Thursday, 15 August 2013

वन्स अपॉन अ टाइम भी यह डॉन रोमांटिक नहीं हो सकता

               बॉलीवुड के फिल्मकारों को पूरा हक है कि वह रावण पर फिल्म बनायें।   लेकिन, यह ध्यान रखें कि रावण  को राम नहीं बनाया जा सकता।  इसलिए, जब रावण पर फिल्म बनानी है तो रावण के चरित्र को सावधानीपूर्वक बनाना पडेगा. ध्यान रखना होगा कि करैक्टर में ऎसी खामियां न रह जाएँ कि रावण न राम रहे , न रावण ही. मिलन लुथरिया निर्देशित रजत अरोरा की लिखी फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम  दुबारा में अक्षय कुमार के करैक्टर के साथ ऐसा ही कुछ हुआ है.
               वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दुबारा २०१० की मिलन लुथरिया की फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई  का सीक्वल है. २०१० की फिल्म हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहीम के रिलेशन पर थी. इसका सीक्वल दाऊद इब्राहीम और एक काल्पनिक करैक्टर की एक ही लड़की से प्रेम की वास्तविक-काल्पनिक प्रेम कहानी है. शोहेब खान गद्दार रावल को मारने इंडिया आता है. यहाँ आकर वह एक लड़की के प्रेम में पड़ जाता है. उसी लड़की से उसका बचपन का दोस्त असलम भी प्रेम करता है.
                फिल्म की निर्माता एकता कपूर और निर्देशक मिलन लुथरिया के साथ अक्षय कुमार भी यह कहते घूम रहे थे कि यह फिल्म दाऊद पर नहीं। लेकिन, वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई का सीक्वल होने और अक्षय कुमार के करैक्टर शोहेब के मेकअप और गेटअप से दाऊद का धोखा होने से यह फिल्म दाऊद इब्राहीम पर फिल्म ही बैठती है. जितना आम दर्शक को मालूम है दाऊद एक अव्वल नंबर का ऐय्याश और क्रूर  गैंगस्टर था. उसका शगल फिल्म अभिनेत्रियों के साथ ऐय्याशी करना था. उसने मुंबई में धमाके कर सैकड़ों बेगुनाह लोगों की जान ली थीं. ऐसे घटिया चरित्र को फिल्म का नायक बनाना मिलन लुथरिया और एकता कपूर की भारी भूल थी. उस पर उसे अपनी इमेज से बिलकुल अलग रोमांटिक दिखाया गया है. अक्षय कुमार पर रोमांस जम सकता है, लेकिन अक्षय कुमार के दाऊद पर यह रोमांस बिलकुल नहीं जमता. सो अक्षय कुमार बिलकुल हत्थे से उखड़े नज़र आते हैं. अलबत्ता कहीं कहीं उनका काम अच्छा है. इमरान खान को एक्टिंग आती ही नहीं। इसलिए वह अपने करैक्टर को बस निबाह ले जाते हैं. सोनाक्षी सिन्हा अब रूटीन होती जा रही हैं. उनके करैक्टर में बिलकुल जान नहीं थी, इसलिए उनकी एक्टिंग में जान का सवाल ही नहीं था. अन्य पात्रों में सोनाली बेन्द्रे, कुरुष देबू, सोफी चौधरी, टिकू , आदि सामान्य है. इस बेजान चरित्रों वाली फिल्म में केवल डेढ़ टांग का करैक्टर ही आकर्षित करता है, वह भी पितोबश त्रिपाठी के बेहतरीन अभिनय के कारण।
                 फिल्म की सबसे बड़ी कमी फिल्म की बेजान कहानी और ढीली ढाली स्क्रिप्ट है. शोहेब का करैक्टर न तो गैंगस्टर लगता है, न रोमांटिक। यह मिलन की बेबसी थी कि उसे एक रियल लाइफ गैंगस्टर को रोमांटिक दिखाना था. अब ऎसी मजबूरी में स्क्रिप्ट की मजबूती की डिमांड तो बनती ही थी. रजत अरोरा और उनकी स्क्रिप्ट टीम मेहनत करती नज़र नहीं आती. कोई भी फ्रेम प्रभावित नहीं करता। रोमांटिक फिल्मों के लिए चरित्रों के बीच की केमिस्ट्री और इंटेंसिटी महत्वपूर्ण होती है. फिल्म के तीनों मुख्य चरित्रों को ठीक ढंग से बुना ही नहीं गया है. सोनाक्षी सिन्हा का यस्मिन का चरित्र ना जाने किस दुनिया का है, जो फिल्म अभिनेत्री तो बन जाती है, लेकिन यह नहीं जानती की शोहेब एक डॉन है. इमरान खान तो त्रिकोण बनाने अनावश्यक टपकाए गए हैं. सो वह टपक कर बह जाते है. इन तीनों कलाकारों को वर्कशॉप करनी चाहिए थी ताकि एक दूसरे के चरित्रों की समझ हो जाती। फिल्म के करैक्टर अंडरवर्ल्ड के हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि भाषा को घटिया स्टार तक गिरा दिया जाये. फिल्म में महिलाओं के लिए अपमानजनक संवादों की भरमार है. डेढ़ टांग और उसकी प्रेमिका के बीच कार में सेक्स के दृश्यों को ख्वामख्वाह तूल दी गयी है. यह अरुचिकर हैं. प्रीतम ने पहली बार फिल्म से ज्यादा बेकार संगीत दिया है. फिल्म का कोई ऐसा डिपार्टमेंट नहीं जिसकी तारीफ की जा सके या कुछ कहा जाये. फिल्म की लम्बाई उकताने वाली है.
                  बॉलीवुड का दुर्भाग्य है कि गैंगस्टर से आगे कुछ सोच नहीं पाता. उससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि वह दाऊद की छाया से बाहर नहीं निकल पा रहा. उससे भी बड़ा दुर्भाग्य दर्शकों का है कि उन्हें फेस्टिव सीजन में वन्स अपॉन और चेन्नई एक्सप्रेस जैसी रद्दी फिल्मों में अपना पैसा गलाना पड़ रहा है. अब यह देश का भी दुर्भाग्य है कि उसका जन गण देश के दुश्मन के  अवतार के लिए तालियाँ और सीटियाँ बजा रहा है.

                      


 

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