Friday 9 October 2015

संजय गुप्ता का कोरियाई 'सेवेन डेज' 'जज्बा' !

संजय गुप्ता यह तो मानते हैं कि उनकी फिल्म 'जज्बा' कोरियाई फिल्म 'सेवेन डेज' का अधिकारिक रीमेक फिल्म है. लेकिन, मौखिक रूप से . वह फिल्म में कहीं भी 'जज्बा' को 'सेवेन डेज' की कॉपी नहीं बताते. जबकि, वास्तविकता तो यह है कि 'जज्बा' कोरियाई फिल्म की कॉपी नहीं कार्बन कॉपी है. एक एक और छोटे से छोटा डिटेल भी कोरियाई फिल्म से है. जहाँ उन्होंने दिमाग लगाने की कोशिश की है, वहां बचकानापन आ गया है. फिल्म में ऐश्वर्या राय की बेटी की खोज में इरफ़ान एक मिटटी के टीले पर बैठ कर बिना दूरबीन के एक घर की निगरानी कर रहे हैं, जबकि मूल फिल्म का पुलिस ऑफिसर उस घर के सामने के घर से निगरानी कर रहा है. बाकी, फिल्म का एक एक सीन सेवेन डेज से कॉपी किया हुआ है. यहाँ तक कि फिल्म का एक गीत आज रात का सीन मूल फिल्म की नक़ल में ही डाला गया है . फिल्म डायलाग भी मौलिक नहीं, अनुवाद हैं . संजय गुप्ता की फिल्म के क्रेडिट में योएन जाए-गु का नाम बतौर पटकथा लेखक नहीं दिया गया है. जबकि, फिल्म के सीन्स की कॉपी करने वाले संजय गुप्ता और रोबिन भट्ट पूरा क्रेडिट लेते हैं. डायलाग राइटर के रूप में कमलेश पाण्डेय का नाम है. जबकि, वास्तव में वह 'सेवेन डेज' के डायलाग के ट्रांसलेटर ज्यादा हैं. हर संवाद अनुवाद किया हुआ है. चूंकि, यह एक वकील माँ की कहानी है, इसलिए भारतीयकरण करना आसान हो जाता है. अन्यथा संजय गुप्ता कितनी मौलिकता दिखा सकते हैं पता चल जाता. चूंकि, सेवेन डेज की कार्बन कॉपी फिल्म है जज्बा, इसलिए इसकी कथा-पटकथा और निर्देशन पर टिपण्णी करना बेकार है. बस इतना कहा जा सकता है कि फिल्म की रफ़्तार तेज़ है. मूल फिल्म थोड़ा लम्बी हो गई थी, जज्बा में वह बात नहीं.
इस फिल्म का ज़िक्र अभिनय के लिए किया जा सकता है. इस फिल्म को शबाना आजमी, इरफ़ान खान और ऐश्वर्या राय बच्चन के लिए इसी क्रम में देखा जा सकता है. सबसे बढ़िया अभिनय शबाना आजमी का है. हालाँकि, वह जिस प्रोफेशनल तरीके से अपनी बेटी के कातिल को जेल से बाहर लाती हैं और जला कर मार डालती हैं,  वह गले नहीं उतरता. लेकिन, अपने अभिनय से शबाना आजमी ऐश्वर्या राय बच्चन पर भारी पड़ती हैं. इरफ़ान का अभिनय भी अच्छा है. वह पंच लाइन मारते समय स्वर्गीय राजकुमार की याद दिलाते हैं. लेकिन, अब उनका स्टाइल थोड़ा बासी होता जा रहा है. वह बहुत बार ऐसे किरदारों को बखूबी कर चुके हैं. ऐश्वर्या राय बच्चन ने बढ़िया अभिनय किया है, लेकिन शानदार नहीं. वह 'सेवेन डेज' की युनजिन किम के आसपास तक नहीं. युनजिन ने एक माँ के दर्द को खूसुरती से उभारा था. ऐश्वर्या राय बच्चन इसे लाउड होकर खेलने की कोशिश करती हैं.
अब रही बात फिल्म देखने की ! भाई आपने कोरियाई फिल्म 'सेवेन डेज' नहीं देखि तो जज्बा देख डालिए. एक टिकट में दो फ़िल्में देखने को कहाँ मिलती हैं.


