आमिर खान की भी आधी उम्र की कैटरिना कैफ और अनुष्का शर्मा के साथ धूम ३ और पीके जैसी फ़िल्में सुपर हिट हो जाती हैं।  
बड़ी उम्र की एक्ट्रेस के साथ रोमांस करने वाले रणबीर कपूर 
रणबीर  कपूर का ऐ दिल है मुश्किल में आठ साल बड़ी ऐश्वर्या राय बच्चन के साथ रोमांस पहला उदाहरण नहीं।  रणबीर को खुद से बड़ी उम्र की अभिनेत्री के साथ रोमांस ख़ास रास आता है।  ये जवानी है दीवानी (२०१३) रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की हॉट जोड़ी की हिट फिल्म थी।  लेकिन, इस फिल्म में भी १५ साल बड़ी माधुरी दीक्षित के साथ रणबीर कपूर का आइटम सांग घाघरा ख़ास पसंद किया गया था।  रणबीर कपूर ने बचना ऐ हसीनों फिल्म में चार साल बड़ी बिपाशा बासु के साथ रोमांस किया था। वह वेक-अप सिड में तीन साल बड़ी कोंकणा सेन शर्मा के नायक बने थे।  इम्तियाज़ अली की फिल्म रॉकस्टार में रणबीर की नायिका नर्गिस फाखरी भी उनसे तीन साल बड़ी थी।  फिल्म राजनीती में रणबीर का रोमांस सारा थॉम्पसन भी  तीन साल बड़ी थी।  बड़ी उम्र की अभिनेत्री के साथ रणबीर के रोमांस के उदाहरण वाली इन फिल्मों में वेक अप सिड को छोड़ कर बाकी की फिल्मों में नायिका की उम्र का ज़िक्र नहीं था।  
बहन कहाँ पीछे ! 
रणबीर कपूर जहाँ अपने से उम्र में बड़ी अभिनेत्रियों के साथ रोमांस कर रहे हैं।  वहीँ, करीना कपूर  अपने से कम उम्र के अभिनेताओं की नायिका बन रही हैं।  की एंड का में कमउम्र अर्जुन कपूर से पहले वह फिल्म एक मैं और एक तू और गोरी तेरे प्यार में में तीन साल छोटे इमरान खान की नायिका बनी थी।  हालाँकि, करीना कपूर भी अपने से १५-२० साल बड़े सलमान खान, अक्षय कुमार, आमिर खान, शाहरुख़ खान और अजय देवगन के साथ कई फ़िल्में कर चुकी हैं।
धर्मेन्द्र और मीना कुमारी : बड़ी उम्र के रोमांस का दुखांत 
धर्मेन्द्र जब हिंदी फिल्मों में आये, उस समय मीना कुमारी बॉलीवुड की बड़ी और स्थापित अभिनेत्रियों में शुमार की जाती थी।  शुरू में धर्मेन्द्र का करियर ढीला ढाला ही रहा । उस दौरान नर्गिस और राजकपूर उदाहरण बने हुए थे, जिसमे नवोदित राजकपूर का करियर बनाने में उस समय की बड़ी स्टार नर्गिस ने मदद की।  मीना कुमारी अपने पति कमाल  अमरोही से बिलगाव के बाद उदास रहा करती थी।  धर्मेन्द्र ने उनके इस अकेलेपन  का फायदा उठाया।  मीना कुमारी के इमोशन से खिलवाड़ करना शुरू किया।  