Showing posts with label यादें. Show all posts
Showing posts with label यादें. Show all posts

Saturday, 15 December 2018

फिल्मों में एक तरफा प्रेम करने वाले रणबीर कपूर !



क्या इसे इत्तफाक कहा जाएगा ? रॉकस्टार, अजब प्रेम गजब कहानी और बर्फी में एक तरफा प्रेम करने वाले किरदार करने वाले अभिनेता रणबीर कपूर के दादा राजकपूर ने भी काफी एकतरफा प्रेम करने वाले नायक की भूमिका की थी ।


राजकपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर का जोकर राजू तीन तीन प्रेम करता है, लेकिन एक तरफा । महबूब खान की फिल्म अंदाज़ में, राजकपूर नर्गिस के मंगेतर बने थे, जबकि दिलीप कुमार नर्गिस से एकतरफा प्रेम करते थे । परन्तु, इसके ठीक उलट, फिल्म संगम में राजकपूर का किरदार सुंदर वैजयंतीमाला के किरदार राधा से एक तरफा प्रेम करता है । जबकि वैजयंतीमाला राजेंद्र कुमार के सुंदर से प्रेम करती है ।


संगम में, राजकपूर राधा को पा लेते हैं । मगर, उनके पोते रणबीर कपूर, अजब प्रेम की गज़ब कहानी में जेनिफ़र (कैटरीना कैफ) और बर्फी में श्रुति (इलेअना डिक्रुज़) से एकतरफा प्रेम करते रह जाते हैं, तो रॉकस्टार में वह प्रेम करने के बावजूद हीर और शीना को खो बैठते हैं ।

उनके किरदार के रोमांस का कुछ ऐसा ही हाल फिल्म बचना ऐ हसीनो और ऐ दिल है मुश्किल में भी हुआ था ।


शहीर शैख़ और पूजा चोपड़ा का म्यूजिक वीडियो सौ फ़िक्र - क्लिक करें 

Sunday, 19 November 2017

वो देखो मुझसे रूठ कर मेरी जान जा रही है

वो देखो मुझसे रूठ कर मेरी जान जा रही है- साधना के लिए शम्मी कपूर 
हिंदी और दक्षिण की चारों भाषाओँ में फिल्म बनाने वाले के शंकर के  हिंदी फिल्म  करीयर के शुरुआत लड़की के बतौर एडिटर हुई थी।  उनकी बतौर निर्देशक पहली फिल्म झूला थी।  सुनील दत्त, वैजयंतीमाला और प्राण अभिनीत झूला हिट हुई।  गुरुदत्त के साथ भरोसा  बनाने के बाद उन्होंने  महल के षडयंत्र वाली फिल्म राजकुमार बनाई।  अभी तक श्वेत श्याम फ़िल्में बना रहे शंकर की यह पहली रंगीन हिंदी फिल्म थी।  इस फिल्म में शम्मी कपूर और साधना की रोमांटिक जोड़ी थी।  शम्मी कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर ने उनका पिता महाराजा का किरदार किया था।  प्राण फिल्म के विलेन थे।  ओमप्रकाश और राजेंद्र नाथ कॉमेडी का तड़का लगा रहे थे।  फिल्म की खासियत थी इसका हिट संगीत।  संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन ने फिल्म के लिए सात उम्दा गीत गढ़े थे।  आजा आई बहार, तुमने पुकारा और हम चले आये, नाच रे मन बदकम्मा, दिलरुबा दिल पे तू, तुमने किसी की जान को जाते हुए देखा है, इस रंग बदलती दुनिया में और हम हैं राजकुमार जैसे गीत बच्चे बच्चे की जुबान पर थे।  इस चित्र में राजकुमार शम्मी कपूर (मोहम्मद रफ़ी की आवाज़) राजकुमारी साधना के लिए तुमने किसी की जान को जाते हुए देखा है, देखो वो मुझसे रूठ कर मेरी जान जा रही है।  यह रोमांस से भरे हसरत जयपुरी के लिखे बोलों वाले गीत, मोहम्मद रफ़ी की सोज़ से भरी आवाज़, शम्मी कपूर का रोमांटिक अंदाज़, साधना की शोखियाँ दर्शकों की जान निकालने के लिए काफी थी।  

