कोर्ट रूम ड्रामा
कानून (१९६०) से जज्बा (२०१५) तक आ पहुंचा है। नर्गिस से लेकर ऐश्वर्या राय बच्चन
तक और राजेंद्र कुमार से लेकर अरशद वारसी तक, न जाने कितने एक्टर्स ने काला कोट
पहन कर रूपहले परदे पर ड्रामा फैलाया है। कभी हिंदी फिल्मो का क्लाइमेक्स हुआ करता था कोर्ट
रूम ड्रामा। सस्पेंस और थ्रिलर फिल्मों की जान रहा है कोर्ट रूम ड्रामा। कभी यह
ड्रामा पूरी फिल्म में फैला नज़र आता है। इसी साल रिलीज़ हिंदी मराठी कोर्ट रूम
ड्रामा फिल्म ‘कोर्ट’ को बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल फिल्म अवार्ड मिला है। अब
दर्शकों की तमाम निगाहें संजय गुप्ता की फिल्म ‘जज्बा’ पर लगी हुई हैं, जिससे
ऐश्वर्या राय बच्चन एक वकील के किरदार में फिल्मों में अपनी वापसी कर रही हैं।
फिल्म के टाइटल में अदालत
और कानून!
कोर्ट रूम ड्रामा
आँखों के सामने ले आता है निचली अदालत या हाई कोर्ट की बिल्डिंग, काले कोट पहने
घूमते लोग, अदालत का कमरा, ऊंची डायस पर बैठा जज, दांये कटघरे पर खडा मुज़रिम और
काले कोट में सजे एक दूसरे पर चिल्लाते वकील। कभी पूरी फिल्म या फिल्म के आखिरी कुछ
मिनटों में यह दृश्य ड्रामेबाजी के नाटकीय आयाम स्थापित करता था। कोर्ट रूम
ड्रामा की यह झलक हिंदी फिल्मों के शीर्षकों में भी नज़र आती थी। बॉलीवुड ने अदालत
टाइटल के साथ १९४८, १९५८ और १९७७ में हिंदी फिल्मों का निर्माण किया। अदालत
शीर्षक के साथ आप की अदालत, जनता की अदालत, मेरी अदालत और आखिरी अदालत जैसी फिल्मों का निर्माण हुआ। ए आर कारदार ने १९४३ में शाहू मोदक, महताब और बद्री प्रसाद को लेकर कानून
टाइटल से फिल्म बनाई। कानून शीर्षक वाली बीआर चोपड़ा की राजेंद्र कुमार, अशोक
कुमार और नंदा की फिल्म रहस्य रोमांच के लिहाज़ से मास्टरपीस थी। इस फिल्म
में राजेंद्र कुमार ने पहली बार काला कोट पहन कर अधिवक्ता कैलाश खन्ना की भूमिका
की थी। कानून शीर्षक वाली दो अन्य फ़िल्में १९९४ और २०१४ में रिलीज़ हुई। कानून टाइटल वाली
अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और हेमा मालिनी की एक फिल्म अँधा कानून सुपर हिट हुई थी। इसके अलावा आज का अँधा कानून, धरम और कानून, दूसरा कानून, फ़र्ज़ और कानून, गुनाह और
कानून, कहाँ है कानून, कानून अपना अपना, कानून और मुजरिम, कानून का क़र्ज़, कानून की
हथकड़ी, कानून की ज़ंजीर, कानून क्या करेगा, कानून मेरी मुट्ठी में, कायदा कानून,
कुदरत का कानून, नया कानून, कानून कानून है, मेरा कानून, आदि कानून शीर्षक वाली
दर्जनों फ़िल्में रिलीज़ हुई। इनमे कुछ फ्लॉप हुई तो कुछ का कोर्ट रूम ड्रामा हिट
भी हो गया।
अदालत और कानून नहीं
तो क्या हुआ....!
