Sunday, 17 July 2016

जब कानन देवी को देख कर गवर्नर खड़े हो गए थे

कानन देवी ने फिल्मों में काम करना तब से शुरू कर दिया था, जब इस पेशे में अच्छे घर की औरतें नहीं आती थी।  हालाँकि, शुरूआती फिल्म निर्माताओं ने, जैसे दादा फालके आदि, अपने घर की औरतों को फिल्मों में काम करने के लिए प्रेरित किया।  लेकिन, उस समय वैश्याएँ और तवायफें ही हिंदी फिल्मों की नायिका बना करती थी।  बंगाल की कानन देवी उन कुछ भले घर की महिलाओं में थी, जिन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू किया।  उनकी पहली फिल्म जॉयदेव एक मूक फिल्म थी और १९२६ में रिलीज़ हुई थी। उनकी पहली सवाक फिल्म जोर बारात १९३१ में रिलीज़ हुई।  इस फिल्म की रिलीज़ के साथ ही बंगाली फिल्म उद्योग में एक सितारे का जन्म हुआ। कानन देवी की चमक अगले तीन दशकों तक बरकरार रही। लेकिन, उन्हें अपनी स्वीकार्यता बनाने के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ा।  क्योंकि, वह एक फिल्म अभिनेत्री ही तो थी। परन्तु, धीरे धीरे फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें स्वीकार किया, उचित सम्मान दिया।  वह पहली ऐसी अभिनेत्री थी, जिन्हे उनके साथी वर्कर मैडम कह कर बुलाते थे।  परन्तु, इसके बावजूद समाज में उनकी उपेक्षा बनी हुई थी। लोग उनके अभिनय की सराहना करते थे, उनके गाये गीत थे, उनके द्वारा स्थापित फैशन ट्रेंड अपनाए जाते थे।  लेकिन, उन्हें सामजिक जलसों में आमंत्रित नहीं किया जाता था। कोई भी प्रतिष्ठित व्यक्ति उनसे शादी करने के सपने नहीं देखता था। यह कानन देवी का खुद पर भरोसा, कठिन परिश्रम कर सब कुछ पाने का इरादा और विपरीत परिस्थितियों को जीतने का जज़्बा था, जिसने कानन देवी को वह स्थान दिला दिया।  एक समय ऐसा आया, जब वह एक समारोह में आमंत्रित की गई तो उस समय के पश्चिम बंगाल के गवर्नर धर्म वीर उनके स्वागत में अपनी कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए थे। कानन देवी की पहली हिंदी फिल्म हरी भक्ति १९३४ में रिलीज़ हुई थी।  वह अच्छी गायिका भी थी। उनकी तेज़ रफ़्तार से गए गीतों का कई संगीतकारों ने बढियां उपयोग किया। उनके कुछ उल्लेखनीय गीतों में ऐ चाँद छुप न जाना, ज़रा नैनों से नैना, दूर देश का रहने वाला, प्रभुजी प्रभुजी तुम, लछमी मूरत दरस दिखाये, सांवरिया मन भाये रे, हमारी नगरिया में, पनघट पे मधु, तुम बिन कल न आये, चली पवन हरसो, आदि थे। १९७७ में उन्हें दादासाहब फालके अवार्ड दिया गया। उनकी मृत्यु १७ जुलाई १९९२ को हुई थी।  


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