Thursday 8 October 2015

एमटीवी की शर्मीली लड़की की दास्ताँ

एमटीवी बिग ऍफ़ के पहले एपिसोड में छोटे शहर की शर्मीली (!) लड़की श्रुति (प्रियल गोर) के रहस्यों पर से पर्दा हटाएगा।  वह एक खूबसूरत आर्मी अफसर विक्रम (अभिनव शुक्ल) से प्रेम करती है और शादी करना चाहती है।  लेकिन, वह उलझी हुई है सदियों पुरानी परम्पराओं से, जो यह कहती हैं कि लड़की को  अपने पिता की पसंद के लडके से शादी करनी चाहिए।  दूसरी ओर वह अपनी वैचारिक और निर्णय लेने की स्वतंत्रता के  अधीन आर्मी अफसर से शादी करना चाहती है।  श्रुति क्या करेगी ! अपने पिता की इच्छा का पालन करेगी या अपने पसंदीदा आर्मी ऑफिस को चुनेगी।  श्रुति की उलझन की परत दरपरत खोलेंगे गौतम गुलाटी, जो पहली बार इस शो को होस्ट कर रहे हैं।  एमटीवी बिग ऍफ़ का प्रसारण एमटीवी पर ११ अक्टूबर से  रविवार की शाम ७ बजे से होगा।

Wednesday 7 October 2015

क्या ६४ साल बाद होगा 'पाताल भैरवी' का रीमेक ?

एक मालन का बेटा उज्जैन की राजकुमारी को पहली नज़र में देखते ही प्रेम करने लगता है।  वह उससे शादी करना चाहता है, लेकिन उज्जैन का राजा इस शादी से इंकार कर देता है।  इस पर वह एक जादूगर के पास मदद के लिए जाता है। जादूगर के मन में उस लडके की पाताल भैरवी को बलि देकर जादुई प्रतिमा पाने की योजना है। इस प्रतिमा से वह अपनी सारी इच्छाएं पूरी कर सकता है।  लेकिन, मालन का लड़का जादूगर की बलि दे कर पाताल भैरवी को खुश कर लेता है।

यह कहानी १५ मार्च १९५१ को रिलीज़ तेलुगु फिल्म 'पाताल भैरवी' की है। इस फिल्म में मालन के बेटे की भूमिका नंदीमुरी तारक रामाराव ने की थी।  राजकुमारी की भूमिका मालती ने की थी। इस फंतासी  फिल्म के संवादों, उच्च गुणवत्ता की अभिनय क्षमता और  अद्भुत सेट्स ने फिल्म मेकिंग में नए आयाम स्थापित कर दिए थे।  यह फिल्म दर्शकों को कल्पना के अनूठे संसार में ले जाती थी। फिल्म में घंटशाला का संगीत और कैमरा वर्क शानदार था। फिल्म के संवाद पिंगली नागेन्द्र राव ने लिखे थे। फिल्म के निर्देशक के वी रेड्डी थे। इस फिल्म ने न केवल तेलुगु सिनेमा में बल्कि भारतीय सिनेमा में नया ट्रेंड स्थापित कर दिया।

दक्षिण के क्या पूरे भारतीय सिनेमा में पातळ भैरवी  के दबदबे का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि लम्बे समय तक किसी ने भी 'पाताल भैरवी' का किसी भाषा में रीमेक करने की कोशिश नहीं की।  दक्षिण में तो आज भी इस फिल्म का रीमेक करने का प्रयास नहीं किया गया। अस्सी के दशक में जी० हनुमंतराव ने निर्देशन की कमान के बापैया को थमा कर  हिंदी में 'पाताल भैरवी' का निर्माण किया था।