Saturday, 28 October 2017

ब्लू-रे डीवीडी में शीराज़ : अ रोमांस ऑफ़ इंडिया (१९२८)

निर्माता-अभिनेता हिमांशु रॉय ने १९२८ में शाहजहां और मुमताज़ महल के रोमांस की पृष्ठभूमि पर भाई- बहन के कथानक पर फिल्म शीराज़ बनाई थी।  फिल्म में सलीमा, शीराज़, शाह जहाँ और डालिआ के इर्दगिर्द विलियम ए बर्टन और निरंजन पाल ने लिखी थी।  इस फिल्म का निर्देशन फ्रांज़ ऑस्टेन ने किया था।  यह फिल्म मुग़ल साम्राज्य काल में एक कुम्हार द्वारा पाली गई राजकुमारी सलीमा को उसका भाई शीराज़ बेहद प्यार करता है।  सलीमा का अपहरण  कर  लिया जाता है और उसे शहजादा खुर्रम को दासी के तौर पर बेच दिया जाता है।  खुर्रम सलीमा से प्रेम करने लगता है।  धूर्त डालिआ इससे चिढ़ जाती है। वह षड्यंत्र कर शीराज़ के साथ सलीमा को फंसा देती है। शीराज़ को हाथी के पाँव तले रौंद कर मारने का आदेश कर दिया जाता है। इसी समय एक लटकन के ज़रिये सलीमा के शाही खानदान के होने का पता चलता है। अब सलीमा अपने भाई को छुड़वा  लेती है।  वह शाहजहां से शादी कर लेती है। शाहजहां के सम्राट बनने पर वह साम्राज्ञी मुमताज़ महल बनती है। सलीमा के मरने के बाद शाहजहां उसकी याद में ताजमहल का निर्माण करता है। यह अब बूढ़े हो चुके और अंधे शीराज़ की बनाई प्रतिकृति पर है। इस फिल्म की खासियत थी ढेरों कामुक चुम्बनों की भरमार थी। फिल्म में हिमांशु रॉय ने शीराज़, चारु रॉय ने सम्राट शाहजहां, सीता देवी ने डालिआ और एनकाशी रामाराव ने सलीमा के किरदार किये थे। नब्बे साल पहले बनाई गई मूक फिल्म शीराज़ को  बॉक्स ऑफिस सफलता मिली थी। ठीक रखरखाव के अभाव में इस फिल्म के प्रिंट लगभग नष्ट हो चले थे। ऐसे समय में इस कालजई फिल्म को अच्छी हालत में लाने के लिए ब्रिटिश इंस्ट्रक्शनल फिल्म्स आगे आई। इस संस्था ने फिल्म की रीलों की मरम्मत की और इन्हे ठीक हालत में लाई। अब यह फिल्म शीराज़ अ रोमांस ऑफ़ इंडिया दो डीवीडी में ब्लू-रे वर्शन में जारी किया है।  इस डीवीडी में अनुष्का शंकर का संगीत है। शीराज़ की डीवीडी को अगले साल २६ फरवरी से रिटेल स्टोर्स से खरीदा जा सकता है।  

