साठ के दशक में, अभिनेता मनोज कुमार ने शहीद के बाद उपकार, पूरब और पश्चिम, शोर, क्रांति, आदि फ़िल्में बना कर खुद के लिए भारत कुमार की उपाधि बटोरी थी। उपकार के एक करैक्टर भारत से मनोज कुमार को शोहरत इसलिए मिली कि उन्होंने अपनी फिल्मों से देश की बात की थी। गाँव की समस्या को उठाया था। भारत को पश्चिम देशों से श्रेष्ठ बताया था। आज भी, जब मनोज कुमार का जिक्र होता है तो उन्हें भारत पर गर्व करने वाला भारत कुमार ही पुकारा जाता है। मनोज कुमार को रूपहले परदे से अलग हुए २० साल हो गए हैं। उनकी भूमिका वाली आखिरी फिल्म 'मैदान ए जंग' १९९५ में रिलीज़ हुई थी। के सी बोकाडिया की इस मल्टीस्टार कास्ट फिल्म में मनोज कुमार के साथ धर्मेन्द्र मुख्य भूमिका में थे। इन्ही धर्मेन्द्र सिंह देओल के बेटे हैं सनी देओल, जो आजकल भारत कुमार के एक्शन अवतार इंडियन के बतौर याद किये जाते हैं। १९ अक्टूबर १९५७ को जन्मे धर्मेन्द्र के सबसे बड़े बेटे सनी देओल ने १९८३ में अमृता सिंह के साथ रोमांटिक फिल्म 'बेताब' से फिल्म डेब्यू किया। इस फिल्म में एक्शन नाम मात्र को था। सनी, मंज़िल मंज़िल, सोहनी महिवाल और ज़बरदस्त की असफलता के बाद सनी देओल को सफलता मिली राहुल रवैल की फिल्म 'अर्जुन' से। अर्जुन में सनी देओल एक क्रुद्ध युवा छात्र के किरदार में थे। राहुल रवैल ने अपनी इस धुंआधार एक्शन फिल्म में सनी देओल के व्यक्तित्व का बढ़िया उपयोग किया। सनी देओल चेहरे से मासूम हैं। राहुल ने उन्हें एक सीधे सादे मासूम चेहरा युवा का चोला पहनाया, जो सताए जाने के बाद हिंसा का सहारा लेता है। डकैत भी इसी लाइन पर बनी फिल्म थी। लेकिन, सनी देओल को नया एक्शन हीरो बनाया राजकुमार संतोषी ने। संतोषी ने भी सनी लियॉन की चेहरे की खासियत को हथियार बना कर, फिल्म 'घायल' में उनके अजय मेहरा के किरदार के हाथों में हथियार पकड़ा दिए। दर्शकों को सनी देओल का यह मासूम चहरे वाला यह कुद्ध युवा बेहद पसंद आया। घायल न केवल सुपर हिट हुई, बल्कि फिल्म के लिए सनी देओल को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में जूरी का स्पेशल अवार्ड मिला। इस फिल्म का आमिर खान की फिल्म 'दिल' से सीधा टकराव हुआ। पर दिल को पिछड़ना पड़ा। यहाँ उल्लेखनीय है कि राजकुमार संतोषी ने घायल की कहानी कमल हासन को ध्यान में रख कर लिखी थी। लेकिन, किसी भी फिल्म निर्माता द्वारा कमल हासन की फिल्म में पैसा लगाने से इंकार के बाद धर्मेन्द्र आगे आये। उन्होंने घायल को अपने बैनर विजेता फिल्म्स के अंतर्गत बनाया। जहाँ सनी देओल को राहुल रवैल ने मासूम क्रुद्ध युवा और राजकुमार संतोषी ने एक्शन स्टार बनाया, वहीँ अनिल शर्मा ने उन्हें भारत कुमार का एक्शन अवतार इंडियन बना दिया। जिन दिनों सनी देओल राजकुमार संतोषी और राहुल रवैल की दामिनी, घातक और अर्जुन पंडित जैसी फिल्मों से दशक के एक्शन हीरो साबित हो रहे थे, उसी के ठीक बाद २००१ में अनिल शर्मा और सनी देओल की जोड़ी की फिल्म 'ग़दर : एक प्रेमकथा' रिलीज़ हुई। इस फिल्म का भोला भाला ट्रक ड्राइवर एक मुस्लिम लड़की सकीना से मन ही मन प्रेम करने लगता है। इसी दौरान देश का बँटवारा हो जाता है। सकीना का पूरा परिवार