हिंदी 'पाताल भैरवी' में एनटी रामाराव वाली भूमिका यानि मालन के बेटे जीतेन्द्र बने थे।  उस समय जीतेन्द्र दक्षिण के फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद थे।  फिल्म में जयाप्रदा राजकुमारी इन्दुमति बनी थी।  प्राण महाराजा विजय सिंह, अमजद खान विश्वनाथ चंचल और कादर खान मांत्रिक बने थे।  फिल्म में सेक्सी सिल्क स्मिता का डांस था।प्रेमा नारायण का अंग प्रदर्शन था।  डिंपल कपाडिया भी यक्ष कन्या बनी जीतेंद्र को अपने शरीर के विटामिन से तरसा रही थी। जादू था, पातळ लोक था, गायब होते भगवान् थे।  कहने का मतलब यह कि फिल्म में सारा मसाला था।

लेकिन, सब बेहद घटिया किस्म का। हालाँकि, के० बपैया उस समय तक दिल और दीवार, टक्कर, बंदिश, मवाली और मकसद जैसी हिट फ़िल्में दे चुके थे।  लेकिन, रामाराव की कल्ट फिल्म का रीमेक करने में वह बुरी तरह से नाकाम रहे। कादर खान के घटिया संवादों और कलाकारों के खराब अभिनय ने फिल्म को बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया। हिंदी रीमेक में जिस भूमिका को शक्ति कपूर ने किया था, मूल तेलुगु फिल्म में उसी भूमिका को तेलुगु के कॉमेडी एक्टर बालाकृष्ण ने किया था।  उन्होंने इस खूबी से वह भूमिका की थी कि दर्शक उन्हें अंजी के नाम से याद करते थे।
बहरहाल, आज एन टी रामाराव की १९५१ की फिल्म 'पाताल भैरवी' का जिक्र इसलिए कि फिल्म का ६४ साल बाद रीमेक बनाने की तैयारी की जा रही है।  रामाराव की तेलुगु फिल्म का तेलुगु रीमेक ही बनाया जायेगा।  इस फिल्म से रामाराव के पोते मोक्षाग्न का तेलुगु फिल्म डेब्यू होगा। आज के ट्रेंड को देखते हुए फिल्म को अन्य भाषाओ में डब किया जा सकता है। मोक्षाग्न के पिता बालकृष्ण का इरादा फिल्म को भव्य रूप में बनाने का है।  यह फिल्म 'बाहुबली' से आगे की फिल्म साबित हो सकती है।  भविष्य बताएगा ६४ साल तक कल्ट फिल्म साबित होती रही 'पाताल भैरवी' का रीमेक पोते को किस ऊंचाई तक पहुंचा पाता है !



क्या लौट रहा है ऐतिहासिक-कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों का ज़माना !

