Friday, 10 May 2013

हो सके तो गो गोवा गॉन नहीं, गो टु गोवा !!!

राजा निदिमोरु और कृष्णा डीके ने गो गोवा गॉन की कहानी शोर इन द सिटी से पहले ही लिखी थी। लेकिन, फिल्म बनते बनते  अब बन पायी है।
इस फिल्म का शीर्षक गो गोवा गॉन क्यों है, पता नहीं चलता। यह जोम्बी फिल्म है। भारत में जोम्बी फिल्मे नया कान्सैप्ट है। हॉलीवुड के दर्शक जानते हैं कि जोम्बी चलता फिरता मुर्दा होता है। यह जीवित आदमियों को मार कर खाता है और ऐसा मारा गया आदमी भी जोम्बी बन जाता है।   इस लिहाज से फिल्म के नाम से कहानी का कुछ पता चलना चाहिए था। अब चूंकि, फिल्म में गोवा दिखाया गया है तो टाइटल में गोवा शामिल का लिया गया। लेकिन गो और गॉन क्यों? शायद तुकबंदी के लिए। जोम्बी तो भारत के किसी कोने में बनते और मरते दिखाये जा सकते थे। क्या फर्क  पड़ता।
इस जोम्बी फिल्म में गोवा में लोग एक ड्रग पार्टी में शामिल होने आते हैं। यह ड्रग पार्टी बोरिस यानि सैफ अली खान ने दी है। यकायक, पार्टी में आए लोगों में से कुछ जोम्बी बनने लगते हैं।  यह जोम्बी बने लोग एक  दूसरे को मार कर खाने लगते हैं। जो भी मारा जाता है, वह भी जोम्बी बन जाता है और जीवित आदमी को मार कर खा जाता है।
गो गोवा गॉन में कुणाल खेमू, वीर दास और आनंद तिवारी तीन दोस्त बने हैं। हालांकि, यह तीन दोस्तों की कहानी है, लेकिन फिल्म पूरी तरह से जोम्बीज पर केंद्रित है। इन तीनों दोस्तों की एक दूसरे के साथ छेड़ छाड़ होती रहती है, बिल्कुल आज की फिल्मों की तरह। खूब गालियां बाकी गयी हैं और अश्लील हाव भाव प्रदर्शित हुए हैं। पूजा गुप्ता ग्लैमर की मात्रा परोसती रहती हैं। सैफ अली खान जोम्बी हंटर बोरिस बन कर अपनी बंदूकों से बेहिसाब गोलियां बरसाते रहते हैं। पता नहीं क्यों वह ड्रग पार्टी में बंदूक पेटी रख लाये!
इस फिल्म के निर्माता सैफ अली खान जैसे बड़े अभिनेता है। लेकिन फिल्म के बजेट में खूब कंजूसी बरती गयी है। ज़्यादा फिल्म जंगल की भागदौड़ और समुद्र के किनारे ही बीतती है। खुद सैफ ने अपना मेकअप भी बेहद कम खर्चीला करवाया है। वह जोम्बी हंटर के बजाय जोकर जैसे लगते हैं। वैसे अगर फिल्म में सैफ न होते तो फिल्म को इतनी सेफ ओपेनिंग भी नहीं मिलती। जोम्बीज के चेहरे पर खड़िया और केचप का  लेप साफ नज़र आता है। निर्देशक जोड़ी  ने जोंबियों को हॉलीवुड की नकल में ही पेश किया है। अब जोम्बी बोलते नहीं हैं, तो यह पता करना मुश्किल हो जाता है कि वह इंडियन जोम्बी हैं या फ़ॉरेन जोम्बी।
फिल्म की कहानी कुछ खास नहीं। स्क्रिप्ट और स्क्रीन प्ले में खास मेहनत करने की कोशिश निर्देशक जोड़ी के साथ सीता मेनन ने नहीं की है। सीता ने हिन्दी के संवाद भी लिखे हैं। सब कुछ बेहद साधारण है। अलबत्ता, फिल्म को काफी हद तक बचाने की कोशिश कुणाल, वीर दास और आनंद तिवारी करते नज़र आते हैं। अपने मकसद में यह तिकड़ी काफी हद तक कामयाब भी होती है। इसका मतलब यह नहीं कि इन तीनों का अभिनय साधारण से अच्छा है। सैफ तो निराश करते हैं। वह बंदूक और ज़ुबान चलाने के अलावा कुछ नहीं करते। फिल्म में घटनाओं और रफ्तार की काफी कमी  है। जब फिल्म के तमाम जीवित चरित्र तेज़ी से भाग रहे होते हैं,  तब कहानी जोम्बी की तरह पिछड़ रही होती है।  राजा और कृष्णा ने टेक्निकल वर्क ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और दक्षिण Africa के  विदेशी तकनीशियनों को सौंप दिया है। इससे फिल्म के स्तर में मामूली सुधार होता है। फिल्म की फोटोग्राफी Australia और America के फोटोग्राफरों ने की है। उन्होने, हॉलीवुड की तमाम जोम्बी फिल्मों जैसा अपना काम भी कर दिया है।
फिल्म के बारे  में बहुत लिखने से कोई फायदा नहीं। भारतीय दर्शकों के लिए जोम्बी ल्यूक केनी की फिल्म राइस ऑफ द जोम्बी के बाद दूसरी जोम्बी फिल्म है। वह इंडियन जोंबियों का मज़ा लेता है। तीन दोस्तों की बेवकूफ़ियों को भी झेलता है। जोंबियों के अनोखेपन और सैफ की मौजूदगी के कारण फिल्म दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बनती है।
रही बात फिल्म गो गोवा गॉन को देखने की तो भाई सुझाव है कि अगर आपकी जेब में पैसो हो तो गोवा गो कर जाइए। गो गोवा गॉन नहीं देखेंगे तो भी पछताएंगे नहीं। जोम्बी गॉन।

नोट- मैंने गिप्पी नहीं देखी। कारण यह कि गिप्पी के बारे में बताया जा रहा है कि गिप्पी मल्टीप्लेक्स दर्शकों के लिए बनाई गयी है। मैं तो सिंगल स्क्रीन थिएटर में अन्य दर्शकों के साथ फिल्म का मज़ा लेता हूँ और बदमज़ा झेलता हूँ। वैसे गिप्पी जैसी फिल्मे बहुत बन चुकी हैं और बनाई जा रही है।







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