Tuesday, 18 October 2016

४२ साल पहले बॉक्स ऑफिस पर लगा था सितारों का मेला

क्या आप जानते हैं कि आज से ४२ साल पहले बॉक्स ऑफिस पर बॉलीवुड सितारों का मेला जुटा था ? बॉलीवुड के लिए १९७४ की ईद-उल-फ़ित्र गज़ब की ईदी देने वाली साबित हुई थी ।  ठीक ४२ साल पहले १८ अक्टूबर १९७४ को चार बड़ी हिंदी फ़िल्में रिलीज़ हुई थी । ख़ास बात यह थी कि यह सभी बड़े सितारों वाली फ़िल्में थी।  इनकी बड़ी स्टार कास्ट के कारण १८ अक्टूबर को देश के सिनेमाघरों में जैसे सितारों का जमावड़ा लग गया था।  स्टार कास्ट के लिहाज़ से, निर्देशक मनोज कुमार की खुद और ज़ीनत अमान, अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, मौशमी चटर्जी, प्रेमनाथ, कामिनी कौशल, धीरज कुमार, मदन पुरी और अरुणा ईरानी अभिनीत महंगाई ड्रामा फिल्म रोटी कपड़ा और मकान सबसे बड़ी स्टार कास्ट वाली फिल्म थी । रोटी कपड़ा और मकान के अलावा एक दूसरी रोटी फिल्म, निर्देशक मनमोहन देसाई की राजेश खन्ना और मुमताज़ की हिट जोड़ी वाली फिल्म रोटी इसके सामने थी । इस रोमांस फिल्म के सामने थी,  मोहन सैगल निर्देशित नवीन निश्चल और रेखा की जोड़ी वाली थ्रिलर फिल्म मैं वह नहीं और निर्देशक नरेंद्र बेदी की अमिताभ बच्चन, मौशमी चटर्जी और मदन पुरी के अभिनय से सजी मिस्ट्री थ्रिलर फिल्म बेनाम। एक ही शुक्रवार चार बड़ी फ़िल्में ! सोचना भी अविश्वसनीय सा लगता है । आज का समय होता तो बॉलीवुड थर्रा रहा होता । एक ही दिन, चार बड़ी फिल्में ! क्या गुल खिलेगा बॉक्स ऑफिस पर इस टकराव से । ख़ास बात यह थी कि इन फिल्मों में कुछ स्टार कास्ट भी समान थी। रोटी कपड़ा और मकान की मौशमी चटर्जी और अमिताभ बच्चन बेनाम के नायक नायिका थे।   जॉनर सामान था । फिल्म रोटी कपड़ा और मकान में लता मंगेशकर और मुकेश के साथ नरेंद्र चंचल की आवाज़ को सूट करने वाली शैली में कवाली थी तो बेनाम में भी मैं बेनाम हो गया जैसा गीत था। उस दौर में मनोज कुमार बॉलीवुड के भारत कुमार बने हुए थे । रोटी कपड़ा और मकान का विषय ज्वलंत था, स्टार कास्ट हिट थी । उस दौर में अमिताभ बच्चन जंजीर से एंग्रीयंग मैन बन चुके थे । शशिकपूर भी खूब चल रहे थे । नवीन निश्चल और रेखा का भी जलवा था । राजेश खन्ना सुपर स्टार की पोजीशन में विराजे हुए थे । ऐसे में यह सोचा जाना स्वाभाविक था कि बॉलीवुड को बड़ा नुकसान होगा।  लेकिन गज़ब बीती ईद भी । चारों ही फिल्मे बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई।  अलबत्ता बड़े सितारों से सजी मनोज कुमार की फिल्म रोटी कपड़ा और मकान ने बाज़ी मारी। यह फ़िल्म सबसे ज़्यादा हिट फिल्म साबित हुई। उसके पीछे थी राजेश खन्ना की फिल्म रोटी और पीछा कर रहे थे अमिताभ बच्चन फिल्म बेनाम से ।   


Tuesday, 29 March 2016

बेटे के साथ कैंसर से लड़ते इमरान हाश्मी की दास्ताँ

सीरियल किसर के टैग से मशहूर अभिनेता इमरान हाश्मी की एक किताब बाज़ार में आई है।  अंगेजी भाषा में इस किताब का टाइटल उनकी रील इमेज के अनुरूप 'द किस ऑफ़ लाइफ' रखा गया है।  हालाँकि, इस किताब की टोन सीरियस है।  इस किताब में इमरान हाशमी ने अपने शुरूआती दिनों से लेकर, मर्डर से मिली सफलता, स्टारडम और बेटे की बीमारी और उससे बीवी के साथ उनके संघर्ष का विवरण दिया है। पाठकों को याद होगा कि २०१४ में इमरान के चार साल के बेटे अयान को कैंसर का पता चला था।  उसकी बीमारी और ईलाज के दौरान इमरान हाश्मी और उनकी बीवी परवीन ने जीवन के जो उतार चढ़ाव, आशा-निराशा के क्षण देखे, उसने इन दोनों को मानवीय सोच से भर दिया।  आज इमरान हाशमी खुद को नए इमरान हाश्मी के रूप में देखते हैं। किताब के कवर पर इमरान हाश्मी और उनके बेटे अयान का चित्र मर्मस्पर्शी है और किताब के मज़मून को साफ़ करने वाला है ।  इसके नीचे टैग लाइन है- कैसे एक सुपर हीरो और मेरे बेटे ने कैंसर पर जीत हासिल की। इस किताब को बिलाल सिद्दीकी ने इमरान हाश्मी के साथ लिखा है।  बिलाल बलोचिस्तान पर एक थ्रिलर द बर्ड ऑफ़ ब्लड लिख चुके हैं।  वह वर्तमान में रेड चिलीज एंटरटेनमेंट के साथ जुड़े हैं।  इमरान हाशमी क्लास के नहीं मास के हीरो हैं।  इसलिए, उनकी किताब को अंग्रेजी में देख कर उनके प्रशंसकों को निराशा हो सकती है।