पाकिस्तान चला जाता है, लेकिन, सकीना उस ट्रेन पर चढने नहीं पाती। बंटवारे के समय के घायल पंजाब में लोगों के क्रोध से सकीना को बचाने के लिए तारा सिंह उससे शादी कर लेता है। कहानी में मोड़ तब आता है, जब सकीना का पाकिस्तान में रसूखदार पिता उसे धोखे से पाकिस्तान में कैद कर लेता है। तब शुरू होता है अपनी बीवी को छुड़ाने के लिए तारा सिंह का पाकिस्तान अभियान। इसके साथ ही फिल्म के शक्तिमान तलवार के लिखे धारदार संवादों ने तारा सिंह के मुंह से आग की तरह बरसना शुरू कर दिया। सनी देओल के ढाई किलो के घूसे पाकिस्तानियों पर कहर बन कर बरसने लगे। पाकिस्तान की नापाक हरकतों से आज़िज़ भारतीय जनता के लिए सनी देओल और उनके जोशीले और पाकिस्तान को धिक्कारने वाले संवादों ने मरहम का काम किया। इन संवादों को सुनते और पाकिस्तान के पुलिस वालों और सैनिकों पर सनी और उनके घूसों को बरसते देख कर सिनेमाहॉल में बैठा दर्शक देश भक्ति से भर उठा । फिल्म ने कमाई उसी शुक्रवार रिलीज़ आमिर खान की फिल्म लगान को पीछे छोड़ दिया। इस फिल्म के संवादों के साउंड ट्रैक की खूब बिक्री हुई। इसके साथ ही सनी देओल पाकिस्तान को गरियाने और जुतियाने वाले 'इंडियन' बन गए। ग़दर एक प्रेम कथा के बाद सनी देओल की पाकिस्तान को गरियाने वाली इंडियन, माँ तुझे सलाम और द हीरो :लव स्टोरी ऑफ़ अ स्पाई जैसी फ़िल्में रिलीज़ हुई। ज़्यादातर हिट भी हुई। आज सनी देओल अपनी फिल्मों में पाकिस्तान को धमका नहीं रहे, लेकिन उनकी भारत कुमार के एक्शन अवतार इंडियन वाली इमेज बरकरार है।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Monday 19 October 2015
भारत कुमार का एक्शन अवतार इंडियन : सनी देओल
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मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Sunday 18 October 2015
ख़त्म हो जायेगा ज़िन्दगी के लिए मौत का खेल
नवंबर में 'द हंगर गेम्स : मॉकिंग्जय पार्ट २' की रिलीज़ के साथ ही हंगर गेम्स सीरीज की फिल्मों का चार सालों का सफर ख़त्म हो जायेगा। सुज़ैन कॉलिंस के इसी टाइटल वाले उपन्यास पर पहली फिल्म 'द हंगर गेम्स' २३ मार्च २०१२ को रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म का निर्माण नीना जैकबसन जॉन किलिक ने किया था। हंगर गेम्स सीरीज की तीन किताबों में पहली किताब पर बनी 'द हंगर गेम्स' दुनिया के एक बर्बाद देश के ख़त्म होने से पहले की कहानी है। यह भविष्य की दुनिया के देश है, जहाँ उसके निवासियों के टीन एजर्स (१२ से १८ साल) के लिए टेलीविज़न से प्रसारित होने वाले मौत के खेल हंगर गेम्स में भाग लेना अनिवार्य होता है। इसमे प्रतिभागियों को तब तक लड़ना है जब तक आखिरी प्रतिभागी नहीं बचता। वही आखिरी प्रतिभागी विजेता बनेगा। कटनिस एवरडीन अपनी बहन की जगह खेल में हिस्सा लेती है। फिल्म में जेनिफर लॉरेंस ने कटनिस का किरदार किया था। उनके सपोर्टिंग जोश हचर्सन, लियम हेम्सवर्थ, वुडी हरेलसन, एलिज़ाबेथ बैंक्स, लेन्नी करवित्ज़, स्टैनले टुच्ची और डोनाल्ड सुदरलैंड थे। समालोचकों ने फिल्म की थीम और सन्देश के लिए तारीफ की। फिल्म का निर्माण ७८ मिलियन डॉलर से हुआ था। फिल्म