क्या ऐतिहासिक और कॉस्ट्यूम फिल्मों का दौर शुरू हो रहा है।  ऐसा सोचने के कारण है।  इसके लिए ज़िम्मेदार है साउथ का सिनेमा।  साल के मध्य में 'बाहुबली: द बेगिनिंग' ने पूरी दुनिया में अपनी धाक जमानी शुरू कर दी थी।  इस फिल्म ने चकित किया था बॉलीवुड सिनेमा को।  हालाँकि, बाहुबली को बड़े पैमाने पर रिलीज़ करने वाले करण जौहर थे।  लेकिन, अपने कंटेंट के कारण बाहुबली का जादू दर्शकों के सर पर इस तरह बोला कि सलमान खान की फिल्म 'बजरंगी भाईजान' का जादू वैसा नहीं चढने पाया । अब २ अक्टूबर से तमिल फिल्म 'पुलि' हिंदी में डब हो कर रिलीज़ हो गई है।  इसके बाद, रुद्रमादेवी आएगी।  यह सभी कॉस्ट्यूम ड्रामा या ऐतिहासिक फिल्में है।  दिसंबर में संजयलीला भंसाली  पेशवा बाजीराव की कहानी 'बाजीराव मस्तानी' लेकर आएंगे।  अगले साल बाहुबली का दूसरा भाग 'बाहुबली : द कंक्लूजन' रिलीज़ होगी।  २०१६ में ही आशुतोष गोवारिकर प्रागैतिहासिक काल की पृष्ठभूमि वाली फिल्म 'मोहन जोदड़ो' लेकर हाज़िर होंगे। केतन मेहता भी कंगना रनौत को लेकर रानी लक्ष्मी बाई पर फिल्म बनाएंगे। साफ़ तौर पर ऐतिहासिक और कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों का दौर चलने जा रहा है।
इसमे कोई शक नहीं कि 'बाहुबली : द बेगिनिंग' ने अपने चकित करने वाले फंतासी दृश्यों और झिलमिलाती रंगीन भारी पोशाकों से दर्शकों को आकर्षित किया।  आम तौर पर ऐतिहासिक फ़िल्में हिंदी दर्शकों को रास आती है। दरअसल, दर्शकों को अपना इतिहास देखना अच्छा लगता है। किताबों में पढ़े हुए कुछ ऐतिहासिक चरित्र जब सेलुलाइड पर उतरते हैं तो अपनी भव्यता के कारण दर्शकों को चकाचौंध कर देते हैं।  इनका कथ्य भी प्रभावित करने वाला प्रेरणादाई होता है।  १९२४ में बाबुराव पेंटर ने एक ऐतिहासिक फिल्म 'सति पद्मिनी' निर्देशित की थी।  यह फिल्म १४ वी सदी के चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी की थी, जिसकी एक झलक दिल्ली का सुलतान अलाउद्दीन ख़िलजी देख लेता और  उसे पाने के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण कर  देता है। अब  यह बात दीगर है कि ख़िलजी राजपूतों को तो हरा देता है।  लेकिन पद्मिनी उसके हाथ आने से पहले ही जौहर कर लेती है।  इस फिल्म को उस समय इंग्लैंड में बहुत दर्शक मिले।  वेम्ब्ले एग्जिबिशन में इसे प्रदर्शित किया गया। सति पद्मिनी मूक फिल्म थी।  लेकिन, बोलती फिल्मों की शुरुआत ही कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म 'आलमआरा' से हुई थी।  यह एक राजकुमारी की प्रेम कहानी थी। मिनर्वा मूवीटोन के मालिक और अभिनेता निर्देशक सोहराब मोदी की यह मील का पत्थर साबित हुई ।  सोहराब मोदी की अन्य ऐतिहासिक फिल्मों में पुकार, सिकंदर, पृथ्वी बल्लभ और झाँसी की रानी उल्लेखनीय थी।  झांसी की रानी हिंदुस्तान की पहली टैक्नीकलर फिल्म थी। वैसे, बॉलीवुड ने मुग़ल-काल पर फ़िल्में अधिक बनाई।  अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ पसंदीदा करैक्टर साबित हुए।
ऐतिहासिक फिल्मों में महिला किरदारों को ख़ास अहमियत मिली।  अकबर के बेटे जहांगीर की अनारकली से मोहब्बत फिल्म अनारकली और मुग़ल-ए-आज़म में हिट हुई।  अनारकली का काल्पनिक चरित्र सेल्युलाइड पर जीवंत और अमर हो गया।  मुग़ल-ए- आज़म में अकबर और जोधा का टकराव बेटे जहांगीर के कारण होता था। लेकिन, आशुतोष  गोवारिकर ने फिल्म 'जोधा-अकबर में इसे प्रेम कहानी में तब्दील कर दिया।  कमाल अमरोही की  १९८३ में रिलीज़ हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र और परवीन बॉबी की फिल्म 'रज़िया सुल्तान' दिल्ली की सुल्तान रज़िया के जीवन पर थी।  इस फिल्म में रज़िया और उसके गुलाम याकूत के प्रेम को ज़्यादा महत्व दिया गया था। इस लिहाज़ से १९६१ में देवेन्द्र गोयल की फिल्म 'रज़िया सुलतान' रज़िया के योद्धा और शासक करैक्टर के साथ न्याय करती थी।  फिल्म में निरुपा रॉय ने रज़िया और कामरान ने याकूत की भूमिका की थी। ताजमहल की मुमताज़ महल शौहर शाहजहाँ द्वारा उसकी याद में बनाये गए ताज के कारण अमर हो गई। शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा पर भी इसी टाइटल के साथ फिल्म बनाई गई थी। सभी ऐतिहासिक फिल्मों में महिला किरदार अपने पुरुष किरदारों की टक्कर के थे।
तलवारबाज़ी की महारथी

