सुल्तान कौन हैं ?
५२ साल का सलमान खान- पहली रील से लेकर आखिरी रील तक- हर फ्रेम में।
फिल्म में ३८ साल का पहलवान। लेकिन, अखाड़े पर और रिंग में दिग्गज पहलवानों को धुल चटाता मोटा- थुलथुल बूढ़े खच्चर जैसा फिफ्टी प्लस का सलमान खान।
हर सीन में, हर इमोशन में पिटे हुए मोहरे जैसा चेहरा।
आप किसी भी सीन में नहीं सोच सकते कि आगे क्या होगा ! क्योंकि, हर सीन चुगली करता लगता है कि अब आगे यह होने वाला है। कोई कल्पनाशीलता नहीं। कोई तार्किकता नहीं। सलमान खान के पीछे दौड़ता कैमरा और हांफती स्क्रिप्ट।
अनुष्का शर्मा तो जैसे विराट कोहली के डर से सलमान खान के साथ ठीक से रोमांटिक सीन नहीं कर पा रही थी। पहलवान लगने का सवाल नहीं उठता, टफ हरियाणवी कुड़ी तक नहीं लगी। बस अपना रोल ठीक कर ले गई। सलमान खान को खुद को दोहराना था, दोहरा दिया। अब वह थक गए हैं। दो चार साल में एक फिल्म किया करें तो ठीक रहेगा। नहीं तो दर्शक धोबी पछाड़ दे मरेंगे।
अली अब्बास ज़फर ने लिखने से लेकर सीन गुनने तक का जिम्मा सम्हाला था। इसी ने सब गुड गोबर कर डाला। वह सलमान खान की इमेज के नीचे दबे बुरी तरह से हांफ रहे थे। बाहर निकलने की असफल कोशिश कर रहे थे। वह ऐसे एक बेवक़ूफ़ और निकम्मे हरियाणवी सुल्तान को ओलिंपिक और विश्व कुश्ती चैंपियन बना रहे थे, जैसे जानते हों कि सलमान खान कुछ भी कर सकता है। सुपर स्टार जो है। सब कुछ बेहद नकली। विशाल-शेखर का संगीत काफी भारी भरकम है। उन्होंने तमाम गीतों की सिचुएशन ऎसी चुनी है, जो फिल्म की कहानी को रोकते हैं। रामेश्वर एस भगत सलमान भक्ति में अपनी कैंची चलाना भूल गए। नतीजतन फिल्म १७० मिनट लम्बी और उबाऊ बन गई। सुल्तान के स्टंट देशी विदेशी को-ओर्डिनटर्स द्वारा तैयार किये गए हैं, लेकिन, इनमे रोमांच नदारद है।
फिल्म हरियाणा के सुल्तान की है, जो केवल छह महीने में न केवल कुश्ती सीख लेता है, बल्कि मिटटी वाले अखाड़े से सीधे गद्दे वाले रिंग पर खुद को सुल्तान साबित कर लेता है। जबकि, हर कोई जानता है कि शुरूआती दौर में भारतीय पहलवान ओलंपिक्स या विश्व की अन्य प्रतिस्पर्द्धाओं में इस लिए सफल नहीं हो सके कि वह गद्दों पर कुश्ती लड़ने के आदी नहीं थे। सलमान खान के सुल्तान का मार्शल आर्ट्स वाली रिंग पर कुश्ती में महारत कैसे हासिल कर ली, वह भी छह हफ़्तों में गले के नीचे नहीं उतरता। फिल्म में ऎसी बहुत सी खामियां हैं। इनसे फिल्म के साधारण लव स्टोरी भी नहीं रह जाती।
५२ साल का सलमान खान- पहली रील से लेकर आखिरी रील तक- हर फ्रेम में।
फिल्म में ३८ साल का पहलवान। लेकिन, अखाड़े पर और रिंग में दिग्गज पहलवानों को धुल चटाता मोटा- थुलथुल बूढ़े खच्चर जैसा फिफ्टी प्लस का सलमान खान।
हर सीन में, हर इमोशन में पिटे हुए मोहरे जैसा चेहरा।
आप किसी भी सीन में नहीं सोच सकते कि आगे क्या होगा ! क्योंकि, हर सीन चुगली करता लगता है कि अब आगे यह होने वाला है। कोई कल्पनाशीलता नहीं। कोई तार्किकता नहीं। सलमान खान के पीछे दौड़ता कैमरा और हांफती स्क्रिप्ट।
अनुष्का शर्मा तो जैसे विराट कोहली के डर से सलमान खान के साथ ठीक से रोमांटिक सीन नहीं कर पा रही थी। पहलवान लगने का सवाल नहीं उठता, टफ हरियाणवी कुड़ी तक नहीं लगी। बस अपना रोल ठीक कर ले गई। सलमान खान को खुद को दोहराना था, दोहरा दिया। अब वह थक गए हैं। दो चार साल में एक फिल्म किया करें तो ठीक रहेगा। नहीं तो दर्शक धोबी पछाड़ दे मरेंगे।
अली अब्बास ज़फर ने लिखने से लेकर सीन गुनने तक का जिम्मा सम्हाला था। इसी ने सब गुड गोबर कर डाला। वह सलमान खान की इमेज के नीचे दबे बुरी तरह से हांफ रहे थे। बाहर निकलने की असफल कोशिश कर रहे थे। वह ऐसे एक बेवक़ूफ़ और निकम्मे हरियाणवी सुल्तान को ओलिंपिक और विश्व कुश्ती चैंपियन बना रहे थे, जैसे जानते हों कि सलमान खान कुछ भी कर सकता है। सुपर स्टार जो है। सब कुछ बेहद नकली। विशाल-शेखर का संगीत काफी भारी भरकम है। उन्होंने तमाम गीतों की सिचुएशन ऎसी चुनी है, जो फिल्म की कहानी को रोकते हैं। रामेश्वर एस भगत सलमान भक्ति में अपनी कैंची चलाना भूल गए। नतीजतन फिल्म १७० मिनट लम्बी और उबाऊ बन गई। सुल्तान के स्टंट देशी विदेशी को-ओर्डिनटर्स द्वारा तैयार किये गए हैं, लेकिन, इनमे रोमांच नदारद है।
फिल्म हरियाणा के सुल्तान की है, जो केवल छह महीने में न केवल कुश्ती सीख लेता है, बल्कि मिटटी वाले अखाड़े से सीधे गद्दे वाले रिंग पर खुद को सुल्तान साबित कर लेता है। जबकि, हर कोई जानता है कि शुरूआती दौर में भारतीय पहलवान ओलंपिक्स या विश्व की अन्य प्रतिस्पर्द्धाओं में इस लिए सफल नहीं हो सके कि वह गद्दों पर कुश्ती लड़ने के आदी नहीं थे। सलमान खान के सुल्तान का मार्शल आर्ट्स वाली रिंग पर कुश्ती में महारत कैसे हासिल कर ली, वह भी छह हफ़्तों में गले के नीचे नहीं उतरता। फिल्म में ऎसी बहुत सी खामियां हैं। इनसे फिल्म के साधारण लव स्टोरी भी नहीं रह जाती।
No comments:
Post a Comment