कभी हिंदी फिल्मों की नायिका के लिहाज़ से अनहोनी हो जाती है। जब किसी फिल्म की नायिका पर छा जाती उसकी सह-नायिका और नायक को पस्त कर देता है सह-नायक। अभी पिछले साल दिसंबर में रिलीज़ संजयलीला भंसाली की फिल्म बाजीराव मस्तानी का उदाहरण ही लीजिए। यह फिल्म राज नर्तकी और बाजीराव की प्रेमिका मस्तानी की प्रेम गाथा थी। यह दोनों रोल यानि बाजीराव रणवीर सिंह बने थे और उनकी मस्तानी दीपिका पादुकोण थी। इस रोमांस को घरेलु छौंक दे रही थी काशीबाई। काशीबाई यानि बाजीराव की धर्मपत्नी और परदे पर इस करैक्टर को करने वाली प्रियंका चोपड़ा । दीपिका पादुकोण का रोल अपेक्षाकृत लम्बा और महत्वपूर्ण था। इसके बावजूद छा गई थी प्रियंका चोपड़ा की काशीबाई। इस रोल के लिए प्रियंका चोपड़ा को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड्स मिला। हालाँकि, दीपिका पादुकोण भी इन पुरस्कारों में श्रेष्ठ अभिनेत्री चुनी गई। लेकिन, उन्हें यह अवार्ड्स बाजीराव मस्तानी की मस्तानी के लिए नहीं, बल्कि पीकू में पीकू की भूमिका के लिए।
ज़ाहिर है कि सपोर्टिंग रोल में भी दीपिका पादुकोण पर प्रियंका चोपड़ा भारी पड़ी थी। कभी ऐसा हो जाता है, जब हीरो पर साइड हीरो भारी पड़ जाता है। अपनी फिल्म की लीड को पछाड़ देती है सहयोगी भूमिका। छा जाते हैं इन भूमिकाओं को करने वाले अभिनेता या अभिनेत्रियां। दिलचस्प तथ्य यह है कि लीड एक्टर से सपोर्टिंग एक्टर की टक्कर का दर्शक भी खूब मज़ा लेते हैं। ऐसे दिलचस्प टकराव वाली फिल्म हिट तो होती ही है।
दिलीप कुमार की फिल्मों में टकराव
इस समय याद आ रही है दिलीप कुमार और उनकी फिल्मों की। उन्हें ट्रेजेडी किंग कहा जाता था। वह अपने समय के एक्टर स्टार थे यानि सितारा जो बढ़िया अभिनय भी कर सकता है। यही दिलीप कुमार कम से कम दो बार अपने सपोर्टिंग एक्टर से मात खा गए। दिलीप कुमार को पहली बार मात मिली १९५९ में रिलीज़ एस एस वासन की फिल्म पैगाम में राज कुमार से। इस फिल्म में दोनों कुमारों ने भाई भाई की भूमिका की थी। उस समय राजकुमार महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया के शामू के रोल से पहचाने जाते थे। इसलिए उम्मीद उम्मीद की जाती थी कि अनुभवी दिलीप कुमार इस कल के लौंडे को डकार जायेंगे। लेकिन, हुआ बिलकुल उल्टा। मेथड एक्टर दिलीप कुमार पर लाउड डायलाग उगलने वाले राजकुमार भारी पड़ गए। दर्शकों के रिएक्शन पर दिलीप कुमार मन मसोस कर रह गए। पैगाम के नौ साल और पांच साल बाद, दिलीप कुमार को फिर मात मिली फिल्म संघर्ष में संजीव कुमार से। वाराणसी के पंडों पर इस फिल्म में दिलीप कुमार और संजीव कुमार पंडों के दो समूहों के नेता थे। फिल्म में कई ऐसे सीन थे, जिनमे इन दोनों एक्टरों के बीच धुंआधार संवादों का आदान प्रदान हो रहा था। स्पॉन्टेनियस एक्टर संजीव कुमार उस समय नौनिहाल और अनोखी रात जैसी फिल्मों से अपनी पहचान बना रहे थे। लेकिन, संघर्ष में दिलीप कुमार को धो डालने के बाद संजीव कुमार ने बॉलीवुड में सनसनी फैला दी। पैगाम और संघर्ष के बाद दिलीप कुमार ने राजकुमार और संजीव कुमार के साथ लम्बे समय तक कोई फिल्म नहीं की। पैगाम के ३२ साल बाद सुभाष घई ने इन दोनों दिग्गजों को फिल्म सौदागर में ईगोइस्ट ठाकुरों का किरदार किया था। सुभाष घई ने ही १५ साल बाद फिल्म विधाता में दिलीप कुमार और संजीव कुमार को पेश किया।