ज़रूरी नहीं कि टाइटल
में अदालत या कानून का इस्तेमाल हो। लेकिन, इनमे कोर्ट रूम ड्रामा था।साठ और सत्तर के दशक तक तो अदालत, कानून और
कोर्ट रूम फिल्मों की ज़रूरी डिश हुआ करती थी। यह फ़िल्में किसी हॉलीवुड या विदेशी
फिल्मों का रीमेक हुआ करती थी। मसलन, विक्रम भट्ट की लिसा हेडन और आफताब
शिवदासानी अभिनीत फिल्म कसूर हॉलीवुड फिल्म जैग्ड एज की रीमेक थी। अजय देवगन और अक्षय
खन्ना की फिल्म दीवानगी हॉलीवुड फिल्म प्राइमल फियर का रीमेक थी। समर खान की
कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म शौर्य मोटा मोटी अ फ्यू गुड मेन पर आधारित थी। इसके अलावा
निर्देशक सुहैल तातारी की फिल्म अंकुर अरोरा मर्डर केस और राजकुमार राव की हंसल
मेहता निर्देशित फिल्म शाहिद उल्लेखनीय फ़िल्में हैं। कुछ ऐसी फ़िल्में भी हैं, जिनके
कोर्ट रूम ड्रामा ने फिल्मों को हिट बना दिया।
ऐतराज (२००४)- अब्बास
मस्तान ने हॉलीवुड फिल्म डिस्क्लोजर का भारतीयकरण कर अक्षय कुमार, करीना कपूर और
प्रियंका चोपड़ा की फिल्म ऐतराज़ बना दिया। इस फिल्म में अन्नू कपूर और करीना कपूर
ने काला कोट पहन कर कोर्ट रूम में भरपूर ड्रामा किया था। वकील करीना कपूर अपने
ऑनस्क्रीन पति अक्षय कुमार को बलात्कार के आरोप से बरी करवाती हैं।
नो वन किल्ड जेसिका
(२०११)- जेसिका लाल मर्डर केस पर राजकुमार गुप्ता की नो वन किल्ड जेसिका में
दिखाया गया था कि किस प्रकार से वकीलों द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ की जाती है। इस फिल्म में विद्या बालन और रानी मुख़र्जी की मुख्य भूमिका थी।
ओएमजी- ओह माय गॉड
(२०१२)- गुजराती नाटक पर इस फिल्म का फॉर्मेट बड़ा दिलचस्प था। एक वकील अपनी दूकान
का मुआवजा लेने के लिए ईश्वर, अल्लाह और क्राइस्ट को प्रतिवादी बनाता है। अक्षय
कुमार और परेश रावल के उत्कृष्ट अभिनय और उमेश शुक्ल के निर्देशन ने फिल्म को हिट
बना दिया। फिल्म के कोर्ट रूम में दिलचस्प पैरवी का ड्रामा था।
जॉली एलएलबी (२०१३)-
सुभाष कपूर की यह फिल्म एक असफल वकील अरशद वारसी के माध्यम से अदालतों की स्थिति
पर व्यंग्य करती थी। किस प्रकार से नामचीन वकील अदालत को प्रभावित करने की कोशिश
करते हैं, इसका चित्रण भी फिल्म में हुआ था। फिल्म में अरशद वारसी और बोमन ईरानी
के बीच का कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म की जान था।
एक रुका हुआ फैसला
(१९८६)- निर्देशक बासु चटर्जी ने रंजित कपूर के साथ अमेरिकन फिल्म १२ एंग्री मेन
(१९५७) को एक रुका हुआ फैसला बना दिया था। पंकज कपूर, दीपक काजीर, अमिताभ श्रीवास्तव, एस एम् ज़हीर, एम् के रैना, के के रैना, आदि की जूरी की भूमिका वाली
