भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Friday, 3 May 2013
शूटआउट एट वडाला के 'एक्शन अब्राहम'
'मण्या सुर्वे अपने साथ हमेशा 50 एमएल की एसिड की बॉटल, एक चाकू और गन लेकर घूमता था। उसका कहना था कि जब एक बम Nagasaki और Hiroshima को नष्ट कर सकता है , तो 50 एमएल की एसिड की बॉटल दस आदमियों को खत्म कर ही सकती है। इसीलिए उसका एंकाउंटर करने वाला कोई भी पुलिस वाला तब तक उसके नजदीक नहीं गया, जब तक कि वह मर नहीं गया । उस पर दूर से ही गोलियां बरसाई गईं।' निर्माता निर्देशक संजय गुप्ता ने अपनी फिल्म की कहानी कुछ इसी अंदाज़ में अभिनेता जॉन अब्राहम को सुनाई थी। इसे सुन कर जॉन मण्या के किरदार के मुरीद हो गए । संजय गुप्ता निर्देशित फिल्म शूटआउट एट वडाला में मण्या सुर्वे का किरदार कर रहे जॉन अब्राहम कुछ इसी अंदाज़ में अपने चरित्र में डूबे दिखाई पड़े। फिल्म की पहली रील में, अपने भाई द्वारा एक अपराधी की हत्या के बाद, वरांडे में खड़ी कंगना रनौट को देखते जॉन अपनी अभिनय क्षमता का मुजाहिरा करते हैं। इस फिल्म में अनिल कपूर, मनोज बाजपई और महेश मांजरेकर भी हैं, पर सब पर भारी पड़ते हैं जॉन अब्राहम। जॉन अब्राहम, अपने लुक और अभिनय से जहां एक सीधे सादे, पढ़ लिख कर पुलिस ऑफिसर बनने का सपना देखने वाले मनोहर सुर्वे के किरदार को बखूबी अंजाम दे रहे थे, वहीं जब एक पुलिस ऑफिसर उन्हे हत्या के जुर्म में फँसाता है तो मनोहर के टूटते सपने जॉन के चेहरे के भाव से साफ नज़र आते हैं। मण्या बनने के बाद तो जॉन अब्राहम बिल्कुल बदल जाते हैं। वह कसरती, ठंडे दिमाग वाले नव युवा मनोहर सुर्वे उर्फ मण्या सुर्वे को पर्दे पर साकार कर देते हैं। इसीलिए फिल्म के क्लाइमैक्स में जब दसियों पुलिस वाले मिल कर मण्या को गोलियों से बींध रहे होते हैं तो सबसे ज़्यादा सदमे में सिनेमाघर में बैठा दर्शक होता है।
संजय गुप्ता की फिल्म शूटआउट एट वडाला, मुंबई पुलिस के रजिस्टर में दर्ज़ पहले शूटआउट की ही नहीं, बल्कि उस युग की शुरुआत भी है, जिसने दाऊद इब्राहीम को मुंबई पर राज करने का मौका दिया। लेकिन इस शूटआउट के बाद मुंबई पुलिस के हाथ खुल गए। एक ओर जहां उसने मुंबई को गंगस्टरों के बीच के खून खराबे और आतंक से मुक्त कराया, वहीं मुंबई पुलिस को कुछ इतना खुला छोड़ दिया कि दसियों एंकाउंटर पैसा लेकर या खुन्नस निकालने के लिए किए गए। फलस्वरूप कई एंकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस
अधिकारी कानून की गिरफ्त में आ गए। हालांकि, संजय गुप्ता ने अनिल कपूर के चरित्र के माध्यम से कोई स्पष्ट संदेश नहीं दिया है, लेकिन फिल्म देखते समय यह पता चल जाता है कि मुंबई पुलिस किस राह पर जा रही है। संजय गुप्ता ने अपनी ही शैली में एक ज़बरदस्त एक्शन और इमोशन से भरपूर फिल्म बनाई हैं। फिल्म में बेहद खून खराबा है, गंगस्टेर फिल्मों से इसी की उम्मीद की जाती है । फिल्म की रफ्तार तेज़ है। सनी लियॉन, सोफी चौधरी और प्रियंका चोपड़ा के आइटम दर्शकों को सीटियाँ मारने पर मजबूर कर देते हैं। सनी लियॉन का पॉर्न स्टार होना, लैला तेरी ले लेगी गीत में खूब काम आया। लियॉन के आइटम के सामने सोफी और प्रियंका के आइटम ठंडे साबित होते हैं। फिल्म में अपने चरित्रों के अनुरूप खूब गालियां हैं । लेकिन गुंडे बदमाश गाली नहीं बकेंगे तो क्या भजन गाएँगे! गीत फिल्म की थीम के मुताबिक है। समीर आर्य और संजय एफ गुप्ता का छायांकन फिल्म की रफ्तार के साथ साथ साथ साथ बखूबी दौड़ता है। फिल्म में कंगना रनौट के लिए करने को कुछ खास नहीं था, अलबत्ता वह दो गरमागरम बेड रूम सीन देकर दर्शकों को गरमाने में सफल रही हैं। मनोज बाजपई का अभिनय अच्छा है, पर वह ऐसा अभिनय बहुत कर चुके हैं। जॉन अब्राहम के सामने वह फीके भी लगते हैं। महेश मांजरेकर, सोनू सूद, रोनित रॉय सामान्य है। अभिषेक कपूर थोड़ा उभर कर आते हैं। उनका किरदार भी सशक्त है।
इस फिल्म को एक्शन और जॉन अब्राहम और अलग तरह के कथानक और ट्रीटमंट के कारण देखा जा सकता है। कोई शक नहीं अगर इस फिल्म के बाद अभिनेता जॉन अब्राहम 'एक्शन अब्राहम' के नाम से जाने जाएँ।
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फिल्म समीक्षा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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