ने वर्ल्डवाइड ६९१ मिलियन डॉलर का बिज़नेस किया। अपनी फिल्म की व्यावसायिक सफलता के लिहाज़ से जेनिफर लॉरेंस की पहली फिल्म 'एक्स मेन :फर्स्ट क्लास' (२०११) थी। लेकिन, इस फिल्म में लॉरेंस की मिस्टिक की भूमिका संक्षिप्त थी। लेकिन, २०१२ में हंगर गेम्स की सफलता के बाद नज़ारा काफी बदल गया। २२ नवंबर २०१३ को हंगर गेम्स सीरीज की दूसरी फिल्म 'द हंगर गेम्स: कैचिंग फायर' रिलीज़ हुई। इस फिल्म को भी ज़बरदस्त सफलता हासिल हुई। कैचिंग फायर के निर्माण में १३० मिलियन डॉलर खर्च हुए थे। फिल्म के केंन्द्र में एक बार फिर जेनिफर लॉरेंस का कटनिस एवरडीन का किरदार था। फिल्म ने वर्ल्डवाइड बॉक्स ऑफिस पर ८६४.९ मिलियन डॉलर का बिज़नेस किया। इस फिल्म के साथ ही जेनिफर बड़ी अभिनेत्रियों में शुमार हो गई। हालाँकि तब तक वह मात्र २३ साल की थी। हंगर गेम्स सीरीज की दो फिल्मों की लगातार दो साल सफलता ने एक्स-मेन के निर्माताओं को फिल्म में जेनिफर के रोल को बढ़ाने के लिए मज़बूर कर दिया। 'एक्स- मेन: डेज ऑफ़ फ्यूचर पास्ट' में मिस्टिक के किरदार को महत्व और लम्बाई दी गई। सुज़ैन कॉलिंस की सीरीज की तीसरी और आखिरी किताब मॉकिंग्जय का फिल्म रूपांतरण दो हिस्सों में किया गया। 'द हंगर गेम्स :मॉकिंग्जय १' पिछले साल २१ नवंबर को रिलीज़ हुई। इस फिल्म के निर्माण में १२५ मिलियन डॉलर खर्च हुए थे। फिल्म ने वर्ल्डवाइड ७५२. १ मिलियन डॉलर का बिज़नेस किया। अब २० नवंबर २०१५ को हंगर गेम्स सीरीज की चौथी और आखिरी फिल्म 'मॉकिंग्जय २' रिलीज़ होने जा रही है। इस फिल्म के निर्माण भी १२५ मिलियन डॉलर खर्च हुए हैं। सीरीज की पहली फिल्म 'द हंगर गेम्स' के निर्देशक गैरी रॉस थे। यह फिल्म १४२ मिनट लम्बी थी। बाद की तीनों फिल्मों का निर्देशन फ्रांसिस लॉरेंस ने किया। सीरीज की दूसरी फिल्म १४६ मिनट, तीसरी फिल्म १२३ मिनट और चौथी फिल्म १४७ मिनट लम्बी है। हंगर गेम्स सीरीज की फिल्मों को दुनिया के देशों में ज़बरदस्त सफलता मिली। लेकिन इस फिल्म को सबसे ज़्यादा हिंसक फिल्म कहा जाता है। वियतनाम में तो इस फिल्म की रिलीज़ ही रोक दी गई। हंगर गेम्स सीरीज की चार फिल्मों के निर्माण में जैकबसन और किलिक को ४५८ मिलियन डॉलर खर्च करने पड़े । लेकिन, सीरीज की पहली तीन फिल्मो ने बॉक्स ऑफिस पर २,३१४. ८ मिलियन डॉलर का ढेर लगा दिया। सीरीज की आखिरी फिल्म हुगेर गेम्स के डॉलर के ढेर में इज़ाफ़ा ही करेगी।
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Saturday 17 October 2015
कल की बोल्ड एन ब्यूटीफुल सिमी गरेवाल आज भी है ब्यूटीफुल
सिमी गरेवाल का नाम लेते ही बिल्ली जैसी खूबसूरत औरत की सूरत आँखों के सामने आ जाती है। पंजाब के जाट सिख परिवार में पैदा सिमी गरेवाल के पिता आर्मी में ब्रिगेडियर थे। वह इंग्लैंड में पली बढ़ी। इसीलिए उनकी बोलचाल में इंग्लिश उच्चारण का प्रभाव साफ़ महसूस किया जाता था । वास्तविकता तो यह है कि सिमी गरेवाल को उनकी पहली फिल्म 'टार्ज़न गोज टू इंडिया' उनके इंग्लिश बोल सकने के कारण ही मिली थी। इंग्लिश भाषा में इस फिल्म में सिमी ने एक भारतीय राजकुमारी की भूमिका की थी। फ़िरोज़ खान राजकुमार बने थे। इस फिल्म