ऐतिहासिक फिल्मों की नायिका बनने का मतलब है कि फुटेज ज़्यादा मिलना और तलवार भांजना। रज़िया सुल्तान की हेमा मालिनी के हाथों में शयन कक्ष के अलावा हर समय में  तलवार हुआ करती थी। हेमा मालिनी को युद्ध के मैदान पर तलवार से स्टंट करते दिखाया गया था।   संतोष सिवान की ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म अशोक में तलवारबाज़ी के सीन ज़बरदस्त थे।  यह तलवारबाज़ी अशोक बने शाहरुख खान ने भी की थी और राजकुमारी कौरवाकी की भूमिका में करीना कपूर भी तलवार चला रही थी । गोल्डी बहल की फिल्म 'द्रोण'  में प्रियंका चोपड़ा ने अभिषेक बच्चन की बॉडीगार्ड सोनिया के किरदार में सिख युद्ध अस्त्र गटका  चला कर दर्शकों को चकित कर दिया था । सोहराब मोदी की फिल्म 'झाँसी की रानी' में अभिनेत्री मेहताब ने लक्ष्मीबाई के किरदार में खूब तलवारें भांजी थी। इसी साल रिलीज़ एस एस राजामौली की फिल्म 'बाहुबली द बेगिनिंग' में महारानी शिवागामी बनी राम्या कृष्णन ने तलवार भांज कर अपनी बाजुओं की ताक़त का प्रदर्शन किया था। अब 'बाहुबली द कनक्लूजन' में अवंतिका के किरदार में तमन्ना भाटिया और देवसेना के किरदार में अनुष्का शेट्टी तलवारबाज़ी करती नज़र आ सकती हैं।  इसी साल दिसंबर में रिलीज़ होने जा रही 'बाजीराव मस्तानी' में दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा ने तलवारबाज़ी की है।  दीपिका पादुकोण ने तो धनुष उठा कर तीर भी छोड़े हैं। अगर कंगना रनौत ने  केतन मेहता की फिल्म छोड़ी नहीं तो वह रानी लक्ष्मीबाई के किरदार में तलवारबाज़ी के हुनर दिखा सकती है।
जॉन अब्राहम १८ वी सदी के एक चर्चित करैक्टर पर एक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म बना रहे हैं। अभी फिल्म का नाम नहीं रखा गया है। यह फिल्म एक पुस्तक पर आधारित है, जिसके फिल्म निर्माण अधिकार निर्माता मधु मोंतेना ने खरीद लिए हैं।  यह कौन सा किरदार होगा, इसका खुलासा जॉन अब्राहम नहीं करते। परन्तु इतना तय है कि वह फिल्म में योद्धा के किरदार में होंगे। इस रोल के लिए उन्हें खुद में चपलता लानी होगी।  चीते जैसी पैंतरेबाज़ी सीखनी होगी।  मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग भी लेनी है।  खुद को १८ वी शताब्दी के उस वंशज में बदल लेना है।  इस फिल्म का निर्देशन जॉन अब्राहम के दोस्त सबल शेखावत करेंगे। यह जॉन अब्राहम की पहली पीरियड फिल्म होगी। जॉन से अलग, ह्रितिक रोशन दूसरी बार कोई पीरियड फिल्म कर रहे होंगे।  आशुतोष गोवारिकर की फिल्म  अकबर में अकबर का किरदार सफलतापूर्वक करने वाले ह्रितिक रोशन के लिए प्रागैतिहासिक काल पर आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'मोहन जोदड़ों' के किरदार से खदु को जोड़ पाना मुश्किल होगा।  ह्रितिक रोशन का लुक काफी आधुनिक है।  जोधा अकबर में उन्हें इसका सामना करना पड़ा था।  लेकिन, भारी कस्टयूम के पीछे उनकी यह कमी छिप गई थी।  क्या वह मोहन जोदड़ो में इस
कमी से निजात पा लेंगे?
बॉलीवुड ने ऐतिहासिक फिल्मों में रोमांस को तरजीह दी है। इन फिल्मों में रोमांस भर देने से गीत-संगीत की अच्छी गुंजाईश हो जाती है।  जहाँ एक तरफ एक्शन होता है, वहीँ रोमांस के फूल भी खिलते है।  इससे इमोशनल दृश्य दर्शकों को विविधता देते हैं। रोमांस के ज़रिये ही दिलीप कुमार सलीम में रूप में आज भी याद किये जाते हैं।  बीना रॉय और मधुबाला अनारकली के रूप में अमर हैं।  ताजमहल का ज़िक्र करते ही फिल्म की मुमताज़ बीना रॉय याद आ जाती हैं।  एक समय माला सिन्हा ने जहाँआरा फिल्म में जहाँआरा के किरदार में अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रदर्शन किया था।  महताब आज भी लक्ष्मी बाई के नाम से याद की जाती हैं।  अब, जबकि संजयलीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में मोहब्बत के फूल खिल रहे हैं, दीपिका पादुकोण मस्तानी के किरदार के लिए बरसों याद की जाती रहेंगी। 

