चौंतीस
साल पहले, २३ नवंबर १९८१ को कडाके की ठण्ड पड़ रही थी . लखनऊ के चाइना बाज़ार के
पास बने उस समय के सबसे खूबसूरत थिएटर तुलसी में जीतेंद्र और हेमा मालिनी की मुख्य
भूमिका वाली फिल्म ‘मेरी आवाज़ सुनो’ लगी थी . यह फिल्म कडाके की ठण्ड में भी गर्म
थी . खबर थी कि इस फिल्म में पहली बार किसी नेता और अधिकारी पर उंगली उठाई गई है,
उन्हें अपराधी करार दिया गया है . यह अभूतपूर्व था . इससे पहले की हिंदी फिल्मों
में पुलिस और प्रशासन के अधिकारी और नेता पवित्र गाय हुआ करते थे, उन पर उंगली
उठाना सेंसर का शिकार होना होता था . इसलिए फिल्म के बैन किये जाने की अफवाह गर्म
थी . थिएटर के बाहर हाउसफुल का बोर्ड उतरने का नाम नहीं ले रहा था, दर्शकों की
लम्बी कतारें फिल्म के हिट होने की ओर इशारा कर रही थी . ऐसे में फिल्म को यकायक
सिनेमाघर से उतार दिया गया था . जो नहीं देख पाए, उन्हें अफ़सोस हो रहा था .
जिन्होंने देखी वह फिल्म में बर्बर हिंसा से हतप्रभ थे. फिल्म में ईमानदार पुलिस
अधिकारी को नेता, अपराधी और पुलिस ऑफिसर प्रताड़ित करते हैं . उसकी गर्भवती पत्नी
का गर्भ पेट पर लात मार मार कर गिरा देता हैं . पुलिस अधिकारी की हाथों की
उँगलियों के नाखून उतार देते हैं. यह अभूतपूर्व दृश्य थे . हालाँकि, हिंदी फिल्म ‘मेरी
आवाज़ सुनो’ के तमाम हिंसक दृश्य काफी कम कर दिए गए थे . लेकिन, मेरी आवाज़ सुनो की
रिलीज़ के कोई छह महीना पहले मूल फिल्म कन्नड़ ‘अंत’ ने बंगलोर को हिला कर रख दिया गया था . निर्देशक एस वी राजेंद्र सिंह की फिल्म की प्रीमियर के बाद
से ही अत्यधिक हिंसा के कारण आलोचना शुरू हो गई थी और फिल्म पर बैन लगाये जाने की खबरे उड़ने लगी थी . बंगलौर के
दो कन्नड़ दैनिकों प्रजावाणी और कन्नड़ प्रभा ने फिल्म का विरोध शुरू कर दिया . इस
फिल्म को शोले से ज्यादा हिंसक बताया गया . फिल्म पर यह भी आरोप लगाए गए कि इसमे
हिंसक दृश्य सेंसर से पारित कराये जाने के बाद शामिल किये गए . फिल्म में पुलिस अधिकारी बने अम्बरीश को अपराधी
नेता और पुलिस वाले यातना देते हुए उनकी उँगलियों के नाखून उतार लेते हैं . यह
दृश्य बड़े विस्तार से दिखाया गया था . इसके अलावा फिल्म में ईमानदार पुलिस अधिकारी
की गर्भवती पत्नी का गर्भ उसके पेट में लात मार मार कर गिरा दिया जाता दिखाया गया
था . इन दृश्यों ने क्रूरता की तमाम हदें लांघ ली थी . जब शोर शराबा मचा तो सेंसर
बोर्ड ने इससे यह कह कर पल्ला झाड लिया कि फिल्म के तमाम दृश्य उन्हें नहीं दिखाए
गए. इस देखते हुए बंगलौर के जिला अधिकारी ने फिल्म को थिएटर से उतार जाने के आदेश
जारी कर दिए . लेकिन, इस समय तक फिल्म को तीन हफ्ते बीत चुके थे . सिनेमाघरों में
इस फिल्म ने ज़बरदस्त कलेक्शन कर लिया था . यह फिल्म तीन हफ़्तों में ही सुपर हिट
बिज़नस कर चुकी थी और अम्बरीश कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार बने . इस फिल्म के कारण
उन्हें ‘रिबेल स्टार’ कहाँ जाने लगा. इसी इमेज के बल पर अम्बरीश १२ वी लोकसभा के
लिए चुने गए . वह १३ वी और १४ वी लोकसभा के भी सदस्य बने . २००६ में वह मनमोहन
सिंह सरकार में सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री बनाए गए . वर्तमान में
वह मांड्या से विधायक है और कर्णाटक सरकार में मंत्री . अब फिर बात करते हैं
जीतेंद्र की फिल्म ‘मेरी आवाज़ सुनो’ की . यह फिल्म भी जब तक सिनेमाघरों से उतारी
जाती ज़बरदस्त हिट हो चुकी थी . हालाँकि, इस फिल्म में कन्नड़ फिल्म के मुकाबले
हिंसा के दृश्य काफी प्रतीकात्मक थे . हेमा मालिनी के गर्भ पर लात मारने के
दृश्यों को मुर्गी के अंडे तोड़ कर दिखाया गया था . अलबत्ता, नाखून उखाड़े जाते समय
जीतेंद्र के किरदार की चीख दहलाने वाली थी . बैन के बाद यह फिल्म फिर रिलीज़ हुई और
सबसे बड़ी हिट फिल्मों में शुमार हुई . इस फिल्म ने उस समय १० करोड़ का ग्रॉस किया था, जो आज के लिहाज़ से ३०६.१७ करोड़ है। मेरी आवाज़ सुनो और अर्द्धसत्य के बाद हिंदी
फिल्मों में नेता और सरकारी अधिकारी पवित्र गाय नहीं रह गए .
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Sunday 1 November 2015
'शोले' से भी ज़्यादा हिंसक थी यह फिल्म !
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यादें,
साउथ सिनेमा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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