ने ५३ साल पहले अपने निर्माताओं को एक लाख ७८ हजार डॉलर का नुक्सान दिया था। फिल्म में सिमी के नायक फ़िरोज़ खान थे। उस समय सिमी मात्र १५ साल की थी। इसी साल उन को दो हिंदी फ़िल्में 'राज की बात' और 'सन ऑफ़ इंडिया' भी मिल गई। अब तो उनके लिए हिंदी सीखना ज़रूरी हो गया। अब यह बात दीगर है कि इसके बावजूद उनके हिन्दी उच्चारण में अंग्रेजी उच्चारण दोष बना ही रहा। सिमी ने गरेवाल ने अपने २० साल के सक्रिय फिल्म करियर में ५० फ़िल्में की। बकौल सिमी गरेवाल 'इतने पुरस्कार मिले कि घर में रखने की जगह ही नहीं है।' अंग्रेजी फिल्म से डेब्यू करने वाली सिमी गरेवाल को अपने छोटे फिल्म करियर में महबूब खान के अलावा राजकपूर, सत्यजित रे, मृणाल सेन, सुभाष घई, रमेश सिप्पी और कोनार्ड रूक्स जैसे फिल्म निर्देशकों की फिल्मों में काम करने का मौक़ा मिला। सिमी ने दो बांगला फ़िल्में सत्यजित रे की 'अरण्येर दिन रात्रि' (डेज एंड नाईट इन द फारेस्ट) और मृणाल सेन की फिल्म 'पदातिक' (द गौरिल्ला फाइटर) भी की। 'पदातिक' में वह एक राजनीतिक उग्रवादी को शरण देने वाली भावुक महिला का किरदार किया था। फिल्म 'अरण्येर दिन रात्रि' में वह एक जनजातीय संथाल लड़की दुली के किरदार में थी। इतने बड़े बड़े फिल्मकारों के साथ काम करना किसी भी अभिनेत्री के लिए गौरव की बात होनी चाहिए। उन्होंने राजकपूर की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' और कोनार्ड रूक्स की फिल्म 'सिद्धार्थ' भी की। लेकिन, सिमी को ऎसी तमाम फिल्मों में अपने अभिनय के करण उतनी प्रशंसा नहीं मिली, जितनी इन फिल्मों मे उनके अंग प्रदर्शन और कामुक प्रसंगो को मिली। तीन देवियाँ उनकी एडल्ट फिल्म थी। सत्यजित रे की फिल्म 'अरण्येर दिन रात्रि' में वह एक संथाल लड़की दुली की भूमिका में थी। इस फिल्म में उनके समित भंज के साथ अंतरंग दृश्य थे। इन फिल्मों में उनको सेक्सी इंग्लिश गर्ल बना दिया। इसी साल, सिमी गरेवाल की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' रिलीज़ हुई। तीन हिस्सों वाली इस फिल्म के पहले हिस्से में सिमी गरेवाल ने एक कान्वेंट की टीचर का किरदार किया था। किशोर ऋषि कपूर उनके स्कूल के छात्र हैं। इस फिल्म के एक सीन में सिमी गरेवाल पानी में फिसल जाती हैं। जब वह अपने गीले कपडे बदल रही होती है तब किशोर ऋषि उन्हें देखता है। इस सीन में राजकपूर ने सिमी की गीली देह का खूब गर्म प्रदर्शन किया था। अब यह बात है कि फिल्म इसके बावजूद फ्लॉप हो गई। दो साल बाद १९७२ में रिलीज़ कोनार्ड रूक्स की फिल्म 'सिद्धार्थ' में तो सिमी गरेवाल बिलकुल नग्न खडी दिखाई गई। इस फिल्म में उनके नग्न पोस्टर सिनेमाघरों के बाहर ख़ास लगाए जाते थे। इस भूमिका के लिए सिमी की काफी आलोचना भी हुई। हालाँकि, इस बीच सिमी ने मनोज कुमार और आशा पारेख के साथ दो बदन, राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला के साथ साथी, दिलीप कुमार, वहीदा रहमान और मनोज कुमार के साथ आदमी, हेमा मालिनीं, शम्मी कपूर और राजेश खन्ना के साथ 'अंदाज़', ख्वाजा अहमद अब्बास कि फिल्म 'दो बूँद पानी', राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन और रेखा