भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Friday, 24 May 2013
बोर इश्क इन पेरिस
इश्क इन पेरिस के जरिये अभिनेत्री प्रीति जिंटा ने अपने सर पर निर्माता और लेखिका के दो ताज और पहन लिए। लेकिन क्या प्रीति जिंटा के इश्क इन पेरिस से निर्माता और लेखक बनने को ताज कहा जा सकता है? बेशक कहा जाएगा, लेकिन कलंक का ताज। इश्क इन पेरिस बना का प्रीति जिंटा ने यह साबित कर दिया कि प्रीति अब तक बतौर अभिनेत्री जितनी समझदार साबित होती थीं, इश्क इन पेरिस बना कर उन्होने उसका कचरा कर दिया। उन्होने यह फिल्म निर्देशक प्रेम सोनी के साथ लिखी कहानी पर ही बनाई है। कहानी क्या है, इस कहानी से वह कहना क्या चाहती हैं, यह शायद खुद प्रीति भी नहीं बता सकें। बेहद बकवास कहानी है। एक लड़का और एक लड़की मिलते हैं पेरिस में। एक पूरी रात वह पेरिस के रोमैन्स में बिताते हैं। वह खाते, पीते, घूमते और फिल्म बनाते हैं, पर सेक्स नहीं करते। क्योंकि, लड़की भी शादी नहीं करना चाहती और लड़का भी। कहानी जितनी बकवास लग रही है, उतनी ही इसकी लिखाई भी है। न स्क्रिप्ट चुस्त हैं और न ही स्क्रीनप्ले में नवीनता है। सब कुछ बेहद बासी और उबाऊ है। कभी शक्ति सामंत ने एन ईवनिंग इन पेरिस के जरिये भारतीय दर्शकों को पेरिस की रंगीन रातों के बारे में बताया था। प्रीति जिंटा और प्रेम सोनी मिल कर इस रंगीनीयत को बदरंग कर देते हैं। प्रेम सोनी की जितनी सपाट और भाव विहीन फिल्म मैं और मिसेज खन्ना थी, उतनी ही सपाट और भाव विहीन इश्क इन पेरिस हैं।
प्रीति जिंटा ने इश्क की मुख्य भूमिका की है। यकीन मानिए, इतना बेजान इश्क अगर लैला मजनू या रोमियो जूलिएट का होता तो शायद यह जोड़ियाँ अमर नहीं हो पातीं। प्रीति जिंटा के चेहरे से बुढ़ापा साफ झलकने लगा है। उनकी सेक्स अपील में वह बात नहीं रही, जो दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींच लाती थी। वह तेरा नाम था जैसी उबाऊ फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले गौरव चानना ने इश्क इन पेरिस में अपना नाम रेहान मालिक रखा है। उन्हे रियल लाइफ में नाम बदलने की क्या सूझी, यह तो गौरव उर्फ रेहान ही जाने। लेकिन इश्क इन पेरिस भी उनकी पहली फिल्म जितनी उबाऊ है तथा उनका अभिनय उसी जगह ठहरा हुआ है। वह अजीबोगरीब मुंह बनाने को ही अभिनय समझते हैं।
सलमान खान फिल्म में एक डांस नंबर में हैं। नहीं भी करते तो कोई फर्क नहीं पड़ता। बाकी किसी भी कलाकार का जिक्र न करना अपना और पाठकों का समय बचाना ही होगा।
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फिल्म समीक्षा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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