मीना कुमारी इस सबसे अनजान अपने से तीन साल छोटे धर्मेन्द्र के रोमांस में खो गई थी।  उन्होंने धर्मेन्द्र की निर्माताओं  से सिफारिश की  ही, खुद भी धर्मेन्द्र के साथ मैं भी लड़की हूँ, पूर्णिमा, काजल, फूल और पत्थर, मंझली दीदी, चन्दन का पालना, बहारों की मंजिल जैसी फिल्मों में काम किया। धर्मेन्द्र स्थापित हो गए।  अब धर्मेन्द्र ने रंग बदला।  फूल और पत्थर की  सफलता के बाद मीना कुमारी से किनारा कर लिया।  मीना कुमारी शराब में गर्क हो गई।  
दर्शकों को  रास नहीं आता बड़ी उम्र की नायिका का रोमांस
१९७७ में रमेश तलवार ने अधेड़ राखी गुलजार के कम उम्र ऋषि कपूर के साथ रोमांस वाली फिल्म दूसरा आदमी बनाई थी।  उस समय राखी उम्र के लिहाज़ से ऋषि कपूर से पांच साल भी थी।  दर्शकों को यह रोमांस रास नहीं आया।  निर्माता यश चोपड़ा की  यह फिल्म फ्लॉप हो गई।  इससे परिपक्व नायिका के रोमांस की फिल्मों  को ब्रेक लग गया।  इसके २४ साल बाद बड़ी उम्र की डिंपल कपाड़िया के अपने से उम्र में छोटे अक्षय खन्ना से रोमांस की एक कहानी वाली फिल्म दिल चाहता है सफल हुई।  लेकिन, ध्यान रहे कि यह रोमांस कहानी की मुख्य धारा नहीं बना रहा था।  इसी दौर में माया मेमसाब में उम्रदराज़ दीपा मेहता का युवा  शाहरुख़ खान, खिलाड़ियों का खिलाड़ी में रेखा का अक्षय कुमार, शब्द में परिपक्व ऐश्वर्या राय का अपने छात्र ज़ायद खान के साथ रोमांस देखने को मिला।  इन फिल्मों को दर्शकों की ख़ास मंज़ूरी नहीं मिली।  एक छोटी सी लव स्टोरी और  तौबा तौबा में अधेड़ उम्र की औरते (मनीष कोइराला और पायल रोहतगी) सेक्स के प्रति किशोर रुझान (आदित्य सियाल और अमीन गाज़ी) का फायदा उठाते हुए सेक्सुअल शोषण करती हैं।  इसी प्रकार से शिल्पा शुक्ल फिल्म बीए पास में एक टीनएजर को अपनी हवस का शिकार बनाती थी।  यह सभी फ़िल्में सेक्सुअल कंटेंट के कारण ही हिट हुई।  इनसे इनकी अभिनेत्रियों को बदनामी ही मिली।
ऐ दिल है मुश्किल में रणबीर कपूर और ऐश्वर्या राय बच्चन का रोमांस ऑन स्क्रीन और ऑफ स्क्रीन जोड़े के लिहाज़ से बेमेल है।  इस फिल्म के फोटोज और टीज़र इन दोनों को उत्तेजक केमिस्ट्री बयान करते हैं।  ऐसे में प्रश्न सहज है कि क्या रणबीर कपूर और ऐश्वर्या राय बच्चन के रोमांस वाली यह फिल्म हिट होगी ? अगर फिल्म हिट होगी तो यह कमउम्र नायक के साथ अधेड़ उम्र की औरत के रोमांस की  सफलता होगी या सेक्सुअल कंटेंट की ?