के साथ नमक हराम, विनोद खन्ना और रंधीर कपूर के साथ हाथ की सफाई, अमिताभ बच्चन के साथ कभी कभी के अलावा नाच उठे संसार, चलते चलते, चला मुरारी हीरो बनाने, अनोखी पहचान, आदि फिल्में की। ज़ाहिर है कि उन्होंने बड़े सितारों और बैनर के साथ बड़ी फिल्म की। लेकिन, इन फिल्मों में वह सह नायिका थी। सुभाष घई की फिल्म 'क़र्ज़' में उनकी वैम्पिश भूमिका ने दर्शकों का ध्यान खींचा ज़रूर। लेकिन, करियर को बचाए रखने के लिए इतना काफी नहीं था। सिमी गरेवाल को समय से पहले की अभिनेत्री कहना उपयुक्त होगा। खुद वह भी इसे मानती हैं कि वह बाउंड स्क्रिप्ट चाहती थी, वह समय की कीमत समझने वाली और अनुशासन चाहने वाली अभिनेत्री थी। वह चाहती थी कि उनकी फिल्म एक स्ट्रेच में पूरी की जाए। वह अपने लिए वैनिटी वैन की चाहत भी रखती थी। उस समय बॉलीवुड के लिहाज़ से यह समय से पहले की बात थी। नतीजतन सिमी गरेवाल का करियर अस्सी के दशक में बिलकुल ख़त्म हो गया। वह टीवी शो में रम गई। उन्होंने टीवी पर तेरी मेरी कहानी, किंग्स ऑफ़ कॉमनर्स और रेन्देवौ विथ सिमी गरेवाल जैसे चर्चित शो किये। उन्हें इन शोज के लिए बेस्ट एंकर के अवार्ड्स भी मिली। उन्होंने एक फिल्म 'रुखसत' का निर्माण और निर्देशन भी किया। साफ़ है कि उन्होंने जो किया परफेक्ट किया। लेकिन, हिंदी फिल्मों में उन्होंने जो किया, उनमे यादगार रहे उनके सेक्सी सीन।
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वॉर ड्रामा फिल्म में जेनिफर एनिस्टन और जैक हूस्टन
अमेरिका के लिए इराक युद्ध में हिस्सा ले चुके केविन पॉवर्स की पुस्तक द येलो बर्ड्स को न्यूयॉर्क टाइम्स ने २०१२ की मोस्ट नोटेबल बुक्स की श्रेणी में रखा था। इस पुस्तक पर डेविड लोवेरी फिल्म बनाने जा रहे हैं। पुस्तक के नाम पर बनाई जा रही वॉर ड्रामा फिल्म 'द येलो बर्ड्स' में अल्डेन एरेनराइक और टाई शेरिडन की मुख्य भूमिका के साथ जैक हूस्टन और जेनिफर एनिस्टन को भी शामिल कर लिया गया हैं। यह फिल्म दो युवा अमेरिकी सैनिकों पर केंद्रित है। प्राइवेट बार्टल २१ साल का है, जबकि प्राइवेट मर्फी सिर्फ १८ साल का। मिलिट्री ट्रेनिंग कैंप में दोनों की मुलाक़ात होती है और जल्द ही दोनों अच्छे दोस्त बन जाते हैं। इराक में युद्ध के मैदान में जाने से पहले बार्टल मर्फी की माँ से मिलने जाता है। वह मर्फी की माँ से वादा करता है कि वह मर्फी को सुरक्षित घर वापस लाएगा। लेकिन, उसे मालूम नहीं युद्ध के मैदान में, जहाँ मौत कान के पास से मंडराती निकल जाती, यह वादा पूरा करना कितना असंभव काम होगा। फिल्म में बार्टल की भूमिका अल्डेन एरेनराइक और मर्फी की भूमिका टाई शेरिडन कर रहे हैं। मर्फी के माँ के रोल में जेनिफर एनिस्टन हैं। फिल्म में जैक हूस्टन को बेनेडिक्ट कम्बरबैच की स्टाफ सार्जेंट स्टर्लिंग की भूमिका मिली है। बेनेडिक्ट इस फिल्म को छोड़ कर चले गए थे। अभी इस फिल्म की शुरूआती तैयारियां चल रही हैं। शूटिंग अगले साल के शुरू में होगी। लोवेरी इस समय डिज्नी की फिल्म 'पिट्स ड्रैगन' को ख़त्म करने जा रहे हैं। जैक हूस्टन को दर्शक फिल्म 'प्राइड एंड प्रेज्यूडिस एंड ज़ॉम्बीज़' में विक्खम के किरदार में देखेंगे। 'बेन-हर' के नए संस्करण में उनकी मुख्य भूमिका है। जेनिफर एनिस्टन की उल्लेखनीय फिल्म में गैरी मार्शल की फिल्म 'मदर्स डे' में वह सैंडी के किरदार में हैं।
