भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Friday, 14 June 2013
फुकरे फुकरे ही होते हैं !
इधर बॉलीवुड को दोस्तों पर फिल्में बनाने का शौक चर्राया है। कई पो चे, चश्मे बद्दूर, स्टूडेंट ऑफ द इयर जैसी फिल्मों की सफलता ने इस ट्रेंड को बढ़ावा ही दिया है। इसी का नतीजा है मृगदीप सिंह लांबा निर्देशित, निर्माता रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर की फिल्म फुकरे।
फुकरे अन्य दोस्ती फिल्मों के मुकाबले अलग इस लिहाज से है कि यह फिल्म दो या तीन दोस्तों की नहीं, बल्कि चार चार दोस्तों की दोस्ती की कहानी है। फिल्म में चार दोस्तों और उनकी दो महबूबाओं के किरदार के अलावा एक महिला डॉन भोली पंजबान के किरदार को खास महत्व दिया गया। बाकी, हर लिहाज से फिल्म घिसी पिटी ही है। फुकरे यानि चार निठल्ले बेकार दोस्तों की कहानी है। दो दोस्त लॉटरी के जरिये पैसा कमाते हैं। एक दोस्त सपना देख कर नंबर बताता है। दोनों इसी नंबर के लॉटरी टिकिट खरीदते हैं और इनाम जीतते हैं। तीसरा ग्रेजुएट बनाने के लिए पेपर ओपेन करने की फिराक में रहता है। चौथा गायक बनाना चाहता है, पर मौका मिलने पर माइक के सामने गा नहीं पाता। यह चारों इत्तेफाकन मिलते हैं और ढेरों कमाने के लिए भोली पंजाबन के जाल में फंस जाते हैं।
कहानी के लिहाज से फिल्म बिल्कुल रद्दी है। विपुल विग एक अच्छी कहानी लिखने में असफल रहे हैं। विपुल ने ही मृगदीप के साथ फिल्म की पटकथा लिखी है। पर यह कल्पनाहीनता का शिकार है। लगभग सभी सीन बासी हैं। कहीं भी लेखक निर्देशक की कल्पनाशीलता नहीं झलकती। दोस्तों की फिल्म में महिला डॉन का किरदार कोई अच्छी कल्पना नहीं। फिल्म रुकती थमती चलती रहती है। केवल क्लाइमैक्स में ही थोड़ी rafter पकड़ती है।
फिल्म के चार दोस्त पुलकित सम्राट, मनजोत सिंह, अली फज़ल और वरुण शर्मा बने हैं। यह चारों कुछ खास करते नज़र नहीं आते। बेहद बासी अभिनय है इन चारों का। मेल कैरक्टर में इन चारों से अच्छा अभिनय पंडित के रोल में पंकज त्रिपाठी करते हैं। फ़ीमेल कैरक्टर में विशाखा सिंह और प्रिया आनंद ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। इस फिल्म में सबसे महत्वपूर्ण कैरक्टर भोली पंजाबन का है। इस भूमिका को रिचा चड्ढा ने किया है। रिचा चड्ढा को गंग्स ऑफ वासेपुर के दो भागों से सुर्खियां मिली। लेकिन, इस फिल्म में भोली पंजाबन की भूमिका में वह ख्दु को डुबोने को उतारू नज़र आती हैं। वह डॉन हैं। अच्छी बात है। अभिनेत्रियों को ऐसे रोल करने का पूरा अधिकार है। पर वह सेक्सी क्यों नज़र आ रही थीं। जहां फिल्म की दूसरी नायिकाएँ सामान्य लड़कियों की तरह नज़र आ रही थीं, रिचा चड्ढा अपने उघड़े बदन और अनावश्यक रसीलापन दिखा कर खुद को उम्र में कम बताने का प्रयास कर रही थीं। वह बहुत निराश करती हैं।
इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है, जो उल्लेखनीय हो। दर्शक फिल्म के पंचों के कारण हँसता है। पर पूरी तरह से संतुष्ट नहीं होता। वैसे फिल्म के दर्शक फिल्म में ऊबते नहीं। यही मृगदीप सिंह लांबा की सफलता है। लेकिन, फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी से ऐसी रद्दी कहानी पर फिल्म की उम्मीद नहीं थी।
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फिल्म समीक्षा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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