जब हारा देओलों का नायक
हिंदी फिल्मों के पहले मर्द अभिनेता और ही-मैन के टाइटल से नवाज़े गए धर्मेंद्र और उनके ढाई किलो का हाथ वाले बेटे सनी देओल को भी बलिष्ठ कद काठी के बावजूद मात खानी पड़ी है। उन्हें यह मात मिली चोपडाओं की फिल्मों के कारण। १९६९ में यश चोपड़ा के निर्देशन में एक फिल्म रिलीज़ हुई थी आदमी और इंसान। इस फिल्म में फ़िरोज़ खान ने एक उद्योगपति जेके और धर्मेंद्र ने उनके दोस्त की भूमिका की थी। धर्मेंद्र फिल्म के नायक थे और फ़िरोज़ खान सह नायक। लेकिन, यश चोपड़ा ने फिल्म के क्लाइमेक्स में क़ुरबानी दिलवा कर फ़िरोज़ को दर्शकों की सहानुभूति दिलवा कर धर्मेंद्र के किरदार पर भारी बना दिया। यश चोपड़ा ने तो १९९३ में अपनी फिल्म डर के खलनायक शाहरुख खान को नायक सनी देओल से पिटवा कर भी नायक बना दिया था । सनी देओल के मुक्कों की बौछारों के बीच बेबस शाहरुख़ खान दर्शकों के हीरो बन गए। वही सनी देओल काफी छोटी भूमिका के बावजूद दामिनी के नायक ऋषि कपूर पर छा गए। राजकुमार संतोषी की ३० अप्रैल १९९३ को रिलीज़ फिल्म दामिनी में सनी देओल ने एक शराबी वकील गोविन्द की भूमिका की थी, जो मीनाक्षी शेषाद्रि को जीत दिलाने के लिए उसके लिए बलात्कार का मुक़दमा लड़ता है। सनी देओल पूरी फिल्म और ऋषि कपूर पर इस लिए नहीं छाये कि उनकी भूमिका पॉजिटिव लिखी गई थी। बल्कि, वह अपनी शानदार संवाद अदायगी और संयत अभिनय के कारण छा गए थे। उनका बोला गया संवाद 'चड्ढा यह ढाई किलो का हाथ जब किसी पर पड़ता है तो वह उठता नहीं उठ जाता है' दर्शकों को पागल कर देता था।
एक थी मुमताज़
ईरानियन मूल की मुमताज़ ने अपने फिल्म करियर की शुरुआत चाइल्ड आर्टिस्ट और छोटी छोटी भूमिकाओं से भूमिकाओं से की थी। उन्हें पहलवान दारासिंह की नायिका के बतौर शोहरत मिली। मेरे सनम जैसी फिल्मों में उनकी भूमिकाओं में नेगेटिव शेड थे। सावन की घटा (१९६६) में नायक मनोज कुमार की नायिका शर्मीला टैगोर थी। मुमताज़ सह नायिका के किरदार में थी। उस समय तक मुमताज़ को दारा सिंह की फिल्मों की हीरोइन मानते हुए ख़ास तवज्जो नहीं मिलती थी। यह फिल्म एकतरफा प्यार और बलिदान की कहानी थी। मुमताज़ एक तरफा प्यार करने वाली और बलिदान करने वाली नायिका सलोनी का किरदार कर रही थी। वह अपने प्यार को बचाने के लिए विलेन को अपना शरीर सौंप देती है। इस बलिदान के ज़रिये मुमताज़ उस समय की बड़ी अभिनेत्री शर्मीला टगोर पर छा गई। बाद में दिलीप कुमार के साथ राम और श्याम करने के बाद वह हिंदी फिल्मों की बड़ी नायिका बन गई। उन्होंने राजेश खन्ना के साथ आठ रोमांटिक फ़िल्में की थी और यह आठों फ़िल्में प्लैटिनम जुबली फिल्मों में शुमार की गई।
लीड पर छा गए कुछ दूसरे सपोर्टिंग एक्टर