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ब्लैक पैंथर बने चैडविक बोसमैन
मार्वेल कॉमिक्स का सबसे कम मशहूर एनिमेटेड किरदार ब्लैक पैंथर पर फिल्म बनाने की घोषणा १९९२ में ही कर दी गई थी। लेकिन, एक लाइव एक्शन फिल्म का कांसेप्ट अंतिम रूप से तय हुआ २०१४ में। अब ब्लैक पैंथर, मार्वेल कॉमिक्स के तमाम अन्य सुपर हीरो की तरह बड़े परदे पर अपनी सुपर पावर का प्रदर्शन करता दिखेगा। उम्मीद है कि ६ जुलाई २०१८ को फिल्म 'ब्लैक पैंथर' में दर्शक एक काले सुपर हीरो को देख पाएंगे।पहले यह खबर थी कि निर्देशक ऍफ़० गैरी ग्रे 'ब्लैक पैंथर' को निर्देशित कर सकते हैं। लेकिन, गैरी के यूनिवर्सल स्टूडियोज की फिल्म 'फ़ास्ट एंड फ्यूरियस ८' पर काम शुरू कर देने से, अब मार्वल को अपने नए एकल सुपर हीरो के लिए नए निर्देशक की तलाश है। मार्वेल सिनेमेटिक यूनिवर्स का इरादा 'ब्लैक पैंथर' रिलीज़ होने से पहले ही अपने इस नए सुपर हीरो का परिचय दुनिया से करा देने का है। अगले साल, कैप्टेन अमेरिका सीरीज के दर्शकों को अन्थोनी रुसो और जो रुसो की फिल्म कैप्टेन अमेरिका: सिविल वॉर में चैडविक बोसमैन ब्लैक पैंथर की काली पोशाक में अपना अहम रोल करते नज़र आएं। यह फिल्म चैडविक के लिए जितनी महत्वपूर्ण है, उतना ही फिल्म के लिए उनका ब्लैक पैंथर का किरदार भी है। दरअसल, कहानी के अनुसार कैप्टेन अमेरिका में अवेंजर्स के राजनीतिक नियंत्रण को लेकर आयरन मैन और कैप्टेन अमेरिका के बीच मतभेद पैदा हो जाते हैं। ब्लैक पैंथर अफ़्रीकी राष्ट्र वकाण्डा का राजा है। अवेंजर्स से उसका पहले का कोई जुड़ाव नहीं। इसलिए वह एक न्यूट्रल करैक्टर की तरह दोनों के मतभेदों को सुलझाने की पहल कर सकता है। जहाँ ब्लैक पैंथर की रिलीज़ डेट ६ जुलाई २०१८ हैं, वह ब्लैक पैंथर को देखने के लिए बेचैन दर्शक इस किरदार को अगले साल २९ अप्रैल को 'कैप्टेन अमेरिका: सिविल वॉर' में देख सकेंगे।
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Friday 16 October 2015
पाओली डैम से ज़रीन खान तक 'हेट स्टोरी' पाओली डैम से ज़रीन खान तक 'हेट स्टोरी'
विशाल पंड्या की इरोटिक थ्रिलर फिल्म 'हेट स्टोरी ३' के ट्रेलर में नज़र आ रही हैं अभिनेत्री ज़रीन खान, जो 'रागिनी एमएमएस २', की सनी लियॉन के अवतार में उसाँसे ले रही है। यह वह ज़रीन खान हैं जिन्होंने २०१० में सलमान खान की अनिल शर्मा निर्देशित पीरियड फिल्म 'वीर' में बतौर नायिका डेब्यू किया था। फिल्म फ्लॉप हुई। इस फ्लॉप फिल्म के बावजूद सलमान खान आज टॉप के खान हैं, लेकिन यह लेडी खान सनी लियॉन के स्तर पर आकर पोर्न स्टार जैसा प्रदर्शन कर रही है। ज़रीन खान ने सलमान खान का दामन थामा था, तो लगा था कि उनकी फिल्म 'रेडी' में 'करैक्टर' ढीला' वाला आइटम करके वह भी सलमान वेव में सोनाक्षी सिन्हा जैसी स्टार बन जाएंगी। सोनाक्षी का उदाहरण इसलिए कि सोनाक्षी भी ज़रीन की तरह भरे बदन वाली एक्ट्रेस है। वह भी सलमान खान की फिल्म दबंग से फिल्मों में आई हैं। कहाँ जाता