फिल्म ‘एक रुका हुआ फैसला’ में जूरी के बारह सदस्यों को बंद कमरे में एक आदमी
द्वारा अपने बूढ़े पिता की हत्या पर बहस करके फैसला लेना है। केवल एक कमरे में
फिल्माई गई यह फिल्म उत्कृष्ट लेखन का नमूना है।
मोहन जोशी हाज़िर हों
(१९८४)- सईद अख्तर मिर्ज़ा की फिल्म ‘मोहन जोशी हाज़िर हो’ मोहन के किरदार से न्याय
व्यवस्था की खामियों और सुस्तियों को व्यंग्यात्मक ढंग से उजागर करती थी। नेशनल
फिल्म अवार्ड विजेता इस फिल्म में दसियों साल तक मुकदमे चलते रहने, वकीलों और
अदालत का क्रमचारियों की मिली भगत से अपराधियों के छूट जाने को दर्शाया गया था। फिल्म में मोहन जोशी की भूमिका में भीष्म सहनी ने मार्मिक अभिनय किया था। वकील
बने नसीरुद्दीन शाह और सतीश शाह की कुटिलता देखने योग्य थी।
वकीलों के किरदार
में सुपर स्टार
जब हिंदी फिल्मों के
कोर्ट रूम ड्रामा का इतिहास पुराना है तो ज़ाहिर है कि वकील किरदार भी उतने ही
पुराने रहे होंगे। इन काले कोट वाले किरदारों को तमाम सुपर स्टार्स ने किया। इनकी अदायगी के कारण उनकी फिल्मों के कोर्ट रूम सीन्स जानदार बन गए। हिंदी
फिल्मों के सदाबहार हीरो अशोक कुमार ने कई फिल्मों में वकील किरदार किये। उनके
अभिनय से सजी वकील किरदार वाली फिल्मों में धूल का फूल, पूजा के फूल, ममता, धुंध,
आदि उल्लेखनीय थी। अनिल कपूर ने चॉकलेट, ठिकाना, मेरी जंग और युद्ध में वकील
किरदार किये थे। मेरी जंग में उनका अदालत में ज़हर पीकर एक मुजरिम को निर्दोष
साबित करने का सनसनीखेज था। अमिताभ बच्चन ने महान और ज़मानत में काला कोट पहना। शत्रुघ्न सिन्हा के दोस्ताना और विश्वनाथ के वकील किरदार सुपर हिट हुए. उन्होंने फिल्म जुल्मों सितम, इंसानियत के दुश्मन, आमिर आदमी गरीब आदमी और परवाना
में भी वकील किरदार किये। फिल्म जंगबाज़ में राजकुमार ने वकील की भूमिका की थी। फिल्म का किरदार उनकी रियल लाइफ की तरह हेलीकाप्टर से अदालत आता था। वकील
किरदार करने वाले अन्य सुपर स्टारों में विनोद खन्ना (मुकद्दर का सिकंदर, कैद और
पहचान), सुनील दत्त (वक़्त), सनी देओल (दामिनीं और योद्धा), ऋषि कपूर (कारोबार),
मिथुन चक्रवर्ती (हत्यारा), गोविंदा(क्योंकि, मैं झूठ नहीं बोलता), अभिषेक बच्चन
(फिर मिलेंगे), संजीव कुमार (लाखों की बात और खुद्दार), दिलीप कुमार (किला),
राजेंद्र कुमार (कानून और साजन की सहेली), सलमान खान (निश्चय) ने भी वकील किरदार
किये थे। सुपर स्टारों में आमिर खान और शाहरुख़ खान ने अभी तक काला कोट नहीं पहना है।
नर्गिस से ऐश्वर्या राय तक
कदाचित नर्गिस ने सबसे पहले फिल्म आवारा में काला कोट पहन कर फिल्मों
में वकील नायिका का आगाज़ किया। ममता में सुचित्रा सेन भी वकील बनी थी, जो अपनी