मधुर भंडारकर की फिल्म फैशन की नायिका प्रियंका चोपड़ा थी। मॉडलिंग पर इस फिल्म के तमाम दूसरे किरदारों की तरह सफल मॉडल शोनाली गुजराल का किरदार कंगना रनौत ने किया था। छोटी भूमिका के बावजूद प्रियंका के टक्कर में आना आसान नहीं था। लेकिन, कंगना इस रोल में न केवल उभरी बल्कि सपोर्टिंग एक्ट्रेस का में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने भी कामयाब हुई। १९७८ की फिल्म मुकद्दर का सिकंदर में अमिताभ बच्चन की नायिका राखी गुलजार थी। इस फिल्म में रेखा ने एक तवायफ जोहरा बाई का किरदार किया था। लम्बाई के लिहाज़ से छोटी इस भूमिका से रेखा फिल्म की नायिका राखी पर छा गई। उन्हें फिल्मफेयर में बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का नॉमिनेशन भी मिला। सुभाष है की फिल्म ताल के नायक अक्षय खन्ना थे और ऐश्वर्या राय नायिका। अनिल कपूर सपोर्टिंग किरदार में होने के बावजूद अक्षय खन्ना पर भारी पड़े। विशाल भारद्वाज की फिल्म 'ओमकारा (२००६) के नायक अजय देवगन थे। फिल्म में सैफ अली खान ने उनके गुर्गे लंगड़ा त्यागी का सहयोगी किरदार किया था। अपने कुछ नेगेटिव किरदार के कारण सैफ अजय देवगन पर छा गए। उन्हें इस किरदार के लिए बेस्ट विलेन का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। हेरा फेरी फिल्म में दो हीरो अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी के किरदार पर परेश रावल का बाबूराव गणपतराव का किरदार भारी पड़ा था। २००२ की संजयलीला भंसाली की फिल्म देवदास में चंद्रमुखी के अपने किरदार से माधुरी दीक्षित फिल्म की पारो ऐश्वर्या राय पर छा गई थी। उन्हें फिल्मफेयर ने बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के अवार्ड से नवाज़ा गया। यहाँ एक दिलचस्प तथ्य यह है कि १९५५ की देवदास में चंद्रमुखी का किरदार करने वाली वैजयंतीमाला को भी इसी श्रेणी में पुरस्कृत किया गया था। लेकिन वैजयंतीमाला ने इसे लेने मना कर दिया था।
ज़ाहिर है कि सपोर्टिंग रोल में भी दीपिका पादुकोण पर प्रियंका चोपड़ा भारी पड़ी थी। कभी ऐसा हो जाता है, जब हीरो पर साइड हीरो भारी पड़ जाता है। अपनी फिल्म की लीड को पछाड़ देती है सहयोगी भूमिका। छा जाते हैं इन भूमिकाओं को करने वाले अभिनेता या अभिनेत्रियां। दिलचस्प तथ्य यह है कि लीड एक्टर से सपोर्टिंग एक्टर की टक्कर का दर्शक भी खूब मज़ा लेते हैं। ऐसे दिलचस्प टकराव वाली फिल्म हिट तो होती ही है।
दिलीप कुमार की फिल्मों में टकराव
इस समय याद आ रही है दिलीप कुमार और उनकी फिल्मों की। उन्हें ट्रेजेडी किंग कहा जाता था। वह अपने समय के एक्टर स्टार थे यानि सितारा जो बढ़िया अभिनय भी कर सकता है। यही दिलीप कुमार कम से कम दो बार अपने सपोर्टिंग एक्टर से मात खा गए। दिलीप कुमार को पहली बार मात मिली १९५९ में रिलीज़ एस एस वासन की फिल्म पैगाम में राज कुमार से। इस फिल्म में दोनों कुमारों ने भाई भाई की भूमिका की थी। उस समय राजकुमार महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया के शामू के रोल से पहचाने जाते थे। इसलिए उम्मीद उम्मीद की जाती थी कि अनुभवी दिलीप कुमार इस कल के लौंडे को डकार जायेंगे। लेकिन, हुआ बिलकुल उल्टा। मेथड एक्टर दिलीप कुमार पर लाउड डायलाग उगलने वाले राजकुमार भारी