है कि सलमान खान का हाथ लगते ही पत्थर भी पारस बन जाता है। लेकिन, ज़रीन खान का फिल्म दर फिल्म करियर ग्राफ गिरता चला गया। वह साउथ फिल्मों से पंजाबी फिल्मों में आई। पंजाबी फिल्म जट्ट जेम्स बांड हिट रही। ज़रीन खान 'हेट स्टोरी ३' की नायिका बन गई। ज़रीन खान हेट स्टोरी ३ में कोई गज़ब का अभिनय पेश नहीं कर रही। देखा जाये तो हेट स्टोरी सीरीज की फिल्मों में नायिका का स्तर फिल्म दर फिल्म गिरता चला गया है। अपने को बर्बाद करने वाले एक अमीर आदमी से बदला लेने के लिए काव्या अपने शरीर को हथियार बनाती है। इस इरोटिका थ्रिलर फिल्म में काव्य का किरदार पाओली डैम ने किया था। इस फिल्म में पाओली ने अपनी सेक्सी बॉडी का गज़ब इस्तेमाल किया ही था, बेहतरीन अभिनय भी किया था। हेट स्टोरी के सीक्वल का निर्देशन विशाल पंड्या ने किया था। फिल्म की नायिका काव्या से सोनिका बन गई थी। पाओली डैम की जगह सुरवीन चावला ने ले ली। पाओली डैम की तरह सुरवीन भी गज़ब की सेक्स अपील रखती थी । उन्होंने ज़रुरत-बेज़रुरत खूब अंग प्रदर्शन भी किया था । लेकिन, वह अभिनय के जौहर नहीं दिखा पाई। फिल्म ' हेट स्टोरी २' के कथानक में भी वह बात नहीं थी, जो 'हेट स्टोरी' में थी। हेट स्टोरी की तुलना में हेट स्टोरी २ ने बॉक्स ऑफिस पर हल्का बिज़नेस भी किया। इसके बावजूद फिल्म निर्माता भूषन कुमार हेट स्टोरी ३ बना रहे हैं। हेट स्टोरी २ के निर्देशक विशाल पंड्या ही इस फिल्म का निर्देशन कर रहे हैं। 'हेट स्टोरी' और 'हेट स्टोरी २' की तुलना में 'हेट स्टोरी ३' कितनी वज़नदार फिल्म बनी हैं, इसका पता तो फिल्म रिलीज़ होने के बाद ही चलेगा। लेकिन, 'हेट स्टोरी ३' के ट्रेलर में ज़रीन खान जिस कामुक अंदाज़ में पुरुष चरित्रों के साथ पेश हो रही हैं, उससे फिल्म के इरोटिक होने का पता चल जाता है और ज़रीन खान के सनी लियॉन को चुनौती बनने का भी। लेकिन, अभिनय के लिहाज़ से वह पाओली डैम के नज़दीक हों तब बात बने। 'हेट स्टोरी ३' में सलमान खान की फिल्म 'जय हो' की नायिका डेज़ी शाह भी सह नायिका की भूमिका में हैं। क्या यह दोनों नायिकाएं अपनी सेक्स अपील के ज़रिये हेट स्टोरी ३ प्यार दिलवा पाएंगी ? या एक दूसरे को सेक्स अपील की चुनौती देते हुए खल्लास हो जाती हैं ?
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ये ल्लों !!!
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Thursday 15 October 2015
अब संघर्ष का रूप बदल गया है- ऋचा चड्डा
ऋचा चड्डा की पहचान कराने के लिए किसी ख़ास फिल्म का नाम लेने की अब ज़रुरत नहीं। फिल्म 'ओये लकी लकी ओये' से फिल्म कैरियर की शुरुआत करने वाली ऋचा चड्डा को अनुराग कश्यप की अपराध फिल्म 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' ने पहचान दिला दी। संजयलीला भंसाली की फिल्म 'गोलियों की रास लीला -राम-लीला' में उनका रसीला का किरदार बेहद प्रभावशाली था। मसान से वह प्रशंसा लूट रही हैं। उनकी फिल्म 'मैं और चार्ल्स' रिलीज़ होने वाली है। इसके बावजूद ऋचा को लगता है कि अभी उनका संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ है। पेश है बातचीत-
क्या अब आपका संघर्ष
खत्म हो गया है ?