Sunday, 1 November 2015

'शोले' से भी ज़्यादा हिंसक थी यह फिल्म !

चौंतीस साल पहले, २३  नवंबर १९८१ को कडाके की ठण्ड पड़ रही थी . लखनऊ के चाइना बाज़ार के पास बने उस समय के सबसे खूबसूरत थिएटर तुलसी में जीतेंद्र और हेमा मालिनी की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘मेरी आवाज़ सुनो’ लगी थी . यह फिल्म कडाके की ठण्ड में भी गर्म थी . खबर थी कि इस फिल्म में पहली बार किसी नेता और अधिकारी पर उंगली उठाई गई है, उन्हें अपराधी करार दिया गया है . यह अभूतपूर्व था . इससे पहले की हिंदी फिल्मों में पुलिस और प्रशासन के अधिकारी और नेता पवित्र गाय हुआ करते थे, उन पर उंगली उठाना सेंसर का शिकार होना होता था . इसलिए फिल्म के बैन किये जाने की अफवाह गर्म थी . थिएटर के बाहर हाउसफुल का बोर्ड उतरने का नाम नहीं ले रहा था, दर्शकों की लम्बी कतारें फिल्म के हिट होने की ओर इशारा कर रही थी . ऐसे में फिल्म को यकायक सिनेमाघर से उतार दिया गया था . जो नहीं देख पाए, उन्हें अफ़सोस हो रहा था . जिन्होंने देखी वह फिल्म में बर्बर हिंसा से हतप्रभ थे. फिल्म में ईमानदार पुलिस अधिकारी को नेता, अपराधी और पुलिस ऑफिसर प्रताड़ित करते हैं . उसकी गर्भवती पत्नी का गर्भ पेट पर लात मार मार कर गिरा देता हैं . पुलिस अधिकारी की हाथों की उँगलियों के नाखून उतार देते हैं. यह अभूतपूर्व दृश्य थे . हालाँकि, हिंदी फिल्म ‘मेरी आवाज़ सुनो’ के तमाम हिंसक दृश्य काफी कम कर दिए गए थे . लेकिन, मेरी आवाज़ सुनो की रिलीज़ के कोई छह महीना पहले मूल फिल्म कन्नड़ ‘अंत’ ने बंगलोर को हिला  कर रख दिया गया था . निर्देशक एस वी राजेंद्र सिंह की फिल्म की प्रीमियर के बाद से ही अत्यधिक हिंसा के कारण आलोचना शुरू हो गई थी और फिल्म पर बैन लगाये जाने की खबरे उड़ने लगी थी . बंगलौर के दो कन्नड़ दैनिकों प्रजावाणी और कन्नड़ प्रभा ने फिल्म का विरोध शुरू कर दिया . इस फिल्म को शोले से ज्यादा हिंसक बताया गया . फिल्म पर यह भी आरोप लगाए गए कि इसमे हिंसक दृश्य सेंसर से पारित कराये जाने के बाद शामिल किये गए . फिल्म में पुलिस अधिकारी बने अम्बरीश को अपराधी नेता और पुलिस वाले यातना देते हुए उनकी उँगलियों के नाखून उतार लेते हैं . यह दृश्य बड़े विस्तार से दिखाया गया था . इसके अलावा फिल्म में ईमानदार पुलिस अधिकारी की गर्भवती पत्नी का गर्भ उसके पेट में लात मार मार कर गिरा दिया जाता दिखाया गया था . इन दृश्यों ने क्रूरता की तमाम हदें लांघ ली थी . जब शोर शराबा मचा तो सेंसर बोर्ड ने इससे यह कह कर पल्ला झाड लिया कि फिल्म के तमाम दृश्य उन्हें नहीं दिखाए गए. इस देखते हुए बंगलौर के जिला अधिकारी ने फिल्म को थिएटर से उतार जाने के आदेश जारी कर दिए . लेकिन, इस समय तक फिल्म को तीन हफ्ते बीत चुके थे . सिनेमाघरों में इस फिल्म ने ज़बरदस्त कलेक्शन कर लिया था . यह फिल्म तीन हफ़्तों में ही सुपर हिट बिज़नस कर चुकी थी और अम्बरीश कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार बने . इस फिल्म के कारण उन्हें ‘रिबेल स्टार’ कहाँ जाने लगा. इसी इमेज के बल पर अम्बरीश १२ वी लोकसभा के लिए चुने गए . वह १३ वी और १४ वी लोकसभा के भी सदस्य बने . २००६ में वह मनमोहन सिंह सरकार में सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री बनाए गए . वर्तमान में वह मांड्या से विधायक है और कर्णाटक सरकार में मंत्री . अब फिर बात करते हैं जीतेंद्र की फिल्म ‘मेरी आवाज़ सुनो’ की . यह फिल्म भी जब तक सिनेमाघरों से उतारी जाती ज़बरदस्त हिट हो चुकी थी . हालाँकि, इस फिल्म में कन्नड़ फिल्म के मुकाबले हिंसा के दृश्य काफी प्रतीकात्मक थे . हेमा मालिनी के गर्भ पर लात मारने के दृश्यों को मुर्गी के अंडे तोड़ कर दिखाया गया था . अलबत्ता, नाखून उखाड़े जाते समय जीतेंद्र के किरदार की चीख दहलाने वाली थी . बैन के बाद यह फिल्म फिर रिलीज़ हुई और सबसे बड़ी हिट फिल्मों में शुमार हुई . इस फिल्म ने उस समय १० करोड़ का ग्रॉस किया था, जो आज के लिहाज़ से ३०६.१७ करोड़ है। मेरी आवाज़ सुनो और अर्द्धसत्य के बाद हिंदी फिल्मों में नेता और सरकारी अधिकारी पवित्र गाय नहीं रह गए .  