Sunday 23 October 2016

रिलीज़ से पहले रिकॉर्ड बना रही है बाहुबली २

बाहुबली : द कांक्लुजन का डंका बज रहा है।  बाहुबली द बेगिनिंग से बनी फिल्म की हाइप ने इसके सीक्वल को रिलीज़ से पहले ही हिट बना दिया है।  इस फिल्म के संगीत के अधिकार खरीदे जा चुके हैं। इस फिल्म के थिएट्रिकल राइट्स सभी भाषाओं में बेचे जा चुके हैं।  अभी फिल्म की शूटिंग ख़त्म नहीं हुई है, लेकिन इसके सैटेलाइट राइट्स भी बेचे जा चुके हैं।  एक बड़े चैनल ने इसके हिंदी संस्करण के लिए ५० करोड़ दिए हैं।  इस फिल्म को हिंदी में करण जौहर द्वारा रिलीज़ किया जायेगा।  करण जौहर ने बाहुबली द बेगिनिंग को भी हिंदी बेल्ट में रिलीज़ किया था।  वैसे अभी यह पता नहीं चला है कि उन्होंने इसके लिए कितने पैसे दिए।  ज़ाहिर है कि बाहुबली  २: द कांकलूजन की रिलीज़ से पहले ही जैसा रिस्पांस मिल रहा है, वह एक दक्षिण भारतीय फिल्म के लिए बेहद ख़ास हैं।  बाहुबली २ में प्रभाष और राणा डग्गूबाती के अलावा अनुष्का शेट्टी, तमन्ना भाटिया, सत्यराज, आदि मुख्य भूमिका में है।  जहाँ बाहुबली में तमन्ना भाटिया को ग्लैमरस अवतार में देखा गया था, वहीँ बाहुबली २ में अनुष्का शेट्टी अपना जलवा बिखेरेंगी।  पहले भाग में वह बंदी  बनाई गई बूढी महारानी के गेटअप में नज़र आई थी।  बाहुबली २: द कॉन्कलूजन २८ अप्रैल २०१७ को रिलीज़ हो रही है। 

फ़िल्में ध्वस्त कर देने वाले हैं अजय देवगन !

अगर चार राज्यों में ऐ दिल है मुश्किल की रिलीज़ पर लगा बैन उठा तो यह फिल्म फवाद खान के बावजूद दिवाली पर रिलीज़ होगी। ऐसे में ऐ दिल है मुश्किल का बॉक्स ऑफिस पर बुल्डोज होना तय माना जा रहा है।  क्योंकि इस दिवाली पर ऐ दिल है मुश्किल टकराएगी अजय देवगन की फिल्म शिवाय से । वह बुलडोज़र एक्टर है।  अजय देवगन ऐसे अभिनेता माने जाते हैं, जिनकी फिल्म के सामने जो भी फिल्म रिलीज़ होती है, बड़ी इमारत की तरह ध्वस्त हो जाती है ।  जी हाँ, अजय देवगन को ऐसा अभिनेता कहा जा सकता है, जिसकी फ़िल्में सामने वाली फिल्म को बुलडोज़ कर देती हैं। 
जब यश चोपड़ा को मिले कांटे
क्या आपको विश्वास नहीं ! अजय देवगन का बॉलीवुड फिल्म डेब्यू १९९१ में हुआ था।  उनकी पहली फिल्म एक्शन फिल्म थी।  मधु के साथ अजय देवगन की पहली फिल्म म्यूजिकल एक्शन फूल और कांटे २२ नवम्बर १९९१ को रिलीज़ हुई थी।  इस फिल्म के सामने थी निर्माता निर्देशक यश चोपड़ा की फिल्म लम्हे।  इस फिल्म में श्रीदेवी, अनिल कपूर, अनुपम खेर और वहीदा रहमान जैसे सितारे थे। फिल्म के निर्देशक
एक चतुर और रोमांस फिल्मों का चितेरा फिल्मकार था।  वहीँ फूल और कांटे इसके नायक अजय देवगन और नायिका मधु की पहली फिल्म ही नहीं थी बल्कि, फिल्म के निर्देशक कुकू कोहली की भी यह पहली फिल्म थी।  लेकिन, दो बाइको पर सवार हो कर एंट्री मारने वाले काली शक्ल सूरत वाले अजय देवगन का जादू चल गया।  अजय देवगन के धुंआधार एक्शन ने अनिल कपूर और श्रीदेवी के रोमांस की हवा निकाल दी। उस समय के अनुसार फूल और कांटे का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन लम्हे के मुक़ाबले डबल था। 
किसको बुल्डोज नहीं किया अजय देवगन ने !