- संषर्ष तो अब भी चल
रहा है। बस उसका रूप बदल गया है। पहले ऑटो
से संघर्ष कर रही थी और अब अपनी गाड़ी से करती हूं। पहले फिल्म पाने के लिए भाग
दौड़ कर रही थी, अब अपने काम को नया
आयाम देने में श्रम लगा रही हूं। फिल्म इंडस्ट्री में होना मतलब लाइफ टाइम के लिए
संघर्ष में होना है। इसलिए ऐसा नहीं कह सकती कि कुछ फिल्मों की सफलता और प्रशंसा
के बाद मेरा संघर्ष खत्म हो गया है। यहां हर फ्राइडे के बाद करियर का भविष्य
निर्धारित होता है।
आपकी पहचान टुकड़ों
में हुई है। बीच के समय में हौसला कैसे बनाए रखा ?
- 'ओए लकी लकी ओए' और 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के बीच चार साल का गैप है। उसमें २००८ से २०१० तक का समय मेरे लिए
काफी मुश्किलों भरा रहा। मेरे पास कोई काम नहीं था। उस दौरान मैंने अपने अंदर के
कलाकार को जिंदा रखने के लिए थियेटर किये, नाटक किये। किसी काम को पाने का हौसला बनाये रखने के लिए सबसे जरूरी
है कि उसमें आपकी रुचि लगातार बनी रहे। इसके अलावा आपकी हॉबिज और आपसे जुड़े लोगों
की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जिससे आप निराशा में जाने से बच जाते हैं। मेरे मुश्किल दिनों में
मेरे परिजनों का बड़ा सहयोग रहा। पैसे कम होने पर पैसे भेजे, मुझसे बातचीत में उन्हें कभी लगता था कि मैं कुछ निराश हूं, तो वो मुंबई आ जाते थे।
'मैं और चाल्र्स'
कैसी फिल्म है ?
- ये एक थ्रिलर फिल्म
है। क्रिमिनल चाल्र्स की कहानी है कि कैसे वो लॉ स्टूडेंट मीरा की मदद से दो- चार
कैदियों के साथ देश की सबसे सुरक्षित जेल तिहाड़ से भाग जाता है। उसके बाद
पुलिसकर्मी अमोल चाल्र्स की जिंदगी में भाग दौड़ शुरू करता है। चाल्र्स गोवा में
पकड़ा जाता है और फिर मुंबई में उसका सामना अमोल से होता है। इसमें यही दिखाया गया
है कि कैसे घटनाओं की प्लाटिंग और उन्हें अनकवर किया गया है। मैं मीरा बनी हूं और
चाल्र्स का किरदार रणदीप हुड्डा निभा रहे हैं।
ग्लैमर इंडस्ट्री
में होकर भी ग्लैमरस हीरोइन की पहचान ना होने को लेकर कभी कसक होती है ?
- हां, कभी-कभी ये कसक उठती है। इसकी वजह ये है कि
ग्लैमरस रोल की फिल्में करने के कारण आपके पास कमाई करने के कई रास्ते आ जाते हैं।
कई शोज, अपियरेंस के मौके
मिलते हैं। ऐसा नहीं है कि मैं ग्लैमरस रोल की फिल्में बिल्कुल ही नहीं कर रही
हूं। लेकिन उसको लेकर बहुत बेचैन नहीं हुई जा रही हूं। 'मसान' की सफलता के बाद कई लोगों ने मुझसे पूछा कि आप बड़े बजट की कमर्शियल
फिल्में क्यों नहीं करतीं। मैं उन सभी से कहना चाहती हूं कि 'मसान' जैसी मीनिंगफुल अच्छी फिल्में और करना चाहूंगी।
जब पहली बार
अभिनेत्री बनने का ख्याल आया, तो क्या वह ग्लैमर का आकर्षण था ?
- बचपन से ही मुझे लग
रहा था कि मैं अभिनेत्री बनने के लिए ही बनी हूं। मेरे मन में आकर्षण ग्लैमर को
लेकर ना होकर सिनेमा को लेकर था कि वो कौन सी बात है, जो बनावटी होते हुए भी इतना असरदायी है। ये बच्चे
से लेकर बड़े तक सभी जानते हैं कि जो पर्दे पर दिख रहा है, वह बनाया हुआ है। फिर भी सभी उससे जुड़ जाते हैं।
फिल्म इंडस्ट्री में
कभी ठगे जाने का अहसास हुआ ?
— हां, ये अहसास कई तरह के हैं। जैसे कुछ लोगों ने कोई
काम देने का भरोसा देकर लटकाए रखा, लेकिन वो कोरा आश्वासन ही साबित हुआ। स्ट्रगल के दिनों में ऐसे कटु
अनुभन होते रहते हैं। लेकिन यही अहसास हमें परिपक्व बनाते हैं। अब मैं लोगों पर
अंधविश्वासी की तरह भरोसा नहीं करती हूं।
प्रस्तुति- राजेंद्र कांडपाल
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मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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