Saturday, 31 October 2015

गायकों के पहले गीत

इरोसनाउ ने एल्बम 'आगाज़' के अंतर्गत हिंदी फिल्मों के १० गायक गायिकाओं के गाये पहले गीतों को संकलित किया है।  इस एल्बम के गीतों के फर्स्ट होने की खोज में कुछ तथ्य सामने आये हैं।  जिन्हे आपके सामने गायकवार रख रहा हूँ - 
तलत महमूद का गाया पहला गीत !
तलत महमूद का गाया पहला गीत १९५० में रिलीज़ 'आरजू' फिल्म का 'ऐ दिल मुझे ऎसी जगह ले चल' बताया है। इस फिल्म में दिलीप कुमार, कामिनी कौशल, शशिकला, कुकु और राम शास्त्री ने अभिनय किया था। शाहिद लतीफ़ के निर्देशन में इस फिल्म के संगीतकार अनिल बिस्वास थे।  यह अपने समय का काफी लोकप्रिय गीत था।  लेकिन, काफी लोग इसे तलत महमूद का पहला गाया गीत नहीं मानते।  दावा यह किया जाता है कि इसी साल रिलीज़ फिल्म 'जोगन' का 'सुंदरता के सभी पुजारी' तलत महमूद का गाया पहला गीत था। इस गीत को बुलो सी रानी ने संगीतबद्ध किया था। आरज़ू भी दिलीप कुमार की फिल्म थी।  निर्देशक केदार नाथ शर्मा की इस फिल्म में दिलीप कुमार की नायिका नर्गिस थी और राजेंद्र कुमार ने फिल्म से डेब्यू किया था। एक दूसरा दावा यह है कि तलत महमूद ने अपने कलकत्ता प्रवास के दौरान कानन देवी के संगीत निर्देशन में राजलक्ष्मी (१९४५) फिल्म के लिए दो गीत 'जागो मुसाफिर जागो खोलो मन का द्वार' और 'तू सुन ले मतवाले' गाये थे।  वैसे अगर नॉन फिल्म सांग की बात करें तो तलत महमूद एचएमवी के लिए १९४१ में ही एक गीत 'सब दिन एक समान, बन जाऊंगा क्या से क्या मैं, इसका तो कुछ ध्यान नहीं था' गा चुके थे।  
मुकेश का गाया पहला गीत !
इसी प्रकार से इरोस ने फिल्म 'निर्दोष' के गीत 'दिल ही हो बुझा हुआ तो' को मुकेश का गाया पहला गीत बताया है। यह फिल्म १९४१ में रिलीज़ हुई थी। वीरेंदर देसाई निर्देशित इस फिल्म का संगीत अशोक घोष ने दिया था।  फिल्म में मुकेश ने नलिनी जयवंत, कन्हैया लाल और आगा के साथ मुख्य भूमिका भी की थी। यह उनकी पहली बतौर एक्टर और सिंगर फिल्म थी। लेकिन, इस दावे को इस बिना पर खारिज किया जाता है कि संगीतकार बुलो सी रानी खुद के द्वारा संगीतबद्ध फिल्म 'मूर्ती' के 'बदरिया बरस गई' गीत को मुकेश का गाया पहला हिंदी गीत बताते थे ।  ऐसा मनाने वाले लोगों की भी कमी नहीं, जो  फिल्म पहली नज़र (१९४५) के गीत 'दिल जलता है तो जलने दो को मुकेश का गाया पहला गीत मानते हैं।  परन्तु यह गीत उनका पहला हिट गीत था। 
मोहम्मद रफ़ी का पहला गीत 
इरोस ने १९४४ में रिलीज़ फिल्म 'पहले आप' के 'हिंदुस्तान के हम हैं हिंदुस्तान हमारा' को मोहम्मद रफ़ी का गाया पहला गाया गीत बताया है।  इस गीत के संगीतकार नौशाद अली हैं। इस गीत को रफ़ी साहब का पहला गीत बताने को लेकर भी विवाद है।  यह नौशाद अली के साथ रफ़ी का पहला गीत ज़रूर है।  लेकिन, उनका पहला रिकॉर्ड गीत श्याम सुन्दर के संगीत निर्देशन में १९४५  में रिलीज़ फिल्म 'विलेज गर्ल' का जी एम दुर्रानी के साथ गाया दोगाना 'अजी दिल हो काबू में तो दिलदार की ऐसी तैसी' है।  इस फिल्म में नूरजहाँ, दुर्गा खोटे और प्रेम अदीब की मुख्य भूमिका थी।  