अपनी रोमांटिक फिल्म क़यामत से क़यामत तक (१९८८) से आमिर खान लवर बॉय एक्टर के बतौर स्थापित हो गए।  इसके बाद उन्होंने दिल, दिल है कि मानता नहीं जो जीत वही सिकंदर और हम रही प्यार के से अपनी पोजीशन पुख्ता कर ली थी।  सलमान खान भी उनके समकालीन थे।  मैंने प्यार किया (१९८९) के बाद सलमान खान ने सनम बेवफा, पत्थर  के फूल, कुर्बान और साजन जैसी हिट फिल्मों से खुद के पैर
जमा लिए थे।  तब आई इन दोनों को जोड़ी वाली राजकुमार संतोषी निर्देशित फिल्म कॉमेडी फिल्म अंदाज़ अपना अपना।  उस समय तक राजकुमार संतोषी ने घायल और दामिनी जैसी फिल्मों से अपना नाम बना लिया था।  ऎसी बड़ी फिल्म के सामने अजय देवगन और अक्षय कुमार की जोड़ी की फिल्म सुहाग रिलीज़ हुई।  यह कुकू कोहली की थ्रिलर ड्रामा फिल्म थी।  इन दोनों फिल्मों की एक नायिका करिश्मा कपूर भी थी।  फिल्म पंडित अंदाज़ अपना अपना की सफलता को लेकर आश्वस्त थे।  लेकिन हुआ इसके उलट।  अंदाज़ अपना अपना बमुश्किल अपनी लागत निकाल पाई।  जबकि सुहाग उस साल की बड़ी हिट फिल्म साबित हुई। 
यह भी हुए बुल्डोज
अजय देवगन ने ४ नवम्बर १९९४ को अक्षय कुमार के साथ सलमान खान और आमिर खान की जोड़ी को बुल्डोज कर दिया था।  यही अजय देवगन कालांतर में अपने इस जोड़ीदार की फिल्मों के लिए भी बुलडोज़र साबित हुए।  गवाह हैं २००९ और २०१० की दिवाली, जिनमे अजय देवगन ने अक्षय कुमार के अलावा सलमान खान की फिल्म का भी दिवाला निकाल दिया।  १६ अक्टूबर २००९
को रोहित शेट्टी निर्देशित अजय देवगन की एक्शन कॉमेडी फिल्म आल द बेस्ट रिलीज़ हुई थी। 
  सामने दो फ़िल्में अक्षय कुमार, संजय दत्त, लारा दत्ता और कैटरिना कैफ की फिल्म ब्लू तथा सलमान खान और करीना कपूर की रोमांस फिल्म मैं और मिसेज खन्ना रिलीज़ हुई।  ब्लू भारत की पहली अंडरवाटर फिल्म बताई जा रही थी।  इस सब हाइप के बावजूद ब्लू डूबी ही, मैं और मिसेज खन्ना भी डूब गई।  अगली दिवाली फिर शेट्टी-देवगन जोड़ी की फिल्म की थी। २०१० की दिवाली में ५ नवम्बर २०१० को गोलमाल सीरीज की तीसरी फिल्म गोलमाल ३ रिलीज़ हुई।  एक बार फिर अक्षय कुमार की साइंस फिक्शन रोमांस कॉमेडी फिल्म एक्शन रीप्ले सामने थी। विपुल शाह की यह फिल्म ६० करोड़ में बनी महँगी फिल्म थी।  मगर अजय देवगन इसे की एक्शन कॉमेडी फिल्म गोलमाल ३ के सामने रिलीज़ होना महंगा पड़ा।  फिल्म केवल ४० करोड़ ही कमा सकी। वही केवल ४० करोड़ में बनी गोलमाल ३ ने पहले सप्ताह में ही ६२ करोड़ से ज़्यादा का बिज़नस कर लिया। 
बड़ा टकराव भला टकराव