पड़ गए। दर्शकों के रिएक्शन पर दिलीप कुमार मन मसोस कर रह गए। पैगाम के नौ साल और पांच साल बाद, दिलीप कुमार को फिर मात मिली फिल्म संघर्ष में संजीव कुमार से। वाराणसी के पंडों पर इस फिल्म में दिलीप कुमार और संजीव कुमार पंडों के दो समूहों के नेता थे। फिल्म में कई ऐसे सीन थे, जिनमे इन दोनों एक्टरों के बीच धुंआधार संवादों का आदान प्रदान हो रहा था। स्पॉन्टेनियस एक्टर संजीव कुमार उस समय नौनिहाल और अनोखी रात जैसी फिल्मों से अपनी पहचान बना रहे थे। लेकिन, संघर्ष में दिलीप कुमार को धो डालने के बाद संजीव कुमार ने बॉलीवुड में सनसनी फैला दी। पैगाम और संघर्ष के बाद दिलीप कुमार ने राजकुमार और संजीव कुमार के साथ लम्बे समय तक कोई फिल्म नहीं की। पैगाम के ३२ साल बाद सुभाष घई ने इन दोनों दिग्गजों को फिल्म सौदागर में ईगोइस्ट ठाकुरों का किरदार किया था। सुभाष घई ने ही १५ साल बाद फिल्म विधाता में दिलीप कुमार और संजीव कुमार को पेश किया।
जब हारा देओलों का नायक
हिंदी फिल्मों के पहले मर्द अभिनेता और ही-मैन के टाइटल से नवाज़े गए धर्मेंद्र और उनके ढाई किलो का हाथ वाले बेटे सनी देओल को भी बलिष्ठ कद काठी के बावजूद मात खानी पड़ी है। उन्हें यह मात मिली चोपडाओं की फिल्मों के कारण। १९६९ में यश चोपड़ा के निर्देशन में एक फिल्म रिलीज़ हुई थी आदमी और इंसान। इस फिल्म में फ़िरोज़ खान ने एक उद्योगपति जेके और धर्मेंद्र ने उनके दोस्त की भूमिका की थी। धर्मेंद्र फिल्म के नायक थे और फ़िरोज़ खान सह नायक। लेकिन, यश चोपड़ा ने फिल्म के क्लाइमेक्स में क़ुरबानी दिलवा कर फ़िरोज़ को दर्शकों की सहानुभूति दिलवा कर धर्मेंद्र के किरदार पर भारी बना दिया। यश चोपड़ा ने तो १९९३ में अपनी फिल्म डर के खलनायक शाहरुख खान को नायक सनी देओल से पिटवा कर भी नायक बना दिया था । सनी देओल के मुक्कों की बौछारों के बीच बेबस शाहरुख़ खान दर्शकों के हीरो बन गए। वही सनी देओल काफी छोटी भूमिका के बावजूद दामिनी के नायक ऋषि कपूर पर छा गए। राजकुमार संतोषी की ३० अप्रैल १९९३ को रिलीज़ फिल्म दामिनी में सनी देओल ने एक शराबी वकील गोविन्द की भूमिका की थी, जो मीनाक्षी शेषाद्रि को जीत दिलाने के लिए उसके लिए बलात्कार का मुक़दमा लड़ता है। सनी देओल पूरी फिल्म और ऋषि कपूर पर इस लिए नहीं छाये कि उनकी भूमिका पॉजिटिव लिखी गई थी। बल्कि, वह अपनी शानदार संवाद अदायगी और संयत अभिनय के कारण छा गए थे। उनका बोला गया संवाद 'चड्ढा यह ढाई किलो का हाथ जब किसी पर पड़ता है तो वह उठता नहीं उठ जाता है' दर्शकों को पागल कर देता था।
एक थी मुमताज़
ईरानियन मूल की मुमताज़ ने अपने फिल्म करियर की शुरुआत चाइल्ड आर्टिस्ट और छोटी छोटी भूमिकाओं से भूमिकाओं से की थी। उन्हें पहलवान दारासिंह की नायिका के बतौर शोहरत मिली। मेरे सनम जैसी फिल्मों में उनकी भूमिकाओं में नेगेटिव शेड थे। सावन की घटा (१९६६) में नायक मनोज कुमार की नायिका शर्मीला टैगोर थी। मुमताज़ सह नायिका के किरदार में थी। उस समय तक मुमताज़ को दारा सिंह की फिल्मों की हीरोइन मानते हुए ख़ास तवज्जो नहीं मिलती थी। यह फिल्म एकतरफा प्यार