Saturday, 17 October 2015

कल की बोल्ड एन ब्यूटीफुल सिमी गरेवाल आज भी है ब्यूटीफुल

सिमी गरेवाल का नाम लेते ही बिल्ली जैसी खूबसूरत औरत की सूरत आँखों के सामने आ जाती है।  पंजाब के जाट सिख परिवार में पैदा सिमी गरेवाल के पिता आर्मी में ब्रिगेडियर थे।  वह इंग्लैंड में पली बढ़ी। इसीलिए उनकी  बोलचाल में इंग्लिश उच्चारण का प्रभाव  साफ़ महसूस किया जाता था ।  वास्तविकता तो यह है कि सिमी गरेवाल को उनकी पहली फिल्म 'टार्ज़न गोज टू इंडिया' उनके इंग्लिश बोल सकने के कारण ही मिली थी। इंग्लिश भाषा में इस फिल्म में सिमी ने एक भारतीय राजकुमारी की भूमिका की थी। फ़िरोज़ खान राजकुमार बने थे। इस फिल्म ने ५३ साल पहले अपने निर्माताओं को एक लाख ७८ हजार डॉलर का नुक्सान दिया था। फिल्म  में सिमी के नायक फ़िरोज़ खान थे।  उस समय सिमी मात्र १५ साल की थी।  इसी साल उन को  दो हिंदी फ़िल्में 'राज की बात' और 'सन ऑफ़ इंडिया' भी मिल गई।  अब तो उनके लिए हिंदी सीखना ज़रूरी हो गया। अब यह बात दीगर है कि इसके बावजूद उनके हिन्दी उच्चारण में अंग्रेजी उच्चारण दोष बना ही रहा।  सिमी ने  गरेवाल ने अपने २० साल के सक्रिय  फिल्म करियर में ५० फ़िल्में की।  बकौल सिमी गरेवाल 'इतने पुरस्कार मिले कि घर में रखने की जगह ही नहीं है।'  अंग्रेजी फिल्म  से डेब्यू करने वाली सिमी गरेवाल को अपने छोटे फिल्म करियर में महबूब खान के अलावा राजकपूर, सत्यजित रे, मृणाल सेन, सुभाष घई,  रमेश सिप्पी और कोनार्ड रूक्स जैसे फिल्म निर्देशकों की फिल्मों में काम करने का मौक़ा मिला।  सिमी ने दो बांगला फ़िल्में सत्यजित रे की 'अरण्येर दिन रात्रि' (डेज एंड नाईट इन द फारेस्ट) और मृणाल सेन की फिल्म 'पदातिक' (द गौरिल्ला फाइटर) भी की।  'पदातिक' में वह एक राजनीतिक उग्रवादी को शरण देने वाली भावुक महिला का किरदार किया था।  फिल्म 'अरण्येर दिन रात्रि' में वह एक जनजातीय संथाल लड़की दुली के किरदार में थी।  इतने बड़े बड़े फिल्मकारों के साथ काम करना किसी भी अभिनेत्री के लिए गौरव की बात होनी चाहिए।  उन्होंने  राजकपूर की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' और कोनार्ड रूक्स की फिल्म 'सिद्धार्थ' भी की।  लेकिन, सिमी को ऎसी तमाम फिल्मों में अपने अभिनय के करण उतनी प्रशंसा नहीं मिली, जितनी इन फिल्मों मे उनके अंग प्रदर्शन और कामुक प्रसंगो को मिली। तीन देवियाँ उनकी एडल्ट फिल्म थी। सत्यजित रे की फिल्म 'अरण्येर दिन रात्रि' में वह एक संथाल लड़की दुली की भूमिका में थी।  इस फिल्म में उनके समित भंज के साथ अंतरंग दृश्य थे। इन फिल्मों में उनको सेक्सी इंग्लिश गर्ल  बना दिया। इसी साल, सिमी गरेवाल की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' रिलीज़ हुई।  