ऐ दिल है मुश्किल और शिवाय जैसे टकराव बॉलीवुड ने बहुत देखे है।  आम तौर पर शंकाओं के बावजूद ज़्यादातर फिल्मों को टकराव से नुक्सान नहीं हुआ। बेशक मोटा फायदा नहीं हुआ।  २००८ में रोहित शेट्टी और अजय देवगन की निर्देशक अभिनेता जोड़ी की फिल्म गोलमाल रिटर्न्स रिलीज़ हुई।  फिल्म के सामने थी मधुर भंडारकर की प्रियंका चोपड़ा और कंगना रनौत की फिल्म फैशन।  फैशन को नुकसान पहुँचाने की आशंका थी।  लेकिन, गोलमाल रिटर्न्स की बड़ी सफलता के सामने भी फैशन सफल हुई।  ख़ास बात यह है कि अजय देवगन की फ़िल्में जब भी टकराई, ज़्यादातर फ़िल्में खुद का नुक्सान चाहे बचा ले गई हो, लेकिन अजय देवगन की फिल्म को भी नुकसान नहीं पहुंचा पाई। 
१३ नवम्बर २०१२ को शाहरुख़ खान, अनुष्का शर्मा और कैटरिना कैफ  की फिल्म जब तक है जान, अजय देवगन और सोनाक्षी सिन्हा की फिल्म सन ऑफ़ सरदार।  हालाँकि सन ऑफ़ सरदार को जब तक हैं जान के मुक़ाबले ५०० स्क्रीन काम मिले थे।  इसके बावजूद सन ऑफ़ सरदार को कोई नुकसान नहीं हुआ।  अलबत्ता, जब तक है जान बड़ा फायदा नहीं कमा सकी।  इसी प्रकार १५ जून २००१ को निर्देशक अनिल शर्मा की सनी देओल और अमीषा पटेल अभिनीत फिल्म ग़दर एक प्रेम कथा और निर्देशक आशुतोष गोवारिकर की आमिर खान और ग्रेसी सिंह अभिनीत फिल्म लगान का मुकाबला भी सुखद रहा।  इन दोनों ही फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की।  लेकिन, ग़दर एक प्रेम कथा की सफलता बहुत बड़ी और ऐतिहासिक साबित हुई। आमिर खान और सनी देओल की दिल और घायल तथा राजा हिंदुस्तानी और घातक का रोमांस और एक्शन का टकराव सुखद रहा।  आमिर खान २००७ में भी अक्षय कुमार की फिल्म वेलकम से आ टकराए थे।  आमिर खान की फिल्म तारे ज़मीन पर के निर्देशक  आमिर खान थे।  अनीस बज़्मी की फिल्म वेलकम ने बॉक्स ऑफिस पर खरगोश की रफ़्तार पकड़ी।  लेकिन कछुआ रफ़्तार से आमिर खान की फिल्म तारे ज़मीन पर ने भी बढ़िया कमाई करने में सफलता हासिल की।  अब यह बात दीगर है कि अक्षय कुमार की एक्शन कॉमेडी फिल्म वेलकम की सफलता ज़्यादा बड़ी थी। कुछ दूसरे एक्शन बनाम रोमांस मुकाबलों में रिजल्ट दिलचस्प रहा।  दोनों ही फिल्मों को सफलता मिली। 
नुकसान....पर टकराव से नहीं
बॉक्स ऑफिस पर जब दो बड़ी फिल्मों का  टकराव होता है तो जहाँ फायदा होता है तो नुक्सान भी होता है।  लेकिन इस नुकसान को टकराव का नुकसान कहना  ठीक नहीं।  इन असफल फिल्मों में कमिया थी।  जिसके कारण से इन्हें असफलता का मुंह देखना पड़ा।  २००० में एक ही शुक्रवार रिलीज़ आदित्य चोपड़ा निर्देशित अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ खान और ऐश्वर्या राय की फिल्म मोहब्बते के मुकाबले में हृथिक रोशन, संजय दत्त और प्रीटी जिंटा की फिल्म मिशन कश्मीर अपनी कमज़ोर पटकथा के कारण असफल हुई।  क्लाइमेक्स में हृथिक रोशन की मौत फिल्म पर भारी पड़ी।  