पैंसठ साल के पीनट्स बच्चों के बीच आज भी जवान

पीनट्स ६५ साल के हो गए।  चार्ल्स एमओ शुल्ज़ की रेखांकित कॉमिक स्ट्रिप 'पीनट्स' का जन्म २ अक्टूबर १९५० को हुआ था। रेखाचित्र पीनट्स की पहली स्ट्रिप में चार्ली ब्राउन, शेर्मी और पैटी किरदार थे।  पहली स्ट्रिप के प्रकाशन के दो दिन बाद इसमे एक छोटा शिकारी कुत्ता स्नूपी जोड़ा गया।  आगे चल कर इसमे कई नए रेखांकन चरित्र जुड़ते चले गए।  इस स्ट्रिप के दूसरे मुख्य रेखा चित्र में वायलेट ग्रे,  स्क्रोएडर, लूसी वान पेट, लीनस वान पेट, पिग-पेन, सैली ब्राउन, फ्रीडा, वुडस्टॉक, पिपरमिंट पैटी, फ्रेंक्लिन, मर्सी, आदि उल्लेखनीय हैं। यह कॉमिक स्ट्रिप लगभग ५० साल तक लगातार प्रत्येक रविवार प्रकाशित होती रही।  १३ फरवरी २००० के बाद पुरानी स्ट्रिप्स को फिर फिर चलाया गया।  इस दौरान १७, ८९७ पीनट्स स्ट्रिप्स का प्रकाशन हुआ।  यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है की दुनिया २६०० समाचारपत्रों में इसका प्रकाशन हुआ।  इसकी पाठक संख्या दुनिया के ७५ देशों में ३५५ मिलियन पहुँच गई थी।  इसका २१ भाषाओँ में अनुवाद हुआ और शुल्ज़ की एक बिलियन डॉलर की कमाई हुई।  कॉमिक स्ट्रिप्स से पीनट्स टेलीविज़न तक पहुंचे।  अ चार्ली ब्राउन क्रिसमस और इट्स द ग्रेट पम्पकिन, चार्ली ब्राउन ने या तो एमी अवार्ड्स जीते या नॉमिनेशन मिला।  जहाँ तक इस लोकप्रिय स्ट्रिप पर फिल्मों की बात की जाये तो इस स्ट्रिप पर सीबीएस की फिल्म प्रोडक्शन कंपनी सिनेमा सेंटर फिल्म्स ने दो फ़िल्में बनाई।  पहली फिल्म 'अ बॉय नेम्ड चार्ली ब्राउन' ४ दिसंबर १९६९ को रिलीज़ हुई।  इसके बाद ९ अगस्त १९७२ को 'स्नूपी, कम होम' का प्रदर्शन हुआ।  दूसरी दो फ़िल्में  'बॉन वॉयेज, चार्ली ब्राउन' और 'रेस ऑफ़ योर लाइफ, चार्ली ब्राउन' का निर्माण पैरामाउंट पिक्चर्स द्वारा  किया गया।  अब इस लोकप्रिय स्ट्रिप को पांचवी बार सेलुलाइड पर ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स के एनीमेशन स्टूडियो ब्लू स्काई स्टूडियोज द्वारा उतारा जा रहा है।  'द पीनट्स मूवी' टाइटल के साथ यह फिल्म ६ नवंबर २०१५ को रिलीज़ हो रही है। इस ३ डी कंप्यूटर-एनिमेटेड कॉमेडी फिल्म का निर्देशन स्टीव मार्टिनो कर रहे हैं।  'द पीनट्स मूवी' के निर्माण में एक सौ मिलियन डॉलर खर्च हुए हैं।  