तीन हिस्सों वाली इस फिल्म के पहले हिस्से में सिमी गरेवाल ने एक कान्वेंट की टीचर का किरदार किया था। किशोर  ऋषि कपूर उनके स्कूल के छात्र  हैं। इस फिल्म के एक सीन में सिमी गरेवाल पानी में फिसल जाती हैं। जब वह अपने गीले कपडे बदल रही होती है तब किशोर ऋषि उन्हें देखता है।  इस सीन में राजकपूर ने सिमी की गीली देह का खूब गर्म प्रदर्शन किया था।  अब यह बात है कि फिल्म इसके बावजूद फ्लॉप हो गई।  दो साल बाद १९७२ में रिलीज़ कोनार्ड रूक्स की फिल्म 'सिद्धार्थ' में तो सिमी गरेवाल बिलकुल नग्न खडी दिखाई गई।  इस फिल्म में उनके नग्न पोस्टर सिनेमाघरों के बाहर ख़ास लगाए जाते थे। इस भूमिका के लिए सिमी की काफी आलोचना भी हुई।  हालाँकि, इस बीच सिमी ने मनोज कुमार और आशा पारेख के साथ दो बदन, राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला के साथ साथी, दिलीप कुमार, वहीदा रहमान और मनोज कुमार के साथ आदमी, हेमा मालिनीं, शम्मी कपूर और राजेश खन्ना के साथ 'अंदाज़', ख्वाजा अहमद अब्बास कि फिल्म 'दो बूँद पानी', राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन और रेखा के साथ नमक हराम, विनोद खन्ना और रंधीर कपूर के साथ हाथ की सफाई, अमिताभ बच्चन के साथ कभी कभी के अलावा नाच उठे संसार, चलते चलते, चला मुरारी हीरो बनाने, अनोखी पहचान, आदि फिल्में की।  ज़ाहिर है कि उन्होंने बड़े सितारों और बैनर के साथ बड़ी फिल्म की।  लेकिन, इन फिल्मों में वह सह नायिका थी। सुभाष घई की फिल्म 'क़र्ज़' में उनकी वैम्पिश भूमिका ने दर्शकों का ध्यान खींचा ज़रूर।  लेकिन, करियर को बचाए रखने के लिए इतना काफी नहीं था।  सिमी गरेवाल को समय से पहले की अभिनेत्री कहना उपयुक्त होगा।  खुद वह भी इसे मानती हैं कि वह बाउंड स्क्रिप्ट चाहती थी, वह समय की कीमत समझने वाली और अनुशासन चाहने वाली अभिनेत्री थी।  वह चाहती थी कि उनकी फिल्म एक स्ट्रेच में पूरी की जाए।  वह अपने लिए वैनिटी वैन की चाहत भी रखती थी।  उस समय बॉलीवुड के लिहाज़ से यह समय से पहले की बात थी।  नतीजतन सिमी गरेवाल का करियर अस्सी के दशक में बिलकुल ख़त्म हो गया।  वह टीवी शो में रम गई। उन्होंने टीवी पर तेरी मेरी कहानी, किंग्स ऑफ़ कॉमनर्स और रेन्देवौ विथ सिमी गरेवाल जैसे चर्चित शो किये।  उन्हें इन शोज के लिए बेस्ट एंकर के अवार्ड्स भी मिली। उन्होंने एक फिल्म 'रुखसत' का निर्माण और निर्देशन भी किया। साफ़ है कि उन्होंने जो किया परफेक्ट किया।  लेकिन, हिंदी फिल्मों में उन्होंने जो किया, उनमे यादगार रहे उनके सेक्सी सीन।