इसी प्रकार से २००६ में फरहान अख्तर की शाहरुख़ खान और प्रियंका चोपड़ा की फिल्म डॉन को अक्षय कुमार की फिल्म जान ए मन के मुक़ाबले में सफलता मिली।  लेकिन, जान ए मन पर शिरीष कुंदर की कमज़ोर पटकथा और कल्पनाविहीन निर्देशन के कारण मात खानी पड़ी।  वहीँ २००७ में सावरियां दिवाली जैसे धूमधड़ाके वाले त्यौहार में एक डल माहौल वाली फिल्म होने के कारण निर्देशक फराह खान की धमाकेदार गीत संगीत वाली फिल्म से मात खा गई। पिछले साल भी बाजीराव मस्तानी के मुक़ाबले दिलवाले को इसीलिए असफल का मुंह देखना नसीब हुआ कि फिल्म काफी कमज़ोर पटकथा और लाउड अभिनय वाली फिल्म थी। 
सितारों का मेला, सभी हुए सफल
बॉलीवुड के लिए १९७४ की ईद -उल - फ़ित्र गज़ब की साबित हुई।  इस साल, १८ अक्टूबर १९७४ को चार बड़ी फ़िल्में रिलीज़ हुई।  यह सभी बड़े सितारों वाली फ़िल्में थी।  इनकी बड़ी स्टार कास्ट के कारण १८ अक्टूबर को देश के सिनेमाघरों में जैसे सितारों का जमावड़ा लग गया था।  निर्देशक मनोज कुमार की खुद और ज़ीनत अमान, अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, मौशमी चटर्जी, प्रेमनाथ, कामिनी कौशल, धीरज कुमार, मदन पुरी और अरुणा ईरानी अभिनीत महंगाई ड्रामा फिल्म रोटी कपड़ा और मकान के अलावा निर्देशक मनमोहन देसाई की राजेश खन्ना और मुमताज़ की हिट जोड़ी वाली फिल्म रोटी, मोहन सैगल निर्देशित नवीन निश्चल और रेखा की जोड़ी वाली थ्रिलर फिल्म मैं वह नहीं और निर्देशक नरेंद्र बेदी की अमिताभ बच्चन, मौशमी चटर्जी और मदन पुरी के अभिनय से सजी मिस्ट्री थ्रिलर फिल्म बेनाम।  आज के दिन बॉलीवुड थर्रा रहा होता कि चार बड़ी फिल्मों का यह कैसा टकराव।  इन फिल्मों में काफी स्टार कास्ट समान थी। रोटी कपड़ा और मकान की मौशमी चटर्जी और अमिताभ बच्चन बेनाम के नायक नायिका थे।   जॉनर सामान था। फिल्म रोटी कपड़ा और मकान में लता मंगेशकर और मुकेश के साथ नरेंद्र चंचल की आवाज़ को सूट करने वाली शैली में कवाली थी तो बेनाम में भी मैं बेनाम हो गया जैसा गीत था।  सोचा जा सकता था कि बॉलीवुड को बड़ा नुकसान होगा।  लेकिन गज़ब बीती ईद भी।  चारों ही फिल्मे बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई।  अलबत्ता बड़े सितारों से सजी मनोज कुमार की फिल्म रोटी कपड़ा और मकान ने बाज़ी मारी।  यह फ़िल्म सबसे ज़्यादा हिट फिल्म साबित हुई।   

साफ़ तौर पर इस दिवाली ऐ दिल है मुश्किल और शिवाय का टकराव है।  इसे अजय देवगन के बुलडोज़र के सामने रणबीर कपूर ऐस्वर्या राय बच्चन और अनुष्का शर्मा की बुलंद इमारत कहा जा सकता है।  ज़ाहिर है कि हिंदी फिल्मों के १९९१ के इतिहास के मद्देनज़र ऐ दिल है मुश्किल का हिट होना मुश्किल लगता है।