माँ की मार्मिक वकालत करती थी। इसके अलावा हेमा मालिनी (दर्द और कुदरत का कानून),
करीना कपूर (ऐतराज़), लिसा रे (कसूर), रवीना टंडन (पहचान), डिंपल कपाडिया (ज़ख़्मी
शेर), वहीदा रहमान (अल्लाहरखा) और लारा दत्ता (बर्दाश्त) ने भी वकील किरदार किये। अब ऐश्वर्या राय बच्चन फिल्म 'जज़्बा' में वकील का किरदार कर रही हैं।
चरित्र अभिनेता बने वकील
कुछ चरित्र अभिनेताओं के किये वकील किरदार मुख्य किरदारों पर भारी पड़े। चरित्र
अभिनेता इफ्तिखान की फिल्म नज़राना, दोस्ताना, मैं तेरे लिए, खट्टा मीठा, सफ़र,
अपराधी कौन, आदि फिल्मों में वकील किरदार उल्लेखनीय थे। इसके अलावा प्राण (मिट्टी और सोना तथा गुमनाम), केएन सिंह (मेरा साया), सदाशिव अमरापुरकर (रिश्ते और सबसे बड़ा खिलाड़ी‑), मदनपुरी (इत्तेफाक), कादर
खान (खुदगर्ज और जस्टिस चौधरी), गोगा
कपूर (आज की औरत,
अंजाने रिश्ते और शहंशाह), डैनी डेन्ग्ज़ोप्पा (ढाल, अधिकार, जीवन, जख्मी
शेर और आखिरी संघर्ष), गुलशन ग्रोवर (बवंडर) अमजद
खान (चमेली की शादी), अनुपम खेर (सत्यमेव जयते, एतबार, जिद्दी, गर्व और जख्मी शेर), किरण
कुमार (नजर के सामने, मोक्ष और क्योंकि मै झूठ
नहीं बोलता), परेश रावल (एतराज और अकेले हम
अकेले तुम), अमरीश पुरी (मेरी जंग, हलचल और दामिनी), शक्ति
(कपूर पाप की आंधी), मोहन जोशी (लाल बादशाह
और क्रोध) के वकील किरदार भी यादगार हैं।
हास्य अभिनेता भी
पीछे नहीं
कई हास्य अभिनेताओं
ने वकील किरदार में अपनी छाप छोडी। असरानी (ये
तेरा घर ये मेरा घर और प्रियतमा), केस्टो
मुखर्जी (आप के दीवाने), उत्पल दत्त (हनीमून), जानी लीवर (हद कर दी आपने), पेटल (किरायेदार), असित
सेन (मंझली दीदी),
देवन वर्मा (सुर संगम), राकेश बेदी (सुनो ससुरजी) तथा (वादा), आईएस जौहर (प्रियतमा और अप्रैल फूल) के वकील किरदार दर्शकों
को आज भी याद हैं।
अमर
अमर फिल्म में दिलीप
कुमार और मधुबाला वकील बने हैं। एक प्रवास के दौरान दिलीप कुमार गाँव की एक लड़की
निम्मी से शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं। इन संबंधों के फलस्वरूप निम्मी माँ बन जाती
है। लेकिन, वह बच्चे के बाप का
नाम किसी को नहीं बताती। जयंत गाँव का गुंडा है, जिसे वकील मधुबाला सज़ा करवाती है। जेल से छूट कर
जयंत गाँव जाता है। जब उसे बच्चे के बारे में मालूम होता है, तब वह निम्मी से बच्चे के
पिता का नाम पूंछता है। मामला कोर्ट तक पहुंचता है। तमाम नाटकीय बहस के बाद दिलीप
कुमार अपना जुर्म क़ुबूल करता है। लेकिन, वह नापसंदगी की शादी को उम्रकैद की सज़ा मानते हुए, तीन साल की सज़ा भुगतना मंज़ूर करता है। यह कथानक
महबूब की फिल्म अमर का है।