Tuesday, 22 September 2015

इस गीत ने फिर मिलाया था साज और आवाज़ को

लता मंगेशकर ने सचिन देव बर्मन उर्फ़ बर्मनदा के लिए एक से एक खूबसूरत गीत गाये हैं।  लता मंगेशकर सचिनदा की पसंदीदा गायिका थी। लेकिन, एक इंटरव्यू ने इन दोनों के बीच ऎसी दरार पैदा की कि सुर से संगीत दूर हो गया।  एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में सचिन देव बर्मन ने कहा था कि लता मंगेशकर को बनाया किसने ! हमने ! हमने दिए उन्हें यह गीत !' इस इंटरव्यू का लता मंगेशकर ने बहुत बुरा माना।  उन्होंने १९५८ से १९६२ के बीच पूरे पांच साल तक सचिन देव बर्मन की धुन पर कोई गीत नहीं गाये।  सचिनदा तो खुद को राजकुमार समझते थे।  उन्होंने ने भी लता की नाराज़गी की परवाह नहीं की।  सचिनदेव बर्मन ने इस दौरान लता मंगेशकर की छोटी बहन आशा भोंसले और दूसरी नई आवाजों से गीत गवाए।  लता मंगेशकर भी दूसरे संगीतकारों के साथ सफलता की सीढियां चढ़ती चली गई।  लता और सचिनदा के बीच की दीवार को गिराया सचिनदा के बेटे और संगीतकर राहुल देव बर्मन उर्फ़ पंचम ने।  उन्होंने बंदिनी फिल्म के गीत मोरा गोरा रंग लाई ले मोहे श्याम रंग दे दे' को गाने के लिए लता को फ़ोन करने को कहा।  बर्मनदा ने फ़ोन किया।  सुर पिघल गया।  इस प्रकार से इस गीत के साथ (देखिये सोंग विडियो) लता मंगेशकर ने सचिन देव बर्मन के लिए फिर गीत गाने शुरू कर दिए।