और बलिदान की कहानी थी। मुमताज़ एक तरफा प्यार करने वाली और बलिदान करने वाली नायिका सलोनी का किरदार कर रही थी। वह अपने प्यार को बचाने के लिए विलेन को अपना शरीर सौंप देती है। इस बलिदान के ज़रिये मुमताज़ उस समय की बड़ी अभिनेत्री शर्मीला टगोर पर छा गई। बाद में दिलीप कुमार के साथ राम और श्याम करने के बाद वह हिंदी फिल्मों की बड़ी नायिका बन गई। उन्होंने राजेश खन्ना के साथ आठ रोमांटिक फ़िल्में की थी और यह आठों फ़िल्में प्लैटिनम जुबली फिल्मों में शुमार की गई।
लीड पर छा गए कुछ दूसरे सपोर्टिंग एक्टर
मधुर भंडारकर की फिल्म फैशन की नायिका प्रियंका चोपड़ा थी। मॉडलिंग पर इस फिल्म के तमाम दूसरे किरदारों की तरह सफल मॉडल शोनाली गुजराल का किरदार कंगना रनौत ने किया था। छोटी भूमिका के बावजूद प्रियंका के टक्कर में आना आसान नहीं था। लेकिन, कंगना इस रोल में न केवल उभरी बल्कि सपोर्टिंग एक्ट्रेस का में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने भी कामयाब हुई। १९७८ की फिल्म मुकद्दर का सिकंदर में अमिताभ बच्चन की नायिका राखी गुलजार थी। इस फिल्म में रेखा ने एक तवायफ जोहरा बाई का किरदार किया था। लम्बाई के लिहाज़ से छोटी इस भूमिका से रेखा फिल्म की नायिका राखी पर छा गई। उन्हें फिल्मफेयर में बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का नॉमिनेशन भी मिला। सुभाष है की फिल्म ताल के नायक अक्षय खन्ना थे और ऐश्वर्या राय नायिका। अनिल कपूर सपोर्टिंग किरदार में होने के बावजूद अक्षय खन्ना पर भारी पड़े। विशाल भारद्वाज की फिल्म 'ओमकारा (२००६) के नायक अजय देवगन थे। फिल्म में सैफ अली खान ने उनके गुर्गे लंगड़ा त्यागी का सहयोगी किरदार किया था। अपने कुछ नेगेटिव किरदार के कारण सैफ अजय देवगन पर छा गए। उन्हें इस किरदार के लिए बेस्ट विलेन का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। हेरा फेरी फिल्म में दो हीरो अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी के किरदार पर परेश रावल का बाबूराव गणपतराव का किरदार भारी पड़ा था। २००२ की संजयलीला भंसाली की फिल्म देवदास में चंद्रमुखी के अपने किरदार से माधुरी दीक्षित फिल्म की पारो ऐश्वर्या राय पर छा गई थी। उन्हें फिल्मफेयर ने बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के अवार्ड से नवाज़ा गया। यहाँ एक दिलचस्प तथ्य यह है कि १९५५ की देवदास में चंद्रमुखी का किरदार करने वाली वैजयंतीमाला को भी इसी श्रेणी में पुरस्कृत किया गया था। लेकिन वैजयंतीमाला ने इसे लेने मना कर दिया था।
लीड एक्टर पर कोई सपोर्टिंग एक्टर यूं ही नहीं छा जाता। ऐसे रोल को लेखक की तवज्जो मिलनी ही चाहिए। देवदास की चंद्रमुखी वैश्या होने के बावजूद देवदास के दिल के नज़दीक थी। माधुरी दीक्षित हों या सैफ अली खान या फिल्म शाहरुख़ खान, सभी अपने लेखक की कलम पर सवार अपने अभिनय का डंका बजा पाने में कामयाब हुए थे। ज़ाहिर है कि यह सभी सशक्त एक्टर थे। तभी तो लगभग सभी ने कोई न कोई अवार्ड ज़रूर जीता।
राजेंद्र कांडपाल
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