भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Saturday, 11 May 2013
जाओ संजय दत्त, जेल हो आओ!
संजय दत्त को अब जेल जाना ही होगा। अपनी सज़ा के साढ़े तीन साल पूरे करने ही होंगे। वैसे उनकी जान अभी भी राज्यपाल के निर्णय पर टिकी होगी। हालांकि, संजय दत्त ने मसीहा बनने की बड़ी कोशिशें की। जताने की कोशिश की कि वह कानून मानने वाले विनम्र सिपाही है। वह अपनी फिल्में पूरी कर चुपचाप जेल चले जाएंगे। पर इसी बीच वह मामले को खींचने की कोशिश भी करते रहे। सुप्रीम कोर्ट से पहले जेल जाने की आखिरी सीमा बढ़ाने और फिर पुनर्विचार के लिए डाली गयी अर्ज़ी से यह प्रमाणित होता था कि संजय दत्त जेल जाने से बुरी तरह से डरे हुए हैं। वह जानते हैं कि इस बार जेल गए तो बिल्कुल खत्म हो कर निकलेंगे। उनका मान सम्मान, शोहरत बिल्कुल खत्म हो चुकी होगी। बतौर हीरो भी वह बेमानी साबित हो चुके होंगे।
संजय दत्त अपनी सज़ा पर सूप्रीम कोर्ट के फैसले के से बाद लगातार एक मज़े हुए अभिनेता की तरह व्यवहार कर रहे हैं। कोर्ट के फैसले के बाद प्रैस कॉन्फ्रेंस कर खुद को कानून का पालन करने वाला और अंत में बहन से गले लग कर आँखों से दो बूंद आँसू टपकाने का मतलब ही यही था कि वह सूप्रीम कोर्ट के आदेश से भी अपने पेशे को लाभ दिलवाना चाहते हैं। उन्होने, इस सज़ा की कुछ ऐसे पब्लिसिटी करवाई जैसे वह शहीद किए गए थे। उनका साफ इरादा पब्लिसिटी और दर्शकों की सहानुभूति बटोरने का था। (इसमे उन्हे कितनी सफलता मिली, इसका पता 24 मई को हम हैं रही कार के, जिसमे वह मेहमान भूमिका में हैं तथा 14 जून को पुलिसगिरी के रिलीज होने पर चल जाएगा, जिसके वह हीरो हैं) हालांकि, उनकी इन कलाबाजियों से अभिनेता नाना पाटेकर उनसे नाराज़ भी हो गए। पर इसमे उनका साथ फिल्म उद्योग ने दिया। क्योंकि उनका अरबों रुपया(!) संजय दत्त की फिल्मों में फंसा था। अब यह बात दीगर है कि संजय अपने बैनर पर एक फिल्म भी बनने में जुट गए थे, जिसमे उनके तथा अन्य लोगों या संस्थाओं के पैसे फँसने ही हैं। यहा एक बात नहीं समझ में आई कि पूरा फिल्म उद्योग बरसों से जानता है कि संजय दत्त को जेल जाना ही होगा, तो उन पर और उनकी फिल्मों पर पैसा क्यों फंसाया गया और आज भी फंसाया जा रहा है। संजय दत्त ने भी अपने फिल्म निर्माताओं का नुकसान हो जाएगा की दुहाई देते हुए सूप्रीम कोर्ट से मोहलत मांग ली। लेकिन उनका इरादा कभी भी समर्पण कर जेल जाने का नहीं था और आज भी नहीं है। मजबूरी होगी तो बात दूसरी है। अब वह या उनका कोई नुमाइंदा Maharashtra के राज्यपाल से अपील करेगा। वैसे इस मामले को जितना तूल दिया जा चुका है, उससे नहीं लगता कि राज्यपाल संजय दत्त की शेष सज़ा माफ करेंगे। क्योंकि, इसी लाइन में दूसरे मुजरिम भी हैं तथा संजय दत्त को न्यूनतम सज़ा भी मिली थी।
संजय दत्त को अब 16 मई को जेल के बाहर खड़ा होना ही होगा। निश्चित रूप से उस समय उनके साथ फिल्म इंडस्ट्री के काफी लोग होंगे, उन्हे भावभीनी बिदाइ देने के लिए। लेकिन यह सहानुभूति दर्शकों के दिलो दिमाग पर कितनी घर कर पाएगी, यह देखा जाना महत्वपूर्ण होगा। अगर दर्शकों में दत्त के प्रति सहानुभूति है तो वह श्रद्धा स्वरूप दत्त की पोलिसगिरी देखने जाएंगे। अगर सहानुभूति नहीं और यह सहानुभूति दर्शक बन कर सिनेमाघरों पर नहीं टूटी तो 53 साल के संजय की फिल्में औंधे मुंह बॉक्स ऑफिस पर लुढ़क जाएंगी। इसके बाद वही होगा जो एक फेडिंग एक्टर के साथ होता है। संजय दत्त जब 42 महीने की सज़ा सात कर लौटेंगे तब 57 साल के हो चुके होंगे। Bollywood Hollywood की तरह नहीं जहां साठे को पाठा कहा जाता है। इस उम्र में पहुँच कर ही एक्टर को मेच्युर माना जाता है। उसके योग्य फिल्में लिखी और बनाई जाती हैं। बॉलीवुड में ऐसा एक्टर चरित्र अभिनेता बन जाता है। उसे बाप बनना होता है या दादा नाना।
क्या सचमुच ऐसा होगा कि संजय दत्त की जेल यात्रा उन्हे और उनकी फिल्मों को प्रशंसकों और दर्शकों का तोहफा दे! यह प्रश्न जितना कठिन है उतना आसान भी। अब नब्बे का दशक नहीं रहा, जब संजय दत्त और उनका कैरियर शवाब पर था। फिल्म उद्योग उनसे करोड़ों कमाने की उम्मीद रखता था। संजय दत्त के भी लाखों प्रशंसक थे। लेकिन, ध्यान रहे कि उस दौर में भी संजय दत्त की प्रिय अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने उनसे किनारा कर लिया। हालांकि, उसी दौरान सुभाष घई की फिल्म खलनायक भी रिलीज होने वाली थी। माधुरी फिल्म में संजय दत्त की नायिका थी। जहां तक खलनायक के हिट होने का सवाल है, सुभाष घई ने माहिर तरीके से संजय दत्त के जेल जाने को फिल्म के लिए भुनाया। उन्होने इससे हट कर खलनायक के माधुरी दीक्षित पर फिल्मांकित चोली के पीछे क्या है गीत को विवादित तारीक से हवा भी दी। इसका फायदा खलनायक को मिला। लेकिन, यह संजय दत्त के लिए दर्शकों की सहानुभूति की हवा नहीं थी। इस बार तो हवा बिल्कुल अलग है। संजय दत्त में वह आकर्षण नहीं रहा कि दर्शक उन्हे देखने जाएँ। उनके प्रशंसकों की पीढ़ी बदल चुकी है या उनके प्रति अपना कोममिटमेंट बदल चुकी है। उनकी लोयल्टी दूसरे अभिनेताओं के लिए शिफ्ट हो गयी है।
आगे आगे देखिये क्या होता है? संजय दत्त फिलहाल तो तुम जाओ जेल !!!
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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