स्पाइडर-मैन रिबूट में मालूम हो जाएगी स्पाइडर-मैन की उम्र

पीटर पार्कर एक बार फिर हाई स्कूल में पढने जा रहा है।  पीटर पार्कर ही दुनिया को बचाने वाला स्पाइडर-मैन है।  यह पीटर पार्कर की घर वापसी भी है। जी हाँ, स्पाइडर-मैन सीरीज को रिबूट किया जा रहा है।  इस रिबूट फिल्म को सोनी पिक्चर्स और मार्वल स्टूडियोज मिल कर बना रहे हैं।  स्पाइडर-मैन  मूल रूप से मार्वल कॉमिक्स का ही एक चरित्र है।  इस पर फिल्म बनाने के अधिकार कई स्टूडियोज के बाद सोनी पिक्चर्स एंटरटेनमेंट को १९८५ में मिले।  इस सुपरमैन किरदार पर सोनी ने पांच फ़िल्में बनाई।  इनमे से पहली तीन फ़िल्में सैम रैमी ने निर्देशित की तथा बाकी दो फिल्म मार्क वेब ने। फरवरी २०१५ में डिज्नी, मार्वल स्टूडियोज और सोनी पिक्चर्स ने एक संयुक्त बयान में स्पाइडर-मैन की घर वापसी यानि मार्वल स्टूडियोज के पास जाने का ऐलान किया।  लेकिन, रिबूट फिल्म का निर्माण तीनो स्टूडियोज करेंगे। छटी रिबूट फिल्म का निर्देशन जॉन वाट कर रहे हैं। इस फिल्म में १५ साल के पीटर पार्कर का रोल १९ साल के एक्टर टॉम हॉलैंड कर रहे हैं। लेकिन, यह  'द इम्पॉसिबल' और 'इनटू द हार्ट ऑफ़ द सी' के एक्टर टॉम हॉलैंड का पीटर पार्कर के किरदार में डेब्यू नहीं होगा।  टॉम हॉलैंड को २०१६ में रिलीज़ होने जा रही फिल्म 'कैप्टेन अमेरिका: सिविल वॉर' में पीटर पार्कर/स्पाइडर-मैन के किरदार में देखा जाएगा।  लेकिन, स्पाइडर-मैन रिबूट फिल्म में पीटर पार्कर की सही उम्र का ऐलान हो जायेगा कि पीटर पार्कर १५ साल का है ।  जबकि, अब तक पीटर पार्कर की उम्र को लेकर अनुमान ही लगाए जाते थे।


फार क्राई प्राइमल का ट्रेलर