वह सिकंदर भी थे और पोरस भी . वह अर्जुन भी थे और कर्ण भी . वह अकबर थे तो वही महाराणा प्रताप भी थे। १९४६ की फिल्म 'पृथ्वीराज संयोगिता' में पृथ्वीराज का किरदार करने वाले अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने लगभग सभी मुख्य धार्मिक, ऐतिहासिक और अर्ध ऐतिहासिक किरदार किये। ३ नवंबर १९०६ को अविभाजित भारत के पंजाब प्रान्त के लायलपुर में पैदा पृथ्वीराज कपूर ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत लायलपुर और पेशावर के थिएटर से की। उन्होंने अपने फिल्म करियर की शुरुआत मूक फिल्म दो धारी तलवार से की। उन्होंने नौ मूक फिल्मों में एक्स्ट्रा की भूमिका की। १९२९ में रिलीज़ मूक फिल्म 'कॉलेज गर्ल' के वह नायक थे। पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' में उन्होंने आलम आरा के पिता सेनापति आदिल की भूमिका की । यह वह समय था, जब हिंदी-उर्दू सिनेमा शैशवावस्था में था। उस दौरान ऎसी फ़िल्में ज़्यादा बनाई जाती थी, जिनके करैक्टर आम आदमी के जाने पहचाने होते थे। इसीलिए पृथ्वीराज कपूर ने काफी कॉस्ट्यूम ड्रामा फ़िल्में की। आलम आरा के बाद पृथ्वीराज कपूर ने फिल्म 'द्रौपदी' में अर्जुन, रामायण में राम, राजरानी मीरा में महाराणा प्रताप, सीता में फिर राम, विद्यापति में राजा शिव सिंह, द कोर्ट डांसर: राज नर्तकी में राजकुमार चन्द्रकीर्ति, सिकंदर में सिकंदर महान, महारथी कर्ण में कर्ण, विक्रमादित्य में राजा विक्रमदित्य, छत्रपति शिवाजी में राजा जयसिंह, मुग़ल- ए- आज़म में सम्राट अकबर, रुस्तम सोहराब में योद्धा रुस्तम ज़ाबुली, हरिश्चंद्र तारामती में राजा हरिश्चंद्र, राजकुमार में महाराजा, जहाँआरा में शाहजहाँ, सिकंदर-ए-आज़म में राजा पोरस, श्री रामभरत मिलाप में राजा दशरथ, जहाँ सटी वहां भगवान में महाराजा करंधम, आदि फिल्मों के अलावा शेर ए अफगान, बलराम श्रीकृष्ण, सटी सुलोचना, हीर रांझा, नाग पंचमी जैसी फिल्मों में धार्मिक ऐतिहासिक किरदार किये। हालाँकि, पृथ्वीराज कपूर कर्ण और अर्जुन बने, अकबर और शाहजहाँ भी बने, लेकिन वह यादगार रहे फिल्म 'मुग़ल ए आज़म के शहंशाह अकबर के रूप में। आज भी उनकी भारी भरकम शरीर के साथ दमदार आवाज़ अकबर को परदे पर महान छवि देती लगती है। उन्होंने १९४४ में पृथ्वी थिएटर की स्थापना की। २९ मई १९७२ को ६५ साल की उम्र में मृत्यु के बाद पृथ्वीराज कपूर की तीन फ़िल्में नया नशा, बॉम्बे बय नाईट और जुदाई रिलीज़ हुई। १९६९ में पृथ्वीराज कपूर को पद्म भूषण दिया गया और हिंदी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान के लिए १९७१ का दादासाहब फालके अवार्ड मरणोपरांत दिया गया।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Tuesday 3 November 2015
पृथ्वीराज कपूर : एक सिकंदर, जो पोरस भी था
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मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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